Consumer Protection Act में नेशनल फोरम की शक्ति
Shadab Salim
31 May 2025 9:06 AM IST

इस एक्ट में नेशनल फोरम को पॉवर्स दिए गए है जो सभी फोरम की एकमात्र सुप्रीम फोरम है। इस एक्ट की धारा 58 के अनुसार,
(1) इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, नेशनल फोरम को निम्नलिखित की अधिकारिता होगी
(क) (i) उन परिवादों को ग्रहण करना जिनमें प्रतिफल के रूप में संदत्त माल या सेवाओं का मूल्य दस करोड़ रु० से अधिक है : परंतु जहां केन्द्रीय सरकार ऐसा करना आवश्यक समझती है वहां वह
ऐसा अन्य मूल्य विहित कर सकेगी जो वह ठीक समझे।
(ii) अनुचित संविदाओं के विरुद्ध परिवाद जहां प्रतिफल के रूप में संदत्त माल या सेवाओं का मूल्य दस करोड़ रु० से अधिक है:
(iii) किसी राज्य आयोग के आदेशों के विरुद्ध अपीलें;
(iv) केन्द्रीय प्राधिकारी के आदेशों के विरुद्ध अपीलें; और
(ख) जहां नेशनल फोरम को यह प्रतीत होता है कि ऐसे राज्य आयोग ने ऐसी किसी अधिकारिता का प्रयोग किया है जो विधि द्वारा निहित नहीं है या जो इस प्रकार निहित अधिकारिता का प्रयोग करने में असफल रहा है या वह कार्य अपनी अधिकारिता का अवैध रूप से प्रयोग करते हुए किया है या तात्विक अनियमितता से किया है तो वहां किसी उपभोक्ता विवाद में, जो राज्य के भीतर किसी राज्य आयोग के समक्ष लंबित है या जिसका विनिश्चय उसके द्वारा किया गया है, अभिलेखों को मंगाना और समुचित आदेश पारित करना ।
(2) नेशनल फोरम की अधिकारिता, शक्तियों और प्राधिकार का प्रयोग उसकी न्यायपीठों द्वारा किया जा सकेगा और न्यायपीठ का गठन अध्यक्ष द्वारा या एक अधिक सदस्यों से किया जा सकेगा जैसा अध्यक्ष ठीक समझे:
पंरतु न्यायपीठ का ज्येष्ठतम सदस्य न्यायपीठ की अध्यक्षता करेगा।
(3) जहां न्यायपीठ के सदस्यों में किसी मुद्दे पर मतभेद है, वहां मुद्दे बहुमत राय के अनुसार विनिश्चय किए जाएंगे, यदि बहुमत है, किन्तु यदि सदस्य बराबर बराबर बंट जाते हैं तो वे उस मुद्दे या उन मुद्दों का उल्लेख करेंगे जिन पर उनका मतभेद है और अध्यक्ष को निर्देश करेंगे जो या तो मुद्दों को स्वयं सुनेगा या मामले को अन्य सदस्यों में से एक या अधिक सदस्यों द्वारा ऐसे मुद्दे या मुद्दों पर सुनवाई के लिए निर्दिष्ट करेगा और ऐसा मुद्दा या मुद्दों को उन सदस्यों की राय के अनुसार विनिश्चय किए जाएंगे जो पहले मामले को सुन चुके हैं जिनमें वे सदस्य भी हैं, जिन्होंने इसे पहली बार सुना था :
परंतु यथास्थिति, अध्यक्ष या अन्य सदस्य ऐसे निर्देश की तारीख से दो मास की अवधि के भीतर इस प्रकार निर्दिष्ट विषय या विषयों पर राय देगा।
जहाँ पर कि नेशनल फोरम के समक्ष विपक्षी के विरुद्ध उसके द्वारा दी गयी सेवा में कमी के कारण परिवाद प्रस्तुत हुआ था तथा 10 लाख तक के क्षतिपूर्ति में एवार्ड का मामला था। जब तक कि उपचार जो चाही गयी है 10 लाख से ऊपर न हो नेशनल फोरम के क्षेत्राधिकार को नहीं प्राप्त किया जा सकता है। परिवादी की कीमत के आधार पर यह मामला राज्य आयोग के समक्ष ही जाना चाहिए।
उपभोक्ता फोरम उपभोक्ताओं द्वारा सही गई परेशानी एवं चिन्ताओं के लिए भी क्षतिपूर्ति प्रदान कर सकती है।
