राजस्व न्यायालयों की गवाही, दस्तावेज़ और समन से जुड़ी शक्तियाँ: राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 57 से 59
Himanshu Mishra
8 May 2025 10:21 PM IST

राजस्व अधिकारी और राजस्व न्यायालय न केवल भूमि संबंधी विवादों का निपटारा करते हैं, बल्कि उन्हें इस कार्य के दौरान कई बार व्यक्तियों को बुलाने, उनसे गवाही लेने या दस्तावेज़ प्रस्तुत कराने की आवश्यकता होती है।
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 57, 58 और 59 इन अधिकारों और प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से निर्धारित करती हैं। इन धाराओं का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राजस्व संबंधी मामलों में न्यायिक प्रक्रिया प्रभावी और निष्पक्ष ढंग से पूरी की जा सके।
धारा 57: व्यक्तियों की उपस्थिति और दस्तावेज़ प्रस्तुत कराने की शक्ति
इस धारा के अंतर्गत राजस्व अधिकारी और न्यायालयों को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं:
(1) समन जारी करने की शक्ति:
राजस्व अधिकारी या न्यायालय को किसी भी व्यक्ति को समन जारी करने का अधिकार है यदि उस व्यक्ति की उपस्थिति किसी मामले की सुनवाई के लिए आवश्यक हो—चाहे वह उस मामले में पक्षकार हो, गवाह हो या उसके पास कोई आवश्यक दस्तावेज़ हो। यह शक्ति सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 132 और 133 के अधीन सीमित है।
उदाहरण:
मान लीजिए कि एक ज़मीन की सीमा निर्धारण का विवाद चल रहा है और एक पड़ोसी के पास उस ज़मीन के पुराने नक्शे हैं। राजस्व अधिकारी उस पड़ोसी को समन भेज सकता है कि वह दस्तावेज़ पेश करे और आवश्यकता पड़ने पर गवाही भी दे।
(2) दस्तावेज़ों के समन:
यह समन दो तरह के हो सकते हैं—या तो किसी विशेष दस्तावेज़ के लिए या फिर किसी विशेष प्रकार के सभी दस्तावेज़ों के लिए।
उदाहरण:
अगर एक व्यक्ति के पास वर्ष 1980 से 2000 तक के खेत के पट्टे हैं, तो समन द्वारा उससे सभी वर्षों के पट्टे लाने को कहा जा सकता है।
(3) समन का पालन अनिवार्य:
जिस व्यक्ति को समन भेजा गया है, वह स्वयं या अधिकृत एजेंट के माध्यम से उपस्थित होना अनिवार्य है। उसे सत्य बोलना, बयान देना और आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत करना होगा।
(4) अनुपालन नहीं करने पर गिरफ्तारी:
यदि कोई व्यक्ति समन का पालन नहीं करता, तो न्यायालय या अधिकारी उसे पकड़ने के लिए जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है।
उदाहरण:
अगर एक व्यक्ति जानबूझकर बार-बार समन का अनादर करता है, तो अधिकारी उसे पकड़वाने के लिए पुलिस को आदेश दे सकता है।
(5) तत्काल उपस्थिति और गवाही:
यदि कोई व्यक्ति न्यायालय में पहले से उपस्थित है, तो अधिकारी उसे तत्काल गवाही देने या दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए कह सकता है, भले ही उसे पहले समन न दिया गया हो।
धारा 58: समन का स्वरूप
यह धारा बताती है कि समन कैसा होना चाहिए और उसमें क्या-क्या बातें होनी चाहिए।
समन का स्वरूप:
हर समन लिखित रूप में, दो प्रति में, संबंधित अधिकारी के हस्ताक्षर और मुहर सहित होना चाहिए। उसमें यह साफ़-साफ़ उल्लेख होना चाहिए कि किस समय और स्थान पर उपस्थित होना है और क्या गवाही देनी है या दस्तावेज़ प्रस्तुत करना है।
उदाहरण:
अगर किसी व्यक्ति को 10 जून को प्रातः 11 बजे तहसील कार्यालय में आकर अपनी ज़मीन से जुड़े नक्शे प्रस्तुत करने हैं, तो समन में यह सब कुछ स्पष्ट रूप से लिखा जाएगा।
धारा 59: समन की सेवा की विधि
धारा 59 यह बताती है कि समन कैसे और किन तरीकों से उस व्यक्ति तक पहुँचाया जाएगा:
(i) प्रत्यक्ष सेवा:
समन सीधे उस व्यक्ति को, उसके अधिकृत एजेंट या अधिवक्ता को या उसके परिवार के किसी व्यस्क पुरुष सदस्य को दिया जा सकता है।
(ii) चिपकाने की विधि:
अगर समन लेने वाला व्यक्ति नहीं मिलता या समन लेने से इनकार करता है, तो समन उसकी निवासस्थली के किसी प्रमुख स्थान पर चिपकाया जा सकता है।
(iii) अन्य जिले में सेवा:
अगर व्यक्ति किसी और ज़िले में रहता है, तो संबंधित ज़िले के कलेक्टर के माध्यम से समन भेजा जाएगा।
(iv) पंजीकृत डाक सेवा:
अगर अधिकारी उपयुक्त समझे तो कारण लिखकर समन को पंजीकृत डाक से भी भेजा जा सकता है—या तो अतिरिक्त तौर पर या प्रत्यक्ष सेवा के स्थान पर।
उदाहरण:
मान लीजिए कि कोई व्यक्ति जयपुर का निवासी है लेकिन अब उदयपुर में रहता है, तो समन उदयपुर के कलेक्टर को भेजा जाएगा जो समन की सेवा सुनिश्चित करेगा।
पूर्ववर्ती प्रावधानों से संबंध
धारा 57 से 59 की शक्तियाँ उस प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा हैं जो राजस्व अधिकारियों को मामलों की निष्पक्ष जांच में सक्षम बनाती है। धारा 56 पहले ही यह निर्धारित कर चुकी है कि पक्षकार स्वयं, एजेंट या वकील के माध्यम से उपस्थित हो सकते हैं। लेकिन धारा 57 यह सुनिश्चित करती है कि आवश्यक होने पर कोई भी व्यक्ति, पक्षकार हो या नहीं, न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हो।
धारा 57, 58 और 59 राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में राजस्व अधिकारियों को न्यायिक शक्तियाँ प्रदान करती हैं ताकि वे अपने कार्य निष्पक्ष और प्रभावी रूप से कर सकें। इन प्रावधानों से यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी व्यक्ति आवश्यक जानकारी, साक्ष्य या दस्तावेज़ को छिपाकर मामले को प्रभावित न कर सके। साथ ही, समन की विधि और रूप को सुव्यवस्थित कर यह कानून प्रक्रिया की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को मज़बूती देता है।