SC/ST Act से संबंधित क्राइम में FIR के पहले किसी जांच की ज़रूरत और Probation
Shadab Salim
13 May 2025 4:54 AM

इस अधिनियम की धारा 18(क) के अंतर्गत एक पुलिस अधिकारी को प्रथम इत्तिला रिपोर्ट दर्ज करने हेतु किसी अन्वेषण या पूर्व अनुमोदन की कोई आवश्यकता नहीं होगी। एक पुलिस अधिकारी अपने समक्ष उपस्थित हुए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्य की मौखिक शिकायत पर आवेदन को लिखेगा तथा उसे पढ़कर सुनाएगा और उस पर उस पीड़ित के हस्ताक्षर करवाएगा। यह प्रक्रिया इस अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत की गई है तथा धारा 18(क) में स्पष्ट रूप से उल्लेख कर दिया गया है कि कहीं भी कोई पुलिस अधिकारी किसी जांच के संबंध में कोई आश्वासन नहीं देगा।
अनुसूचित जाति के सदस्य को शिकायत दर्ज कराने में भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना होता था। उसकी एफआईआर संबंधित पुलिस थाने पर दर्ज नहीं की जाती थी। रसूखदार लोग पुलिस पर रसूख डालकर ऐसे अनुसूचित जाति के सदस्य को दबाने का प्रयास करते थे। पुलिस अधिकारी जांच करने का आश्वासन देकर बात को टालने का प्रयास करते थे। इसी पर स्थिति से निपटने के उद्देश्य से इस अधिनियम के अंतर्गत धारा 18(क) को प्रस्तुत किया गया है जिसका मूल स्वरूप कुछ इस प्रकार है:-
धारा 18 (क)- किसी जांच या अनुमोदन का आवश्यक न होना-
(1) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए -
(क) किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध प्रथम इत्तिला रिपोर्ट के रजिस्ट्रीकरण के लिए किसी प्रारम्भिक जांच की आवश्यकता नहीं होगी; या
(ख) किसी ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी, यदि आवश्यक हो, से पूर्व अन्वेषक अधिकारी को किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी,
जिसके विरुद्ध इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के किए जाने का अभियोग लगाया गया है और इस अधिनियम या संहिता के अधीन उपबंधित प्रक्रिया से भिन्न कोई प्रक्रिया लागू नहीं होगी।
(2) किसी न्यायालय के किसी निर्णय या आदेश या निदेश के होते हुए भी, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के उपबंध इस अधिनियम के अधीन किसी मामले को लागू नहीं होंगे।
Accused को Probation का लाभ नहीं दिया जाएगा
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम किसी ऐसे अपराधी को सुधारने का प्रयास करता है जिसने कम गंभीर अपराध किया है तथा जिसकी आयु कम है और वे जिसका अपराध प्रथम बार है। अर्थात किसी ऐसे व्यक्ति को जो कोई अभ्यस्त अपराधी नहीं है अपराध की दुनिया से बचाने का प्रयास किया गया है तथा उसे सुधर जाने के कुछ अवसर प्रदान किए गए। यह व्यवस्था किसी अभियुक्त या सिद्धदोष अपराधी के लिए एक राहतभरी है लेकिन इस अधिनियम के अंतर्गत इस व्यवस्था को समाप्त किया गया है।
यदि किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अंतर्गत अभियुक्त बनाया जाता है तो उस व्यक्ति को अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के लाभ नहीं मिलेंगे अर्थात ऐसे व्यक्ति को जिसने पहली बार अपराध किया है तथा जिसकी आयु कम है और जो अभ्यस्त अपराधी नहीं है एवं जिसने कम गंभीर अपराध किया है यह मानकर जो राहत अभियुक्त को दी जाती है वह इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध करने वाले व्यक्ति को नहीं दी जाएगी।
धारा 19 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है जिसका मूल स्वरूप यहां इस आलेख में प्रस्तुत किया जा रहा है:-
धारा 19 इस अधिनियम के अधीन अपराध के लिये दोषी व्यक्तियों को संहिता की धारा 360 या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के उपबन्ध का लागू न होना-
संहिता की धारा 360 के उपबन्ध और अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) उपबन्ध अठारह वर्ष से अधिक आयु के ऐसे व्यक्ति के संबंध लागू नहीं होंगे जो इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने का दोषी पाया जाता है।
अवाजि श्रीपतराव टेकले बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र के प्रकरण में कहा गया है कि जहाँ अत्याचार का अपराध अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधानों के अधीन कारित किया गया था, वहाँ यह अभिनिर्धारित किया गया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 360 और अपराधी परिवीक्षा अधिनियम की धारा 4 के प्रावधान लागू नहीं होते हैं। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 20 उक्त अधिनियम के प्रावधानों को अन्य विधि पर अभिभावी प्रभाव प्रदान करती है, इसलिए अभियुक्त परिवीक्षा के लाभ का हकदार नहीं है।
जय सिंह बनाम हरियाणा राज्य (1983) 1 क्राइम्स 331 (पी० एंड एच०) में यह धारित किया गया था कि दोषसिद्ध को परिवीक्षा पर छोड़ने के लिए आयु एकमात्र मापदंड नहीं है। वह रीति जिसमें अभियुक्त ने अपराध में भाग लिया था और उसका चरित्र और पूर्ववृत्त विचार में लिये जाने होते हैं। इसके अतिरिक्त वह परिस्थितियाँ जिनमें अपराध किया गया था भार के रूप में तुला में आयु कारक को प्रत्यादेशित करने के लिए रखना होता है।
एक मामले में अभियुक्त याचिकाकर्ता घटना के समय 21 वर्ष से कम आयु का था और अभिलेख में उसके विरुद्ध यह दर्शित करने के लिए कुछ नहीं था कि वह पूर्व दोषसिद्ध था परिणामतः न्यायालय ने धारित किया कि यह उपयुक्त मामला था जिसमें कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 360 का लाभ उसे दिया जाए। अभियुक्त याचिकाकर्ता का दंड निलम्बित किया गया और इसके सिवाय वह सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़े जाने को आदेशित किया गया।