Consumer Protection Act में डिस्ट्रिक्ट फोरम के संबंध में प्रावधान

Shadab Salim

24 May 2025 9:48 AM IST

  • Consumer Protection Act में डिस्ट्रिक्ट फोरम के संबंध में प्रावधान

    इस एक्ट की धारा 34 में डिस्ट्रिक्ट फोरम के संबंध में इस प्रकार प्रावधान किये गए हैं-

    (1) इस अधिनियम अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए जिला आयोग को वहां परिवादों को स्वीकार करने की अधिकारिता होगी जहां वस्तुओं या सेवाओं के प्रतिफल के रूप में संदत्त मूल्य का (एक करोड़) से अधिक नहीं होता है :

    परंतु जहां केन्द्रीय सरकार ऐसा करना आवश्यक समझती है, तो वह ऐसा अन्य विहित कर सकेगी, जो वह ठीक समझे।

    (2) किसी जिला आयोग की स्थानीय सीमाओं में कोई परिवाद संस्थित किया जाएगा, जिसकी अधिकारिता में,-

    (क) परिवाद आरंभ करने के समय विरोधी पक्षकार या प्रत्येक विरोधी पक्षकार, जहां एक से अधिक है, साधारणतया निवास करता है या कारबार करता है या उसका शाखा कार्यालय है या अभिलाभ के लिए व्यक्तिगत रूप से कार्य करता है, या

    (ख) परंतु यह कि परिवाद आरंभ करने के समय कोई विरोधी पक्षकार या प्रत्येक विरोधी पक्षकार, जहां एक से अधिक है, वास्तव में और स्वैच्छिक रूप से निवास करते हैं या अपना कारबार करते हैं या उनका कोई शाखा कार्यालय है या लाभ के लिए व्यक्तिगत रूप से कार्य करते हैं, इस द दशा में कि जिला आयोग की अनुज्ञा दी गई है; या

    (ग) वाद हेतुक पूर्णतया या भागतः उद्भूत होता है; या

    (घ) परिवादी निवास करता है या लाभ के लिए व्यक्तिगत रूप से कार्य करता है।

    (3) जिला आयोग साधारणतया जिला मुख्यालय में कार्य करेगा और जिले में ऐसे अन्य स्थानों पर कार्य करेगा, जैसा राज्य सरकार राज्य आयोग के परामर्श से समय-समय पर राजपत्र में अधिसूचित करे।

    धन संबंधी अधिकारिता जिला फोरम को ऐसे विवादों को ग्रहण करने की अधिकत होगी जहाँ माल या सेवा और दावाकृत प्रतिकर का मूल्य एक करोड़ रुपये से कम है।

    स्थानीय परिसीमा संबंधी अधिकारिता-

    परिवाद संस्थित किये जाने के समय प्रतिवादी अथवा प्रतिवादीगण जिला मंत्र से स्थानीय परिसीमा के भीतर स्वेच्छापूर्वक रहता हो, वहाँ कारबार चलाता अथवा व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने के लिए वहाँ कार्य करता हो, या

    जहाँ परिवाद संस्थित किये जाने के समय प्रतिवादी अथवा प्रतिवादी स्वेच्छापूर्वक निवास करते हो, कारवार करते हो अथवा निजी लाभ प्राप्त करने के लिए वहाँ कार्य करते हो, परन्तु यह तब जबकि जिला फोरम ने इजाजत दी है या जो प्रतिवादी उपलिखित रूप में निवास नहीं करते या कारवार करते या अभिलाभ के लिए स्वयं कार्य नहीं करते, वे ऐसे संस्थित किये जाते है लिए सहमत हो गये हैं, या

    वाद हेतुक पूर्णतः अथवा भागतः पैदा होता है।

    परिसीमा प्रस्तुत वाद में यह धारण किया गया कि यदि आयोग की परिसीमा संदर्भ क्षेत्राधिकार के बारे में कोई आपत्ति है तो इस आपत्ति को प्रारम्भ से ही उठाना चाहिए बाद में क्षेत्राधिकार वाद हेतुक उत्पन्न होने के आधार पर निर्धारित किया गया।

    उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उस मामले की जांच नहीं की जा सकती है, जिस परिवाद में कपट का मामला अन्तर्वलित है। ऐसे परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के क्षेत्र से बाहर है।

    कलकत्ता महानगर विकास प्राधिकरण बनाम भारत संघ, 1993 के मामले में मुख्य प्रश्न यह है कि क्या क्षतिपूर्ति की धनराशि निश्चित करते समय सामूहिक रूप से दिये गये क्षतिपूर्ति की सम्पूर्ण धनराशि को कोर्ट के क्षेत्राधिकार से जोड़ना चाहिए या प्रत्येक व्यक्ति को दिये गये अलग-अलग क्षतिपूर्ति की धनराशि से प्रत्यर्थीगण द्वारा यह कहा जाना गलत है कि सम्पूर्ण धनराशि को कोर्ट के क्षेत्राधिकार से जोड़ना चाहिए। धारा 11 में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जिलाधिकरण को 1 लाख रुपये तक का क्षेत्राधिकार है।

    प्रस्तुत बाद में जिलाधिकरण की यह राय की उसे मात्र एक ही लाख रुपये तक का क्षेत्राधिकार है, इसलिये 20,000/- रुपये कई लोगों को देने के बाद कुल मूल्यांकन लगभग 4 लाख 60 हजार रुपये का होगा, वह क्षेत्राधिकार नहीं रखती एवं विनिर्णीत नहीं कर सकता राज्य आयोग द्वारा रद्द कर दिया गया। विनिर्णीत किया गया कि जिलाधिकरण को प्रत्येक व्यक्ति को एक लाख से अधिक की राशि क्षतिपूर्ति में देने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति की सम्मिलित राशि क्षेत्राधिकार निर्धारित नहीं करती।

    एक अन्य वाद परिवादी ने 329.95 पैसे में बाटा के जूते खरीदे जूते दोषपूर्ण थे। अतएव परिवादी ने साढ़े तीन लाख का दावा किया। कोर्ट ने धारण किया कि यह दावा परिवाद जिला मंच में संस्थित किया जाना चाहिए।

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