झूठे बयान, सबूत छिपाना और जानकारी छिपाने के अपराध: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 237 से 239
Himanshu Mishra
8 Oct 2024 5:22 PM IST
भारतीय न्याय संहिता, 2023, जो 1 जुलाई, 2024 से लागू हुई है, ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को बदल दिया है। इसमें कई प्रावधान (Provisions) हैं जो कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) की शुद्धता बनाए रखने के लिए झूठे बयान (False Declarations), सबूत छिपाने और अपराध की जानकारी छिपाने जैसे मामलों को रोकते हैं।
धारा 237 से 239 इसी उद्देश्य पर केंद्रित हैं। यह लेख इन धाराओं का सरल हिंदी में विश्लेषण करेगा, ताकि आम लोग भी समझ सकें कि ये कानून कैसे काम करते हैं और किस प्रकार अपराधियों (Offenders) को दंडित किया जा सकता है।
धारा 237: झूठे बयान का सही (True) के रूप में उपयोग करना
धारा 237 उन मामलों से संबंधित है, जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी झूठे बयान (Declaration) को सही के रूप में उपयोग करता है, यह जानते हुए कि वह गलत है।
अगर कोई झूठा बयान अदालत में सही के रूप में पेश किया जाता है, तो उस व्यक्ति को झूठे सबूत (False Evidence) देने के समान दंडित किया जाएगा। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में गलत जानकारी का उपयोग रोकने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि एक व्यक्ति अदालत में एक झूठा हलफनामा (Affidavit) जमा करता है, जिसमें वह दावा करता है कि उसने कोई घटना देखी है, जबकि वास्तव में उसने वह घटना नहीं देखी।
यदि यह साबित होता है कि वह व्यक्ति इस झूठे बयान को सही के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, तो उसे धारा 237 के तहत दोषी माना जाएगा।
इस धारा में एक स्पष्टीकरण भी है कि यदि कोई बयान केवल किसी छोटी सी औपचारिकता (Formality) के कारण अमान्य (Inadmissible) है, तो वह भी धारा 236 और 237 के अंतर्गत आता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि तकनीकी खामियों (Technical Deficiencies) के आधार पर झूठे बयान को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
धारा 238: सबूत छिपाना और अपराधी को बचाना
धारा 238 उन लोगों से संबंधित है जो किसी अपराध (Offense) के बारे में जानते हैं या मानते हैं कि कोई अपराध हुआ है और फिर भी अपराधी (Offender) को कानूनी सजा से बचाने के लिए सबूत (Evidence) को नष्ट या छिपा देते हैं। साथ ही, अगर वे जानबूझकर अपराध से जुड़ी गलत जानकारी देते हैं, तो उन्हें भी इस धारा के अंतर्गत दंडित किया जा सकता है।
इस धारा के तहत सजा इस बात पर निर्भर करती है कि अपराध कितना गंभीर था:
• अगर अपराध मृत्यु दंड (Death Penalty) से दंडनीय है, तो सबूत छिपाने वाले व्यक्ति को 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
• अगर अपराध उम्रकैद (Life Imprisonment) या 10 साल तक की सजा से दंडनीय है, तो दोषी व्यक्ति को 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
• अगर अपराध 10 साल से कम की सजा से दंडनीय है, तो दोषी को उस अपराध के लिए निर्धारित सजा का चौथाई (One-Fourth) हिस्सा या जुर्माना या दोनों मिल सकते हैं।
उदाहरण: धारा 238
मान लीजिए, A को पता है कि B ने Z की हत्या की है। A, B की मदद करता है और Z के शव को छिपाने की कोशिश करता है ताकि B को सजा न हो। इस स्थिति में, A को धारा 238 के तहत दोषी माना जाएगा। क्योंकि B का अपराध मृत्यु दंड से दंडनीय है, A को 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
धारा 239: जानकारी छिपाना
धारा 239 उन लोगों से संबंधित है, जो जानते हैं या मानते हैं कि कोई अपराध हुआ है, लेकिन फिर भी उस अपराध से जुड़ी जानकारी छिपाते हैं। अगर किसी व्यक्ति पर कानूनन यह जिम्मेदारी है कि वह अपराध से संबंधित जानकारी दे, और वह इसे जानबूझकर नहीं देता, तो उसे दंडित किया जा सकता है।
इस धारा के अंतर्गत सजा अपेक्षाकृत कम होती है। दोषी व्यक्ति को 6 महीने तक की सजा, या 5000 रुपये तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को पता है कि उसके पड़ोस में एक डकैती (Robbery) हुई है, लेकिन वह इस जानकारी को जानबूझकर पुलिस से छिपाता है, तो उसे धारा 239 के तहत सजा मिल सकती है।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 237 से 239 कानूनी प्रणाली (Legal System) में सच्चाई और ईमानदारी (Integrity) बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये प्रावधान झूठे बयान, सबूत छिपाने और अपराध की जानकारी छिपाने से रोकते हैं। इस तरह, ये धाराएँ सुनिश्चित करती हैं कि अपराधियों और उनके सहयोगियों (Accomplices) को सजा से बचने का कोई मौका न मिले।
इन प्रावधानों के माध्यम से, न्यायिक प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि कानूनी प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की गलत जानकारी का उपयोग न हो और अपराधी कानूनी रूप से दंडित हों।