नीलामी रद्द कराने की प्रक्रिया और अधिकार – राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएँ 246 से 250
Himanshu Mishra
27 Jun 2025 5:03 PM IST

राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में यह सुनिश्चित किया गया है कि यदि किसी भूमि या अचल संपत्ति की नीलामी की गई है, तो उस प्रक्रिया में त्रुटि (Irregularity) या अन्य कारणों से नीलामी को चुनौती देने के लिए उचित व्यवस्था मौजूद हो। धाराएँ 246 से 250 न केवल प्रभावित व्यक्ति को राहत प्रदान करती हैं बल्कि खरीदार के अधिकारों और प्रक्रिया की वैधता को भी संतुलित रूप से संभालती हैं। यह लेख इन धाराओं का क्रमवार और सरल भाषा में विश्लेषण करता है।
धारा 246 – बकाया जमा कर नीलामी रद्द करवाने का आवेदन (Application to Set Aside Sale on Deposit of Arrear)
यदि किसी व्यक्ति की भूमि या अचल संपत्ति की नीलामी की गई है, तो वह नीलामी के दिनांक से 30 दिन के भीतर कलेक्टर कार्यालय में आवेदन देकर उसे रद्द करवा सकता है, बशर्ते वह निम्नलिखित राशि जमा करता है:
• खरीदार को भुगतान हेतु बोली की राशि का 5%
• बिक्री उद्घोषणा में दर्शाया गया बकाया राजस्व (जिसमें से वह राशि घटा दी जाएगी जो घोषणा के बाद जमा हो गई हो)
• नीलामी की लागत
यदि उक्त राशि निर्धारित अवधि में जमा कर दी जाती है, तो कलेक्टर नीलामी रद्द करने का आदेश देगा।
महत्वपूर्ण बात:
यदि कोई व्यक्ति पहले धारा 247 के तहत आवेदन कर चुका है, तो वह इस धारा के तहत आवेदन नहीं कर सकता। और यदि संपत्ति धारा 236 के तहत बिना बंधन के बेची गई थी, तो नीलामी रद्द होने पर पुराने बंधन पुनर्जीवित हो जाएंगे।
उदाहरण:
श्याम की भूमि ₹1,00,000 की नीलामी में बिकी। श्याम 25वें दिन ₹1,05,000 (₹1 लाख + ₹5,000) और बिक्री की लागत जमा करता है। कलेक्टर नीलामी रद्द कर देगा।
धारा 247 – त्रुटियों के आधार पर नीलामी रद्द करने का आवेदन (Application to Set Aside the Sale for Irregularity or Mistake)
किसी व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह नीलामी की तिथि से 30 दिन के भीतर कलेक्टर के समक्ष यह कहकर आवेदन करे कि नीलामी में कोई गंभीर त्रुटि (Irregularity) या गलती (Mistake) हुई है, जैसे—
• उद्घोषणा में त्रुटि
• प्रक्रिया में खामी
• सूचना का समय पर न मिलना
शर्त:
केवल त्रुटि का आरोप पर्याप्त नहीं है। आवेदक को यह साबित करना होगा कि उसे उस त्रुटि से "गंभीर नुकसान" (Substantial Injury) हुआ है।
उदाहरण:
किसी नीलामी की सूचना गाँव के नोटिस बोर्ड पर नहीं चिपकाई गई और श्याम को नीलामी की जानकारी नहीं मिल पाई जिससे वह अपनी भूमि नहीं बचा पाया। यदि वह यह सिद्ध कर देता है कि उसे इस गलती से नुकसान हुआ, तो नीलामी रद्द की जा सकती है।
धारा 248 – नीलामी की पुष्टि या रद्द करने का आदेश (Order Confirming or Setting Aside Sale)
नीलामी की तिथि से 30 दिन बीतने के बाद, यदि—
• न तो धारा 246 या 247 के तहत कोई आवेदन हुआ है, या
• हुआ भी तो खारिज कर दिया गया,
तो कलेक्टर नीलामी की पुष्टि (Confirm) कर देगा। लेकिन यदि धारा 247 के अंतर्गत आवेदन हुआ और स्वीकार किया गया, तो कलेक्टर नीलामी को रद्द करने का आदेश देगा।
यह धारा नीलामी प्रक्रिया की अंतिम वैधता का निर्धारण करती है।
धारा 249 – त्रुटि या गलती के आधार पर दावा करने की सीमा (Bar of Claims Founded on Irregularity or Mistake)
यदि धारा 247 के तहत निर्धारित 30 दिनों के भीतर आवेदन नहीं किया गया, तो उसके बाद कोई भी दावा, जो नीलामी प्रक्रिया में त्रुटि या गलती पर आधारित हो, स्वीकार नहीं किया जाएगा।
परंतु:
यदि नीलामी में धोखाधड़ी (Fraud) हुई हो, तो उस आधार पर व्यक्ति सिविल न्यायालय में मामला दायर कर सकता है।
उदाहरण:
राज ने समय पर धारा 247 में आवेदन नहीं किया, लेकिन उसे बाद में पता चला कि नीलामी में जानबूझकर फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किए गए थे। वह सिविल कोर्ट में धोखाधड़ी के आधार पर मामला दायर कर सकता है।
धारा 250 – नीलामी रद्द होने पर खरीदार को धनवापसी (Refund of Purchase Money When Sale is Set Aside)
जब किसी नीलामी को धारा 248 के तहत रद्द किया जाता है, तो नीलामी में विजेता बने खरीदार को खरीदी गई राशि वापस मिलेगी।
ब्याज की स्थिति:
• ब्याज (Interest) 6% प्रतिवर्ष तक दिया जा सकता है
• या बिना ब्याज के भी वापस किया जा सकता है
• यह निर्णय कलेक्टर की विवेकानुसार होता है
उदाहरण:
मोहन ने ₹2 लाख में भूमि खरीदी, पर नीलामी रद्द हो गई। उसे ₹2 लाख लौटाए जाएंगे, और संभवतः उस पर ब्याज भी, यदि कलेक्टर उचित समझे।
धाराएँ 246 से 250 यह स्पष्ट करती हैं कि भूमि या संपत्ति की नीलामी एक न्यायिक प्रक्रिया है, जिसमें दोनों पक्षों—डिफॉल्टर और खरीदार—के अधिकारों की सुरक्षा की जाती है। डिफॉल्टर को नीलामी रुकवाने का मौका दिया जाता है, जबकि खरीदार को यदि नीलामी रद्द हो जाए तो उचित धनवापसी की गारंटी मिलती है। साथ ही, प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यदि त्रुटि हुई हो तो समयसीमा के भीतर उसे चुनौती दी जा सकती है।
यह संतुलित व्यवस्था न्याय, प्रशासनिक दक्षता और राजस्व हितों का संरक्षण एक साथ सुनिश्चित करती है।

