POCSO Act में गुरुतर लैंगिक हमले से संबंधित प्रावधान
Shadab Salim
26 Oct 2025 10:26 PM IST

इस एक्ट की धारा 5 गुरुतर लैंगिक हमले की परिभाषा देती है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि गुरुतर अर्थात बड़ा। अगर कोई किसी विश्वास के पद पर रहते हुए किसी बालक के साथ लैंगिक हमला करता है तो इसे गुरुतर लैंगिक हमला माना गया है। जैसे एक पुलिस अधिकारी पद पर रहते हुए अगर लैंगिक हमला करेगा तो यह गुरुतर लैंगिक हमला होगा। इस आलेख में धारा 5 पर प्रकाश डाला जा रहा है।
एक मामले में कहा गया है कि तीन वर्ष की लड़की की योनि में अंगुली डालना, जो चिकित्सीय साक्ष्य के द्वारा समर्पित है इसमें कोई संदेह नहीं छोड़ता है कि गुरुतर लैंगिक हमले के अपराध के आवश्यक तत्व पूर्ण रूप में साबित होते है। बलात्संग अथवा प्रवेशन लैगिक हमले के अपराध के लिए पूर्ण प्रवेशन अपरिहार्य नहीं होता है। किसी भी रूप में प्रवेशन ऐसे अपराधों के आवश्यक तत्वों को करने के लिए पर्याप्त होता है।
पुलिस थाना" का तात्पर्य ऐसी कोई चौकी अथवा स्थान है, जिसे राज्य सरकार के द्वारा सामान्यतः अथवा विशेष रूप में पुलिस थाना होना घोषित किया गया हो और इसमें इस निमित्त राज्य सरकार के द्वारा विनिर्दिष्ट कोई स्थानीय क्षेत्र शामिल है।
पुलिस थाना का भारसाधक अधिकारी में, जब पुलिस थाना का भारसाधक अधिकारी पुलिस थाना से अनुपस्थित हो अथवा बीमारी अथवा अन्य कारण से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो, तब पुलिस थाना में उपस्थित पुलिस अधिकारी जो ऐसे अधिकारी से श्रेणी में अगला हो तथा कांस्टेबिल की श्रेणी से ऊपर हो अथवा जब राज्य सरकार इस प्रकार निर्देशित करती है, इस प्रकार प्रस्तुत कोई अन्य पुलिस अधिकारी शामिल होता है।
पद "पुलिस अधिकारी" साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के अन्तर्गत विभिन्न राज्य में विभिन्न पुलिस अधिनियम पुलिस अधिकारियों पर विशेष शक्ति प्रदत्त करते हैं और विशेष कर्तव्य अधिरोपित करते हैं। केन्द्रीय रिवर्ज पुलिस बल के सदस्य को वे विशेष शक्तिया अथवा कर्तव्य तब तक प्राप्त नहीं होंगे, जब तक वे विशेष रिजर्व पुलिस बल अधिनियम, 1949 की धारा 16 के अधीन उस पर प्रदत्त अथवा अधिरोपित न की गयी हो, परन्तु मात्र इस कारण से कि विशेष शक्तिया अथवा कर्तव्य केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के सदस्यों पर प्रदत्त अथवा अधिरोपित नहीं की गयी इसका तात्पर्य यह नहीं होगा कि वे साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के अर्थ के अन्तर्गत पुलिस अधिकारी नहीं होते हैं।
अब यह सुनिश्चित विधि है कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 मे पद पुलिस अधिकारी को तकनीकी अर्थ में नही पढ़ा जाना है, परन्तु उसके अधिक व्यापक और चर्चित अर्थ के अनुसार पढ़ा जाना है। लेकिन, शब्दों का ऐसे व्यापक अर्थ में अर्थान्वयन नहीं किया जाना है, जिससे कि इसमें ऐसे व्यक्तियों को शामिल किया जा सके, जिस पर पुलिस के द्वारा प्रयोग की जाने वाली केवल कुछ शक्तिया प्रदत्त की गयी हो।
