एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 27: एनडीपीएस एक्ट की वे शर्तें जिनके अधीन व्यक्तियों की तलाशी ली जाएगी

Shadab Salim

13 March 2023 4:48 AM GMT

  • एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 27: एनडीपीएस एक्ट की वे शर्तें जिनके अधीन व्यक्तियों की तलाशी ली जाएगी

    एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) की धारा की धारा 50 अभियुक्तों के संबंध में महत्वपूर्ण धारा है। यह इस अधिनियम की प्रक्रिया के संबंध में धारा है जहां व्यक्तियों की गिरफ्तारी के संबंध में प्रक्रिया निर्धारित की गई है। गिरफ्तारी के संबंध में कुछ शर्तें विधायिका ने निर्धारित की है जिनका पालन अभियोजन पक्ष द्वारा किया जाना आवश्यक है, इन शर्तों के पालन न होने के कारण अभियोजन संदेह के घेरे में आ जाता है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 50 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

    यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है

    धारा 50. वे शर्तें जिनके अधीन व्यक्तियों की तलाशी ली जाएगी-

    (1) जब धारा 42 के अधीन सम्यक् रुप से प्राधिकृत कोई अधिकारी, धारा 41, धारा 42 या धारा 43 के उपबंधों के अधीन किसी व्यक्ति की तलाशी लेने वाला है तब वह ऐसे व्यक्ति को, यदि ऐसा व्यक्ति ऐसी अपेक्षा करे तो, बिना अनावश्यक विलंब के धारा 42 में उल्लिखित किसी विभाग के निकटतम राजपत्रित अधिकारी या निकटतम मजिस्ट्रेट के पास ले जाएगा।

    (2) यदि ऐसी अपेक्षा की जाती है तो ऐसा अधिकारी ऐसे व्यक्ति को तब तक निरुद्ध रख सकेगा जब तक वह उसे उपधारा (1) में निर्दिष्ट राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के समक्ष नहीं ले जा सकता।

    (3) यदि ऐसा राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष कोई ऐसा व्यक्ति लाया जाता है, तलाशी के लिए कोई उचित आधार नहीं पाता है तो वह ऐसे व्यक्ति को तत्काल उन्मोचित कर देगा किन्तु अन्यथा यह निर्देश देगा कि तलाशी ली जाए।

    (4) किसी स्त्री की तलाशी, स्त्री से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं ली जाएगी।

    (5) जब धारा 42 के अधीन सम्यक् तौर पर प्राधिकृत अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण है कि व्यक्ति को तलाशी करवाने के लिए नजदीकतम राजपत्रित अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट के पास उसके कब्जे में की किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ या वस्तु या दस्तावेज को अलग किए बिना ले जाया जाना संभव नहीं है, तो वह ऐसे व्यक्ति को नजदीकतम राजपत्रित अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट के पास ले जाने के बजाय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन यथाउपबंधित व्यक्ति की तलाशी की कार्यवाही कर सकेगा।

    (6) उपधारा (5) के अधीन तलाशी संचालित होने के उपरांत, अधिकारी उसके ऐसे विश्वास के कारणों को अभिलिखित करेगा जिनके कारण ऐसी तलाशी आवश्यक हुई थी एवं बहत्तर घंटों के भीतर उसके निकटतम वरिष्ठ अधिकारी को इसकी एक प्रतिलिपि भेजेगा।

    हीरा गिरि उर्फ हरदेव गिरि बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश, 2004 (3) क्राइम्स 384 हिमाचल प्रदेश के मामले में 200 ग्राम चरस की बरामदगी का मामला था। इसे अभियुक्त की कमर में बंधे हुए काले बेल्ट बैग में पाया गया था यह माना गया कि अभियुक्त की व्यक्तिगत तलाशी के परिणाम में बरामदगी हुई थी। परिणामतः अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान तलाशी के इस भाग के संबंध में प्रयोज्य होना माने गए।

    स्वर्णकी बनाम स्टेट ऑफ केरल, 2006 क्रिलॉज 65 केरल के मामले में कहा गया है कि अभियुक्त को राजपत्रित अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में तलाशी दिए जाने के विकल्प को चुनने का अवसर उपलब्ध न कराया गया हो तो यह घातक नहीं होगा। यदि तलाशी संचालित करने वाला अधिकारी अभियुक्त को राजपत्रित अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट मात्र की उपस्थिति में तलाशी करने के उसके अधिकार को अवगत करा देता है तो इसे समुचित पालन होना माना जाएगा।