हरियाणा नगर विकास प्राधिकरण बनाम विपिन कुमार कोहली (1995) के मामले में जब याचिकाकर्ता को आवासीय भूखण्डों का प्रस्ताव दिया गया; तब उसने दिल्ली बैंक में अग्रिम धनराशि जमा कर दिया। लेकिन प्रश्नगत् भूखण्ड का धारणाधिकार न प्रदान किये जाने की वजह से उसे बैंक में जमा की गयी अग्रिम धनराशि वापस कर दी गयी। ऐसी दशा में, परिवादी ने ब्याज का दावा किया और जिला फोरम ने यह अवधारित किया कि चूंकि अग्रिम धनराशि दिल्ली बैंक में जमा की गयी, इसलिए याद हेतुक भी दिल्ली में आंशिक रूप से उद्भूत हुआ और इसी वजह से निक्षेप की गयी धनराशि पर ब्याज का संदाय किये जाने का निर्देश दे दिया गया।
जिला फोरम के विरुद्ध अपील दायर की गयी और उसे राज्य आयोग द्वारा इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि जिला फोरम के आदेश की सत्यापित की गयी प्रतिलिपियाँ फाइल नहीं की गयी थी। लेकिन पुनरीक्षण में यह अवधारित किया गया कि मात्र यह तथ्य कि बैंक द्वारा प्राप्त की गयी अग्रिम धनराशि के ही मात्र कारण से इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा सकता कि वाद-हेतुक दिल्ली में पैदा हुआ और इसलिए जिला फोरम एवम् राज्य आयोग के आदेश को अपास्त कर दिया गया।
चीफ इक्जक्युटिव ऑफिसर बनाम हाजी हारून के मामले में कहा गया है कि परिवादों का निश्चित रूप से विचारणार्थ ग्रहण करने हेतु एवम् अवधारित करने के लिए आयोग की अधिकारिता का अर्थ यह होता है कि जहाँ पर अनेक व्यक्तियों द्वारा एक ही अनुतोष का दावा किया जाता है और उसी समय कथित अनुतोष का दावा करने के बाबत एक दूसरे के अधिकारों को विवादग्रस्त बना दिया जाता है; वहाँ आयोग के पास परस्पर विरोधी दावे का न्याय निर्णयन करने एवं कथित विवाद का अवधारण करने की निश्चित रूप से शक्ति होती है।
यह धारा 21 (क) (झ) सपठित धारा 22 द्वारा प्रदत्त की गयी उस सारभूत शक्ति की आनुषंगिक एवम् सहायक होती है जो नेशनल फोरम के साथ ही धारा 13 की उपधाराएं (4), (5) एवम् (6) के प्रति लागू होती है। यह सुस्थापित है कि जहाँ एक सारभूत शक्ति एक कोर्ट या अधिकरण को प्रदान किया जाता है; वहाँ सारभूत आवश्यक शक्ति के प्रभावकारी अनुप्रयोग के लिए सभी आनुषंगिक एवम् सहायक शक्तियों का अनुमान किया जाना होता है।
अमित कारपोरेशन बनाम मनोहर लाल नारंग, (1995) के मामले के अभिलेख पर विद्यमान साक्ष्यों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमे गम्भीर प्रकृति के दुर्विनियोग के अभिकथन है और इस वाद के पक्षकारो के बीच सिविल वाद चल रहा है। ऐसी दशा में, यह अभिनिर्धारित किया गया कि प्रस्तुत विवाद का निपटारा एक मात्र सिविल वाद संस्थित करके ही किया जा सकता है और इस प्रकृति के मामलो के निस्तारण के लिए उपभोक्ता फोरम को एक उपयुक्त कोर्ट नहीं माना जा सकता है।
राम ऐजेंसी बनाम अशोक चन्दमाल बोराजिला फोरम के मामलेे में जिला फोरम को प्रस्तुतीकरण के लिए परिवाद को वापस कर दिया तब राज्य आयोग ने यह अभिनिर्धारित किया कि डिमांड-ड्रस्ट के रूप में कार के लिए आशिक नृत्य अहमद नगर बैंक से प्राप्त किया गया। यद्यपि वादहतूक का एक श नगर में पैदा हुआ था। लेकिन जहाँ राज्य आयोग द्वारा यह निष्कर्ष अभिलिखित किया गया। अहमद नगर में जिला फोरम के पास परिवाद को अपास्त करने की अधिकारिता पोि फोरम के आदेश को प्रत्यावर्तित कर दिया गया।
