Consumer Protection Act में धारा 100 के प्रावधान
Shadab Salim
9 Jun 2025 2:53 PM IST

इस एक्ट की धारा 100 यह बताती है, यह अधिनियम इस प्रकार की विधि में सर्वोच्च है, इस धारा 100 के अनुसार-
अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना इस अधिनियम के उपबंध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अतिरिक्त होंगे न कि उनके अल्पीकरण में ।
यह व्यवस्था की गई है कि यदि संविधि इस उद्देश्य से पारित की गई है कि पब्लिक को बुराइयों एवं परेशानियों से निजात मिल सके तो इसका प्रभाव भूतलक्षी होना चाहिए।
कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि यदि अधिनियम के अस्तित्व में आने से पूर्व किसी उपभोक्ता का अहित हुआ है तो उपभोक्ता प्राविधानों का लाभ परिवाद दाखिल कर प्राप्त कर सकता है।
विवाद के निपटारा के लिए माध्यस्थ खण्ड को अन्तर्विष्ट करने वाला करार उद्भूत है तो उपभोक्ता निराकरण अधिनियम द्वारा एक परिवाद को विचारण संग्रहण करने का एक वर्जन नहीं होता है। चूंकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अधीन उपबंधित उपचार तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य करार या विधि के उपबंधों के अतिरिक्त है। इसलिए निर्णयक विधि को निर्देशित किया गया।
सिविल कोर्ट में संस्थित वाद प्रभाव प्रत्यर्थी कम्पनी द्वारा खरीदी मशीन की आपूर्ति के लिए परिवाद किया गया। क्षतिपूर्ति का दावा दीवानी कोर्ट में गया। लम्बित था यह विनिर्णीत किया गया कि एन सी डी आर आयोग क्षतिपूर्ति का कोई दावा याचिका स्वीकार नहीं करेगी।
मद्रास हाईकोर्ट में इसी आशय का एक वाद मौलिक रूप से क्षतिपूर्ति के विचाराधीन है। अनुतोष के लिए इसी मामले का एक सिविल वाद भी विचाराधीन है। जब एक ही आशय और उद्देश्य का वाद अन्य सक्षम कोर्ट में विचाराधीन है तो एन० सी० डॉ० आर० आयोग ऐसे मामले पर कोई विचार नहीं करेगी।
प्रस्तुत वाद में धारण किया गया कि चूंकि परिवादी ने एक परिवाद मुंसिफ, पाली के कोर्ट में समान अनुतोष प्राप्त करने के लिए संस्थित किया है इसलिए यह आयोग मामले के गुणदोष का विचारण नहीं कर सकता है।
मार्डन मैकेनिकल एण्ड इलेक्ट्रानिक्स व चेयर मैन कम एम डी राज फाइनेन्सियल कारपोरेशन 1991 प्रस्तुत वाद में यह धारण किया गया कि यदि समान अनुतोष प्राप्त करने हेतु कोई परिवाद सक्षम दीवानी कोर्ट के समक्ष विचारधीन है तो यह आयोग उसी प्रकार के मामले की याचिका को ग्रहण नहीं कर सकता है।
जो मामला सिविल कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है वह इस अधिनियम के अन्तर्गत आयोग द्वारा निर्णीत नहीं किया जा सकता है।
राज्य आयोग, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 7 (ब) के अधीन स्थित मीटर रीडिंग तथा अत्यधिक बिल भेजे जाने से संबंधित वादों को निर्णीत करने का क्षेत्राधिकार रखता है।
एक वाद में राज्य आयोग ने परिवाद इस प्रारम्भिक आधार पर निरस्त कर दिया कि इसी मामले से संबंधित याचिका माननीय हाईकोर्ट द्वारा निरस्त की जा चुकी है। राष्ट्रीय आयोग में अपील प्रस्तुत की गई। धारण किया गया कि याचिका का निरस्त किया जाना इस आयोग के क्षेत्राधिकार के लिए अवरोध नहीं है।
गीता सभा बनाम बी० एल० कपूर मेमोरियल हास्पिटल, 2004 के मामले में विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या दोनों कार्यवाही एक मोटरयान अधिनियम के अन्तर्गत कार्यवाही तथा दूसरी अस्पताल तथा चिकित्सकों के विरुद्ध लापरवाही हेतु क्षतिधन की वापसी की कार्यवाही प्रचलन योग्य थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रश्न को निराकृत करने के लिए राष्ट्रीय आयोग को निर्देशित किया।
प्रस्तुत मामले में विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या निष्कासन कार्यवाही को इस बारे में आदेश देने का अधिकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत गठित न्यायालयों को होगा। इस बारे में मत नकारात्मक दिया गया। इस बारे में स्पष्ट विवेचना करते हुए राष्ट्रीय आयोग ने बताया कि अधिनियम की धारा 14 पर उपभोक्ता न्यायालयों को निष्कासन कार्यवाही का आदेश करने के लिए सक्षम नहीं करते है।
