The Indian Contract Act में गिरवी का Contract

Shadab Salim

12 Sept 2025 9:31 AM IST

  • The Indian Contract Act में गिरवी का Contract

    गिरवी एक साधारण अवधारणा है जो आम जीवन में हमें देखने को मिलती है। कर्ज के लिए गिरवी किसी कीमती वस्तु को रखा जाता है तथा कर्ज के भुगतान के समय उसे पुनः वापस ले लिया जाता है। संविदा विधि के अंतर्गत गिरवी की अवधारणा को वैधानिक बल दिया गया है। भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 172 के अंतर्गत गिरवी की परिभाषा प्रस्तुत की गई है। गिरवी एक प्रकार का उपनिधान ही होता है परंतु गिरवी में किसी वचन के पालन हो जाने तक वस्तु हस्तांतरित नहीं की जाती है जबकि उपनिधान में किसी प्रयोजन के पूरा हो जाने तक वस्तु हस्तांतरित नहीं की जाती है। यह विशेष प्रकार का उपनिधान होता है।

    गिरवी का अर्थ किसी ऋण के संदाय के लिए से किसी वचन के लिए प्रतिभूति के तौर पर माल का उपनिधान गिरवी है। यह प्रतिभूति के तौर पर होते हैं जिसका संबंध प्रतिज्ञा के पालन से हैं। गिरवी की स्थिति में उपनिधाता को Pawner कहते हैं और उपनिहिती को Pawnee कहते हैं।

    यह कहा जा सकता है कि गिरवी भी एक प्रकार का उपनिधान है जिसमें माल का परिदान ऋण के भुगतान या वचन के पालन के तौर पर एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को किया जाता है। उपनिधान गिरवी की अपेक्षा अधिक विस्तृत है। गिरवी के संदर्भ में निम्नलिखित तीन तत्वों की अपेक्षा होती-

    माल का उपनिधान होना चाहिए-

    उपनिधान प्रतिभूति द्वारा होना चाहिए-

    प्रतिभूति ऋण के संदाय के संदर्भ में होना चाहिए-

    इसके अंतर्गत परिदान को आवश्यक तत्व माना गया है। गिरवी में एक विशिष्ट संपदा का कब्जा किसी दूसरे व्यक्ति को दिया जाता है। गिरवी के अंतर्गत माल का परिधान ऋण के भुगतान या किसी वचन के पालन की प्रतिभूति के रूप में दिया जाता है परंतु जब इससे भिन्न प्रयोजन हेतु माल का प्रदान किया जाता है तो इसे गिरवी रूपी उपनिधान न कहकर केवल उपनिधान कहते हैं।

    उदाहरण के लिए एक मोटरसाइकिल मरम्मत के लिए देना उपनिधान है और मोटरसाइकिल को प्रतिभूति के रूप में देकर लेना गिरवी है। इसलिए पूर्व में यह कहा गया है कि गिरवी भी एक प्रकार का उपनिधान है। उपनिधान और गिरवी के प्रयोजन में प्रभेद है। उपनिधान का प्रयोजन ऋण के भुगतान के लिए यह प्रतिज्ञा के पालन के लिए प्रतिभूति देना होने की दशा में इसे गिरवी कहते हैं अर्थात गिरवी ऋण के भुगतान या प्रतिज्ञा के पालन की प्रतिभूति के रूप में माल का उपनिधान है। गिरवी के लिए माल का उपनिधान होना आवश्यक है इसका तात्पर्य यह हुआ कि गिरवी के लिए Pawner द्वारा Pawnee को माल का प्रदान किया जाना आवश्यक है।

    राम प्रसाद बनाम स्टेट ऑफ़ एमपी 1970 एआईआर एससी 1818 के प्रकरण में कहा गया है जहां कोई करार किया गया हो कि कमीशन एजेंट खरीदे गए माल को अपने कब्जे में रखेगा वह उस रूप में वर्णित करेगा जिस रूप में कि उक्त माल के स्वामी द्वारा निर्देश किया गया हो तो ऐसी स्थिति में एजेंट का कब्जा विधिपूर्ण माना गया है।

    मूसा अब्दुल हामिद बनाम माउंटेन 1931 आईसी 723 स्वतंत्रता के पूर्व के प्रकरण में लाहौर हाईकोर्ट ने कहा था कि चल संपत्ति को उस व्यक्ति के कब्जे के अधीन होना चाहिए जिसे संपत्ति गिरवी रखी गई है।

