मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियां
Shadab Salim
23 Aug 2025 5:07 PM IST

भारत के लोकतंत्र में मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव आयोग का प्रमुख होता है, जो संवैधानिक रूप से स्वतंत्र और शक्तिशाली पद है। मुख्य चुनाव आयुक्त को शक्तियां मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 324 से मिलती है जो चुनाव आयोग को संसद, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों की तैयारी, संचालन और नियंत्रण की जिम्मेदारी सौंपता है।
इस अनुच्छेद के तहत, मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक अधिकार प्राप्त हैं, जैसे मतदाता सूचियों की तैयारी, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन, और चुनावी नियमों का प्रवर्तन। चुनाव आयोग, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त प्रमुख है, एक बहु-सदस्यीय निकाय है, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त की भूमिका निर्णायक होती है, खासकर जब अन्य आयुक्तों के साथ मतभेद हो।
मुख्य चुनाव आयुक्त की प्रमुख शक्तियों में चुनावी कैलेंडर निर्धारित करना भी है। वह चुनावों की तिथियां घोषित कर सकता है, मतदान केंद्र स्थापित कर सकता है। अनुच्छेद 324 की व्याख्या में सुप्रीम कोर्ट ने मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (1978) मामले में कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियां "प्लेनरी" अर्थात पूर्ण हैं, जो चुनाव की पवित्रता बनाए रखने के लिए आवश्यक सभी कदम उठाने की अनुमति देती हैं। उदाहरणस्वरूप, मुख्य चुनाव आयुक्त चुनावी हिंसा या अनियमितताओं पर तत्काल कार्रवाई कर सकता है, जैसे मतदान स्थगित करना या दोबारा मतदान कराना।
जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनावी अपराधों पर कार्रवाई करने की शक्ति देता है। धारा 123 के तहत, मुख्य चुनाव आयुक्त भ्रष्ट आचरण जैसे भ्रष्टाचार धार्मिक अपील या अनुचित प्रभाव को रोक सकता है। वह मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू कर राजनीतिक दलों के अभियान को नियंत्रित करता है, जिसमें विज्ञापनों, रैलियों और खर्च की सीमा शामिल है। यदि कोई उम्मीदवार नियम तोड़ता है, तो मुख्य चुनाव आयुक्त नामांकन रद्द कर सकता है या चुनाव अमान्य घोषित कर सकता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियां प्रशासनिक भी हैं। वह मतदाता सूचियों को अपडेट करने के लिए राज्य अधिकारियों को निर्देश दे सकता है, जैसा कि अनुच्छेद 325 और 326 में सार्वभौमिक मताधिकार सुनिश्चित किया गया है। वह चुनावी खर्च की निगरानी करता है और राजनीतिक दलों के पंजीकरण को नियंत्रित करता है। टी.एन. शेषन बनाम भारत संघ (1995) मामले में सर्वोच्च कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त की स्वतंत्रता पर जोर दिया, कहा कि वह अन्य आयुक्तों से श्रेष्ठ नहीं है, लेकिन आयोग के निर्णय बहुमत से होते हैं। इसने मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव सुधारों के लिए प्रेरित किया, जैसे वोटर आईडी अनिवार्य करना।
हालांकि, मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियां असीमित नहीं हैं वे न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं। अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ के मामले में कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया को और निष्पक्ष बनाने का सुझाव दिया। चुनौतियां जैसे ईवीएम हैकिंग की अफवाहें या राजनीतिक दबाव मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियों का परीक्षण करती हैं। फिर भी, मुख्य चुनाव आयुक्त लोकतंत्र की रक्षा करता है, सुनिश्चित करता है कि हर मतदाता का वोट मायने रखे। मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियां भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की नींव हैं, जो निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से जनता की इच्छा को प्रतिबिंबित करती हैं।