वित्तीय संस्थान में निक्षेप किए गये धन से सम्बन्धित विवाद पर कम्पनी लॉ बोर्ड द्वारा निर्णय दिए जाने पर उपभोक्ता फोरम की अधिकारिता वर्जित नहीं होगी।
सूचना प्रस्तुत वाद में राज्य के विरुद्ध परिवाद संस्थित किया गया। विपक्ष की ओर से यह तर्क दिया गया कि सिवित प्रक्रिया संहिता की धारा 50 के अन्तर्गत सूचना नहीं दी गई। कोर्ट ने धारण किया कि यह विशेष अधिनियम वादों के शीघ्र निपटारे के लिए निर्मित किया जाता है तथा विधायकों का यह इरादा नहीं था कि धारा 50 सिए प्रसंग के अन्तर्गत नोटिस की जाए।
महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक बनाम शकुन्तला चौधरी, 1992 के प्रयोज्यता प्रस्तुत वाद में परिवादिनी बी एक (भाग-1) परीक्षा 1990 में बैठी उसका रोल नम्बर 41516 था। गजट में परिणाम घोषित किया गया। परिवादिनी का विवरण दिया गया। परिवादिनी की शिकायत यह थी कि गलत विवरण के कारण उसे अन्य संस्था से प्रवेश नहीं मिल सका। इसलिये वर्तमान परिवाद संस्थित किया गया। प्रश्न यह था कि विश्वविद्यालय अधिनियम अन्य अधिनियमों के विरुद्ध विश्वविद्यालय को उन्मुक्ति प्रदान करता है, धारण किया गया कि नहीं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के उपबंध विश्वविद्यालय पर लागू होंगे।
परिवादी ने अपने आवास पर वातानुकूलित लगवाने की सेवा में आई कमी के लिए आरोप लगाते हुए 3.75 लाख का क्षतिपूर्ति दाखिल किया। प्रतिपक्षी ने पंच निर्णय उपबंध का हवाला देते हुए एक स्थगन प्रार्थनापत्र दी। राज्य आयोग ने स्थगित कर दी जिस पर की अपील दाखिल हुई यह अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 34 पंचाट अधिनियम के अन्तर्गत जिला मंच की कार्यवाही स्थगित योग्य नहीं है।
सामानों को ले जाना आना। जिला मंच को अतिरिक्त आय का उपचार देने का अधिकार वाहन अधिनियम के प्रतिरोध में नहीं है जैसा कि धारा 2 (1) (ठ) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में ट्रान्सपोर्ट सेवा सेवाएं। इसलिए राज्य आयोग को पूरा अधिकार एवं क्षेत्राधिकार है कि धारा 3 के अन्तर्गत अतिरिक्त स्रोत के रूप में उपचार थे और यह वाहन अधिनियम को बाधित नहीं करेगा।
जहाँ पर कि विपक्षी ने यह दलील पेश की कि धारा 17वी इण्डियन टेलीग्राफ अधिनियम 1885 जिला मंच को इस तरह के मामले को निपटारे के लिए रोकता है। यह अभिनिर्धारित किया गया कि पंच निर्णय में 2 रूप में 7 व इण्डियन टेलीग्राफ अधिनियम जिला मंच को अपने क्षेत्राधिकार प्रयोग में बाधा नहीं पहुंचाता है। यह अधिनियम क्षुब्ध उपभोक्ता को मंच से उपचार पाने के लिए अन्तर्गत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम रोक नहीं लगाता है। क्योंकि संसद् द्वारा उपबंधित विशेष रूप त्वरित उपचार के लिए विशेष उद्देश्य के लिए बनाया गया है।
व्यापारी के विरुद्ध परिवाद उपभोक्ता मंच का संक्षिप्त क्षेत्राधिकार वाय अपमिश्रण अधिनियम के अन्तर्गत आपराधिक अभियोजन से भिन्न है इसलिए वाय अपमिश्रण पर रोक अधिनियम के अन्तर्गत हो रही कार्यवाही की सहायता नहीं ली जा सकती है।
एक प्रस्तुत मामले में पक्षकारों के बीच संविदा हुई कि सभी विवादों का निपटारा बम्बई में कोर्ट द्वार न्यायनिर्णयन किया जायेगा। जहां तक फर्नाटक में फोरम में उपभोक्ता परिवाद की पोषणीयता का प्रश्न है तो उपभोक्ता फोरम कोर्ट नहीं होती बल्कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अधीन गणित प्राधिकरण होते हैं, एतएव संविदा में अपवर्जन खण्ड उपभोक्ता कोर्ट द्वारा अधिकारिता के प्रयोग का एक वर्णन नही होगा जहां वाद हेतुक परिवादी को पैदा हुआ।
गृह निर्माण मण्डल के विरुद्ध सेवा में कमी किए जाने के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया गया। सेवा में कमी पर आधारित परिवाद को सुनने की अधिकारिता अधिनियम के अन्तर्गत गठित उपभोक्ता अदालत की मानी गयी। इस स्थिति में वाद प्रस्तुत करने केले निर्देशित करने की आवश्यकता नहीं है।
यह अभिनिर्धारित किया गया कि उपभोक्ता वहां इस प्रकृति के मामले को निर्णीत कर सकता है जहां सेवा में कमी / अनुचित व्यापार पद्धति के आधार पर निर्माताओं / विकासकर्ता के विरुद्ध परिवाद दाखिल किया हो।