The Indian Contract Act में Bailment के Contract में डिलीवरी का तरीका

Shadab Salim

10 Sept 2025 10:33 AM IST

  • The Indian Contract Act में Bailment के Contract में डिलीवरी का तरीका

    कब्जे में परिवर्तन होना चाहिए मात्र अभिरक्षा से ही Bailment का सृजन नहीं हो जाता है। इस संबंध में इस धारा के स्पष्टीकरण पर भी प्रकाश डालना चाहिए। स्पष्टीकरण में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है यदि वह व्यक्ति जो किसी अन्य माल पर पहले से ही कब्जा रखता है उसका उपनिहिती के रूप में करने की संविदा करता है तो वह एतद्द्वारा उपनिहिती हो जाता है और माल का स्वामी उसका उपनिधाता हो जाता है।

    इसे एक उदाहरण की सहायता से भली प्रकार समझा जा सकता है। यदि क अपनी कार ख को बेच देता है परंतु ख, क को कहता है कि वह 6 माह उसे अपने पास रखें यह परिलक्षित Bailment है। कार क के पास है परंतु पहले वह उसका स्वामी था विक्रय के पश्चात वह उसका उपनिधाता हो गया।

    सलामत रॉय बनाम फ़ज़ल (1928 120 आईसी 412) के मामले में कोर्ट निर्णय दिया कि प्रतिवादी ने वादी के विरुद्ध डिक्री प्राप्त की और उस डिक्री के निष्पादन में वादी को घोड़ी अपने कब्जे में ले ली। बाद में वादी ने डिक्री का भुगतान कर दिया और कोर्ट ने आदेश दिया कि घोड़ी वादी को वापस कर दें परंतु प्रतिवादी ने घोड़ी के पोषण पर किए गए व्यय की मांग की और बिना उसे प्राप्त किए घोड़ी देने से इनकार कर दिया और इसके पश्चात वह घोड़ी चोरी हो गई।

    कोर्ट ने प्रतिवादी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। कोर्ट ने निर्णय दिया कि प्रतिवादी को जब कोर्ट ने आदेश दिया कि वह घोड़ी वादी को वापस कर दे तो उसे उस आदेश के उपरांत घोड़ी का कब्जा उसके पास उपनिहिती के रूप में था और फलतः उस आदेश के परिणामस्वरुप प्रतिवादी और वादी के मध्य Bailment का निर्माण हो चुका था।

    इस प्रकरण में दिए गए निर्णय से यह तथ्य निकलकर सामने आते हैं कि Bailment के लिए उपनिहिती को कब्जा वस्तुतः या परिलक्षित रूप में दिया जाना आवश्यक है, यदि कब्जा उपनिधाता के पास रहता है अर्थात वास्तविक रूप में यह परिलक्षित रूप में अर्थात किसी भी रूप में कब्जा उपनिहिती को दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में विधिमान्य Bailment का निर्माण हो सकता है।

    कालिया पेरूमल बनाम विशाललक्ष्मी एआईआर 1938 मद्रास 32 एक मामले में जहां किसी महिला ने स्वर्णकार को अपने कुछ आभूषण प्रदान किए उसने उक्त आभूषण इस निर्देश के साथ दिए कि वह उक्त पुराने आभूषण को गला दे और नए आभूषण का निर्माण करें। प्रत्येक शाम को वह महिला स्वर्णकार के पुराने आभूषण अर्थात अधूरे बने जेवर बक्से में रखती थी और उस सुनार के ही कमरे में उसे छोड़ कर चली जाती थी। एक दिन जब वह सुबह स्वर्णकार के यहां आकर बॉक्स को खोलती है तो उसने पाया कि उसमें आभूषण नहीं थे। उसने स्वर्णकार के विरुद्ध मुकदमा चलाया।

    कोर्ट ने इसके लिए स्वर्णकार को दायीं नहीं ठहराया। कोर्ट ने अपने निर्णय में यह विचार व्यक्त किया कि Bailmentका निर्माण हुआ ही नहीं था क्योंकि महिला ने आभूषणों का कब्जा उक्त स्वर्णकार को नहीं दिया था। स्वर्णकार के यहां उक्त बॉक्स रखने मात्र से महिला के आभूषण पर स्वर्णकार का कब्जा नहीं हो जाता क्योंकि उसने चाबी स्वर्णकार को नहीं दी थी बल्कि उसने चाबी अपने पास ही रखी थी क्योंकि कब्जा महिला के पास ही था न कि स्वर्णकार के पास। परिणामस्वरूप Bailment का निर्माण ही नहीं हुआ।

    न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी बनाम दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी एआईआर 1991 दिल्ली 298 के प्रकरण में कहा गया है कि माल का कब्जा उपनिहिती को देना Bailment के निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है। यदि कब्जा उपनिहिती को नहीं दिया जाता तो एक विधिमान्य Bailment का निर्माण नहीं हो सकता।

    यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के वाहन के पास खड़ा है जिस व्यक्ति का वह स्थान है वह वाहन के स्वामी को इस नियमित रचित प्रदान करता है कि वह निश्चित अवधि में वाहन की देखरेख करेगा तो Bailment का निर्माण हो जाएगा। यदि वाहन की युक्तियुक्त रूप में देखभाल नहीं की जाती है तो वह व्यक्ति जिसका की वह स्थान है वाहन की हानि के लिए उत्तरदायीं होगा।