    गिरवी के लिए माल का उपनिधान होना चाहिए अर्थात गिरवी के लिए Pawner द्वारा Pawnee को माल का प्रदान किया जाना आवश्यक है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि गिरवी में माल का कब्जा Pawnee के पास होता है जबकि उसका स्वामित्व Pawner के पास रहता है। यह एक बड़ा तथ्य है कि गिरवी में कोई वस्तु विक्रय नहीं होती है वस्तु का स्वामित्व नहीं परिवर्तित होता है केवल वस्तु का कब्जा परिवर्तित होता है। वस्तु का स्वामित्व उसी व्यक्ति का रहता है जो वस्तु को गिरवी रखता है।

    हमे वास्तविक एवं परिलक्षित परिदान के अर्थ को भी समझना चाहिए। जब माल का भौतिक कब्ज़ा Pawner द्वारा Pawner को दिया जाता है ऐसी स्थिति में इसे वास्तविक परिदान कहते हैं। जब वास्तव में माल के कब्जे का परिदान नहीं किया जाता बल्कि कोई ऐसा कार्य किया जाता है कि माल का कब्जा लेने का अधिकार Pawnee से प्राप्त हो जाता है उसे परिलक्षित परिदान कहते हैं।

    जहां कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का माल पहले से ही अपने कब्जे में रखे हुए हैं और वह Pawner के रूप में धारण करने की संविदा करता है तो वह इस प्रकार Pawnee हो जाता है कि ऐसी स्थिति में Pawner हो जाता है।

    राजस्व अधिकारी प्रणाम सुदर्शन पिक्चर एआईआर 1968 मद्रास 319 के प्रकरण में कहा गया है कि जहां किसी निर्माता और वितरक के मध्य संविदा हुई थी कि जैसे ही फिल्म निर्माता का निर्माण करेगा वह उसे मित्र को गिरवी रख देगा किंतु इसे विधिमान्य गिरवी नहीं माना गया क्योंकि परिदान के लिए माल अस्तित्व में ही नहीं था और इस प्रकार माल के परिदान के अभाव में विधिमान्य गिरवी नहीं माना गया। इस प्रकरण से यह समझा जा सकता है कि किसी भी वस्तु के गिरवी होने के लिए उसका अस्तित्व में होना आवश्यक है। कोई भी ऐसी वस्तु जो भविष्य में होगी उसे गिरवी नहीं रखा जा सकता है।

    यदि कोई माल गिरवी रख दिया जाता है और किसी विशिष्ट प्रयोजन हेतु Pawner की अभिरक्षा में छोड़ दिया जाता है तो इसे गिरवी की वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उदाहरण के लिए एक प्रकरण में एक बैंक के पास सिनेमा का प्रोजेक्टर गिरवी रखा गया परंतु बैंक ने वह प्रोजेक्टर गिरवी करने वाले की अभिरक्षा में रहने दिया ताकि वह प्रोजेक्टर प्रयोग में रहे।

    कोर्ट ने निर्णय लिया कि उक्त गिरवी विधिमान्य है और उक्त प्रोजेक्टर गिरवी करने वाले की अभिरक्षा में रहने देने से इसकी वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और इसके परिणामस्वरूप उक्त विक्रय गिरवी के अधीन था।

    गिरवी के लिए माल का परीदान ऋण के भुगतान या प्रतिज्ञा के पालन के लिए प्रतिभूति के तौर पर होना आवश्यक है। माल का परीदान जब ऋण के भुगतान के लिए यह प्रतिज्ञा के पालन के लिए प्रतिभूति के तौर पर होता है तो इसे गिरवी कहते हैं। जब ऋण का भुगतान कर दिया जाता है अथवा प्रतिज्ञा के पालन हेतु प्रतिभूति के तौर पर होता है तो गिरवी माल गिरवी करने वाले को वापस कर दिया जाता है। साधारण बोलचाल में गिरवी करने वाले को गिरवीकर्ता और जिसे गिरवी किया जाता है उसे गिरवीदार कहते हैं।

    सामान्यता यह देखा जाता है कि किसी भी प्रकार की संपत्ति अथवा दस्तावेज गिरवी का विषय वस्तु हो सकता है। रेलवे की रसीद भी एक प्रकार की दस्तावेज है जो गिरवी की विषय वस्तु है। सरकारी प्रत्याभूति को गिरवी नहीं रखा जा सकता, संपत्ति का हक विलेख धारा 172 के अंतर्गत माल नहीं है।

    हीराकार बालाजी बनाम कालेरु 2011 एससी 391 आंध्र प्रदेश के प्रकरण में कहा गया है कि 3 वर्ष के भीतर ऋण के भुगतान एवं गिरवी वस्तुओं के उन्मूलन की तैयारी की अभिव्यक्ति करते हुए विधिक नोटिस नहीं दिया जाए तो धारा 177 स्पष्ट कहती है कि बकाया धनराशि के साथ ही ऐसे अतिरिक्त खर्च जो उसके व्यतिक्रम से अद्भुत हुए हो के संदाय के लिए गिरवी वस्तुओं का उन्मोचन कर सकता है।

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