Right to Information Act Section 3 के प्रावधान

Shadab Salim

16 Jun 2025 10:12 AM IST

  • Right to Information Act Section 3 के प्रावधान

    इस एक्ट की इस धारा से सूचना का अधिकार मिलता है मतलब किसी भी व्यक्ति को शासकीय विभागों से एवं शासकीय अधिकारियों से सूचना मांगने का अधिकार मिलता है। यदि एक से अधिक व्यक्ति उसी प्रकार की सूचना की मांग करते हैं, तो उसे लोक सूचना अधिकारियों द्वारा सभी अनुरोधकर्ताओं को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। नागरिक को उस सूचना की भी मांग करने का अधिकार दिया गया है, जिसे पहले ही अधिनियम के स्व-प्रकटन अपेक्षाओं के अनुसार प्रकट किया गया है। इसे नागरिक को प्रदान किया जाना चाहिए, जो लोक प्राधिकारी में ऐसी सूचना के लिए आवेदन करता है।

    यह धारा सूचना के अधिकार को नागरिकों तक निर्बन्धित करती है और इस प्रकार केवल भारत का नागरिक सूचना की मांग कर सकता है।

    सूचना का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के अधीन संवैधानिक प्रत्याभूतियों से उद्भूत होता है।

    अधिनियम सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार प्रदान करता है और न कि सभी 'व्यक्तियों' को।

    नागरिक को वह सूचना प्राप्त करने का अधिकार है, जो संसद या राज्य विधान मण्डल को दी जा सकती है। इस धारा के अधीन केवल नागरिक सूचना की मांग कर सकता है और न कि कम्पनी, जो निगमित है।

    भारत का नागरिक सूचना प्राप्त कर सकता है कर्मचारी संघ का महासचिव नागरिक नहीं है। यह बात एम० डी० एन० पनिकर बनाम राउरकेला स्टील प्लान्ट, के मामले में कही गई है।

    संघ या कम्पनी को नागरिक नहीं माना जा सकता, राजनैतिक दल के पदधारक अधिनियम के अधीन आच्छादित नहीं है। सूचना का अधिकार आत्यन्तिक और अवरुद्ध अधिकार नहीं है किन्तु ऐसा अधिकार इस अधिनियम के प्रावधानों के अध्यधीन है।

    भगत सिंह बनाम चीफ इन्फार्मेशन कमिश्नर, 2008 के मामले में कहा गया-

    सूचना का अधिकार मूल अधिकार है। मुक्त करने के लिए छूट केवल तब प्रदान की जाती है, यदि यह अन्वेषण या अपराधियों के अभियोजन की प्रक्रिया में होगी। सूचना रोकने वाले प्राधिकारी को उसके लिए समाधानप्रद कारण दर्शित करना चाहिए।

    सूचना का अधिकार नागरिक का मौलिक अधिकार है, इसका प्रयोग किसी व्यक्ति की मांगों को पूरा करने के लिए मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता है।

    विवक्षित वर्जन:- विवक्षित वर्जन का सिद्धान्त लागू नहीं है और लोक प्राधिकारी के पास उपलब्ध सूचना प्रदान करने में कोई आक्षेप नहीं होना चाहिए, जब तक वह धारा 8 (1) (2) के अधीन वर्णित संवर्ग से सम्बन्धित नहीं है।

    एस पी अरोड़ा बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमीशन, ए आई आर 2009 के मामले में कहा गया है-

    सूचना के अधिकार का विस्तार सूचना मांगने के अधिकार का विस्तार इस सीमा तक नहीं किया जा सकता कि यदि फाइल उपलब्ध नहीं है, तो फाइल को उपाप्त करने तथा सूचना प्रदान करने के लिए कदम उठाये जायेंगे।

    "अभिलेख" में कोई दस्तावेज या फाइल शामिल है। न तो परिभाषा खण्ड, न तो अधिनियम का कोई प्रावधान यह मानता है कि अधिनियम के प्रवर्तन के पूर्व की सूचना को नागरिक को प्रदान नहीं किया जा सकता है। केवल विहित निर्बंधन धारा 8, 9, 11 के और 24 के अधीन है। यहाँ भी अधिनियमन के पूर्व अभिलिखित सूचना प्रदान करने के लिए किसी रोक का प्रावधान नहीं किया गया है। वास्तव में धारा 6 सूचना की मांग करने के लिए नागरिकों को सशक्त करती है और धारा 7 उसके सिवाय जहाँ ऐसा नहीं किया जा सकता है, और वह भी सीमित आधारों पर और बताये गये कारणों से विहित प्राधिकारियों पर उसे प्रदान करने के लिए कर्तव्य और दायित्व अधिरोपित करती है।

    अधिनियम के अधीन सूचना के लिए आवेदन करने वाले व्यक्तियों को प्राकृत और व्यक्तिगत व्यक्तियों (नागरिकों) के रूप में आवेदन करना चाहिए। निगमित निकाय और न्यायिक व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन सूचना के लिए आवेदन नहीं कर सकता। यदि व्यक्ति निगमित निकाय के प्रतिनिधि के रूप में लोक प्राधिकारी के समक्ष सूचना के लिए आवेदन करता है, तो वह अधिनियम के अधीन सूचना के लिए हकदार है।

    सूचना के अधिकार का प्रयोग नागरिकों द्वारा प्राइवेट संस्थानों के विरुद्ध किया जा सकता है, जो माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा मान्य किया गया है और राज्य सरकार द्वारा सहायता अनुदान प्राप्त कर रहा है। धारा सिह गर्ल्स हाईस्कूल, गाजियाबाद बनाम स्टेट ऑफ यू पी, 2008 सीएआर 343 (इलाहाबाद) के मामले में कही गई है।

    कोई उत्पीड़न उन कर्मचारियों का नहीं किया जाना चाहिए, जो अधिनियम के प्रावधानों के अधीन सूचना की ईप्सा कर रहे हैं, उत्पीड़न के ऐसे कार्य का विरोध किया जाना चाहिए, यदि नागरिकों और सरकार के बीच सूचना के मुक्त प्रवाह में वृद्धि करने का प्रयोजन प्रतिकूल ढंग से प्रभावित किया जायेगा।

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