    न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी बनाम डीडी एआईआर 1991 दिल्ली 298 के एक प्रकरण में वादी ने अपना वाहन प्रतिवादी के यहां खड़ा करने के स्थान पर अपना वाहन खड़ा किया। वह प्रतिवादी ने एक विशिष्ट अवधि के लिए वाहन की देखरेख करने के निमित्त रसीद दी। प्रतिवादी द्वारा वादी के वाहन की युक्तियुक्त रूप में देखरेख किए जाने की स्थिति में उक्त वाहन खो गया। प्रतिवादी को इसके लिए दायीं हराया गया।

    दूसरे के माल को अपनी अभिरक्षा में लेने पर Bailment का निर्माण हो जाता है। उदाहरण के लिए जहां वादी एक रेस्टोरेंट में भोजन करने के लिए गया एक बेरा ने उसका कोर्ट स्वेच्छा लिया और उसके पीछे खूंटी पर टांग दिया। भोजन के पश्चात जब वह चलने लगा तो यह पाया कि कोर्ट वहां नहीं था। कोर्ट ने यह निर्णय लिया कि रेस्टोरेंट का स्वामी कोर्ट खोलने के लिए उत्तरदायीं था क्योंकि उसके नौकर ने उक्त कोर्ट को लेकर उसका कब्जा ले लिया था और कोर्ट रखने के स्थान का चुनाव भी उसने स्वयं किया था। अतः Bailment का निर्माण हो चुका था।

    जो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का माल पड़ा पाता है और उसे अपनी अभिरक्षा में ले लेता है वह भी उत्तरदायित्व के अध्यधीन हो जाता है। उपनिहिती के कर्तव्य उसी तरह के होते हैं जिस तरह के कर्तव्य पड़ा हुआ माल प्राप्त करने वाले व्यक्ति के होते हैं।

    सेक्रेटरी ऑफ स्टेट बनाम शिव सिंह 1880 इलाहाबाद के बहुत पुराने प्रकरण में कोर्ट ने यह विचार व्यक्त किया कि Bailment के अंतर्गत उपनिधाता उपनिहिती को माल किसी विशेष प्रयोजन हेतु देता है और उस प्रयोजन के पूरा होने पर उपनिहिती उक्त माल को प्रदाता को वापस कर देता है। यदि कोई बैंक ग्राहक को सुरक्षित निश्चित में कोई ला कर देता है वह ग्राहक को उसकी एक चाबी देता है जिसके बिना उस लॉकर को खोला नहीं जा सकता तो ऐसी स्थिति में लाकर में रखा माल ग्राहक के कब्जे में माना जाएगा तथा Bailment का निर्माण नहीं होगा।

    परंतु यदि स्थिति ऐसी है कि ग्राहक को दी गई चाबी के बिना भी लाकर खोला जा सकता है तो लॉकर में रखे गए माल पर ग्राहक का कब्जा समाप्त हो जाता है और लॉकर के परिसर में होने के कारण उस पर बैंक का कब्जा माना जाएगा और बैंक उपनिहिती हो जाएगा। परिणामस्वरूप लॉकर में रखा हुआ माल खोने की स्थिति में अथवा चोरी हो जाने की स्थिति में बैंक दायीं होगा।

    Bailment में अपने दाता द्वारा उपनिहिती को माल का परिदान किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाता है और शर्त यह रहती है कि उस प्रयोजन जिनके पूरा होने पर वह माल अपने दाता को वापस कर दिया जाएगा या उसके निर्देशानुसार उसका व्ययन किया जाएगा किंतु यह व्यवस्था Bailment को विक्रय या दान सिद्ध नहीं कर देती है। विक्रय या दान में माल का प्रदान क्रेता अथवा दाता में किया जाता है परंतु क्रय या दान में उसे विक्रेता या दाता को वापस करने के लिए बाध्य नहीं होता। Bailment में जो माल यह वस्तु उपनिहिती को दी जाती है वही माल यह वस्तु उसी रूप में यह परिवर्तित रूप में उपनिहिती द्वारा उपनिधाता को लौटाई जानी चाहिए। उदाहरण के लिए आभूषण बनाने के लिए स्वर्णकार को स्वर्ण देना Bailment है।

    Bailment के लिए यह आवश्यक है कि जिस व्यक्ति को माल दिया जाता है वह वही माल उसी रूप में या परिवर्तित रूप में वापस करने के लिए दायित्वधीन हो जाता है। यदि ऐसी स्थिति में नहीं है तो यह Bailment नहीं होगा। उदाहरण के लिए बैंक में रुपया जमा करना Bailment नहीं है क्योंकि बैंक वही नोट वापस करने के लिए बाध्य नहीं है जो नोट ग्राहक ने बैंक को दिए हैं।

    बसवा के डी पाटील बनाम स्टेट ऑफ मैसूर एआईआर 1977 एससी 1749 के मामले में स्टेशन मास्टर की सहमति से माल रेलवे प्लेटफार्म पर रख दिया गया। इसका कारण यह था कि उस समय माल लादने के लिए डिब्बा उपलब्ध नहीं था जबकि माल प्लेटफार्म पर पड़ा था। एक इंजन गुजरा और उससे चिंगारी निकली और इसके परिणाम स्वरूप माल जल गया। रेलवे कंपनी को इस हानि के लिए उत्तरदायीं ठहराया गया।

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