National Security Act में सलाहकार बोर्ड होना और बोर्ड को डायरेक्शन

Shadab Salim

27 Jun 2025 10:11 AM IST

  • National Security Act में सलाहकार बोर्ड होना और बोर्ड को डायरेक्शन

    इस एक्ट में सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया है जो किसी भी निरोध के आदेश की समीक्षा करता है। धारा 9 के अनुसार-

    (1) केन्द्रीय सरकार और प्रत्येक राज्य सरकार जब आवश्यक समझे इस अधिनियम के लिए एक या अधिक सलाहकार बोर्ड का गठन कर सकेगा ।

    (2) ऐसे प्रत्येक बोर्ड तीन व्यक्तियों से मिलकर बनेंगे जो हाईकोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति के योग्य हों या रह चुके हों और ऐसे व्यक्ति समुचित सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएँगे।

    (3) समुचित सरकार सलाहकार बोर्ड के सदस्यों में से एक जो हाईकोर्ट का न्यायाधीश हो या रह चुका हो उसको अध्यक्ष नियुक्त करेगी और केन्द्रीय क्षेत्र की दशा में किसी व्यक्ति को सलाहकार मंडल में नियुक्ति जो राज्य के हाईकोर्ट का न्यायाधीश है, संबंधित राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति से होगी।"

    इस धारा के अंतर्गत सलाहकार मंडल गठित किए जाने का प्रावधान किया गया है, जिसके अंतर्गत केन्द्र सरकार और राज्य सरकार एक या आवश्यक होने पर एक से अधिक मंडल गटित कर सकेंगे। प्रत्येक मंडल तीन व्यक्तियों से मिलकर बनेगा और मंडल में सामान्यतः हाईकोर्ट के न्यायाधीश की योग्यता रखने वाला या उस पद पर नियुक्त किए गए अथवा कार्यरत् रहे सेवा निवृत्त व्यक्तियों को नियुक्त किया जायेगा।

    नियुक्ति समुचित सरकार द्वारा की जाने का प्रावधान किया गया है। सलाहकार मंडल के सदस्यों में से केवल वह व्यक्ति ही अध्यक्ष नियुक्त किया जायेगा जो कि हाईकोर्ट का पदस्थ न्यायाधीश है अथवा सेवा निवृत्त न्यायाधीश है। केन्द्र सरकार द्वारा सलाहकार मंडल में राज्य हाईकोर्ट के न्यायाधीश को नियुक्त किए जाने हेतु संबंधित राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य गई है। इस तरह किसी राज्य के हाईकोर्ट के पदस्थ न्यायाधीश को नियुक्त किए जाने के लिए राज्य सरकार द्वारा स्वीकृति दी जाएगी।

    इस एक्ट की धारा 10 में सलाहकार बोर्ड को निर्देश का प्रावधान है-

    धारा 10- इस अधिनियम में स्पष्टतापूर्वक उपबन्धित स्थिति के अतिरिक्त प्रत्येक प्रकरण में जहाँ कि इस अधिनियम के अधीन निरोधादेश बनाया गया है उपयुक्त सरकार, आदेश के अधीन व्यक्ति को निरोध के दिनांक से तीन सप्ताह के अन्दर वह आधार जिस पर कि आदेश बनाया गया है एवं अभ्यावेदन यदि कोई, आदेश से प्रभावित व्यक्ति द्वारा किया गया हो तो, एवं उस व्यवस्था में जबकि निरोधादेश एक अधिकारी द्वारा धारा 3 की उपधारा (3) के अधीन बनाया गया है एवं रिपोर्ट जो कि उसी धारा की ही उपधारा (4) के अन्तर्गत रिपोर्ट की धारा 9 के अधीन बताए गए सलाहकार बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करेगा।

    व्यक्ति को निरुद्ध किए जाने के दिनांक से तीन सप्ताह की अवधि में प्रकरण सलाहकार मंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा और उपयुक्त सरकार द्वारा निरोधादेश दिए जाने पर अभ्यावेदन प्राप्त किया जाता है, उसे मंडल के समक्ष विचार हेतु प्रस्तुत किया जायेगा। यह प्रक्रिया निर्धारित की गई है, जिसका अनुपालन किया जाना न्यायहित में आवश्यक है। व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं राष्ट्र की सुरक्षा का प्रश्न असाधारण प्रकृति का है, इस हेतु समुचित सरकार अपने कर्त्तव्य के प्रति सजग रहे। इसे ध्यान में रख कर तीन सप्ताह का प्रावधान किया गया है और मंडल द्वारा सात सप्ताह में उस पर प्रतिवेदन तैयार कर उचित कार्यवाही हेतु प्रस्तुत किया जायेगा।

    परामर्श मंडल की रिपोर्ट अन्य सामग्री के साथ राज्य सरकार के समक्ष रखी जाने से यह अभिप्राय नहीं लिया जायेगा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विचार नहीं किया गया।

    निरुद्ध व्यक्ति को यह समुचित अधिकार दिया गया है कि वह अपने बचाव में वे सभी दस्तावेज एवं मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत कर सके, जिससे यह प्रमाणित हो कि वह राष्ट्र की सुरक्षा एवं लोक व्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न नहीं कर रहा है और किसी तरह का विध्वसंक कार्य नहीं कर रहा है।

    नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत है कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिरक्षा स्वरूप पक्ष रखने का अधिकार है और उसे समुचित अवसर दिया जाना अपेक्षित है। निरुद्ध व्यक्ति द्वारा उक्त अवसर का उपयोग निश्छलता से किया जायेगा और राज्य शासन को संतुष्ट करेगा कि उसका आचरण राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध नहीं है

    निरुद्ध व्यक्ति को मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त है। उसके विरुद्ध लगाए गए आक्षेपों का वह खंडन करने के लिए सुसंगत साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है। उसके द्वारा यह अभिवाक् किया जाना सुसंगत नहीं है कि उसके विरुद्ध कार्यवाही सबकी जानकारी में लाई जाएं। राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर कार्यवाही को सार्वजनिक न किया जाना न्यायोचित है।

    जिस व्यक्ति को समुचित आधारों पर निरुद्ध किया गया है और धारा 12 के अंतर्गत सलाहकार मंडल की सूचना पर और अधिक समय के लिए निरूद्ध रखे जाने का आदेश दिया गया है अथवा आदेश की पुष्टि की गई है। इस संबंध में और अधिक विस्तार से प्रावधान किया गया है कि निरुद्ध व्यक्ति को किसी भी दशा में बारह माह से अधिक निरुद्ध नहीं रखा जायेगा। निवारक नजरबंदी की समय सीमा तय की गई है।

    इस तरह अधिकतम सीमा एक वर्ष रखी गई है, परन्तु शासन द्वारा आवश्यक होने पर उस व्यक्ति को किसी भी समय रिहा किया जा सकेगा और रिहा किए जाने पर निरोध आदेश रद्द किया जायेगा। सरकार को यह भी अधिकार दिया गया है कि वह निरोध आदेश में परिस्थितियों के अनुरूप उपांतरित कर सके। यह उपान्तरण केवल अवधि के संबंध में ही हो सकता है।

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