पंचशील समझौता, 1954: भारत-चीन संबंधों का ऐतिहासिक दस्तावेज़
Himanshu Mishra
19 May 2025 6:36 PM IST

29 अप्रैल 1954 को भारत और चीन के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ, जिसे "पंचशील समझौता" (Panchsheel Agreement) कहा जाता है। इसका आधिकारिक नाम "भारत और चीन के तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार और आपसी संबंधों पर समझौता" (Agreement on Trade and Intercourse Between the Tibet Region of China and India) था।
यह समझौता दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Peaceful Coexistence) के सिद्धांतों पर आधारित था और इसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक नई दिशा के रूप में देखा गया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)
भारत और तिब्बत के बीच सदियों से व्यापार और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान, भारत ने तिब्बत के साथ कुछ विशेषाधिकार प्राप्त किए थे। लेकिन 1947 में भारत की स्वतंत्रता और 1950 में चीन द्वारा तिब्बत पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद, इन संबंधों की पुनः समीक्षा की आवश्यकता महसूस हुई।
इसी संदर्भ में, 1954 में पंचशील समझौता हुआ, जिसमें भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा स्वीकार किया और दोनों देशों ने पारंपरिक व्यापार मार्गों और तीर्थयात्राओं को बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की।
पंचशील के पांच सिद्धांत (Five Principles of Panchsheel)
इस समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धांतों का उल्लेख किया गया, जिन्हें पंचशील (Panchsheel) कहा जाता है:
1. एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का परस्पर सम्मान (Mutual respect for each other's territorial integrity and sovereignty)
2. परस्पर आक्रामकता से बचाव (Mutual non-aggression)
3. एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना (Mutual non-interference in each other's internal affairs)
4. समानता और पारस्परिक लाभ (Equality and mutual benefit)
5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Peaceful coexistence)
ये सिद्धांत दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई दिशा देने के उद्देश्य से स्थापित किए गए थे।
मुख्य प्रावधान (Key Provisions)
इस समझौते के तहत, भारत और चीन ने पारंपरिक व्यापार मार्गों और तीर्थयात्राओं को बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की। दोनों देशों ने एक-दूसरे के व्यापार एजेंसियों को स्थापित करने की अनुमति दी और व्यापार के लिए विशेष बाजारों की पहचान की। इसके अलावा, भारतीय तीर्थयात्रियों को तिब्बत में स्थित धार्मिक स्थलों की यात्रा की अनुमति दी गई, और चीनी तीर्थयात्रियों को भारत में स्थित धार्मिक स्थलों की यात्रा की अनुमति दी गई।
समझौते की अवधि और समाप्ति (Duration and Termination of the Agreement)
यह समझौता आठ वर्षों के लिए प्रभावी था और 6 जून 1962 को समाप्त हो गया। इस अवधि के दौरान, भारत और चीन के बीच संबंधों में तनाव बढ़ता गया, जो अंततः 1962 के भारत-चीन युद्ध में परिणत हुआ। इस युद्ध के बाद, पंचशील समझौते को नवीनीकृत नहीं किया गया।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पंचशील (Panchsheel in Contemporary Context)
हाल के वर्षों में, चीन ने पंचशील सिद्धांतों को फिर से महत्व देना शुरू किया है। 2024 और 2025 में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन सिद्धांतों का उल्लेख किया और उन्हें वैश्विक दक्षिण (Global South) के देशों के लिए एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया। इसके अलावा, 2025 में चीन ने भारतीय तीर्थयात्रियों को तिब्बत में स्थित धार्मिक स्थलों की यात्रा की अनुमति दी, जो पिछले पांच वर्षों से बंद थी। यह निर्णय पंचशील समझौते की भावना के अनुरूप है।
कानूनी विश्लेषण (Legal Analysis)
पंचशील समझौता एक द्विपक्षीय संधि (Bilateral Treaty) थी, जिसे दोनों देशों की सरकारों ने विधिवत रूप से स्वीकार किया था। यह समझौता अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत वैध था और दोनों देशों के बीच संबंधों को नियमित करने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत, केंद्र सरकार को अंतरराष्ट्रीय संधियों को लागू करने का अधिकार प्राप्त है, और पंचशील समझौता इसी के तहत लागू किया गया था।
पंचशील समझौता भारत और चीन के बीच संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। यह समझौता न केवल दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने का प्रयास था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों को स्थापित करने का भी एक प्रयास था।
हालांकि यह समझौता 1962 में समाप्त हो गया, लेकिन इसके सिद्धांत आज भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रासंगिक हैं और दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने के लिए एक आधार प्रदान करते हैं।

