एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 10: कैनाबिस के पौधे (गांजा का पौधा) के संबंध में अपराध प्रमाणित होना
Shadab Salim
24 Dec 2022 11:25 AM IST
एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) की धारा 20 गांजा के पौधे के संबंध में उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान करती है जहां वाणिज्यिक मात्रा होने पर बीस वर्ष तक का कारावास दिया जा सकता है लेकिन ऐसा कारावास अपराध के प्रमाणित होने पर ही दिया जा सकता है। ऐसी कौनसी परिस्थिति है जो कैनाबिस के पौधे के अपराध को प्रमाणित कर देती है, इस इस ही पर इस आलेख में अलग अलग अदालतों के दिए निर्णय के आधार पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।
कैनाबिस के पौधे के उल्लंघन का अपराध प्रमाणित
मूटी बनाम स्टेट ऑफ एमपी, आईएलआर 2011 म.प्र 611 के मामले में अभियुक्त के निवास स्थल पर रखे हुए बक्से में से प्रतिषेधित वस्तु की बरामदगी हुई थी। अभियुक्त के द्वारा अधिनियम की धारा 35 व 54 में यथाविहित उपधारणा का खंडन नहीं किया गया था। अपराध प्रमाणित माना गया।
सत्यवान पानी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 2000 क्रि. लॉ ज. 2181 बम्बई के मामले में परिवादी की साक्ष्य विश्वसनीय व विश्वासपूर्ण थी। इसका समर्थन स्वतंत्र शासकीय साक्षी एवं इंस्पेक्टर से होता था यह इंस्पेक्टर परिवादी के समान विभाग से ही संबंधित था।
परिवादी की साक्ष्य से यह दर्शित होता था कि दोनों अभियुक्तगण हशीश के संयुक्त आधिपत्य में होना पाए गए थे। दोनों अभियुक्त के द्वारा अधिनियम की धारा 67 के अधीन संस्वीकृतियाँ भी की गई थीं परिवादी के द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य को अभियुक्तगण के विरुद्ध आरोप प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त से अधिक होना माना गया। यह अभिमत दिया गया कि दोनों अभियुकगण को विशेष न्यायाधीश ने सही तौर पर दोषसिद्ध किया था।
हरजीत सिंह बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश, 2010 क्रिलॉज (एनओसी) 983 हिमाचल प्रदेश के मामले में नमूना लेने की प्रक्रिया को प्रतिपरीक्षण में आक्षेपित नहीं किया गया। साक्ष्य से यह प्रमाणित था कि प्रतिषिद्ध वस्तु को अभियुक्त द्वारा ले जाए जाने वाले बैग से बरामद किया गया था।
रासायनिक विश्लेषक की रिपोर्ट से यह प्रमाणित होता था कि आरक्षक के द्वारा प्रयोगशाला में जमा नमूना एवं सीलों को पृथक से भेजी गई सील के नमूने से मिलान किया गया था। इसके अलावा एनसीबी फार्म पर सील की छाप से भी मिलान किया गया था। इसको अविकल व बिना टूटा हुआ पाया गया था। अभियुक्त के विरुद्ध अपराध प्रमाणित माना गया।
सत्यवान के ही मामले में जप्त वस्तुओं को उनकी जप्ती की दिनांक से उस समय तक जबकि उसे वेयरहाउस में जमा किया गया था बिगाड़ा गया था ऐसा संदेह करने का कोई कारण नहीं था। विश्लेषक ने यह बताया था कि लिफाफे पर होने वाली सीलें अविकल थीं एवं उनका पृथक से भेजी गई विनिर्दिष्ट सील इम्प्रेशन से मिलान किया था अपराध प्रमाणित माना गया।
