घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भाग 12: मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाने वाला अभिरक्षा और प्रतिकर आदेश
Shadab Salim
18 Feb 2022 7:00 PM IST
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 ( The Protection Of Women From Domestic Violence Act, 2005) की धारा 21 मजिस्ट्रेट को अभिरक्षा आदेश देने हेतु अधिकृत करती है। अभिरक्षा आदेश बच्चों के संबंध में दिया जाता है।
घरेलू हिंसा से पीड़ित किसी महिला से उसके बच्चों को वैधानिक रूप से साथ नहीं रहने दिया जा रहा है ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट धारा 21 के अंतर्गत आदेश पारित कर सकता है। धारा 22 के अंतर्गत प्रतिकर से संबंधित आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाता है। इस आलेख के अंतर्गत अभिरक्षा से संबंधित आदेश और प्रतिकर से संबंधित आदेश पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।
अधिनियम की धारा 21 अभिरक्षा से संबंधित आदेश का उल्लेख करती है जिसका मूल स्वरूप इस प्रकार है
धारा 21 (अभिरक्षा आदेश)
तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, मजिस्ट्रेट, इस अधिनियम के अधीन संरक्षण आदेश या किसी अन्य अनुतोष के लिए आवेदन की सुनवाई के किसी प्रक्रम पर व्यथित व्यक्ति को या उसकी ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति को किसी सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा दे सकेगा और यदि आवश्यक हो तो प्रत्यर्थी द्वारा ऐसी सन्तान या सन्तानों से भेंट के इन्तजाम को विनिर्दिष्ट कर सकेगा :
परन्तु, यदि मजिस्ट्रेट की यह राय है कि प्रत्यर्थी की कोई भेंट सन्तान या सन्तानों के हितों के लिए हानिकारक हो सकती है तो मजिस्ट्रेट ऐसी भेंट करने को अनुज्ञात करने से इन्कार करेगा।
अधिनियम की धारा 21 अभिरक्षा आदेश से सम्बन्धित है, जो मजिस्ट्रेट सन्तान के सम्बन्ध में पारित कर सकता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 21 निर्धारित करती है कि तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, मजिस्ट्रेट, संरक्षण आदेश या किसी अन्य अनुतोष के लिए आवेदन की सुनवाई के किसी प्रक्रम पर व्यक्ति व्यक्ति को या उसकी और से आवेदन करने वाले व्यक्ति किसी को सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा दे सकेगा और प्रत्यर्थी द्वारा ऐसी संतान से भेट के इन्तजाम विनिर्दिष्ट कर सकेगा। मजिस्ट्रेट ऐसी भेट को अनुज्ञात करने से इन्कार कर सकता है यदि उसकी राय में ऐसी भेट सन्तान के हितों के हानिकर हो सकती है।
सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा अधिनियम की धारा 21 के अधीन, मजिस्ट्रेट व्यक्ति व्यक्ति को सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा का अनुदान दे सकता है एवं व्यक्ति व्यक्ति की सन्तान से प्रत्यर्थी को भेट करने से मना कर सकता है।
सन्तान की अस्थायी अभिरक्षा का अनुदान अधिनियम की धारा 21, किसी सन्तान या सन्तानों की अस्थायी अभिरक्षा व्यथित व्यक्ति को या उसकी ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति को देने के लिए, एवं यदि आवश्यक हो तो प्रत्यर्थी द्वारा ऐसी सन्तान या सन्तानों से भेंट के इन्तजाम को विनिर्दिष्ट करने के लिए व्यवहार करती है।
उदाहरण के लिए, यदि सन्तान व्यथित व्यक्ति की सास की अभिरक्षा के अधीन है, यदि धारा 2 (घ) में दिये गये सीमित अर्थों को लिया जाए तो पति अर्थात् पिता, माता जो संयुक्त रूप से रह रहे हैं, के महिला नातेदार के विरुद्ध अस्थायी अभिरक्षा जैसा कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता।
मुलाकात अधिकार के लिए आवेदन
जब बालक को अभिरक्षा पत्नी के पास निहित है, तो पत्नी के लिए अभिरक्षा के लिए आवेदन दाखिल करने के लिए कोई अवसर नहीं होगा, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ है। उस स्थिति में पति को उस प्रभाव का आवेदन दाखिल करके मुलाकात अधिकार धारण करने का उपचार होगा। परिस्थितियों के अधीन, अपील न्यायालय यह अवधारित करने में पूर्णतया न्यायोचित था कि अभिरक्षा के लिए व्यथित पक्षकार द्वारा आवेदन होने के अभाव में भी मुलाकात अधिकार के आवेदन को कायम रखा जा सकता है।
पिता के बच्चों की अस्थायी अभिरक्षा
जहां पर्याप्त कोष बच्चों के भरण-पोषण और देखरेख करने के लिए पिता के पास उपलब्ध था, वहां पिता को बच्चों को स्थायी अभिरक्षा प्रदान करने वाला आदेश उचित निर्णीत किया गया था।
