लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 22: पॉक्सो मामले में झूठी शिकायत पर दंड, मीडिया के लिए प्रक्रिया एवं बालकों के कथन

Shadab Salim

21 July 2022 11:45 AM GMT

  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 22: पॉक्सो मामले में झूठी शिकायत पर दंड, मीडिया के लिए प्रक्रिया एवं बालकों के कथन

    लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 22, 23, एवं 24 पॉक्सो प्रकरणों में एक प्रक्रिया निर्धारित करती है। जिसके अनुसार इस अधिनियम के अंतर्गत झूठी शिकायत, मीडिया को बालकों के संबंध में निर्देश देने और कोर्ट को बालकों के कथन अभिलिखित करने का ढंग बताया गया है। इस आलेख में संयुक्त रूप से इन तीनों ही धाराओं पर टीका प्रस्तुत किया जा रहा है।

    धारा 22

    यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है

    मिथ्या परिवाद या मिथ्या सूचना के लिए दण्ड–

    (1) कोई व्यक्ति जो धारा 3, धारा 5, धारा 7 और धारा 9 के अधीन पर किए गए किसी अपराध के संबंध में किसी व्यक्ति के विरुद्ध उसे अवमानित करने, उद्यापित करने या धमकाने या बदनाम करने के एकमात्र आशय से मिथ्या परिवाद करता है या कोई सूचना उपलब्ध कराता है, ऐसे कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से, दंडनीय होगा।

    (2) जहां किसी बालक द्वारा कोई मिथ्या परिवाद किया गया है या मिथ्या सूचना उपलब्ध कराई गई है, ऐसे बालक पर कोई दंड अधिरोपित नहीं किया जाएगा।

    (3) जो कोई बालक नहीं है, किसी बालक के विरुद्ध कोई मिथ्या परिवाद करता है या मिथ्या सूचना उसे मिथ्या जानते हुए उपलब्ध कराता है जिससे ऐसा बालक इस अधिनियम के अधीन किन्हीं अपराधों के लिए उत्पीड़ित होता वह ऐसे कारावास से जो एक वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से दंडनीय होगा ।

    इस धारा का उद्देश्य इस अधिनियम की कठोरता से असत्य आधारों पर फंसाव को रोकना है। इस अधिनियम के कठोर होने से असत्य आधार पर फंसाव नहीं हो इसलिए ही इस धारा को अधिनियम में स्थान दिया गया है। यदि कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम की धारा 3,5,7,9 में उल्लेखनीय अपराध के संबंध झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाता है तो ऐसा व्यक्ति छः महीने तक के कारावास से और जुर्माने से दंडित किया जाएगा। हालांकि इस धारा से बालकों को मुक्ति दी गई है। किसी बालक की ओर से कोई दूसरा व्यक्ति ऐसी झूठी शिकायत करता है तो उस व्यक्ति को दंडित किया जा सकता है।

    धारा 23

    यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है

    मीडिया के लिए प्रक्रिया

    (1) कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के मीडिया या स्टूडियो या फोटो चित्रण संबंधी सुविधाओं से कोई पूर्ण या अधिप्रमाणित सूचना रखे बिना बालक के संबंध में कोई रिपोर्ट नहीं करेगा या उस पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करेगा जिससे उसकी प्रतिष्ठा हनन या उसकी गोपनीयता का अतिलंघन होना प्रभावित होता हो।

    (2) किसी मीडिया से कोई रिपोर्ट, बालक की पहचान जिसके अंतर्गत उसका नाम, पता, फोटोचित्र, परिवार के ब्यौरे, विद्यालय, पड़ोस या किन्हीं अन्य विशिष्टियों को प्रकट नहीं करेगी जिससे बालक की पहचान का प्रकटन अग्रसरित होता हो परन्तु ऐसे कारणों से जो अभिलिखित किए जाएंगे, अधिनियम के अधीन मामले का विचारण करने के लिए सक्षम विशेष न्यायालय ऐसे प्रकरण के लिए अनुज्ञात कर सकेगी यदि उसकी राय में ऐसा प्रकरण, बालक के हित में है।

    (3) मीडिया या स्टूडियो या फोटो चित्रण संबंधी सुविधाओं का कोई प्रकाशक या स्वामी संयुक्त रूप और पृथक रूप से अपने कर्मचारी के किसी कार्य और लोप के लिए दायी होगी।