इस ही तरह के एक अन्य मामले में अभिलेख पर यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य थी कि अभियुक्त के आधिपत्य से लिया गया नमूना अविकल था और इसे बिगाड़ा नहीं गया था। अभियुक्त के विरुद्ध अपराध प्रमाणित माना गया।
मिनुनो वनसैंजो बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश, 2006 क्रिमिनल लॉ जर्नल 2339 हिमाचल प्रदेश के प्रकरण में यह तर्क दिया गया कि अन्वेषण अधिकारी के द्वारा उपयोगित सील को स्वतंत्र साक्षी को सुपुर्द नहीं किया गया था एवं यदि सील अन्वेषण अधिकारी के पास उपलब्ध थी तो उसके लिए किसी भी समय जप्त पदार्थ को बिगाड़ने की संभावना थी। इसके प्रति उत्तर में अतिरिक्त महाअविधक्ता ने यह तर्क दिया कि उन व्यक्तियों के संबंध में अभिलेख पर समुचित साक्ष्य भी जिन्होंने बरामद पदार्थ को व्यवहुत किया था।
इसके अलावा यह प्रमाणित करने के लिए भी समुचित साक्ष्य थी कि नमूने को नहीं बिगाड़ा गया था अपने इस तर्क के समर्थन में अन्वेषण अधिकारी के कथन को संदर्भित किया गया। जिसने स्पष्ट तौर पर बताया था कि ग्रीफकेस जिसमें से कि "चरस" को बरामद किया गया था उसे अभियुक्त ने उसकी चाबी से साक्षीगण अर्थात् चालक एवं परिचालक की उपस्थिति में खोला था और कथित ब्रीफकेस को खोले जाने पर टेबलेट एवं स्टिक्स जो कि पोलीथिन में लपेटी गई थी के रुप में चरस को कपड़ों के अंदर छिपाकर रखा गया था।
इसके उपरांत अभियुक्त को ब्रीफकेस के साथ पुलिस स्टेशन साक्षीगण के साथ ले जाया गया था जहाँ वजन किए जाने पर कथित 'चरस' को 5 किलोग्राम होना पाया गया था। 25-25 ग्राम के दो नमूने प्राप्त किए गए थे और सिगरेट के खाली कार्टून में रखे गए थे। शेष 'चरस' को पैक किया गया था व "एच रुपी 9 सील नमूने के साथ सीलबंद किया गया था। नमूनों को भी सील "एच" के साथ सीलबंद किया गया था। प्रत्येक नमूने में "एच 3 सीलें थीं।
उसके द्वारा अन्यथा यह बताया गया था कि "चरस" के तीनों पैकेट एनसीबी फॉर्म के साथ, अभियुक्त के साथ स्टेशन हाउस ऑफीसर के समक्ष प्रस्तुत किए गए थे। सेम्पल सीलों को भी प्रस्तुत किया गया। था। इस साक्षी ने एनसीबी फॉर्म एवं उसके हस्ताक्षर एवं कथित फॉर्म पर सील नमूना "एव" को • प्रमाणित किया था। एसएचओ (अभियोजन साक्षी 4) के कथन पर भी निर्भरता व्यक्त की गई थी जिसने कि केस सम्पत्ति को पुनः सील किया था।
इस साक्षी ने यह बताया था कि चरस के नमूना पैकेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की सील के साथ सीलबंद किया गया था व एम.एच.सी. को सुरक्षित अभिरक्षा के लिए सौंपा गया था। उसने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के द्वारा जारी प्रमाण-पत्र को भी प्रमाणित किया था। इस पर उसने उसके हस्ताक्षर होने को भी पहचाना था। इसके अलावा अभियोजन साक्षी 3 ने विनिर्दिष्ट तौर पर यह बताया था कि मामले की सम्पत्ति को बिगाड़ा नहीं गया था। यह साक्ष्य बिना कंपन के रही थी।
