लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 21: पॉक्सो मामलों में रिपोर्ट दर्ज नहीं करने पर दंड

Shadab Salim

21 July 2022 5:11 AM GMT

  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 21: पॉक्सो मामलों में रिपोर्ट दर्ज नहीं करने पर दंड

    लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 21 पॉक्सो मामलों में रिपोर्ट दर्ज करने में विफल रहने पर दंड का उल्लेख करती है। अर्थात इस अधिनियम में एक पुलिस अधिकारी को भी यह बाध्यता दी गई है कि वह शिकायत मिलने पर रिपोर्ट दर्ज करेगा, यदि अपराध हुआ है और रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती है तो ऐसी स्थिति में रिपोर्ट दर्ज नहीं करने वाले अधिकारी को भी दंडित किया जा सकता है।

    यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है

    धारा 21

    मामले की रिपोर्ट करने या अभिलिखित करने में विफल रहने के लिए दण्ड–

    (1) कोई व्यक्ति जो धारा 19 की उपधारा (1) या धारा 20 के अधीन किसी अपराध के किए जाने की रिपोर्ट करने में विफल रहता है या जो धारा 19 की उपधारा (2) के अधीन ऐसे अपराध को अभिलिखित करने में विफल रहता है, वह किसी भी प्रकार के कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

    (2) किसी कंपनी या किसी संस्था (चाहे जिस नाम से ज्ञात हो) का भारसाधक कोई व्यक्ति जो अपने नियंत्रणाधीन किसी अधीनस्थ के संबंध धारा 19 की उपधारा (1) के अधीन किसी अपराध के किए जाने की रिपोर्ट करने में असमर्थ रहता है वह ऐसी अवधि के कारावास से जो एक वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से दंडनीय होगा ।

    (3) उपधारा (1) के उपबंध इस अधिनियम के अधीन किसी बालक को लागू नहीं होंगे।

    पॉक्सो अधिनियम की धारा 21 (2) एक दाण्डिक प्रावधान है कोई व्यक्ति, जो किसी संस्था का भारसाधक हो, अधिनियम की धारा 19 (1) तथा 20 के अधीन अपराध कारित करने के बारे में रिपोर्ट देने की असफलता के कारण आपराधिक रूप में अभियोजित किये जाने हेतु दायी होता है।

    संस्था के भारसाधक के विरुद्ध अभियोजन संस्था का प्रमुख व्यक्ति एकत्र की गयी सामग्री के आधार पर संस्था के प्रमुख के द्वारा उत्तरदायी अपराध की रिपोर्ट देने के लिए मामले की रिपोर्ट देने के पहले संस्थानात्मक स्तर पर जांच करके सही तथ्यों को जानने का हकदार होता है और उसे पर्याप्त / युक्तियुक्त समय अनुज्ञात किया जाना चाहिए जो विधायिका का पॉक्सो अधिनियम की धारा 21(2) के अधीन प्रावधान को अधिनियमित करते समय आशय रहा है और इसलिए अभियोजनकारी अभिकरण को संस्था के भारसाधक के विरुद्ध पॉक्सो अधिनियम की धारा 21(2) के अधीन अभियोजन संस्थित करने में सतर्क होना चाहिए।

    बलात्संग के अपराध की रिपोर्ट न देना

    श्रीमती सवितारानी सरकार बनाम ओडीशा राज्य 2019 क्रिमिनल लॉ जर्नल 4581 (उड़ीसा) के मामले में पीड़िता के कथन और अभिलेख पर अन्य सामग्रियों से प्रथम दृष्ट्या यह प्रकट है कि पीड़िता से अभियुक्त के द्वारा उसके साथ बलात्संग कारित करने से सम्बन्धित अपराध कारित करने और ऐसे बलात्संग के कारण उसकी गर्भावस्था के बारे में जानकारी होने के पश्चात याची ने, जो हॉस्टल का अधीक्षक था, या तो विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस यूनिट को रिपोर्ट नहीं दिया है वह मात्र पीड़िता को उसके घर पर ले गया है और उसके माता-पिता की अभिरक्षा में छोड़ दिया है। मामले की केवल पीडिता के पिता के द्वारा रिपोर्ट दी गयी थी। इसलिए याची के विरुद्ध पॉक्सो अधिनियम की धारा 21 (2) के अधीन अपराध के कारित करने के लिए आवश्यक तत्व प्रथम दृष्ट्या आकर्षित होते है।

