POCSO Act में धारा 18 के प्रावधान

Shadab Salim

31 Oct 2025 1:40 PM IST

  • POCSO Act में धारा 18 के प्रावधान

    अधिनियम की यह धारा 18 अपराध के प्रयत्न से संबंधित है। इस धारा के प्रावधान है कि-

    जो कोई इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध को करने का प्रयास करता है या किसी अपराध को करवाता है और ऐसे प्रयास में अपराध कारित करने के लिए कोई कार्य करता है वह अपराध के लिए उपबंधित किसी प्रकार के किसी ऐसी अवधि के कारावास से जो यथास्थिति, आजीवन कारावास के आधे तक का हो सकेगा या उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की अधिकतम अवधि के आधे तक का हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से दंडनीय होगा।

    शब्द प्रयत्न का साधारणतया तात्पर्य ऐसे कृत्य के साथ संयोजित आशय है, जिसमें आशयित चीज का अभाव हो। इसे किसी कृत्य को करने के प्रयत्न, जो मात्र तैयारी के परे कारित किया गया हो, परन्तु निष्पादन का अभाव हो, के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

    अपराध कारित करने का आशय के अपेक्षित तत्व दाण्डिक विधि में अपराध कारित करने का आशय अपराध कारित करने के प्रति किए गये कृत्य के साथ होता है। अपराध को पूरा करने का प्रयास अथवा प्रयत्न, जो उसकी मात्र तैयारी अथवा योजना बनाने से अधिक की कोटि में आता हो, जिसे यदि साबित न किया गया हो, प्रयत्न किए गये कृत्य की सम्पूर्ण समाप्ति में परिणामित होगा, परन्तु जो वास्तव में पक्षकार की अन्तिम इच्छा को पूरा करने में सफल नहीं होता है। अपराध कारित करने के "प्रयत्न" के अपेक्षित तत्व ये हैं

    उसे कारित करने का आशय,

    उसके कारित करने के प्रति प्रत्यक्ष कृत्य

    पूर्णता की असफलता, और

    कारित करने की अभिव्यक्त संभावना।

    बलात्संग कारित करने का पर्याप्त साक्ष्य बलात्संग कारित करने का प्रयत्न भी गम्भीर अपराध होता है। यहाँ पर अपराधी अपराध को पूरा करने के लिए प्रत्येक चीज करता है, परन्तु कतिपय अपूर्वानुमानित घटना के कारण वह कृत्य को पूरा करने में विफल होता है। सबूत प्रस्तुत किया जाना है। पीड़िता अपराधी और अपराध स्थल पर उपलब्ध सभी साक्ष्य को एकत्र किया जाना चाहिए। वास्तविक मामले में चूंकि पीडिता पर हमला किया जाता है, इसलिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध होता है। इस पर उसी रीति में कार्यवाही की जाती है, जैसे बलात्संग के मामले में की जाती है।

    पद "प्रयत्न" का निर्धारण जब कोई तैयारी के प्रक्रम पर पहुंचने के पश्चात् प्रत्यक्ष कृत्य कोई अपराध कारित करने के आशय से किया जाता है, यद्यपि आशयित अपराध वास्तविक रूप में कारित किया जा सके अथवा नहीं, प्रयत्न के रूप में कहा जा सकेगा।

    किसी महिला पर अश्लील हमले का आशय अथवा अभिव्यक्ति बलात्संग के प्रयत्न की कोटि में तब तक नहीं आता है, जब तक अभियुक्त का सभी स्थितियों में और प्रतिरोध के बावजूद अपने आवेश को संतुष्ट करने के लिए दृढ संकल्प को साबित नहीं कर दिया जाता है।

    ऐसा अपमानजनक कृत्य करने के लिए पति के द्वारा मात्र प्रयत्न पत्नी के प्रति क्रूरता की कोटि में आएगा और पत्नी क्रूरता के आधार पर विवाह-विच्छेद के लिए अपने पति के विरुद्ध वाद दाखिल कर सकती है। परन्तु यह बलात्संग की कोटि में नहीं आएगा, यदि वह अपने प्रयत्न में सफल नहीं होता है।