इन महत्वपूर्ण साक्षीगण को ऐसा कोई सुझाव नहीं दिया गया था कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत मामले की सम्पति का भारी मात्रा में जप्त पदार्थ से कोई संबंध नहीं था। मात्र इस तरह के तर्क के सिवाय कि इस प्रभाव की कोई साक्ष्य नहीं थी कुछ होना नहीं पाया गया।
इसके विपरीत अभियोजन साक्षीगण की साक्ष्य जो कि ऊपर वर्णित की गई है उसे सत्यपूर्ण एवं साखपूर्ण होना माना गया। इस पर अविश्वास करने का कोई कारण होना नहीं पाया गया। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह नहीं कहा जा सकता है कि अभियोजन युक्तियुक्त संदेह से परे वह प्रमाणित करने में विफल रहा था कि नमूने को बिगाड़ा नहीं गया था।
रमेश बनाम स्टेट ऑफ एमपी, 2001 (1) मप्र वी नो 63 मप्र के मामले में अभियुक्त को मजिस्ट्रेट अथवा राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में तलाशी करवाने के उसके अधिकार को अवगत कराने के लिए सूचना पत्र निर्वाहित कराया गया था। अभियुक्त ने स्टेशन अधिकारी से ही तलाशी करने के विकल्प को चुना था। इस अधिकारी ने अभियुक्त के बैग की तलाशी ली थी और इसमें गाँजा होना पाया था। 5.800 किलोग्राम गाँजा जप्ती पत्रक के अनुसार जप्त किया गया था। 50 ग्राम के नमूने को इसमें से लिया गया था और इसे सीलबंद किया गया था।
उसने तलाशी एवं जप्ती के संबंध में वायरलेस के माध्यम से अधिकारी को सूचित किया था। इसकी एक प्रतिलिपि प्रदर्श पी. 19 के रूप में थी। उसने फोरेंसिक साइंस लेबोटरी को नमूना भेजा था। रासायनिक परीक्षक की रिपोर्ट प्राप्त हो गई थी और उसमें प्रतिषिद्ध वस्तु गाँजे के रूप में थी। मामले में अन्वेषण अधिकारी की परिसाक्ष्य का समर्थन पंचसाक्षीगण ने नहीं लिया था।
यद्यपि अन्वेषण अधिकारी की परिसाक्ष्य उसके द्वारा तैयार किए गए दस्तावेजों से पूरी तौर पर समर्थित थी। अन्वेषण अधिकारी ने अधिनियम की धारा 42, 50 व 57 में प्रावधानित प्रक्रियात्मक संरक्षाओं का पालन किया था। उसकी साक्ष्य पूरी तौर पर विश्वसनीय थी। अपराध प्रमाणित माना गया।
कार्तिक बनाम स्टेट ऑफ छत्तीसगढ़, 2006 क्रिलॉज(2) क्राइम्स 314 छत्तीसगढ़ के मामले में छत्तीसगढ़ सब-इंस्पेक्टर पुलिस स्टेशन का स्टेशन हाउस ऑफीसर था। उसने इस आशय की साक्ष्य दी थी कि गोपनीय सूचना प्राप्त होने पर उसने इसका पंचनामा तैयार किया था एवं तलाशी वारंट प्राप्त न करने के संबंधों में कारणों को अभिलिखित करने के उपरांत उसने स्टाफ व साक्षीगण के साथ जाने की तैयारी की थी उसने यह पाया था कि अपीलांट एक रेगजीन का बैग ले जा रहा था।
इंस्पेक्टर ने अपीलांट अभियुक्त के द्वारा ले जाए जाने वाले बैग की तलाशी ली थी और यह पाया था कि इसमें गाँजा जैसा पदार्थ था। अभियोजन साक्षी क्रमांक 3 को अभियुक्त के द्वारा ले जाए जाने वाले रेगजीन बैग के अंदर पाए जाने वाले पदार्थ के वजन करने के लिए कहा गया था।
