घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अंतर्गत दिए जाने वाले आदेश

Shadab Salim

26 Feb 2021 12:00 PM IST

  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अंतर्गत दिए जाने वाले आदेश

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम से संबंधित इसके पूर्व के आलेख में अधिनियम का एक सामान्य परिचय दिया गया था, इस आलेख के अंतर्गत उन आदेशों का उल्लेख किया जा रहा है जो इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यथित पक्षकार द्वारा आवेदन दिए जाने पर प्रत्यार्थी के विरुद्ध जारी किए जाते हैं।

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के अंतर्गत दिए जाने वाले आदेश-

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 2 (झ) में वर्णित मजिस्ट्रेट को धारा 12 में अधिकार है कि वह व्यथित व्यक्ति, संरक्षण अधिकारी या व्यथित व्यक्ति की ओर से किसी व्यक्ति द्वारा अनुतोष हेतु आवेदन किए जाने पर निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक प्रकार का अनुतोष प्रदान करें-

    संरक्षण का आदेश (धारा 18)

    निवास का आदेश (धारा 19)

    आर्थिक सहायता का आदेश (धारा 20)

    अभिरक्षा का आदेश (धारा 21)

    प्रतिकार का आदेश (धारा 22)

    अंतरिम एवं एकपक्षीय आदेश (धारा 23)

    अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत अनुतोष हेतु मजिस्ट्रेट को आवेदन किए जाने पर ऐसे आवेदन पत्र पर कोई आदेश पारित करने के पूर्व मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता से उसके द्वारा प्राप्त घरेलू रिपोर्ट पर विचार करेगा।

    धारा 12 की उपधारा 2 यह सुनिश्चित करती है कि वह व्यथित व्यक्ति द्वारा घरेलू हिंसा के कृत्य द्वारा कार्य क्षेत्रों के लिए प्रतिक्रिया नुकसानी के संदाय हेतु दिए गए आवेदन में पारित आदेश व्यथित व्यक्ति को उपरोक्त कार्यो से कार्य घरेलू हिंसा या नुकसानी के लिए भविष्य में वाद लाने के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है।

    पर यदि व्यथित व्यक्ति के पक्ष में प्रतिक्रिया क्षतिपूर्ति के रूप में किसी धनराशि के लिए डिक्री किसी न्यायालय द्वारा पारित की जा चुकी है तो उस धनराशि को इस अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत प्रदान किए गए मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसरण में देय धनराशि में से मुजरा किया जाएगा। पारित डिक्री सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में समाहित कुछ भी होते हुए ऐसी मुजराई के पश्चात शेष राशि यदि कोई है के लिए निष्पादित किए जाने योग्य होगी।

    आवेदन का प्रारूप, धारा-12 (3)

    धारा 12 के अंतर्गत व्यथित व्यक्ति द्वारा या संरक्षण अधिकारी द्वारा व्यथित व्यक्ति की ओर से किसी व्यक्ति द्वारा आवेदन पत्र ऐसे प्रारूप में होगा और ऐसी स्थितियां समाविष्ट करेगा जैसी विहित की गई हो या उसके यथासंभव समीप हो।

    आवेदन प्राप्त करने के बाद मजिस्ट्रेट प्रथम सुनवाई दिनांक नियत करेगा जो सामान्यताः न्यायालय द्वारा आवेदन प्राप्ति के दिनांक से 30 दिनों के भीतर ही होगी अर्थात जैसे ही मजिस्ट्रेट को आवेदन दिया जाता है आवेदन प्राप्त होने के बाद 30 दिनों तक की दिनांक दी जाती है, 30 दिनों से अधिक की दिनांक नहीं होगी।

    मजिस्ट्रेट आवेदन प्राप्त करने के बाद प्रत्येक आवेदन पत्र का निपटारा इसकी प्रथम सुनवाई दिनांक से 60 दिनों की अवधि के भीतर करने का प्रयास करेगा। सुनवाई दिनांक का सूचना पत्र मजिस्ट्रेट द्वारा संरक्षण अधिकारी को दिया जाएगा जो प्रत्यार्थी या अन्य व्यक्ति पर धारा 13 (1) के अनुसार इसे तामील कराएगा।

    इस अधिनियम की धारा 14 के अधीन कार्रवाईयों के किसी भी प्रक्रम पर मजिस्ट्रेट प्रत्यार्थी या व्यथित व्यक्ति को या तो अकेले या साथ-साथ सेवा प्रदाता के किसी भी सदस्य के साथ जो ऐसी योग्यता और अनुभव को धारण करता हो जो की मंत्रणा देने हेतु विहित की जाए मंत्रणा करने हेतु निर्देशित कर सकेगा।