    अधिनियम की धारा 50 के अंतर्गत अभियुक्त का वास्तविक अधिकार राजपत्रित अधिकारी एवं मजिस्ट्रेट के मध्य चयन करने का नहीं होता है अपितु सशक्त अथवा प्राधिकृत अधिकारी के द्वारा या तो राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में अथवा मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में अथवा राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में उसके शरीर की तलाशी किए जाने का विकल्प होता है।

    इसीलिए यदि मामले में अभियुक्त से मात्र यह पूछा गया हो कि क्या वह उसके शरीर की तलाशी मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में देना चाहेगा और राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में उसके शरीर की तलाशी किए जाने का विकल्प प्रदान न किया गया हो तो यह नहीं कहा जा सकता कि अधिनियम की धारा 50 के प्रावधानों का आंशिक पालन ही हुआ था।

    अधिनियम की धारा 50 को साधारण तौर पर पढ़ने पर यह स्पष्ट होता है कि यह व्यक्ति की व्यक्तिगत तलाशी मात्र के संबंध में प्रयोज्य होती है। तलाशी का विस्तार वाहन अथवा कन्टेनर अथवा बैग अथवा स्थल की तलाशी तक नहीं होता है।

    धर्मेन्द्र कुमार परमार बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 2004 (3) क्राइम्स 500 म.प्र. के मामले में अधिनियम की धारा 50 की प्रयोज्यता के क्षेत्र को स्पष्ट किया गया। यह व्यक्तिगत तलाशी में प्रयोज्य होती है। प्रतिषिद्ध वस्तु बैग आदि से बरामद होने के मामले में इसे प्रयोज्य होना नहीं माना गया।

    स्टेट ऑफ पंजाब बनाम बल्देवसिंह, ए.आई.आर. 1999 सु.को. 2378 के मामले में भी अधिनियम की धारा 50 की प्रयोज्यता के क्षेत्र को स्पष्ट किया गया। अधिनियम की धारा 50 मात्र व्यक्तिगत तलाशी के संबंध में प्रयोज्य होगी।

    मोहम्मद बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 1998 (2) म.प्र.वी. नो. 65 म.प्र के मामले में भी अधिनियम की धारा 50 की प्रयोज्यता के क्षेत्र को स्पष्ट किया गया। भवन से स्वापक औषधि की गरामदगी के मामले में अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान का पालन किया जाना आवश्यक नहीं होगा।

    अधिनियम की धारा 50 की प्रयोज्यता के क्षेत्र पर विचार किया गया। उस दशा में अधिनियम की धारा 50 आकर्षित नहीं होगी जबकि अभियुक्त उससे संबंधित बैग पर बैठा हुआ हो और जिसमें कि प्रतिषिद्ध वस्तु होना पाई जाए।

    बालू बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान, 2004 (3) क्राइम्स 143 राजस्थान के मामले में धारा 50 की प्रयोज्यता व्यक्तिगत तलाशी के संबंध में होती है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कोई वस्तु जो कि संदेहास्पद व्यक्ति के हाथों में कंधे पर अथवा सिर पर हो वह भी उसके शरीर पर होना मानी जाएगी। आगे स्पष्ट किया गया कि पर्स अथवा पैकेट जो कि उसके शरीर पर हो वह उसके हाथों में होने वाले लगेज की कोटि में नहीं हो जाएगा।

    वर्तमान मामले में अभियुक्त प्लास्टिक बैग को उसके कंधे पर ले जाना बताया गया था। ऐसी स्थिति में अधिनियम की धारा 50 का पालन किया जाना आवश्यक माना गया। मामले में इसका अपालन होना पाया गया। परिणामतः अधिनियम की धारा 8/18 के तहत की गई दोषसिद्धि अपास्त की गई।

    सत्यवान पागी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 2006 क्रिलॉज 2181 बम्बई के मामले में अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान व्यक्तिगत तलाशी मात्र के संबंध में प्रयोज्य होते हैं। इसका विस्तार बैग, कंटेनर आदि की तलाशी के संबंध में नहीं होता है। उच्च न्यायालय ने व्यक्त किया कि मात्र उच्चतम न्यायालय के न्याय दृष्टांत स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम पवन कुमार, 2004 (7) सुप्रीम कोर्ट केस 735: एआईआर 2004 सुप्रीम कोर्ट 4743 में भिन्न राय व्यक्त की गई थी जिसे कि अबसुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायमूर्तिगण के निर्णय स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम पवन कुमार, 2005 एआईआर एससी डब्ल्यू 2154 के द्वारा सही अभिनिर्धारित कर दिया गया है।