    क्या कतिपय कृत्य विशेष अपराध कारित करने के प्रयत्न की कोटि में आता है, अपराध की प्रकृति और उसे कारित करने के लिए उठाए जाने वाले आवश्यक कदमों पर निर्भर रहते हुए तथ्य का प्रश्न होता है। रामेश्वर बनाम हरियाणा राज्य 1984 क्रि लॉ ज 786 के मामले में यह पाया गया है कि अपीलार्थी अभियोक्त्री, श्रीमती दर्शन, बलबीर की पत्नी को पकड़ लिया था और उसके साथ बलात्सग कारित करने के लिए उसके सलवार की डोरी खोलने का प्रयत्न किया था परन्तु उसने प्रतिरोध किया था उसने कुल्हाड़ी उठा लिया था और अपीलार्थी के शरीर के ऊपरी भाग पर क्षति कारित किया था और इसके पश्चात् वह बच निकला था।

    अपीलार्थी ने अभियोक्त्री के द्वारा पहने गये सलवार की डोरी खोलने का प्रयत्न किया था, परन्तु वह ऐसा करने में विफल हुआ था। अपीलार्थी की ओर से कोई अन्य कृत्य नहीं है। यदि ऊपर उद्धृत मामले में न्यायमूर्ति पैटर्सन के अधिमत को अनुसरित किया जाता है। कोर्ट अभियोजन मामले से यह नहीं देख सकता है कि अभियुक्त सभी स्थिति में लैंगिक समागम कारित करने के लिए दृढ संकल्प था, क्योंकि ज्यों ही अभियोक्त्री के द्वारा उस कुल्हाड़ी से प्रहार किया गया था, त्यों ही वह भाग निकला था। बलात्संग कारित करने के प्रयत्न के अपराध के लिए अभियोजन को यह साबित करना चाहिए कि वह तैयारी के प्रक्रम के परे गया है। अपराध कारित करने की मात्र तैयारी और वास्तविक प्रयत्न के बीच अन्तर मुख्य रूप में दृढ संकल्प की बड़ी मात्रा में शामिल होता है।

    वर्तमान मामले में अपीलार्थी ने अपना गुप्तांग न तो प्रदर्शित किया था न तो प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया था। इन सभी कारणों से कोर्ट अपर सत्र न्यायाधीश से इस बात पर सहमत नहीं हो सकता है कि अभिलेख पर साक्ष्य से यह निःसंदेह बलात्संग कारित करने के प्रयत्न का मामला था। वह निःसंदेह रूप में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन अपराध कारित करने का दोषी था। इसलिए, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376/511 के अधीन अभिलिखित की गयी उसकी दोषसिद्धि तथा दण्डादेश को अपास्त किया गया। लेकिन उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन दोषसिद्ध किया गया।

    गुलाम अहमद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, 2006 क्रि लॉ ज अभियुक्त अपनी कामवासना को संतुष्ट करने के लिए बलात्संग कारित करने के आशय से पीडिता को भूमि पर उसकी शाल पर गिरा दिया, उसकी सलवार फाड़ दिया, अपनी पेंट खोला, उस पर लेट गया, जो यह दर्शाएगा कि वह सभी स्थितियों में उसके शरीर पर अपने आवेश को संतुष्ट करने के लिए आशयित था। यह केवल उस समय था, जब पीड़िता की माँ पीड़िता को बुलाने और देखने के लिए घटनास्थल पर पहुंची थी कि वह पीड़िता के शरीर पर से उठा और भाग गया। यह उसे प्रवेशन से निवारित किया था, परन्तु इस प्रक्रिया में शाल पर उसका स्खलन हुआ था जिसके धब्बे उसके पैट पर भी पाए गये थे। अभियुक्त का कृत्य स्पष्ट रूप में धारा 376, सपठित धारा 511 के अधीन आएगा। यह अभिवाक कि अभियुक्त केवल लज्जा भंग करने का दोषी था धार्य नहीं था बलात्संग कारित करने के प्रयत्न के लिए दोषसिद्धि उचित थी।