    इस अधिनियम की धारा 15 के अनुसार किसी भी कार्यवाही में मजिस्ट्रेट किसी ऐसे व्यक्ति की सेवाएं ले सकता है जो चाहे व्यथित व्यक्ति से रिश्तेदारी संबंध रखता है या नहीं ऐसे व्यक्ति में कुटुंब कल्याण में हित रखता है जिसे वह उचित समझे सम्मिलित हो सकता है।

    ऐसे व्यक्ति के चयन में अधिमान्यता पूर्वक किसी स्त्री के चयन को वरीयता दी जाएगी। ऐसी सेवाएं मजिस्ट्रेट द्वारा अपने कार्यों के निर्वहन में सहायता करने के प्रयोजन से अभिप्राप्त की जा सकेगी।

    इस अधिनियम की धारा 17 के अनुसार घरेलू नातेदारी में रहने वाली प्रत्येक महिला को घर में निवास करने का अधिकार होगा इस तथ्य से निरपेक्ष की उसका उस घर मे लाभकारी हित है या नहीं। यह अधिकार तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि में समाहित किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होगा।

    धारा 17 के अंतर्गत एक महिला को यह अधिकार दे दिया गया है कि किसी घर में उसकी हिस्सेदारी हो या ना हो पर यदि वह घर पर रहती आई है तो मजिस्ट्रेट उसे उस घर में दाखिल किए जाने का आदेश दे सकता है।

    संरक्षण का आदेश (धारा 18)

    अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत किसी मजिस्ट्रेट द्वारा दिए जाने वाला संरक्षण का आदेश कुछ शर्ते पूरी होने पर व्यथित व्यक्ति के पक्ष में पारित किया जाता है। जब भी कोई महिला ऐसा आवेदन लेकर आती है जिसमें धारा 18 के अंतर्गत संरक्षण की मांग की जाती है तब मजिस्ट्रेट द्वारा इसकी जांच की जाती है और कुछ शर्तों का पालन किया जाता है- जैसे

    व्यथित व्यक्ति एवं प्रत्यार्थी को सुनवाई का अवसर देकर।

    प्रथम दृष्टया संतुष्ट होने पर की घरेलू हिंसा की घटना हो चुकी है या नहीं।

    घरेलू हिंसा घटित होने की संभावना है।

    धारा 18 के अंतर्गत पारित अनुतोष के आदेश द्वारा मजिस्ट्रेट प्रत्यार्थी को निम्नलिखित संदर्भों में निवारित कर सकेगा।

    घरेलू हिंसा के किसी कृत्य को कारित करने से।

    घरेलू हिंसा के कृत्य में सहायता करने या उसे कार्य करने में दुष्प्रेरित करने से।

    व्यथित व्यक्ति के नियोजन वाले स्थान यदि व्यथित व्यक्ति कोई बालक है तो विद्यालय में या कोई अन्य स्थान जहां व्यथित व्यक्ति अधिकतर जाता हो में प्रवेश करने से।

    व्यथित व्यक्ति के साथ किसी भी रूप में किसी भी प्रकार की सूचना करने का प्रयास भी जिस में सम्मिलित है व्यक्तिगत मौखिक या लिखित या इलेक्ट्रॉनिक दूरभाष संपर्क से।

    अन्य नातेदारी या कोई व्यक्ति जो व्यथित व्यक्ति को घरेलू हिंसा के विरुद्ध सहायता करता है के प्रति हिंसा करने से।

    कोई अन्य कृत्य संरक्षण आदेश में निर्दिष्ट करने से।

    यदि प्रत्यार्थी द्वारा संरक्षण आदेश का उल्लंघन किया जाता है तो अधिनियम की धारा 31 के अनुसार यह अपराध होगा और यह किसी भांति के कारावास से जो 1 वर्ष तक विस्तारित हो सकेगा या जुर्माने से जो ₹20000 तक विस्तारित हो सकेगा या दोनों से दंडित होगा।

    यदि कोई संरक्षण अधिकारी बिना किसी पर्याप्त कारण के संरक्षण आदेश में मजिस्ट्रेट द्वारा निर्देशित उसके कर्तव्यों का निर्वाहन करने में चूक करता है या विफल होता है या इंकार करता है तो उसे अधिनियम की धारा 31 के अंतर्गत या तो किसी भांति के कारावास जो 1 वर्ष तक विस्तारित हो सकेगा यह जुर्माने के साथ जो ₹20000 तक हो सकेगा या दोनों से दंडित किया जाएगा।

    निवास आदेश (धारा-19)

    इस अधिनियम की धारा 12 की उपधारा 1 के अंतर्गत अनुतोष हेतु प्रेषित किए गए आवेदन पत्र के निस्तारण के समय मजिस्ट्रेट जब तक निवास का अनुतोष आदेश पारित नहीं करेगा जब तक वह संतुष्ट न हो जाए कि घरेलू हिंसा घटित हो चुकी है।