    बालक दुरुपयोग के मामलों में निवारक उपाय इस तथ्य पर विचार करने के पश्चात कि अनेक बालक के दुरुपयोग के मामलों की रिपोर्ट नहीं दी जाती है और कभी-कभार निवारक कार्यवाही को महत्व प्रदान किया जाता है, उच्चतम न्यायालय नेशंकर किसनराव खाडे बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2013 के मामले में विभिन्न भारसाधकों को सम्यक अनुपालन के लिए निम्नलिखित निर्देश जारी किया था।

    (1) स्कूलों / शैक्षिक संस्थाओं, विशेष गृहों बाल गृहाँ आश्रय गृहों, हॉस्टलो प्रतिप्रेषण गृहों जेलों आदि अथवा जहाँ कहीं पर बालकों को रखा जाता है, के भारसाधक व्यक्ति यदि उन्हें अवयस्क बालक के लैंगिक दुरुपयोग अथवा उस पर हमले की जानकारी प्राप्त होती है, जिसे वे कारित किये जाने का विश्वास करते हैं अथवा उन्हें यह जानकारी प्राप्त होती है कि उनके साथ लैंगिक रूप में छेड़छाड़ की जा रही है अथवा हमला किया जा रहा है, अत्यधिक गोपनीयता बरतते हुए उन तथ्यों की रिपोर्ट निकटतम विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस को देने के लिए निर्देशित किया जाता है और उन्हें शिकायत की गंभीरता तथा उसकी वास्तविकता पर निर्भर रहते हुए बालक अथवा उसके परिवार पर कोई कलंक अधिरोपित न करते हुए उपयुक्त पश्चात्वर्ती कार्यवाही करने के लिए निर्देशित किया जाता है।

    (2) मीडिया कार्मिको, होटल, लॉज, अस्पताल, क्लब, स्टूडियो, फोटोग्राफ सुविधाओं के भारसाधकों को सम्यक रूप में पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 20 के प्रावधान का अनुपालन करना है और विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस को सूचना प्रदान करना है। मीडिया की कठोरतापूर्वक पॉक्सो अधिनियम 2012 की धारा 23 का भी भलीभांति अनुपालन करना है।

    (3) बौद्धिक निर्योग्यता से ग्रस्त बालक शारीरिक, लैंगिक और भावनात्मक दुरुपयोग के लिए अधिक संवेद्य होते है ये संस्थाए जो उन्हें अथवा देखभाल तथा संरक्षण में रहने वाले व्यक्तियों को रखती है, लैंगिक दुरुपयोग के किसी कृत्य की जानकारी होने पर उसे किशोर न्याय बोर्ड / विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस के संज्ञान में लाने का कर्तव्य प्राप्त है और उन्हें सक्षम प्राधिकारी के संपर्क में होना है और उपयुक्त कार्यवाही करना है।

    (4) पुन यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि अपराध कारित करने वाला व्यक्ति स्वयं परिवार का सदस्य हो, तो अधिक सावधानी बरती जाए और अग्रिम कार्यवाही इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बालक का सर्वोत्तम हित सर्वोपरि विचारण होता है, माँ अथवा परिवार की अन्य महिला सदस्यों के परामर्श से की जाए।

    (5) अस्पताल, चाहे सरकारी हो अथवा प्राइवेट रूप में स्वामित्वाधीन हो, अथवा चिकित्सीय संस्थान, जहाँ पर बालक का उपचार किया जा रहा हो, को यह जानकारी प्राप्त होती है कि भर्ती कराया गया बालक लैंगिक दुरुपयोग के अधीन है, उसकी रिपोर्ट तत्काल निकटतम किशोर न्याय बोर्ड / विशेष किशोर पुलिस यूनिट के पास देगा और किशोर न्याय बोर्ड को विशेष किशोर पुलिस यूनिट के परामर्श से बालक के हित को संरक्षित करने वाली विधि के अनुसार उपयुक्त कदम उठाना चाहिए।

