अन्य अचल संपत्ति से वसूली की शक्ति : राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 237 से 239

Himanshu Mishra

25 Jun 2025 5:25 PM IST

  • अन्य अचल संपत्ति से वसूली की शक्ति : राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 237 से 239

    राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) के अध्याय में जब राजस्व या किराया बकाया (Arrear of Revenue or Rent) होता है और सामान्य प्रक्रिया से वसूली संभव नहीं होती, तब कुछ विशेष शक्तियाँ (Special Powers) कलेक्टर को प्रदान की गई हैं।

    धाराएँ 237 से 239 तक इस स्थिति में लागू होती हैं, जहां डिफॉल्टर की किसी अन्य अचल संपत्ति (Immovable Property) से वसूली की जा सकती है और उस संपत्ति को नीलाम किया जा सकता है। इस लेख में हम इन धाराओं का सरल हिंदी में विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि किस प्रकार डिफॉल्टर की अन्य संपत्ति भी वसूली प्रक्रिया का हिस्सा बन सकती है।

    धारा 237 – अन्य अचल संपत्ति से वसूली की शक्ति (Power to Proceed Against Other Immovable Property of the Defaulter)

    यदि किसी विशेष भूमि (Specific Land) से बकाया राजस्व या किराया वसूली की सभी प्रक्रियाएँ असफल हो जाती हैं और डिफॉल्टर के पास किसी अन्य अचल संपत्ति (Other Immovable Property) में हिस्सा या स्वामित्व है, तो कलेक्टर को यह शक्ति है कि वह उस संपत्ति को उसी प्रकार जब्त और नीलाम कर सकता है जैसे कि वह मूल बकाया भूमि हो।

    महत्वपूर्ण बिंदु:

    यह प्रक्रिया सिर्फ डिफॉल्टर की हिस्सेदारी (Interest) को ही प्रभावित करेगी। यदि किसी संपत्ति में अन्य सह-स्वामी हैं, तो उनकी हिस्सेदारी को यह प्रक्रिया प्रभावित नहीं करेगी।

    द्वितीय उपधारा (Sub-section 2):

    यदि कोई राशि बकाया है जो किसी विशेष भूमि से संबंधित नहीं है लेकिन वह राजस्व की श्रेणी में आती है, तो उस राशि की वसूली भी डिफॉल्टर की किसी भी अचल संपत्ति से की जा सकती है।

    उदाहरण:

    राम की एक भूमि पर ₹10,000 का राजस्व बकाया है और उस भूमि से वसूली असफल हो गई है। राम के पास एक अन्य गाँव में एक मकान भी है। कलेक्टर राम की उस अन्य संपत्ति से भी बकाया वसूल सकते हैं, लेकिन किसी और के हितों को प्रभावित नहीं करेंगे।

    धारा 238 – बिक्री की उद्घोषणा (Proclamation of Sale)

    जब किसी भूमि या अचल संपत्ति की बिक्री की अनुमति धारा 235 या 237 के तहत दी जाती है, तो कलेक्टर को एक औपचारिक उद्घोषणा (Proclamation) करनी होती है। इस उद्घोषणा में निम्नलिखित बातें स्पष्ट रूप से दर्ज होती हैं:

    • वह भूमि या संपत्ति कौन-सी है जिसे बेचा जाएगा

    • बिक्री का स्थान और समय क्या होगा

    • क्या यह बिक्री बिना किसी भार (Encumbrance) के होगी या नहीं

    • अन्य कोई आवश्यक विवरण जो कलेक्टर उचित समझे

    द्वितीय उपधारा (Sub-section 2):

    इस उद्घोषणा की एक प्रति डिफॉल्टर को दी जाती है जिससे उसे जानकारी रहे और वह चाहे तो बकाया चुकाकर बिक्री को रोक सके।

    प्रासंगिक उदाहरण:

    श्याम के खिलाफ धारा 237 के अंतर्गत कार्रवाई शुरू की गई है। उसकी अन्य अचल संपत्ति को नीलाम करने से पहले कलेक्टर एक विस्तृत उद्घोषणा जारी करेगा, जिसमें बताया जाएगा कि नीलामी कब और कहां होगी, और क्या संपत्ति किसी बंधन (Encumbrance) से मुक्त होगी।

    धारा 239 – नीलामी कब और कौन करेगा (Sale When and by Whom to be Made)

    इस धारा में यह व्यवस्था दी गई है कि नीलामी कौन करेगा और किन शर्तों के अधीन यह की जाएगी।

    उपधारा 1:

    नीलामी स्वयं कलेक्टर कर सकता है या वह अपने अधीन किसी सहायक कलेक्टर (Assistant Collector) या तहसीलदार (Tehsildar) को इसके लिए नियुक्त कर सकता है।

    उपधारा 2:

    • नीलामी रविवार या किसी अधिकृत अवकाश (Authorised Holiday) के दिन नहीं हो सकती।

    • उद्घोषणा जारी होने के कम से कम 30 दिन बाद ही नीलामी हो सकती है। यह समय डिफॉल्टर को बकाया चुकाने का अवसर देने के लिए आवश्यक है।

    उपधारा 3:

    कलेक्टर समय-समय पर नीलामी को स्थगित (Postpone) कर सकता है यदि उसे उपयुक्त लगे।

    व्यावहारिक उदाहरण:

    कलेक्टर किसी डिफॉल्टर की 5 बीघा भूमि की नीलामी करना चाहता है। वह 1 जुलाई को उद्घोषणा करता है। तो नीलामी 31 जुलाई से पहले नहीं हो सकती। यदि 31 जुलाई को रविवार है, तो अगला कार्यदिवस चुना जाएगा। कलेक्टर तहसीलदार को भी अधिकृत कर सकता है कि वह नीलामी की प्रक्रिया पूरी करे।

    धाराएँ 237 से 239 इस बात की पुष्टि करती हैं कि राज्य को राजस्व वसूली के लिए वैकल्पिक साधनों की शक्ति प्राप्त है। अगर डिफॉल्टर की मूल भूमि से वसूली नहीं हो पाती, तो उसकी अन्य अचल संपत्ति से भी वसूली की जा सकती है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में यह ध्यान रखा जाता है कि अन्य सह-स्वामियों या वैध हितधारकों के अधिकारों को कोई नुकसान न हो।

    नीलामी की प्रक्रिया पारदर्शिता और न्यायसंगत अवसर देने के सिद्धांतों पर आधारित होती है। उद्घोषणा के नियम, समयसीमा और अवकाशों के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि डिफॉल्टर को पर्याप्त समय और जानकारी मिले।

    इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भू-राजस्व कानून न केवल राज्य के राजस्व हितों की रक्षा करता है, बल्कि नागरिकों के वैधानिक और संवैधानिक अधिकारों की भी सुरक्षा करता है।

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