SC/ST Act की धारा 20 के प्रावधान

Shadab Salim

13 May 2025 10:31 AM IST

  • SC/ST Act की धारा 20 के प्रावधान

    इस अधिनियम की धारा 20 अन्य सभी अधिनियम को इस अधिनियम पर प्रभावहीन कर देती है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय न्याय संहिता और अन्य आपराधिक अधिनियम इस अधिनियम पर प्रभावहीन हो जाते हैं। इस अधिनियम की कोई भी बात यदि अन्य आपराधिक अधिनियम से टकराती है तब ऐसी स्थिति में इस अधिनियम को महत्व दिया जाएगा तथा उन अधिनियम को प्रभावित कर दिया जाएगा। यह इस अधिनियम की धारा 20 में उल्लेखित किया गया है।

    धारा 20 का मूल स्वरूप इस प्रकार है:-

    धारा 20 अधिनियम का अन्य विधियों पर अध्यारोही होना इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय इस अधिनियम के उपबन्ध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या किसी रूढ़ि या प्रथा या किसी अन्य विधि के आधार पर प्रभाव रखने वाली किसी लिखत में उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे।

    अन्य अधिनियमों में असंगत प्रावधान- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 20 के अनुसार अधिनियम के प्रावधान किसी अन्य प्रावधान, जो असंगत हों, पर अभिभावी होते हैं। यदि अन्य अधिनियम कोई ऐसा प्रावधान बनाता है, जो इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों में असंगत हों, तब यह अभिभावी होगा।

    चूँकि अधिनियम के अधीन अपराध के विचारण के लिए प्रक्रिया हेतु अधिनियम में कोई प्रावधान विहित नहीं किया गया है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि संहिता में उपबन्धित प्रक्रिया के सामान्य नियम इस अधिनियम से असंगत हैं। यह तथ्य कि विधायिका ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अधीन अपराध के विचारण के लिए कोई विहित प्रक्रिया विहित करते हुए कोई प्रावधान नहीं बनाया है, हालांकि इसने अन्य अधिनियमों में यह सुझाव देने के लिए विनिर्दिष्ट प्रावधान किया है कि यह अधिनियम के अधीन अपराधों के विचारण के लिए कोई विशेष प्रक्रिया विहित करने के लिए कभी भी आशयित नहीं था। यह बात मीरा बाई बनाम भुजबल सिंह, 1995 क्रि० लॉ ज० 2376 (एम० पी०) के मामले में कही गई है।

    मजिस्ट्रेट की शक्ति संज्ञान पूर्व अवस्था तक परिसीमित

    सो० सथीयनाथन बनाम वीरामुथू, 2009 क्रि० लॉ ज० 1512 (मद्रास) के मामले में कहा गया है कि इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत दंडनीय अपराध विशेष न्यायालय द्वारा निरपेक्षतः विचारणीय है जो कि आवश्यक रूप से सत्र न्यायालय है। अपराध का संज्ञान लेने के पश्चात्, न्यायिक दंडाधिकारी, पुलिस द्वारा अपराध का अन्वेषण करने को निर्देशित नहीं कर सकता है। न्यायिक दंडाधिकारी को अन्वेषण करने को निर्देशित करने की शक्ति संज्ञान पूर्व अवस्था में ही उपलब्ध है।

    अधिनियम के अन्तर्गत दंडाधिकारी द्वारा वैयक्तिक परिवाद पर अपराध का संज्ञान अनुज्ञेय अधिनियम के अन्तर्गत किये गए अपराध का संज्ञान मजिस्ट्रेट द्वारा व्यक्तिगत परिवाद पर लिया जा सकता है और इसलिए दंडाधिकारी के आदेश को इस आधार पर, कि अधिनियम के अधीन दंडनीय अपराधों के किये जाने का वैयक्तिक परिवाद असमर्थ है, संधार्य नहीं किया जा सकता है दी गई चुनौती को बनाए नहीं रखा जा सकता है।

    दांडिक प्रावधानों का गलत या बिना उल्लेख किये परिवाद किया गया दंडाधिकारी उस पर संज्ञान लेने के लिए सक्षम

    सथीयनाथन बनाम वीरामुथू, 2009 क्रि० लॉ ज० 1512, के मामले में यह धारित किया गया था कि परिवादकर्ता की तरफ से दांडिक प्रावधान का उल्लेख करना आबद्धकर नहीं है और भले ही शिकायतकर्ता ने गलत दांडिक प्रावधान को उद्धृत किया है, तो भी दंडाधिकारी को सही दांडिक प्रावधान का उल्लेख करते हुए संज्ञान लेना होता है।

    प्रस्तुत मामले में, परिवादी द्वारा गलती से उद्धृत किये गये प्रावधान दंडाधिकारी द्वारा यांत्रिकतः समाविष्ट किये गये थे इसलिए दंडाधिकारी को सही धाराओं का उल्लेख करने और या तो जाँच करने या बिना संज्ञान लिए परिवादी को पुलिस के पास जाने के लिए निर्दिष्ट करने के लिए मामले को वापस किया गया था।

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