इंस्पेक्टर के द्वारा विनिर्दिष्ट तौर पर यह बताया गया था कि वजन पंचनामा उस स्थल पर तैयार किया गया था जहाँ कि तलाशी को प्रभावी किया गया था। यह पाया गया था कि अपीलांट के आधिपत्य में होने वाला पदार्थ 8 किलोग्राम था। यह वजन पंचनामा से अन्यथा समर्थित था। उसने अन्यथा यह टेस्टीफाइड किया था कि 50-50 ग्राम के दो नमूने बैग की अंतर्वस्तु से लिए गए थे।
और उन्हें सीलबंद किया गया था व उन पर ए-1 एवं ए-2 मार्क किया गया था। इसे प्रदर्श पी-7 के पंचनामा में स्पष्ट तौर पर वर्णित कर दिया गया था। यस्तुओं को सील करने के लिए उपयोगित सील के नमूने के इम्प्रेशन को प्रदर्श पी-15 के अनुसार तैयार कर दिया गया था। सब-इंस्पेक्टर चूंकि स्टेशन हाउस ऑफीसर था अतः उसने स्वयं यह बताया था कि पुलिस स्टेशन लौटने पर उसने सीलबंद नमूने के पैकेट व रेगजीन बैग जिसमे गाँजा अंतर्निहित था को मोहर्रर मालखाना को सुपुर्द कर दिया था।
सब-इंस्पेक्टर की परिसाक्ष्य का यह भाग प्रतिपरीक्षण में बिना खंडन के रहा था एवं मुख्य आरक्षक अ.सा. 2 से समर्थित भी था। अभियोजन साक्षी 2 मुख्य आरक्षक ने इस आशय की साक्ष्य दी थी कि स्टेशन हाउस ऑफीसर ने गाँजा जैसे पदार्थ को अंतर्निहित करने वाले रेगजीन बैग एवं दो सीलबंद पैकेट एवं सौ रुपए का नोट सुरक्षित अभिरक्षा में न्यसित किया था। मालखाना रजिस्टर की प्रविष्टि प्रदर्श पी-4 थी एवं एकनॉलेजमेंट प्रदर्श पी-3 थी। इसे भी इस साक्षी के द्वारा प्रमाणित किया गया था।
प्रतिपरीक्षण में इस साक्षी ने यह बताया था कि उसने मालखाना के अंदर वस्तुओं को रखा था इन्हें उस समान दशा में रखा गया था जिस दशा में उसे यह न्यसित की गई थीं। सब-इंस्पेक्टर अ. सा. 5 ने प्रदर्श पी-24 पुलिस अधीक्षक मेमो को अन्यथा प्रमाणित किया था। नमूना आर्टिकल ए-1 को फोरेंसिक साइंस लेबोटरी रायपुर को रासायनिक विश्लेषण के लिए भेजे जाने के बाबत था। इसमें यह स्पष्ट तौर पर वर्णित किया गया था कि स्टेशन हाउस ऑफीसर के द्वारा नमूनों को सीलबंद करने में उपयोगित सील इम्प्रेशन के नमूने के साथ भेजा गया था।
फोरेंसिक साइंस लेबोटरी की रिपोर्ट में ए-1 जो कि सीलबंद था। फोरेंसिक साइंस लेबोटरी के द्वारा नमूने के इम्प्रेशन की सील होने को दर्शाता था। उसका मिलान सील इम्प्रेशन के नमूने से पूरी तौर पर होता था। इस प्रकार यह स्पष्ट था कि अधिनियम की धारा 55 के प्रावधानों का पालन किया गया था। नमूने पैकेटों को स्टेशन हाउस ऑफीसर के द्वारा सीलबंद किया गया था। यह कार्यवाही मालखाना में सुरक्षित अभिरक्षा में न्यसित किए जाने के पूर्व की गई थी।