376-ग प्राधिकार में किसी व्यक्ति द्वारा मैथुन जो कोई
(क) प्राधिकार की किसी स्थिति या वैश्वासिक संबंध रखते हुए या
(ख) कोई लोक सेवक होते हुए, या
(ग) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी जेल. प्रतिप्रेषण गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान का या स्त्रियों या बालकों की किसी संस्था का अधीक्षक या प्रबंधक होते हुए, या
(घ) अस्पताल के प्रबंधतंत्र या किसी अस्पताल का कर्मचारिवृंद होते हुए,
ऐसी किसी स्त्री को जो उसकी अभिरक्षा में है या उसके भारसाधन के अधीन है या परिसर मे उपस्थित है, अपने साथ मैथुन करने हेतु जो बलात्संग के अपराध की कोटि में नही आता है उत्प्रेरित या विलुब्ध करने के लिए ऐसी स्थिति या वैश्वासिक संबंध का दुरुपयोग करेगा वह दोनों में से किसी भाति के कठोर कारावास से, जो पाच वर्ष से कम का नहीं किन्तु जो दस वर्ष तक का हो सकेगा. दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
स्पष्टीकरण/- इस धारा में मैथुन से धारा 375 के खंड (क) से खंड (घ) में वर्णित कोई कृत्य अभिप्रेत होगा।
स्पष्टीकरण 2-इस धारा के प्रयोजनों के लिए धारा 375 का स्पष्टीकरण भी लागू होगा।
स्पष्टीकरण 3―किसी जेल प्रतिप्रेषण गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान या स्त्रियो या बालको की किसी संस्था के संबंध में अधीक्षक के अंतर्गत कोई ऐसा व्यक्ति है, जो जेल. प्रतिप्रेषण गृह स्थान या संस्था में ऐसा कोई पद धारण करता है जिसके आधार पर वह उसके निवासियों पर किसी प्राधिकार या नियंत्रण का प्रयोग कर सकता है।
स्पष्टीकरण 4-अस्पताल और स्त्रियों या बालको की संस्था पदों का क्रमशः वही अर्थ होगा जो धारा 376 की उपधारा (2) के स्पष्टीकरण में उनका है।
ओकार प्रसाद वर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य एआईआर 2007 एससी 1381 कारित बलात्संग दोषसिद्धि उचित नहीं यह अभिकथन किया गया था कि एक सरकारी स्कूल के अध्यापक ने विद्यार्थी के साथ बलात्संग कारित किया था। अध्यापक यद्यपि लोक सेवक था फिर भी विद्यार्थी को उसकी अभिरक्षा में होना नहीं कहा जा सकता है। यदि विद्यार्थी और अध्यापक प्रेम में हो, तब अध्यापक को अपनी स्थिति का असम्यक लाभ लेने के लिए नहीं कहा जा सकता है। इसके अतिरिक्त जब अपराध स्कूल के बाहर कारित किया गया था तब अध्यापक की दोषसिद्धि उचित नहीं थी।
लैंगिक भावना को संतुष्ट करना अभियुक्त ने अपने लैंगिक भावना को संतुष्ट करने के लिए कृत्य कारित किया था, जिसका अन्वेषण अधिकारी के रूप में उसके कर्तव्यों के निर्वहन से कोई सम्बन्ध नहीं था। अन्यथा भी मंजूरी के अभाव के बारे में उसके द्वारा विचारण के दौरान आपत्ति उठायी गयी थी। वह उसे अपील में नहीं उठा सकता था।
अभिरक्षीय बलात्संग का दण्डादेश अभिरक्षीय बलात्संग के मामलों में जब एक बार अभियुक्त के द्वारा लैंगिक समागम साबित हो गया हो अथवा महिला यह साक्ष्य देती है कि उसने सम्मति प्रदान नहीं किया था, तब कोर्ट यह उपधारणा करेगा कि उसने सम्मति प्रदान नहीं किया था।