    मोहम्मद जमाल उद्दीन उर्फ आबेदीन बनाम त्रिपुरा राज्य, 2009 क्रि लॉ ज 2572 अभियोजन साक्षी 9 के साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि जिसने अभियुक्त/अपीलार्थी के इस पूर्ववर्ती आचरण के बारे में कहा था कि अभियुक्त-अपीलार्थी ने उसके साथ एक बार रात्रि के समय अपने घर में तेलपारा और जलपारा के कर्मकाण्ड के द्वारा उपचार के नाम पर बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था। इसलिए इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि अभियुक्त-अपीलार्थी की उपचार के नाम पर महिला रोगी के साथ बलात्संग के प्रयत्न / कारित करने की आदत थी। इसलिए मात्र पीडिता लड़की के शरीर पर बाहय क्षति का अभाव विशिष्ट रूप में पीड़िता लड़की की अभियोजन कहानी पर अविश्वास करने के लिए आधार नहीं हो सकता है।

    यह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 सपठित धारा 511 के अधीन दंडनीय है। अभियुक्त ने जब अभियोक्त्री को उसके पिता के आटा मिल पर पकड़ा था और बलपूर्वक उसे झाडियों तथा पेड़ों की तरफ घसीट कर ले गया था वह उसे जमीन पर फेक दिया था और उसे निर्वस्त्र करने के लिए उसके अन्तःवस्त्रों को हटाया था, उस पर लेट गया था और उसने प्रवेशन के लिए प्रयत्न किया था और तब अभियोक्त्री के गुप्तांग से रक्तस्त्राव प्रारम्भ हो गया था, तब बलात्संग अथवा बलात्संग कारित करने के कम-से-कम प्रयत्न का अपराध साबित हुआ है।

    बलात्संग के अपराध के लिए अपरिहार्य प्रवेशन, न कि स्खलन है। प्रवेशन के बिना स्खलन बलात्संग कारित करने का प्रयत्न, न कि वास्तविक बलात्संग गठित करता है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 में यथाअन्तर्विष्ट "बलात्संग" की परिभाषा "लैंगिक समागम" को निर्दिष्ट करती है और धारा से संलग्न स्पष्टीकरण यह प्रावधान करता है कि बलात्संग के अपराध के लिए आवश्यक लैंगिक समागम गठित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है। समागम का तात्पर्य लैंगिक सम्बन्ध है। वर्तमान मामले में वह सम्बन्ध साबित नहीं हुआ है। अवर कोर्ट अपने विचार में सही नहीं थे।

    जब अभियोक्त्री के साक्ष्य पर उचित परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाता है, तब यह स्पष्ट है कि वास्तविक बलात्संग कारित करना साबित नहीं हुआ है। लेकिन यह साबित करने के लिए साक्ष्य पर्याप्त है कि बलात्संग कारित करने का प्रयत्न बनता था। वह स्थिति होने के कारण दोषसिद्धि को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 से भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376/511 में परिवर्तित किया जाता है। साढ़े तीन वर्ष का अभिरक्षीय दण्डादेश न्याय के उद्देश्यों को पूरा करेगा। अभियुक्त, जो जमानत पर है अपने अवशेष दण्डादेश को भुगतने के लिए अभिरक्षा में आत्मसमर्पण करेगा।

    कमल कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, 2009 क्रि लॉ ज 36 अभियोजन मामला यह था कि अभियुक्त अभियोक्त्री, अवयस्क लड़की को झाड़ियों की तरफ ले गया था और उसका पायजामा उतारा था और अपने पुरुष जननांग को उसकी योनि पर रगड़ा था तथा इसे उसके मुंह में डाला था। अभियुक्त ने अपने कृत्य को प्रारम्भ किया था और यह बलात्संग का अपराध कारित करने की कोटि में आता था। परन्तु इस बीच में अभियोक्त्री की माँ के बुलाने के द्वारा बाधित किया गया था और वह घटनास्थल से भाग गया था। अभियुक्त अभियोक्त्री के साथ बलात्संग के प्रयत्न और लज्जा भंग करने का दोषी था।

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