धारा 22 (प्रतिकर आदेश)
अन्य अनुतोष के अतिरिक्त, जो इस अधिनियम के अधीन अनुदत्त की जायें, मजिस्ट्रेट, व्यथित व्यक्ति द्वारा किये गये आवेदन पर, प्रत्यर्थी को क्षतियों के लिए जिसके अन्तर्गत उस प्रत्यर्थी द्वारा की गई घरेलू हिंसा के कार्यों द्वारा मानसिक यातना और भावनात्मक कष्ट सम्मिलित हैं, प्रतिकर और नुकसानी का संदाय करने के लिए प्रत्यर्थी को निदेश देने का आवेदन पारित कर सकेगा।
यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई मूल धारा थी
अधिनियम की धारा 22 प्रतिकर आदेश से सम्बन्धित है जो मजिस्ट्रेट पारित कर सकता है।
धारा 22 के अधीन, मजिस्ट्रेट क्षति के लिए, जिसमें मानसिक प्रताड़ना एवं भावनात्मक कष्ट सम्मिलित है, प्रतिकर और नुकसानी के संदाय का निर्देश दे सकता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 22 अधिकथित करती है कि अन्य अनुतोष के अतिरिक्त जो अधिनियम के अधीन अनुदत्त किया जा सकता है, मजिस्ट्रेट, व्यथित व्यक्ति द्वारा आवेदन पर, प्रत्यर्थी को प्रतिकर या क्षतिपूर्ति या दोनों, जिसमें मानसिक प्रताड़ना एवं भावनात्मक कष्ट सम्मिलित है जो उसे प्रत्यर्थी द्वारा घरेलू हिंसा के कारण कारित हुई है, देने के निर्देश का आदेश पारित कर सकता है।
धारा 22 प्रतिकर आदेश से सम्बन्धित है यह, अन्य अनुतोषों के अलावा, जैसा कि इस अधिनियम के अधीन अनुदत किया जा सकता है, मजिस्ट्रेट व्यथित व्यक्ति द्वारा किये गये आवेदन पर प्रत्यर्थी को क्षतियाँ, जो कि प्रत्यर्थों द्वारा घरेलू हिंसा के कृत्य द्वारा कारित की गयी हैं, जिसमें मानसिक प्रताड़ना एवं भावनात्मक कष्ट सम्मिलित है के लिए प्रतिकर एवं क्षतिपूर्ति के भुगतान का निर्देश देने हेतु आदेश पारित कर सकता है, का प्रावधान करती है।
"प्रतिकर"
एक मामले में कहा गया है कि शब्द "प्रतिकर" को संविदा के पूरा न होने के कारण क्षति की राशि से लाभ के मुजरा के बाद शेष राशि के अर्थों में लिया जाना चाहिए।
आर्थिक या वित्तीय संसाधनों से वंचित करना
आर्थिक या वित्तीय संसाधनों की अनवरत वंचना एवं व्यक्ति व्यक्ति को साझो गृहस्थी में अभिगम से निषेध करना या इन्कार करना घरेलू हिंसा है एवं 2005 के अधिनियम के अधीन संरक्षण प्रत्यर्थी/पत्नी को उपलब्ध होगा, जो 2005 के अधिनियम के लागू होने के पूर्व पति की साझी गृहस्थी से निकाली गयी थी परन्तु यह वंचना अधिनियम के लागू होने के बाद भी जारी थी
कार्यवाही को खारिज किया जाना
याची के प्रार्थना भाग से यह प्रकट होता है कि प्रथम प्रत्यर्थी/प्रथम याची के विरुद्ध केवल अनुतोष की वांछा की थी। याचिका के मूलभाग में भी प्रत्यर्थी संख्या 2 से 11 / याचीगण 2 से 11 के विरुद्ध कोई विशिष्ट आरोप नहीं लगाये गये थे सिवाय यह उल्लिखित करने के कि उनके कहने पर प्रथम याची धन की मांग कर रहा था एवं यह कि वह चिकित्सीय खर्चों के लिए रुपया नहीं दे रहा था एवं याचीगण 2 से 10 के द्वारा दुष्प्रेरित दायित्वों को नहीं निभा रहा था।
चूंकि याचीगण 2 से 11 के विरुद्ध कोई अनुतोष का दावा नहीं किया गया था, उनके विरुद्ध कार्यवाही जारी रखना अनावश्यक है एवं उनके विरुद्ध कार्यवाही का जारी रहना विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इस प्रकार, उच्च न्यायालय याचीगण 2 से 11 के विरुद्ध कार्यवाही समाप्त करने के लिए। प्रवृत्त हुआ था।
विवाह-विच्छेद के लिए संयुक्त आवेदन
विवाह-विच्छेद के लिए संयुक्त आवेदन में पत्नी द्वारा एकपक्षीय वचन अन्तर्विष्ट है कि वह धन, आभूषण या भावी भरण-पोषण के लिए दावा नहीं करेगी। यह दर्शित करने के लिए कोई चीज नहीं है कि यह सभी विद्यमान दावों के पारस्परिक रूप से समाधानप्रद निपटारे के लिए विचारण में था। ऐसी परिस्थितियों में इसे केवल पत्नी से या तो प्रपीड़न द्वारा अभिप्राप्त या परिस्थितियों की विवशता द्वारा अभिप्राप्त सम्मति के रूप में या विवाह-विच्छेद के लिए के लिए पति द्वारा निराश पत्नी पर अधिरोपित शर्त के रूप में माना जा सकता है।
वास्तव में, पक्षकार पारस्परिक रूप से स्वीकृत निबन्धनों पर उनके सभी दावों के समाधानप्रद निपटारा करने के लिए स्वतन्त्र हैं। लेकिन, अधिनियम की धारा 19 से 22 के अधीन पत्नी को प्रदत्त कानूनी अधिकार का संविदा करना लोक नीति के विरुद्ध है और इसलिए मान्य नहीं किया जा सकता, जब तक यह साबित नहीं किया जाता कि सभी दावों का पारस्परिक रूप से समाधानपूर्ण निपटारा था।