    ऐसा निवास आदेश निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगा-

    साझी गृहस्थी चाहे प्रत्यार्थी उसमे कोई विधि हित रखता हो या न रखता हो से व्यथित व्यक्ति को बे कब्जा करने से या उसके कब्जे में किसी भी रीति से बाधा डालने से प्रत्यार्थी को अवरुद्ध करेगा।

    प्रत्यार्थी को साझी गृहस्थी से उसे स्वयं को हटाने के लिए निर्देशित करते हुए परंतु उपरोक्त प्रकार का आदेश महिला प्रत्यार्थी के विरुद्ध पारित नहीं किया जाएगा।

    साझी गृहस्थी जिसमें व्यक्ति निवास करता है में उसके किसी भाग में प्रवेश करने से प्रत्यार्थी या उसके किसी नातेदार को अवरुद्ध करते हुए।

    साझी गृहस्थी को किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित करने या या उसका विलंगम करने से प्रत्यार्थी अवरुद्ध करते हुए।

    यदि परिस्थितियां इस प्रकार अपेक्षित हो तो व्यथित व्यक्ति के लिए उसी स्तर का वैकल्पिक स्थान प्राप्त करने के लिए जैसे उसके द्वारा साझी गृहस्थी में उपयोग किया जाता है या उसके लिए संदाय करने के लिए निर्देशित करते हुए।

    इसके अलावा मजिस्ट्रेट संतान की सुरक्षा और संरक्षण हेतु युक्तियुक्त आदेश दे सकता है। मजिस्ट्रेट ऐसी कोई अतिरिक्त शर्त अधिरोपित कर सकेगा या कोई अन्य निदेश पारित कर सकेगा जो व्यथित व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति की संतान की सुरक्षा के लिए आवश्यक समझे।

    प्रत्यार्थी को घरेलू हिंसा से निवृत करने के उपाय मजिस्ट्रेट प्रत्यार्थी से घरेलू हिंसा कारित करने से रोकने करने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित बंद पत्र निष्पादित करने की अपेक्षा कर सकता है।

    घरेलू हिंसा से निवृत करने के उपाय हेतु पारित आदेश दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन आदेश समझा जाएगा और उसी के अनुसार वह व्यवहार में होगा।

    इस प्रकार के आदेश पारित करते समय निकटतम थाना के धार साधक अधिकारी को व्यथित व्यक्ति को संरक्षण प्रदान करने के लिए या आदेश क्रियान्वित करने हेतु उसकी ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति को मदद करने के लिए निर्देशित करते हुए आदेश भी पारित किया जा सकेगा।

    मजिस्ट्रेट द्वारा व्यथित व्यक्ति के कब्जे में उसका स्त्रीधन या अन्य कोई संपत्ति है या बहुमूल्य प्रतिभूति जिसकी वह हकदार हैं वापस लौटाने के लिए प्रत्यार्थी को निर्देशित कर सकता है।

    मौद्रिक अनुतोष (धारा 20)

    यदि व्यथित व्यक्ति और व्यथित व्यक्ति की किसी संस्थान द्वारा घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप कोई हानि वहन की गई है और खर्चे किए गए हैं तो उनकी प्रतिपूर्ति हेतु मजिस्ट्रेट को आवेदन करने पर मजिस्ट्रेट प्रत्यार्थी को मौद्रिक अनुतोष संगत करने हेतु निर्देशित कर सकता है।

    इस अनुतोष में कुछ निम्नलिखित खर्च शामिल है-

    अर्जन क्षमता की हानि।

    चिकित्सकीय खर्च।

    व्यथित व्यक्ति के नियंत्रण से किसी संपत्ति को हटाने उस को नुकसान पहुंचाने या नष्ट करने से हुई हानि।

    व्यथित व्यक्ति के साथ-साथ उसकी संतान यदि कोई है के लिए भरण पोषण चाहे वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत उपलब्ध है या अन्यथा किसी प्रगति विधि के अंतर्गत उपलब्ध है परंतु उपरोक्त तक ही सीमित नहीं है कोई अन्य युक्तियुक्त खर्च भी सम्मिलित किए जा सकते हैं।

    अधिनियम की धारा 20(2) 20(6) तक मौद्रिक अनुतोष के भुगतान की राशि रीति अदायगी की अवधि भुगतान में त्रुटि पर किए जाने वाले उपायों के बारे में वर्णन किया गया है। अधिनियम की धारा 20(2) के अधीन स्वीकृत किया गया मौद्रिक अनुतोष पर्याप्त उचित और युक्तियुक्त तथा उस जीवन स्तर के अनुरूप होगा जिसका व्यथित व्यक्ति अभ्यस्त है।

