SC/ST Act के अंतर्गत धारा 8 के प्रावधान

Shadab Salim

9 May 2025 10:10 AM IST

  • SC/ST Act के अंतर्गत धारा 8 के प्रावधान

    इस एक्ट की धारा 8 में उपधारणा के संबंध में उल्लेख है। उपधारणा का अर्थ कोर्ट द्वारा किसी आरोप को सत्य मानकर चलने की विचारधारा है। यह कुछ इस प्रकार से है कि सबूत का भार अभियुक्त पर डाल दिया जाता है। पीड़ित पक्षकार पर सबूत का भार नहीं होता है। अभियोजन पक्ष को उन अवधारणाओं को साबित करने का भार नहीं झेलना पड़ता है जिनके संबंध में कोर्ट कोई विचार बना लेता है। अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 8 ऐसे ही उदाहरणों को प्रस्तुत करती है।

    कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हें इस अधिनियम के अंतर्गत उपधारणा के रूप में माना जाता है अर्थात यदि अभियुक्त द्वारा उन कार्यों को किए जाने का आरोप पीड़ित पक्ष या अभियोजन द्वारा लगाया जाता है तब पीड़ित पक्ष या अभियोजन की बात को सत्य मानकर कोर्ट चलता है तथा अभियोजन और पीड़ित पक्ष की बात को यदि असत्य सिद्ध करना है तो इसके लिए अभियुक्त को साक्ष्य प्रस्तुत करना होंगे।

    अपराधों के बारे में उपधारणा- इस अध्याय के अधीन किसी अपराध के लिए अभियोजन में, यदि यह साबित हो जाता है,

    (क) अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन अपराध करने के [ अभियुक्त व्यक्ति द्वारा या युक्तियुक्त रूप से संदेहास्पद व्यक्ति द्वारा किये गये अपराधों के सम्बन्ध में कोई वित्तीय सहायता की है] तो विशेष न्यायालय, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने उस अपराध का दुष्प्रेरण किया।

    (ख) व्यक्तियों के किसी समूह ने इस अध्याय के अधीन अपराध किया है, और यदि यह सावित हो जाता है कि किया गया अपराध भूमि या किसी अन्य विषय के बारे में किसी विद्यमान विवाद का फल है तो यह उपधारणा की जाएगी कि यह अपराध सामान्य आशय या सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए किया गया था।

    2[(ग) अभियुक्त, पीड़ित या उसके कुटुम्ब का व्यक्तिगत ज्ञान रखता था, कोर्ट यह उपधारणा करेगी कि जब तक अन्यथा साबित न हो, अभियुक्त को पीड़ित की जाति या जनजातीय की पहचान का ज्ञान था।]

    पहली उपधारणा अभियुक्त को सहायता के संबंध में है। किसी प्रकार की वित्तीय सहायता देकर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध अत्याचार से संबंधित कोई अपराध करने हेतु दुष्प्रेरित करने पर उपधारणा की व्यवस्था की गई है। यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार के धन-संपत्ति के लोभ में कोई ऐसा अपराध कारित करता है जो इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध बनाया गया है तो इस धारा के अनुसार उपधारणा की जाएगी की इस प्रकार की वित्तीय सहायता की ही गई होगी।

    इस विषय को कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है कि समाज में अनेक ऐसे दृष्टांत देखने को मिलते हैं जहां रुपए पैसे देकर अनुसूचित जाति के सदस्यों के प्रति कोई अपराध कारित करने हेतु किसी अन्य व्यक्ति को दुष्प्रेरित किया जाता है इस स्थिति में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा किसी व्यक्ति पर यह आरोप लगाया जाता है कि उसने धन संपत्ति देकर किसी व्यक्ति को ऐसे सदस्यों के प्रति कोई अपराध करने हेतु दुष्प्रेरित किया है तब कोर्ट अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के ऐसे आरोपों को सत्य मानकर चलेगी तथा इस आरोप को साबित करने का भार इन समुदायों के सदस्यों पर नहीं होगा अपितु उस व्यक्ति पर होगा जिस व्यक्ति पर यह आरोप लगाया गया है।

    धनी व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष रूप में भाड़े पर लिये गये व्यक्तियों को अपना कार्य कराने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके धारा 3 के अधीन अपराध कारित करने को प्रोत्साहित करने से निवारित करना आवश्यक है। दूसरी तरफ ऐसे व्यक्तियों के हित को रक्षित करना है, क्योंकि उपधारणा खण्डनीय होती है। धारा 15 के अधीन विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किये जाते हैं। विशेष अभियोजकों तथा विशेष न्यायालयों से अनुभवी व्यक्तियों के द्वारा सँभाला जाना आवश्यक है। अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 8 (क) का प्रावधान मनमाना नहीं है तथा अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आवश्यक है।

    आर० के० बालोठिया बनाम यूनियन आफ इण्डिया, 1994 क्रि० लॉ ज० 2658 (एम० पी०) के प्रकरण में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 8 (क) को इस आधार पर चुनौती दी गयी है कि इस अधिनियम के अधीन अपराध कारित करने वाले व्यक्ति अथवा उसे कारित करने के लिए युक्तियुक्त रूप से संदेहास्पद व्यक्ति को मात्र वित्तीय सहायता पर उपधारणा की जायेगी, जब तक इसके प्रतिकूल यह साबित नहीं कर दिया जाता है, यह कि ऐसे व्यक्ति ने अपराध का दुष्प्रेरण किया है, अस्पष्ट, मनमाना है और ऐसा कोई दाण्डिक अपराध नहीं हो सकता है, जो केवल वित्तीय सहायता प्रदान करने पर कारित किया गया हो।

    उस संपूर्ण प्रयोजन, जिसके लिए अधिनियम को अधिनियमित किया गया था, पर विचार करने पर धारा 8 (क) में प्रावधान अधिनियम की धारा 3 के प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आवश्यक है। धनी व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष रूप में भाड़े पर लिये गये व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करके धारा 3 के अधीन अपराध कारित करने को प्रोत्साहित करने से निवारित करना आवश्यक है, ऐसे व्यक्तियों के हित की रक्षा की जानी है, क्योंकि उपधारणा खण्डनीय होती है।

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