    इसमें यह दुहराया गया है कि शब्द "व्यक्ति" का अभिप्राय ऐसे मानव से होगा जो समुचित तौर पर कवरिंग व क्लॉचिंग हो एवं फुटवियर भी हो। यह स्पष्ट किया गया कि एक बैग, ब्रीफकेस अथवा ऐसी वस्तु अथवा कंटेनर आदि को किसी भी परिस्थिति में मानव शरीर के रूप में होने को व्यवहत नहीं किया जा सकता है क्योंकि उनको पृथक नाम दिया जाता है और इस रूप में उन्हें पहचाना जाता है।

    एक प्रकरण में इस आशय का तर्क दिया गया था कि अधिनियम की धाररा 41 व 42 के. आदेशात्मक प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था। ए एस आई जिसके द्वारा जानकारी प्राप्त की गयी थी वह नाम अभिलिखित करने में विफल रहा था। इस तथ्य को उसने न्यायालय के समक्ष दिए गए कथन में मंजूर किया था। अभियुक्त के अधिवक्ता के द्वारा न्याय दृष्टांत स्टेट ऑफ बिहार बनाम कपिल सिंह, ए आई आर 1969 सुप्रीम कोर्ट 53 के पद 10 पर निर्भरता व्यक्त करते हुए यह तर्क दिया गया कि ढाबा में प्रविष्ट होने के पूर्व पुलिसजन ने एवं तलाशी दल में साथ होने वाले साक्षीगण ने उनकी खुद की तलाशी नहीं दी थी।

    श्री आर. एस. सिंह, अमरसिंह व मुख्य आरक्षक की साक्ष्य से यह स्पष्ट था कि अभियुक्त को मिथ्या लिप्त किए जाने की संभावना को दूर करने के लिए परिकल्पित विधिक अपेक्षाओं का पालन नहीं किया गया था। यह तर्क दिया गया कि अधिनियम की धारा 50 के तहत तलाशी संचालित करने वाले पुलिस अधिकारी के लिए यह आबद्धकारी था कि यह अभियुक्त को राजपत्रित अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में तलाशी करवाए जाने के विकल्प को चुनने के अधिकार से अवगत कराता।

    अभियोजन साक्ष्य से यह स्पष्ट था कि अभियुक्त को ऐसी कोई सूचना नहीं दी गई और इस कारण वह कथित प्रावधान के अधीन उसके विकल्प का उपयोग नहीं कर सका था। इस प्रकार यह तर्क दिया गया कि आक्षेपित दोषसिद्धि करने में गंभीर दुर्बलता थी। परिणामतः दोषसिद्धि व दंडादेश स्थिर रखने योग्य नहीं है।

    गुरुचरणसिंह बनाम स्टेट ऑफ एम. पी. 1992 (1) म.प्र.वीकली नोट्स 53 म.प्र के मामले में इन लचरताओं को स्पष्ट नहीं किया जा सका था। अभियोजन का मामला किसी एक दुर्बलता से ग्रसित नही था अपितु अधिनियम की धारा 41, 42 व 50 के प्रावधान के उल्लंघन के रुप में गंभीर दुर्बलताएँ थीं। महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि अभियुक्त के पेंट की जेब से प्रतिषिद्ध वस्तु की बरामदगी हुई थी परन्तु यह तथ्य जब्ती पत्रक में वर्णित नहीं था।

    उच्च न्यायालय ने व्यक्त किया कि इस तरह के मामलों में जहां कि 10 वर्ष के निरोध की सजा हो व 1,00,000 रुपए के जुर्माने को अधिरोपित किया जा सकता हो, जांच करने वाले अधिकारी से प्रक्रियात्मक आबद्धताओं के प्रति पूरी तौर पर सजग व निष्ठापूर्ण होने की प्रत्याशा की जाती है। ऊपर इंगित दुर्बलताओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि अभियुक्त को उसकी प्रतिरक्षा में सारवान प्रतिकूलता हुई थी। परिणामतः अभियुक्त को दोषी माने जाने से अनिच्छा व्यक्त की गई।