    एकमुश्त संदाय मासिक किस्तों में संदाय अधिनियम की धारा 20 की उपधारा 3 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट शक्ति रखेगा कि वह भरण पोषण की समुचित एकमुश्त धनराशि का संदाय करने के लिए आदेश प्रदान करें या मासिक संदाय हेतु आदेश करें ऐसा वह मामले की प्रकृति व परिस्थितियों को ध्यान में रखकर करेगा।

    मजिस्ट्रेट उपधारा 1 के अंतर्गत दिए गए मौद्रिक अनुतोष के आदेश की एक प्रति पक्षकार और उस पुलिस थाने के भारसाधक को प्रेषित करेगा जिसकी अधिकारिता के भीतर प्रत्यार्थी सामान्यताः निवास करता है।

    मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 20(1) के अंतर्गत पारित आदेश के निर्बंधनो में संदाय करने में विफल होने पर मजिस्ट्रेट प्रत्यार्थी के नियोजक या देनदार को निर्देशित कर सकता है कि संदाय व्यथित व्यक्ति को सीधे किया जाए अथवा मज़दूरी के कुछ भाग को सीधे न्यायालय में जमा करा दिया जाए। न्यायालय में सीधे जमा की गई राशि प्रत्यार्थी के वेतन या मजदूरी का एक भाग हो जिसे की व्यथित व्यक्ति को अनुतोष के रूप में आदेशित की गई धनराशि के प्रति समायोजित किया जाए।

    (अभिरक्षा आदेश) संतानों की अभिरक्षा का आदेश (धारा-21)

    इस अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट तत्समय प्रवर्तक किसी अन्य विधि में समाहित किसी बात के होते हुए भी धारा 12 के अंतर्गत प्रदत आवेदन पत्र जो कि संरक्षण आदेश हेतु हो यह किसी अन्य अनुतोष हेतु हो सुनवाई के किसी भी प्रक्रम में संतानों की अभिरक्षा व्यथित व्यक्ति को प्रदान कर सकेगा।

    ऐसी अभिरक्षा में व्यथित व्यक्ति की ओर से आवेदन करने वाले व्यक्ति को भी की जा सकती है या किसी अन्य विनिर्दिष्ट व्यक्ति को दी जा सकती है। प्रत्यार्थी द्वारा ऐसी संतानों से मुलाकात हेतु व्यवस्था भी की जा सकती है।

    यदि मजिस्ट्रेट को विश्वास करने का समुचित आधार है कि प्रत्यार्थी का संतानों या संतान से भेंट करना उनके हित में नहीं है या नुकसानदायक है तो ऐसी भेंट की अनुमति प्रदान करने से इंकार कर सकता है।

    प्रत्यार्थी द्वारा व्यथित व्यक्ति को कारित घरेलू हिंसा से कृत्यों द्वारा कारित मानसिक प्रताड़ना और भावनात्मक क्षतियों के प्रतिकर उन नुकसानी संदाय किए जाने हेतु व्यथित व्यक्ति द्वारा आवेदन किए जाने पर मजिस्ट्रेट धारा 22 में प्रत्यार्थी को निर्देशित करते हुए आदेश पारित कर सकता है।

    अंतरिम और एक पक्षी आदेश देने की शक्ति

    अधिनियम की धारा 23 की उपधारा 1 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को अधिकार होगा कि अपने समक्ष किसी भी कार्यवाही में वह ऐसा अंतरिम आदेश पारित कर सकेगा जैसा वह न्याय संगत और उचित समझें। अधिनियम की धारा 23 की उपधारा 2 में मजिस्ट्रेट की एकपक्षीय आदेश प्रदान करने की शक्ति का वर्णन है।

    इस धारा के अनुसार-

    यदि मजिस्ट्रेट को यह समाधान हो जाता है कि आवेदन पत्र प्रथमदृष्टया प्रकट करता है कि प्रत्यार्थी घरेलू हिंसा का कोई कार्य कर रहा है या कार्य कर चुका है या कारित होने की संभावना है। घरेलू हिंसा का कोई कार्य करेगा अर्थात वर्तमान भूत और भविष्य तो ऐसा मजिस्ट्रेट आवेदक द्वारा प्रदत शपथ पत्रों के आधार पर ऐसे प्रारूप में जैसा स्थापित किया जाए व्यथित व्यक्ति को धारा-18, धारा-19, धारा-21, या जैसी स्थिति हो धारा 22 के अधीन एकपक्षीय आदेश पारित कर सकेगा।

    अपील

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 29 के अनुसार अपील का प्रावधान किया गया है। इस धारा के अनुसार आदेश से 30 दिनों के भीतर सेशन न्यायालय में अपील की जा सकती है।

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