मोहम्मद जुबैर बनाम दिल्ली सरकार: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन
Himanshu Mishra
20 Aug 2024 6:30 PM IST
पृष्ठभूमि
मोहम्मद जुबैर बनाम दिल्ली सरकार का मामला मोहम्मद जुबैर से जुड़ा है, जो एक fact-checking वेबसाइट के सह-संस्थापक हैं। उन्हें एक tweet के कारण गिरफ़्तार किया गया था, जिसमें उन पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया गया था।
जुबैर ने एक हिंदी फिल्म से ली गई एक तस्वीर tweet की थी, जिसे कुछ लोगों ने आपत्तिजनक माना और जिससे सांप्रदायिक (Communal) तनाव बढ़ने की संभावना जताई। शिकायत दर्ज होने के बाद, पुलिस ने जुबैर को गिरफ़्तार कर लिया, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में जमानत के लिए याचिका दायर की।
मोहम्मद जुबैर बनाम दिल्ली सरकार का मामला सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के बीच नाजुक संतुलन का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
दिल्ली हाई कोर्ट का जमानत देने का फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जबकि यह भी सुनिश्चित करता है कि घृणास्पद भाषण को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग न हो।
यह फैसला आधुनिक समय के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक संवेदनशीलता और सार्वजनिक विमर्श में व्यंग्य और हास्य की भूमिका के बारे में समकालीन (Contemporary) बहसों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।
मुख्य तथ्य
• घटना और गिरफ़्तारी: मोहम्मद जुबैर ने 1983 की एक हिंदी फिल्म से ली गई एक तस्वीर tweet की, जिसमें एक होटल का साइन दिखाया गया था। इस साइन को "Honeymoon Hotel" से बदलकर "Hanuman Hotel" कर दिया गया था। इस tweet के बाद, जुबैर के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाकर शिकायत दर्ज की गई।
• आरोप: जुबैर पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और धारा 295A (धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य) के तहत आरोप लगाए गए।
• जमानत याचिका: जुबैर ने दिल्ली हाई कोर्ट में नियमित जमानत के लिए याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने कहा कि उनका tweet धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं था और ये आरोप बेबुनियाद और राजनीतिक रूप से प्रेरित हैं।
पेश किए गए तर्क
1. याचिकाकर्ता के तर्क:
o अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: जुबैर के बचाव पक्ष (Defense) ने तर्क दिया कि उनका tweet संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत आता है, जो बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
o कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं: बचाव पक्ष ने कहा कि tweet एक व्यंग्यात्मक (Satirical) पोस्ट थी और इसका उद्देश्य हिंसा या धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह तस्वीर एक लोकप्रिय फिल्म से ली गई थी, जिसे रिलीज के समय कोई विवाद नहीं हुआ था।
o कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग: बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि पुलिस ने IPC की धारा 153A और 295A का गलत इस्तेमाल किया है, क्योंकि जुबैर की ओर से जानबूझकर दुश्मनी भड़काने या किसी धार्मिक समुदाय का अपमान करने का कोई इरादा नहीं था।
o संवैधानिक सुरक्षा: याचिकाकर्ता के वकील ने इस बात पर जोर दिया कि जुबैर के खिलाफ लगाए गए आरोप उनके संविधान के तहत दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और ऐसे अधिकारों को पर्याप्त कारण के बिना प्रतिबंधित (Curtail) नहीं किया जाना चाहिए।
2. अभियोजन पक्ष के तर्क:
o घृणा फैलाने का आरोप: अभियोजन पक्ष (Prosecution) ने तर्क दिया कि जुबैर का tweet सांप्रदायिक (Communal) असहमति और धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को भड़काने की क्षमता रखता था। उन्होंने कहा कि यह tweet जानबूझकर भड़काऊ (Provocative) था, खासकर धर्म के संवेदनशील मुद्दों को देखते हुए।