अभिलेख पर आत्यंतिक तौर पर ऐसा कुछ नहीं था जिससे दूरस्थ तौर पर भी कि यह सुझावित होता हो नमूनों के बिगाड़े जाने की कोई संभावना थी। आगे स्पष्ट किया गया कि यह बात सही है कि अभियोजन के द्वारा स्वतंत्र साक्षी का परीक्षण नहीं कराया गया था। यद्यपि अभियोजन साक्षी क्रमांक 4 ने अभियोजन के मामले का प्रयों का त्यों समर्थन किया था। एडीशनल पब्लिक प्रोसीक्यूटर के द्वारा प्रतिपरीक्षण किए जाने पर परीक्षण में उसने सब-इंस्पेक्टर के द्वारा की जाने वाली संपूर्ण कार्यवाही का समर्थन किया था।
परंतु वह उस व्यक्ति की पहचान नहीं कर सका था जिसके आधिपत्य से गाँजा को जप्त किया गया था। अभियोजन साक्षी क्रमांक 3 वजन पंचनामा का साक्षी था। उसके द्वारा भी यह मंजूर किया गया था कि वजन पंचनामा पर उसके हस्ताक्षर थे। सब-इंस्पेक्टर की परसाक्ष्य संपूर्ण तौर पर बिना खंडन के रही थी व सत्यपूर्ण थी व विश्वास अर्जित करने वाली थी।
फोरेंसिक साइंस लेबोटरी रायपुर की रिपोर्ट के आधार पर यह पूरी तौर पर प्रमाणित होता था कि अभियुक्त के आधिपत्य से जप्त पदार्थ गाँजा था। परिणामतः यह अभिमत दिया गया कि विचारण न्यायालय के द्वारा अभियुक्त को दोषसिद्ध करने में व दंडादिष्ट करने में कोई त्रुटि नहीं की थी।
साक्ष्य का मूल्यांकन किया गया। यह बात सही थी कि मामले में स्वतंत्र साक्षी का परीक्षण अभियोजन ने नहीं कराया था हालांकि अभियोजन साक्षी 4 ने अभियोजन के मामले का समर्थन किया था।
अतिरिक्त लोक अभियोजक के द्वारा प्रतिपरीक्षण किए जाने पर उसने सब इंस्पेक्टर अभियोजन साक्षी 5 के द्वारा की गई संपूर्ण कार्यवाही का समर्थन किया था परंतु मात्र यह बताया था कि वह उस व्यक्ति की पहचान नहीं कर सका था जिसके आधिपत्य से गाँजा जब्त हुआ था। अभियोजन साक्षी 3 वजन पंचनामा का साक्षी था उसने भी यह मंजूर किया था कि वजन पंचनामा पर उसके हस्ताक्षर थे।
उप निरीक्षक अभियोजन साक्षी 5 की परिसाक्ष्य संपूर्ण तौर पर बिना खंडन के थी यह विश्वासपूर्ण थी। फोरेंसिक साइंस लेबोट्री की रिपोर्ट के आधार पर यह पूरी तौर पर प्रमाणित हो गया था कि अपीलांट के आधिपत्य से जब्त पदार्थ गाँजा था। प्रकरण के इन तथ्यों व परिस्थितियों में अपराध में की गई दोषसिद्धि व दंडादेश उचित माना गया।
रिक्रिकेश बनाम स्टेट ऑफ बिहार, 2006 (2) क्राइम्स 130 के मामले में साक्ष्य का मूल्यांकन किया गया। अभियोजन का मामला अन्वेषण अधिकारी की साक्ष्य से पूरी तौर पर समर्थित होता था अन्वेषण अधिकारी की साक्ष्य में किए गए परीक्षण में ऐसा कुछ नहीं पाया गया था जिसके आधार पर उसकी साक्ष्य को नष्ट होने की स्थिति हो। अभियोजन साक्षी क्रमांक 1, 3 व 5 की साक्ष्य से यह दर्शित होता था कि गाँजा जिन्हें कि 2 विभिन्न पैकेटों में रखा गया था वह अपीलांट के आधिपत्य से बरामद हुए थे।
फोरेंसिक साइंस लेबोट्री की रिपोर्ट से यह प्रमाणित होता था कि अपीलांट के आधिपत्य से बरामद पैकेट में गाँजा अंतर्निहित था। सेम्पिल को भी अन्वेषण अधिकारी के द्वारा सील किया गया था नमूने के पैकेट फोरेंसिक साइंस लेबोट्री को सील्ड कवर में भेजे गए थे। इस प्रकार मामले में अधिनियम की धारा 55 के प्रावधानों का पालन भी पूरी तौर पर था। अपराध प्रमाणित माना गया।