    (4) कोई व्यक्ति जो उपधारा (1) या उपधारा (2) के उपबंधों का उल्लंघन करता है किसी भी प्रकार के कारावास से, जो छह मास से अन्यून नहीं होगा किन्तु जो एक वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से, दंडनीय होगा।

    इस धारा में अपराध से पीड़ित बालक के संबंध में जानकारियां का प्रकाशन करने पर मीडिया को दंडित किये जाने का उल्लेख है। ऐसा दंड मीडिया के मालिक को भी दिया जा सकता है भले ही अपराध कर्मचारियों द्वारा कारित किया गया है। मीडिया संकेतों में इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध से पीड़ित व्यक्ति का उल्लेख कर सकता है और घटना का विवरण दे सकता है लेकिन सीधे प्रकाशित नहीं किया जा सकता जिससे बालक की पहचान उजागर हो। यदि ऐसा अपराध कारित किया जाता है तो एक वर्ष तक के दंड का उल्लेख किया गया है।

    पीड़ित व्यक्ति के पहचान के प्रकटन के विरुद्ध प्रतिषेध प्रावधान का क्रियान्वयन अक्षरश और भावना में किया जाना है। अन्वेषण अभिकरणों, अभियोजकों और विशेष न्यायालयों को निर्देश जारी किया गया।

    पीड़ित व्यक्ति के विवरण का प्रकाशन

    सुदेश कुमार एस आर बनाम केरल राज्य 2017 क्रि लॉ ज 443 (केरल) के मामले में पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 23 की उपधारा (4) के अधीन अपराध गठित करने के लिए दुराशय, अपराधिता और असद्भाव अथवा अवैध आशय आवश्यक होता है। पीड़ित बालक के विवरण का मात्र प्रकाशन अपराध को आकर्षित करेगा। इसलिए याची के द्वारा प्रस्तुत किये गये उर्क का यह आधार कि याची का लड़की को प्रदर्शित करने का कोई असद्भावपूर्वक आशय नहीं था, विधि के अधीन संघार्य नहीं हो सकता है।

    पीडित व्यक्ति की पहचान के प्रकाशन के विरुद्ध प्रतिषेध

    पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 23 की उपधारा (1) के अधीन प्रतिषेध बनाया गया है, जिसके द्वारा कोई व्यक्ति किसी बालक पर कोई रिपोर्ट अथवा टिप्पणी, जो उसकी ख्याति को कम कर सकती है अथवा उसकी निजता का अतिलंघन कर सकती है, की पूर्ण तथा प्रामाणिक सूचना रखे बिना मीडिया या स्टूडियो अथवा फोटोग्राफिक सुविधा के किसी भी रूप में प्रकाशित नहीं करेगा।

    पुनः अधिनियम की धारा 23 की उपधारा (2) के अनुसार, किसी भी मीडिया में कोई रिपोर्ट बालक की पहचान, जिसमें उसका नाम, पता, फोटो, पारिवारिक विवरण, स्कूल, आदि को प्रकट नहीं करेगा। इसलिए अधिनियम की धारा 23 के अधीन यह आशय बिल्कुल स्पष्ट है कि पीड़ित बालक को किसी भी रूप में प्रदर्शित नहीं किया जायेगा, जिससे कि उसके भविष्य को प्रभावित किया जा सके और उसके वृत्ति की निन्दा की जा सके।

    पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकाशन

    यह स्पष्ट रूप में अधिनियम की धारा 23 (4) के अधीन अपराध है। उक्त अपराध को गठित करने के लिए कोई दुराशय, असद्भावनापूर्ण आशय आवश्यक नहीं है। पीड़ित व्यक्ति के विवरणों का प्रकाशन, यदि वह असद्भावनापूर्वक आशय से न किया गया हो, दण्डनीय होता है। चूंकि यह बालक को किसी प्रकाशन के प्रदर्शन से संरक्षित करने की विधि के आशय को विफल बना देगा, इसलिए यह उसके भविष्य और वृत्ति को प्रभावित करेगा।

    धारा 25

    यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है

    बालक के कथन का अभिलिखित किया जाना -

    (1) बालक के कथन को, बालक के निवास पर या ऐसे स्थान पर जहां वह साधारणतया निवास करता है या उसकी पसंद के स्थान पर और जहां तक संभव हो, उप-निरीक्षक की पंक्ति से अन्यून किसी स्त्री पुलिस अधिकारी द्वारा अभिलिखित किया जाएगा।

