Transfer Of Property Act में Conditional Transfer से संबंधित प्रावधान

Shadab Salim

15 Jan 2025 3:58 AM

  • Transfer Of Property Act में Conditional Transfer से संबंधित प्रावधान

    संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 25 सशर्त अंतरण के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा के अंतर्गत कुछ आधार प्रस्तुत किए गए हैं जिनके विद्यमान होने पर अंतरण निष्फल हो जाता है अर्थात ऐसा अंतरण अंतरण नहीं माना जाता है। यह 6 प्रकार के आधार हैं जिनका उल्लेख इस लेख में आगे किया जाएगा। हालांकि यह अधिनियम संपत्ति का अंतरण किसी शर्त के साथ और उसके बगैर भी अंतरण की आज्ञा देता है पर कुछ शर्ते ऐसी होती हैं जिन पर अंतरण नहीं होता है।

    इस अधिनियम के अन्तर्गत सम्पत्ति का अन्तरण किसी शर्त के साथ अथवा बिना शर्त के हो सकता है। यदि अन्तरण बिना किसी शर्त के किया गया है तो अन्तरिती को सम्पत्ति में तुरन्त हित प्राप्त हो जाता है, पर यदि अन्तरण सशर्त है तो अन्तरिती में सम्पत्ति का हित होना निम्नलिखित दो तथ्यों पर निर्भर करेगा:-

    अध्यारोपित शर्त वैध हो

    शर्त का अनुपालन हुआ हो

    अध्यारोपित शर्त पूर्ववर्ती हो सकती है अथवा पश्चात्वर्ती या पाश्चिक। यदि शर्त ऐसी हैं जिसका अनुपालन सम्पत्ति में हित पाने से पूर्व करना आवश्यक है तो शर्त पूर्ववर्ती या पूर्विक या पुरोभाव्य कही जाएगी। किन्तु यदि सम्पत्ति में हित पाने के लिए शर्त का पूर्ण होना आवश्यक नहीं है, हित पाने के बाद उसे पूर्ण करना आवश्यक है तो ऐसी शर्त, पश्चात्वर्ती पाश्चिक या उत्तरवर्ती कही जाएगा। यदि शर्त उत्तरवती है और उसका अनुपालन नहीं होता है तो निहित हित प्रतिसंहरित (Revocable) हो जाता है और इस प्रकार प्रतिसंहरित हित अन्तरक में पुनः निहित हो जाता है किन्तु यदि प्रतिसंहरित हित अन्तरक में पुनः निहित होने के बजाय किसी अन्य व्यक्ति को चला जाता है और उसमे निहित हो जाता है तो इस प्रकार अन्तरण सशर्त परिसीमन कहा जाता है।

    उदाहरणार्थ 'अ' अपनी सम्पत्ति 'ब' को 'स' से विवाह करने की शर्त पर अन्तरित करता है। यहाँ 'ब' सम्पत्ति पाने का अधिकारी होगा यदि वह 'स' से विवाह करता है। यह शर्त पूर्ववर्ती शर्त होगी। यदि अन्तरण इस शर्त के साथ 'ब' के पक्ष में किया जाए कि वह अन्तरण की तिथि से दो वर्ष की अवधि के अन्दर 'स' से विवाह कर ले और यदि ऐसा करने में विफल रहेगा तो सम्पत्ति से उसका हित समाप्त हो जाएगा।

    यह शर्त उत्तरवर्ती शर्त होगी क्योंकि 'ब' के विफल होने की दशा में उसका हित सम्पत्ति से समाप्त हो जाएगा। यह हित प्रतिसंहरित होने के उपरान्त अन्तरक में निहित हो जाएगा। यदि यह उपबन्धित किया गया हो कि 'ब' द्वारा निर्धारित अवधि के अन्दर विवाह न करने पर सम्पत्ति 'घ' को मिल जाएगी और वह शर्त का अनुपालन करने में विफल रहता है तो सम्पत्ति उसके पास से हटने के बाद 'घ' में निहित होगी, अन्तरक के पास वापस नहीं जाएगी। इस. प्रकार के अन्तरण को सशर्त परिसीमन के नाम से जाना जाता है।

    पूर्ववर्ती अथवा पुरोभाव्य शर्त- यह शर्त ऐसी होती है जिसका सम्पत्ति में हित पाने से पूर्व पूर्ण किया जाना आवश्यक है। दूसरे शब्दों में जब तक अन्तरिती शर्त को पूर्ण नहीं करेगा उसे सम्पत्ति में हित नहीं प्राप्त होगा। इस धारा के अन्तर्गत पूर्ववर्ती शर्त के निम्नलिखित आवश्यक तत्व निर्धारित किये गये हैं

    असम्भव न हो

    विधि द्वारा निषिद्ध न हो

    विधि के किसी उपबन्ध को विफल करने की क्षमता से युक्त न हो

    कपटपूर्ण न हो

    किसी के शरीर या सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने को अहंता से युक्त न हो