    (6) इस बात की जानकारी प्राप्त होने के पश्चात कि 18 वर्ष से कम आयु के किसी अवयस्क बालक को किसी लैंगिक हमले के अधीन बनाया गया है, कोई व्यक्ति द्वारा अपराध की रिपोर्ट न देना गंभीर अपराध है और ये रिपोर्ट न दे करके अपराधी को विधिक दण्ड से बचा रहे हैं और इसलिए उन्हें सामान्य दाण्डिक विधि के अधीन दायी अभिनिर्धारित किया जाए तथा उनके विरुद्ध विधि के अनुसार तत्काल कार्यवाही की जाए।

    (7) परिवाद, यदि कोई हो, एन सी पी सी आर एस सी पी सी आर बालक कल्याण समिति (सी.डब्ल्यू.सी.) और बालक हेल्पलाइन, गैर-सरकारी संगठन अथवा महिला कल्याण संगठन के द्वारा प्राप्त की जाए, वे निकटतम किशोर न्याय बोर्ड, विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस के परामर्श से विधि के अनुसार अग्रिम पश्चात्वर्ती कार्यवाही कर सकेंगे।

    (8) केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों को सभी जिलों में विशेष किशोर पुलिस यूनिट गठित करने के लिए निर्देशित किया जाता है. यदि पहले गठित न की गयी हो और उन्हें बालक की देखभाल करने और बालक को संरक्षित करने तथा अपराध के अपराधी के विरुद्ध उपयुक्त कदम उठाने के लिए भी किशोर न्याय बोर्ड के परामर्श से तत्काल और प्रभावी कार्यवाही करनी है।

    (9) केन्द्रीय सरकार और प्रत्येक राज्य सरकार को जनसामान्य, बालकों के साथ ही साथ उनके माता-पिता और संरक्षकों को पॉक्सो अधिनियम, 2012 के प्रावधानों से अवगत कराने के लिए नियमित अन्तरालों पर दूरदर्शन, रेडियो और प्रिण्ट मीडिया सहित मीडिया के माध्यम से अधिनियम के प्रावधानों को व्यापक रूप में प्रचारित करने के लिए पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 43 के अधीन यथोपबन्धित सभी उपायों को अपनाना चाहिए।

    कमल कुमार पाटाडे बनाम छत्तीसगढ़ राज्य 2016 क्रि लॉ ज 3759 के मामले में कहा गया है कि अधिनियम के अधीन अपराध कारित करने की रिपोर्ट न देना किसी व्यक्ति को उक्त कार्यवाही न करने के लिए दायी बनाने के पहले अभियोजन को यह साबित करना है कि अधिनियम की धारा 4 और 6 के अधीन अपराध मुख्य अभियुक्त के द्वारा कारित किया गया था और यह साबित करना है कि ऐसे अपराध की जानकारी के बावजूद अभियुक्त सक्षम प्राधिकारी के समक्ष मामले की रिपोर्ट देने में विफल हुआ था। धारा 4 और 6 के अधीन अपराध के लिए मुख्य अभियुक्त का उस समय अभियोजन, जब विचारण लम्बित था, धारा 21 (2) के अधीन अपराध के लिए अभियुक्त के विरुद्ध अभियोजन संस्थित करना अनुचित था।

    संस्था के प्रमुख का अभियोजन

    एक मामले में कहा गया है कि अभियोजनकारी अभिकरण को सतर्क होना चाहिए और उन्हें मामले की जांच करने और रिपोर्ट देने के लिए पर्याप्त समय प्रदान किया जाना चाहिए। उसे जांच करने के लिए युक्तियुक्त समय प्रदान किए बिना अपराध की जानकारी के 2 घण्टे के भीतर मामले की रिपोर्ट न देने के लिए अभियोजन का प्रारम्भ अनुचित था।

    Next Story