    (2) बालक के कथन को अभिलिखित किए जाते समय पुलिस अधिकारी वर्दी में नहीं होगा।

    (3) अन्वेषण करते समय पुलिस अधिकारी, बालक या परीक्षण करते समय यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी समय पर बालक अभियुक्त के किसी भी प्रकार के संपर्क में न आए।

    (4) किसी बालक को किसी भी कारण से रात्रि में किसी पुलिस स्टेशन में निरुद्ध नहीं किया जाएगा।

    (5) पुलिस अधिकारी तब तक यह सुनिश्चित करेंगे कि बालक की पहचान पब्लिक मीडिया से संरक्षित है जब तक कि बालक के हित में विशेष न्यायालय द्वारा अन्यथा निदेशित न किया गया हो।

    इस धारा में बालक के कथन अभिलिखित करने संबंधी प्रावधान किए गए हैं। इस अपराध से पीड़ित बालक अत्यंत भयभीत हो जाते है, पुलिस इत्यादि देखकर भी उनके मस्तिष्क पर गलत प्रभाव पड़ता है जो उनके भविष्य के लिए कष्टदायक होता है। यह कथन अभिलिखित करने की एक प्रक्रिया है जिसे पुलिस अधिकारियों द्वारा अपनाया जाना आवश्यक है।

    इस धारा के अनुसार एक बालक के कथन उसके घर पर दर्ज किए जाएंगे या फिर ऐसे स्थान पर जहां उसे पहुंचने में सरलता रहे, साथ ही ऐसे बालक के कथन अभिलिखित किये जाते समय पुलिस अधिकारी अपनी वर्दी में नहीं होंगे, रात के समय किसी बालक को पुलिस स्टेशन में कथन हेतु नहीं बुलाया जा सकता।

    पीड़ित बालक का कथन अभिलिखित करने की प्रक्रिया

    यह उल्लेख किया जाना है कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 24 के प्रावधान पीड़ित व्यक्ति के लाभ के लिए, न कि अभियुक्त के लाभ के लिए बनाये गये हैं। अभियुक्त यह कथन नहीं करेगा कि प्रावधानों का भंग अन्ततः विचारण को दूषित करेगा। उक्त प्रावधानों के अधीन यह प्रावधान किया गया है कि पीड़ित बालक का कथन सामान्यतः उसके निवास स्थान पर यथासंभव उपनिरीक्षक की श्रेणी से अन्यून महिला पुलिस अधिकारी के द्वारा अभिलिखित किया जायेगा और पुलिस अधिकारी कथन अभिलिखित करते समय पोशाक में नहीं होगा।

    बालक के विरुद्ध लैंगिक अपराध पीड़ित बालक का कथन अभिलिखित करना प्रक्रिया धारा 24 के अधीन विहित की गयी है। यह पीड़ित बालक के लाभ के लिए है। अभियुक्त यह दावा नहीं कर सकता है कि उक्त प्रावधान का भंग विचारण को दूषित करेगा।

    पीड़िता का कथन

    पीड़िता अधिकथित की थी कि लैंगिक हमला के पश्चात् उसने सामान्य रूप से स्नान किया था। इसलिए नवीनतम लैंगिक हमला का चिह्न पीड़िता लड़की की चिकित्सीय परीक्षा के समय गायब हो सकता था। इस परिस्थिति में चिकित्सकों की राय, कि नवीनतम लैंगिक हमला का कोई चिह्न नहीं था स्वभाविक था और उस कारण से पीड़िता के कथन पर अविश्वास नहीं किया जा सकता।

    केरल राज्य बनाम साजू जार्ज, 2017 क्रि लॉ ज 1631 (केरल) के मामले में विशेष लोक अभियोजक (एस पी पी) वर्तमान मामले में याचीगण को प्रारम्भ में अपर शासकीय अधिवक्ता (ए जी पी) और अपर लोक अभियोजक (ए पी पी) के रूप में नियुक्त किया गया था। अधिनियम के अधीन विशेष लोक अभियोजक के रूप में साथ-साथ नियुक्ति अवैध थी, क्योंकि विशेष लोक अभियोजक को कोई अतिरिक्त कर्तव्य समनुदिष्ट नहीं किया जा सकता है। याचीगण के अपर शासकीय अधिवक्ता और अपर लोक अभियोजक के रूप में सेवा समाप्त की गयी। याचीगण को नयी नियुक्ति होने तक पॉक्सो अधिनियम के अधीन विशेष लोक अभियोजक के रूप में जारी रहने के लिए निर्देशित किया गया।

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