    अनैतिक या लोक नीति के विरुद्ध न हो

    (1) शर्त पूर्ति असम्भव न हो- शर्त के लिए यह आवश्यक है कि वह ऐसी हो जिससे उसका अनुपालन किया जा सके। यदि शर्त की पूर्ति असम्भव है तो ऐसी शर्त वैध नहीं होगी और अन्तरण शून्य हो जाएगा। उदाहरणस्वरूप 'अ' अपना मकान 'ब' को इस शर्त पर किराये पर देने को तैयार है कि वह प्रति घंटा 100 मील पैदल चले। पट्टा अवैध होगा क्योंकि शर्त की पूर्ति असम्भव है। शर्त का अनुपालन प्रारम्भतः असम्भव हो सकता है या बाद में दोनों ही अवस्थाओं में अन्तरण शून्य होगा। किन्तु यदि शर्त का अनुपालन उस व्यक्ति ने असम्भव बना दिया है जिसे शर्त के विफल होने से फायदा होना है। या किसी दैवीय कृत्य के कारण विफल हुआ है तो शर्त का अनुपालन असम्भव नहीं समझा जाएगा।

    (2) शर्त विधि द्वारा निषिद्ध न हो- यदि अन्तरण किसी ऐसी शर्त पर आश्रित है जिस शर्त का लगाया जाना विधि द्वारा प्रतिषिद्ध किया गया हो तो शर्त अवैध होगी और अन्तरण शून्य होगा। उदाहरणार्थ 'क' ने अपनी जमीन 'ख' को इस शर्त पर अन्तरित किया कि वह ग के ज्येष्ठ पुत्र को गोद ले ले, या अपने पति को तलाक दे दे। शर्त अवैध है। यदि शर्त ऐसी है जिसका अनुपालन होने से विधि के किसी उपबन्ध के विफल होने की सम्भावना है तो ऐसी शर्त अवैध होगी। 'अ', 'ब' को एक खेत इस शर्त पर अन्तरित करता है कि वह अपनी पत्नी को त्यागकर 'स' के साथ विवाह कर ले अन्तरण शून्य होगा क्योंकि शर्त शून्य है। एक दिवालिये व्यक्ति द्वारा किसी एक ऋणदाता के पक्ष में इस शर्त के साथ अन्तरण कि वह उसे अन्तिम रूप से दायित्व से मुक्त कर देगा, इस धारा से प्रभावित होगा।'अ'. एक हिन्दू 'ब' को 1000 रुपये इस शर्त पर देता है कि वह अपने पुत्र को उसे गोद में दे दे। यह अन्तरण अवैध होगा क्योंकि इससे हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम के उपबन्धों के विफल होने की सम्भावना है।

    (3) शर्त कपटपूर्ण न हो- यदि शर्त द्वारा किसी के साथ छल कपट या धोखा जैसे संव्यवहारों को बढ़ावा मिल रहा हो तो शर्त वैध नहीं होगी। यदि अ, ब को जो स का अभिकर्ता है एक जमीन इस शर्त के साथ दे कि वह स्वामी स के ज्ञान के बिना अ को दायित्व से मुक्त कर दें, तो ऐसा अन्तरण इस नियम से प्रभावित होगा।

    (4) शर्त किसी की शरीर या सम्पत्ति को क्षति न पहुँचाये - यदि शर्त को प्रकृति इस प्रकार की है कि उससे किसी के शरीर या सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने की सम्भावना है तो ऐसी शर्त से युक्त अन्तरण शून्य होगा। शर्त अवैध मानी जाएगी। अ, ब को 1000 रुपये इस शर्त के साथ देता है कि वह स के खलिहान में आग लगा दे या स की हत्या कर दे। अन्तरण शून्य होगा।

    (5) शर्त अनैतिक तथा लोकनीति के विरुद्ध न हो- यदि शर्त ऐसी है जिसे अनैतिक घोषित किया जा चुका है या घोषित किये जाने की सम्भावना है या वह लोकनीति के विरुद्ध है तो ऐसी शर्त युक्त अन्तरण शून्य होगा। अ अपना मकान ब को इस शर्त के साथ अन्तरित करता है कि मकान वेश्यावृत्ति के लिए प्रयोग में लाया जाए। अन्तरण शून्य होगा। अ अपना मकान एक व स्त्री को इस शर्त के साथ किराये पर देता है कि ब, अ के साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करे। अन्तर अवैध होगा।

    किसी लोक सेवक को इस शर्त के साथ सम्पत्ति अन्तरित करना कि वह अपने विवेक का प्रयोग अन्तरक के पक्ष में करे लोक नीति के विरुद्ध है। इसी प्रकार एक पिता को इस शर्त पर उत्कोच देना कि वह अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दे, लोक नीति के विरुद्ध है।

    पूर्ववर्ती शर्त की कुछ निम्नलिखित विशेषताएं हैं जो निम्नलिखित है-

    1. शर्त अन्तरण की अग्रगामी होती है अतः शर्त के पूर्ण हुए बिना अन्तरिती में हित निहित नहीं होगा।

    2. शर्त के अवैध या शून्य होने की स्थिति में सम्पूर्ण अन्तरण शून्य हो जाएगा।

    3. शर्त के वैध होने की स्थिति में उसका सारतः अनुपालन सम्पत्ति में हित निहित होने के लिए पर्याप्त होगा।

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