o सार्वजनिक व्यवस्था की चिंता: अभियोजन पक्ष ने सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया और तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के कार्यों से समाज की शांति और सद्भावना (Tranquility) में बाधा उत्पन्न हो सकती है। उन्होंने IPC की धारा 153A और 295A को उचित ठहराते हुए कहा कि ये प्रावधान (Provisions) सांप्रदायिक सद्भाव (Communal Harmony) को खतरे में डालने वाले कार्यों को रोकने और दंडित (Punish) करने के लिए हैं।
कानूनी मुद्दे
• अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सार्वजनिक व्यवस्था: यह मामला एक व्यक्ति के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और राज्य की सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी के बीच संतुलन पर केंद्रित है। अदालत को यह विचार करना था कि क्या जुबैर का tweet, भले ही यह स्वतंत्रता का एक रूप हो, घृणा फैलाने या हिंसा भड़काने की सीमा को पार करता है या नहीं।
• IPC की धाराओं का सही प्रयोग: अदालत ने IPC की धाराओं 153A और 295A के सही प्रयोग पर भी विचार किया, विशेष रूप से इरादे (Intent) और सार्वजनिक व्यवस्था पर भाषण के प्रभाव के संदर्भ में।
निर्णय
दिल्ली हाई कोर्ट ने तर्कों पर विचार करने के बाद मोहम्मद जुबैर को जमानत दे दी।
अदालत ने निम्नलिखित बातें कहीं:
1. शत्रुता भड़काने का कोई प्राथमिक मामला नहीं: अदालत ने पाया कि यह tweet पहली नजर में धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता को भड़काने या धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने के लिए नहीं था, जो IPC की धाराओं 153A और 295A के प्रयोग को सही ठहरा सके। अदालत ने कहा कि जुबैर द्वारा साझा की गई तस्वीर एक पुरानी फिल्म की थी, जो दशकों से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थी और उस समय कोई विवाद नहीं हुआ था।
2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: अदालत ने दोहराया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है, जिसे हल्के में प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि व्यंग्य (Satire) और हास्य (Humor), यहां तक कि धार्मिक प्रतीकों (Symbols) से संबंधित होने पर भी, अभिव्यक्ति के संरक्षित (Protected) रूप हैं, जब तक कि वे कानून द्वारा निर्धारित सीमाओं को पार नहीं करते।
3. अभियोजन पक्ष में सावधानी की आवश्यकता: अदालत ने घृणास्पद भाषण (Hate Speech) और धार्मिक भावनाओं से संबंधित कानूनी प्रावधानों का बिना उचित कारण के प्रयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की। इस फैसले ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे कानूनों का प्रयोग विचारपूर्वक और केवल उन्हीं मामलों में किया जाना चाहिए जहां हिंसा या शत्रुता भड़काने का स्पष्ट प्रमाण हो।
4. जमानत का अनुदान: जुबैर के tweet को हिंसा या शत्रुता भड़काने के इरादे का कोई प्रमाण न होने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा को देखते हुए, अदालत ने जुबैर को जमानत दे दी। अदालत ने निर्देश दिया कि उन्हें जमानत पर रिहा किया जाए, लेकिन कुछ शर्तों के साथ ताकि वे ट्रायल के दौरान उपस्थित रहें।
संवैधानिक सिद्धांतों (Principles) पर जोर
• अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा: फैसले ने लोकतांत्रिक समाज (Democratic Society) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के महत्व को रेखांकित (Underscored) किया। इसमें यह बात सामने आई कि राज्य को भाषण को रोकने के मामले में सावधानी बरतनी चाहिए, खासकर जब यह कला, व्यंग्य, या आलोचनात्मक टिप्पणी (Critical Commentary) से संबंधित हो।
• कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग: अदालत के फैसले ने IPC की धाराओं 153A और 295A के दुरुपयोग की संभावना पर प्रकाश डाला। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि इन प्रावधानों का प्रयोग विवेकपूर्ण (Judiciously) तरीके से और केवल उन्हीं मामलों में किया जाना चाहिए जहां हिंसा या शत्रुता भड़काने का स्पष्ट सबूत हो।