The Indian Contract Act में Revocation के संबंध में प्रावधान
Shadab Salim
13 Aug 2025 9:51 AM IST

Revocation का मतलब होता है कैंसल करना, अपने प्रस्ताव और स्वीकृति को रद्द करना। प्रश्न उठता है कि कोई भी प्रस्ताव या स्वीकृति को रद्द किया जा सकता है रद्द करने की समय अवधि क्या है।
धारा 5 के अनुसार कोई भी प्रस्थापना उसके प्रतिग्रहण की सूचना प्रस्थापक के विरुद्ध संपूर्ण हो जाने के पूर्व किसी भी समय प्रतिसंहरण की जा सकेगी किंतु उसके पश्चात नहीं।
कोई भी प्रतिग्रहण या प्रतिग्रहण की सूचना प्रतिग्रहिता के विरुद्ध संपूर्ण हो जाने से पूर्व किसी भी समय प्रतिसंहरण किया जा सकेगा किंतु उसके पश्चात नहीं।
अधिनियम के अंतर्गत प्रस्ताव और स्वीकृति दोनों के प्रतिसंहरण की व्यवस्था रखी गई है। प्रस्ताव करने वाले को अपने प्रस्ताव को रद्द करने का भी अधिकार दिया गया है तथा स्वीकृति करने वाले को अपनी स्वीकृति रद्द करने का भी अधिकार दिया गया है परंतु यह अधिकार सीमाओं के अंतर्गत बांधा गया है। ऐसा नहीं है कि किसी भी प्रस्ताव को कभी भी रद्द किया जा सकता है और किसी व्यक्ति को कभी भी रद्द किया जा सकता है। इसके लिए समय अवधि दी गई है और वैज्ञानिक तर्क बताए गए हैं जिसके आधार पर ही प्रस्ताव और स्वीकृति को रद्द किया जा सकता है।
प्रस्थापना का प्रतिसंहरण कोई भी प्रस्थापना प्रतिग्रहण के पूर्व किसी भी समय किया जा सकती है। स्पष्ट है कि प्रतिग्रहण होने के पूर्व कोई भी प्रस्थापना प्रतिसंहरण की जा सकती है। अंग्रेजी विधि के सामान्य नियमों का अध्ययन करने से यह मालूम होता है कि प्रतिग्रहण पत्र डाक में डाल दिया जाता है तो संविदा का निर्माण हो जाता है। ऐसी स्थिति में प्रस्ताव का प्रतिसंहरण अभिप्रभावी होगा।
अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत कोई भी प्रस्थापना किसी भी समय प्रतिसंहरण की जा सकती हैं जबकि प्रतिग्रहण की संसूचना प्रस्थापक के विरुद्ध पूर्ण हुई हो अर्थात किसी भी प्रस्थापना का प्रतिसंहरण प्रस्थापना की सूचना के संबंध में पूर्ण हो जाने के पूर्व किया जा सकता है।
किसी भी प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण उस प्रतिग्रहण की सूचना प्रतिग्रहिता के संबंध में पूर्ण होने के पूर्व किया जा सकता है। उसके बाद में प्रतिग्रहीता की सूचना पूर्ण होने के संबंध में धारा 4 में उल्लेखित हैं जिसके अनुसार प्रतिसंहरण की सूचना जहां तक प्रतिसंहरण करने वाले का संबंध है उस समय पूर्ण हो जाती है जबकि उस व्यक्ति के पास भेजने के लिए जिस प्रस्थापना की गई है पारेषण के अनुक्रम में इस प्रकार रख दी गई है कि वह प्रतिग्रहीत करने वाले व्यक्ति की शक्ति से परे हो गई है। जहां तक उस व्यक्ति का संबंध है जिससे वहां की गई है प्रतिग्रहण की सूचना तब पूर्ण होती है जबकि वह उसके ज्ञान से अच्छी प्रकार में आ जाती है।
प्रतिग्रहण को रद्द करना भी संभव होता है परंतु यह तभी संभव होता है जब प्रतिग्रहण की सूचना प्रस्तावक के ज्ञान में नहीं आती है। यदि प्रतिग्रहण की संसूचना प्रस्तावक के ज्ञान में आ जाती है तो फिर प्रतिग्रहण को रद्द नहीं किया जा सकता। किसी भी प्रतिग्रहण के रिवोकेशन के लिए यह आवश्यक है कि प्रस्तावक के ज्ञान में नहीं पहुंचना चाहिए।
जैसे एक Illustration है रवि अपना घर पांच लाख रुपए में कोमल को बेचने के लिए डाक द्वारा प्रस्ताव भेजता है। कोमल इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है और डाक द्वारा अपने प्रस्ताव की सूचना रवि को भेजने के लिए डाक लगा देता है। अब ऐसी स्थिति में यदि रवि अपने प्रस्ताव को रद्द करना चाहता है तो रवि उस समय तक ही अपने प्रस्ताव को रद्द कर सकता है जब तक कोमल अपनी स्वीकृति को डाक में नहीं लगाता है।
कोमल अपनी स्वीकृति को रद्द करना चाहता है तो वह ऐसा रद्दकरण तब तक ही कर सकता है जब तक इस प्रतिग्रहण की सूचना रवि को प्राप्त नहीं होती है अर्थात यदि डाक रवि को प्राप्त हो गई तो फिर कोमल द्वारा अपने अपनी स्वीकृति को रद्द नहीं किया जा सकता। कोमल अपनी स्वीकृति को रवि के डाक प्राप्त होने तक रद्द कर सकता है यदि कोमल रवि के डाक प्राप्त होने के पूर्व ही टेलीफोन करके रवि को यह कह देता है कि मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रहा हूं तो फिर यह कोमल की स्वीकृति का रद्दकरण वैध माना जाएगा क्योंकि रवि को इसकी स्वीकृति के संबंध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती।