एक अन्य मामले में अपीलीय कोर्ट ने यह अभिनिर्धारित किया कि राज्य आयोग का यह अभिन सही है कि विरोधी पक्षकार की ओर से तथा इसके अभिकर्ता को नियंत्रित करने में बड़ी ही कम पायी गयी है। अतएव, परिवादी को, समनुदेशन के पूर्ण मूल्य की हानि के लिए प्रतिकार को बरामद करने का हकदार माना गया और ब्याज को 195% वार्षिक दर से घटाकर 18% वारि दर में परिवर्तित कर दिया गया। इस प्रकार से राज्य आयोग के आदेश की संपुष्टि, अपन कोर्ट के निर्णय द्वारा प्रत्येक पहलुओं पर कर दी गयी।
ए मोहते रेड्डी बनाम वेंकटरमन रेड्डी, 1996 के मामले में जहाँ जिला फोरम एवं राज्य आयोग दोनों ने यह समवर्ती निष्कर्ष अभितिचित कि पक्षकारों के बीच ऐसा कोई अनुबंध नहीं हुआ कि परिवादी ने उस भूखण्ड का विज्ञापन रविवार को प्रकाशित किया जाय; जिसके बाबत उसने चार्ज का भुगतान किया था। वहाँ इस आधार पर परिवाद को खारिज कर दिया गया कि भूमि का विक्रय न होने के कारण परिवादी को कोई हानि नहीं हुई थी।
इस निष्कर्ष की संपुष्टि अपील में राज्य आयोग द्वारा भी कर दी गयी जाये जब इस अपीलय में निर्णयादेश के विरुद्ध पुनरीक्षण कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गयी, तब यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभिलेख पर ऐसा कोई साक्ष्य विद्यमान नहीं पाया गया जो वह प्रदर्शित करता कि निचली फोरमो के निष्कर्ष को अवैधानिक ढंग से अधिकारिता के प्रयोग किये कारण या किसी त्रुटि की वजह से निषभावी निर्णीत कर दिया जाना चाहिए।
ओरिएंटल बीमा कम्पनी लिमिटेड बनाम मेसर्स वीडियो बाइकास्टिंग के मामले में जहां बीमा दावा को अनुज्ञात कर देने वाले राज्य आयोग के आदेश के विरुद्ध अपील दायर की गयी जबकि बीमा कम्पनी ने इस आधार पर दावे का निराकरण किया था कि अपराधकर्ताओं द्वारा आग लगायी जाने की वहां दावे के निराकरण घटना साबित नहीं किया जा सकता था, को न्यायोचित ठहराया गया और अपील अनुज्ञात कर दी गयी।
चेयरमैन चिरूवल्लूर ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन बनाम कंज्यूमर प्रोटेक्शन काउंसिल के मामले में जहां किसी मोटर दुर्घटना के सन्दर्भ में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने 5.10 लाख रुपया क्षतिपूर्ति के रूप में सुनिश्चित किया और उक्त धनराशि को विधवा (मृतक की पत्नी) को संदाय किया गया था वहां यह अभिनिर्धारित किया गया कि इस प्रकार के मामले को हल करने का क्षेत्राधिकार उपरोक्त आयोग को नहीं है, क्योंकि यह मामला मोटर वाहन दुर्घटना अधिनियम, 1988 के अन्तर्गत आने वाले सामान्य विधि से संबंधित था।
एक अन्य मामले में यह मुख्यापित है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 21 (ख) के अधीन नेशनल फोरम वहां राज्य आयोग के आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है जहां राज्य आयोग ने कानून द्वारा इसको निहित नहीं अधिकारिता का प्रयोग किया हो या तो इस प्रकार निहित की गयी अधिकारिता का प्रयोग करने में असफल हो गया है या अवैधानिक तौर पर तात्विक अनियमितता के साथ अपनी अधिकारिता के प्रयोग में कार्य किया है।
जब परिवादी को कौटुम्बिक लाभ स्कीम का लाभ नहीं प्रदान किया गया और तदर्थ उसने जिला फोरम के समक्ष परिवाद दाखिल किया तब उसको अनुज्ञात कर दिया गय जिसकी पुष्टि राज्य आयोग एवं नेशनल फोरम दोनों द्वारा कर दी गयी।