    स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम पवन कुमार, 2005 क्रिलॉज 2208 सुप्रीम कोर्ट प्रावधान के प्रायोज्यता के क्षेत्र को स्पष्ट किया गया। प्रावधान मात्र अभियुक्त की व्यक्तिगत तलाशी के संबंध में प्रयोज्य होते है। यह अभियुक्त के द्वारा ले जाए जाने वाले बैग, वस्तु अथवा कंटेनर आदि की तलाशी के संबंध में प्रयोज्य नहीं होते हैं।

    बालू बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान, 2005 क्रिलॉज 33 राजस्थान के प्रकरण में इसकी प्रयोज्यता के क्षेत्र को स्पष्ट किया गया। यह प्रावधान अभियुक्त की व्यक्तिगत तलाशी पर प्रयोज्य होता है। यह स्पष्ट किया गया कि अभियुक्त के कंधे पर हाथों में व सिर पर होने वाली कोई वस्तु भी उसके शरीर पर होना मानी जाएगी। उसके शरीर पर होने वाला कोई पर्स या पैकेट उसके हाथों में लगेज होने की कोटि में नहीं समझा जाएगा। एक लटकाने वाला (SLING) बैग जो कि अभियुक्त के शरीर पर हैंडलिंग हो उसे अभियुक्त के हाथों में ले जाए जाने वाले लगेज के रूप में होना नहीं माना जाएगा।

    संदेहास्पद व्यक्ति के शरीर पर पायी जाने वाली कतिपय वस्तु की तलाशी नहीं ली जा सकेगी जब तक कि अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान का पालन नहीं कर दिया जाता। वर्तमान मामले में अभियुक्त उसके कंधे पर प्लास्टिक बैग ले जाने वाला बताया गया था इसलिए इस मामले में अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान का पालन किया जाना आवश्यक था। मामले में अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान का पालन होना नहीं पाया गया। परिणामतः अधिनियम की धारा 8/18 के अधीन की गयी दोषसिद्धि अपास्त की गयी।।

    के.पी सलीम बनाम स्टेट ऑफ केरल, 2001 क्रिलॉज 4364 केरल के मामले में अभियुक्त की गिरफ्तारी निजी व्यक्ति के द्वारा की गई थी न कि पुलिस के द्वारा पुलिस को अभियोजन साक्षी 3 के द्वारा बताई गई घटना के बाबत कोई जानकारी उस समय तक नहीं थी जब तक कि गिरफ्तार व्यक्ति को सर्किल इंस्पेक्टर ऑफ पुलिस के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर दिया गया था। उसकी साक्ष्य से यह दर्शित होता था कि उसने वस्तुओं की जप्ती की थी और उसके उपरांत अभियुक्त को अधिनियम की धारा 50 के अधिकार के बाबत अवगत कराया था और नकारात्मक उत्तर प्राप्त होने पर तत्काल उसने उसके शरीर की तलाशी लेने की कार्यवाही आरंभ की थी।

    शरीर की यह तलाशी बिना किसी औपचारिक सूचना के थी। किसी भी व्यक्ति से यह जानकारी प्राप्त नहीं हुई थी कि अभियुक्त के द्वारा पहने गए अण्डरवियर की पॉकेट में प्रतिषिद्ध वस्तु की संभावना थी। यदि यह भी मान लिया जाए कि सर्किल इंस्पेक्टर को होने वाला संदेह उसकी व्यक्तिगत जानकारी की कोटि में आता है तो भी जानकारी को अभिलिखित न करने से व इसे वरिष्ठ अधिकारी को अग्रेषित न करने से वर्तमान मामले की परिस्थितियों में दोषमुक्ति का मामला निर्मित नहीं हो जाएगा। इस तरह के अपालन का प्रभाव मात्र सर्किल इंस्पेक्टर व अन्य सामग्री के मूल्यांकन पर होगा। यह प्रावधान का अपालन अपने आप में अभियुक्त को दोषमुक्त करने के लिए औचित्यपूर्ण नहीं माना जाएगा।

    एक अन्य प्रकरण में कहा गया है कि जब कोई सशक्त अधिकारी अधिनियम की धारा 42 में यथावर्णित किसी पूर्व सूचना के बिना तलाशी करता है अथवा व्यक्ति की गिरफ्तारी को अन्वेषण के सामान्य अनुक्रम में करता है और इस तलाशी के पूरा होने पर एनडीपीएस एक्ट के तहत भी प्रतिषिद्ध वस्तु की बरामदगी होती है तो ऐसी स्थिति में अधिनियम की धारा 40 के प्रावधान आकर्षित नहीं होंगे।

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