The Indian Contract Act धारा 10 के प्रावधान
Shadab Salim
14 Aug 2025 9:52 AM IST

इस अधिनियम की धारा 10 भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के सर्वाधिक महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा है। यदि इस धारा को गहनता से अध्ययन किया जाए तो यह प्राप्त होता है कि संविदा अधिनियम का संपूर्ण निचोड़ तथा निष्कर्ष इस धारा के अंतर्गत समाहित कर दिया गया है। इस धारा में दी गई परिभाषा को पूर्ण करने के लिए ही अगली 20 धाराएं लिखी गई है क्योंकि अधिनियम की धारा 10 का संबंध सीधे अगली 20 धाराओं से भी है। धारा 10 से धारा 30 तक संविदा अधिनियम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण धाराएं है, यह धाराएं संविदा विधि की आधारभूत धाराएं हैं।
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 10 एक वैध संविदा के गठन के लिए आवश्यक मानदंडों को स्थापित करती है। यह पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति, वैध उद्देश्य, प्रतिफल, और कानूनी सक्षमता जैसे महत्वपूर्ण तत्वों का उल्लेख करती है। यह धारा न केवल कानूनी ढांचे को मजबूत करती है, बल्कि सामाजिक और व्यावसायिक लेनदेन में पारदर्शिता और निष्पक्षता को भी सुनिश्चित करती है। धारा 10 के प्रावधान भारतीय कानूनी व्यवस्था में संविदाओं की वैधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इसका प्रभाव व्यापक और दीर्घकालिक है।
धारा 10 इस बात पर जोर देती है कि संविदा पक्षकारों की स्वेच्छा से होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति धमकी या धोखे के कारण किसी करार पर हस्ताक्षर करता है, तो वह संविदा अमान्य होगी। संविदा में दोनों पक्षों को कुछ न कुछ लाभ प्राप्त होना चाहिए। यह लाभ मौद्रिक, सामग्री, या सेवा के रूप में हो सकता है। उदाहरण के लिए, माल बेचने के बदले में धन प्राप्त करना एक वैध प्रतिफल है।
संविदा करने वाले पक्षकारों को कानूनी रूप से सक्षम होना चाहिए। नाबालिग, मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति, या नशे की हालत में व्यक्ति द्वारा किया गया करार संविदा नहीं माना जाए। संविदा का उद्देश्य कानून के विरुद्ध नहीं होना।
सब करार संविदाएं है यदि वह संविदा करने के लिए सक्षम पक्षकारों की स्वतंत्र सम्मति से किसी विधिपूर्ण प्रतिफल के लिए और किसी विधि पूर्ण उद्देश्य से किए गए हैं और एतद् द्वारा अभिव्यक्त शून्य घोषित नहीं किए गए हैं।
इसमें अंतर्दृष्टि कोई भी बात भारत में प्रवत्त और विधि द्वारा अभिव्यक्त निश्चायक की गई किसी विधि पर जिसके द्वारा किसी संविदा का लिखित रूप में या साक्ष्यों की उपस्थिति में किया जाना अपेक्षित हो या किसी ऐसी विधि पर जो दस्तावेजों के रजिस्ट्रीकरण से संबंधित हो प्रभाव न डालेगी।
इस धारा के अंतर्गत इस बात का उल्लेख किया गया है कि कौन से करार से संविदाएं है और संविदा का प्रमुख सार और तत्व क्या है। इस संदर्भ में पहले करार हो और उक्त करार को करार के पक्षकारों द्वारा किया जाए यदि करार के पीछे विधि का बल न हो तो करार संविदा का रूप धारण नहीं कर सकेगा। इस प्रकार सभी करार संविदा हैं यदि में संविदा करने के लिए सक्षम पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति से किसी विधिपूर्ण प्रतिफल के लिए और किसी विधिपूर्ण उद्देश्य के लिए किए जाते हैं।
इस परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि कोई भी करार संविदा बनता है किंतु यह संविदा कुछ बातों से दूषित हो जाती है। पक्षकार असक्षम है और स्वतंत्र सहमति का अभाव है या फिर करार अवैध है ऐसी परिस्थिति में वैध संविदा का सृजन नहीं हो पाता है।
इस धारा 10 को कुछ इस प्रकार समझा जाए कि धारा 11 एवं 12 सक्षमता का उल्लेख करता है, धारा 13 से 23 तक में स्वतंत्र सहमति का प्रयोग किया गया है और धारा 23 से 30 तक में वैध प्रतिफल या उद्देश्य पर प्रकाश डाला गया है। इन तीनों बातों को अगली 20 धाराओं में प्रयोग किया गया है। किसी भी वैध संविदा के लिए पक्षकारों की सक्षमता, स्वतंत्र सहमति और विधिपूर्ण उद्देश्य और प्रतिफल होना चाहिए।