चूंकि न आवासीय भू-खण्ड का कब्जा दिया गया और न ही विक्रय विलेख का आवंटन किया गया इसलिए जिला फोरम द्वारा परिवाद अनुज्ञात कर दिया जिसकी संपुष्टि अपीली राज्य आयोग तथा पुनरीक्षण नेशनल फोरम दोनों द्वारा कर दी गयी।
यह अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 21 (ब) के प्रावधानों के अधीन नेशनल फोरम उस किसी भी उपभोक्ता परिवाद में कोई भी आदेश पारित कर सकता है जो किसी राज्य आयोग के समक्ष लम्बित है जिसे राज्य आयोग द्वारा निर्णीत किया जा चुका है।
नेशनल फोरम अपनी पुनरीक्षण अधिकारिता के अधीन अत्यधिक सीमित शक्तियां धारण करता है। यह निचती फोरमों के आदेशों में हस्तक्षेप कर सकता है यदि उन्होंने अपनी अधिकारिता का कानूनी तौर पर अतिक्रमण किया हो या अपनी अधिकारिताओं का प्रयोग करने में असफल हो गया है या अपनी अधिकारिता के प्रयोग में अवैधानिक ढंग से या महत्वपूर्ण अनियमितता के साथ कार्य किया है।
घर बनाने का कार्य घर बनाने का कार्य भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) (ण) में परिभाषित "सेवा की श्रेणी में आता है
कैलाश मालपानी बनाम किशोर कुमार खत्री, 1997 के मामले में जहाँ फ्लैट के कब्जे के परिदान में विलम्ब होने के तथ्य के बारे में तथा आटे के निमार कारीगरी के गुण में कमी तथा दरवाजे एवम् खिड़कियों के निर्माण में निम्न कोटि को एवम् प्रयोग में लायी गयी वस्तुओं में दोष पाये जाने के बारे में समवर्ती निष्कर्ष दिये गये; वहाँ उत्तर पक्ष की ओर से व्याज का 48,000 रुपये की रकम पर ब्याज का संदाय करने का निर्देश दिया गया था और जहां इसके अलावा, जिला फोरम के साथ-साथ राज्य आयोग के द्वारा अधिकारिता के प्रयोग में कोई अन्य अवैधानिकता या अनियमितता नहीं पायी जाती जैसा कि अभिलेख को देखने से स्पष्ट हो जाता है।
वहाँ जिला फोरम का वह आदेश जिसकी संपुष्टि, राज्य आयोग के विनिश्चय द्वारा कर दी गयी, को उपांतरित कर दिया गया और 24% वार्षिक ब्याज की दर के ब्याज 18% वार्षिक ब्याज की दर को 23,158 रुपये की सीमा तक के दावे पर लागू होने की स्वीकृति प्रदान की गयी।
श्री शिखा गुप्ता बनाम (मे०) स्कीपर कन्ट्रक्शन कम्पनी प्राइवेट लिमिटेड के प्रकरण में इस तथ्य का अभिनिर्धारण करने के लिए मामले को राज्य आयोग को प्रतिप्रेषित कर दिया गया। क्या परिवादी को वास्तव में आवंटित किये गये फ्लैट या इसके समान कोई दूसरा फ्लैट उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त क्या परिवादी को कोई अनुतोष चेक के माध्यम से पहले ही किये गये भुगतानों का लेखा जोखा करने के पश्चात् बकाया रकम के भुगतान पर परिवादियों को प्रदान किया जा सकता था।
जहाँ परिवादी को हाउसिंग स्कीम में भूखण्डों का आवंटन किया गया; वहाँ प्राधिकारी भुगतान में विलम्ब हो जाने पर शास्तिक व्याज का अधिरोपण किया। इसके अलावा जब पक्षकारों के बीच किस्तों में भुगतान के ढंग पर मनोनुकूलता पायी गयी; तब व्याज के भुगतान के बाबत विवाद पैदा करने के लिए परिवादी को अनुज्ञा नहीं प्रदान की जा सकती थी और -इसलिए नेशनल फोरम के इस निष्कर्ष को दोषपूर्ण माना गया कि कोई भी व्याज देय नहीं होगा।

