राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 7 और 8 के अंतर्गत राजस्व बोर्ड के मंत्रीगणीय अधिकारी और उसकी शक्तियां
Himanshu Mishra
21 April 2025 11:19 AM

राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 राज्य की राजस्व व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने हेतु बनाया गया एक प्रमुख अधिनियम है। इस अधिनियम के प्रारंभिक प्रावधानों में, विशेष रूप से धारा 4, 5 और 6 में राजस्व बोर्ड की स्थापना, संरचना और उसके मुख्यालय से संबंधित नियम निर्धारित किए गए हैं।
धारा 4 में बताया गया कि यह बोर्ड एक अध्यक्ष और कम से कम तीन तथा अधिकतम पंद्रह सदस्यों से मिलकर बनेगा। धारा 5 में सदस्यों के कार्यकाल की चर्चा की गई और धारा 6 में बोर्ड का मुख्यालय अजमेर घोषित किया गया। अब हम इस लेख में धारा 7 और 8 के प्रावधानों को विस्तार से समझेंगे, जिनमें बोर्ड के अंतर्गत नियुक्त होने वाले मंत्रीगणीय अधिकारियों (Ministerial Officers) तथा बोर्ड की शक्तियों का विवरण मिलता है।
धारा 7 – मंत्रीगणीय अधिकारियों की नियुक्ति
राजस्व बोर्ड की प्रभावी कार्यप्रणाली के लिए केवल अध्यक्ष और सदस्य पर्याप्त नहीं होते। किसी भी संस्था का सुचारू संचालन तभी संभव है जब वहां अनुभवी और उत्तरदायी प्रशासनिक कर्मचारी हों। इसी को ध्यान में रखते हुए धारा 7 यह प्रावधान करती है कि बोर्ड के लिए एक रजिस्ट्रार तथा अन्य आवश्यक मंत्रीगणीय अधिकारी नियुक्त किए जा सकते हैं।
इस धारा के पहले उपखंड (Sub-section 1) के अनुसार, बोर्ड के कार्यों और अधिनियम द्वारा निर्धारित शक्तियों तथा जिम्मेदारियों को निभाने के लिए एक रजिस्ट्रार तथा अन्य मंत्रीगणीय अधिकारियों की नियुक्ति की जा सकती है। यह नियुक्तियाँ स्थायी कानूनों, नियमों या आदेशों के तहत होती हैं जो उस समय लागू हों।
यह समझना आवश्यक है कि 'मंत्रीगणीय अधिकारी' का अर्थ उन कर्मचारियों से है जो कार्यालयीन प्रशासन संभालते हैं, जैसे रजिस्ट्रार, लिपिक, स्टेनोग्राफर आदि। उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि बोर्ड को एक भूमि विवाद मामले में अपील सुननी है, तो उसकी पूरी प्रक्रिया – दस्तावेज़ों की प्राप्ति, सूचीबद्धता, सुनवाई की तारीख तय करना और आदेश टाइप करना – ये सभी कार्य मंत्रीगणीय अधिकारियों की सहायता से संपन्न होते हैं।
इस धारा के दूसरे उपखंड (Sub-section 2) में यह व्यवस्था दी गई है कि रजिस्ट्रार और अन्य अधिकारी, राज्य सरकार के सामान्य या विशेष आदेशों के अधीन रहते हुए, वे अधिकार और कार्य करेंगे जिन्हें बोर्ड उन्हें सौंपेगा। इसका अर्थ यह है कि इन अधिकारियों का काम बोर्ड द्वारा निर्देशित होता है, लेकिन उनका नियमन राज्य सरकार द्वारा किया जा सकता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि ये अधिकारी किसी स्वतंत्र निर्णय की स्थिति में नहीं होते, बल्कि बोर्ड और सरकार दोनों के दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं। उदाहरण के रूप में, यदि बोर्ड यह आदेश देता है कि सभी अपीलें एक निर्धारित प्रारूप में दर्ज हों, तो रजिस्ट्रार यह सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक अपील उसी प्रारूप में स्वीकार की जाए।
धारा 8 – राजस्व बोर्ड की शक्तियाँ
धारा 8 इस अधिनियम की अत्यंत महत्वपूर्ण धारा है क्योंकि यह स्पष्ट करती है कि राजस्व बोर्ड की शक्तियाँ क्या हैं और उसका क्षेत्राधिकार कहाँ तक विस्तृत है।
इस धारा के पहले उपखंड (Sub-section 1) में यह स्पष्ट किया गया है कि जब तक कोई अन्य प्रावधान न हो, या राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 अथवा किसी अन्य लागू कानून में अन्यथा न कहा गया हो, तब तक राजस्व बोर्ड राजस्थान राज्य में अपील, पुनर्विलोकन (Revision) और संदर्भ (Reference) के मामलों में सर्वोच्च राजस्व न्यायालय (Highest Revenue Court) माना जाएगा।
इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति को तहसीलदार या उपखंड अधिकारी के किसी राजस्व निर्णय से असहमति है, तो वह सबसे पहले अपर जिला कलक्टर (राजस्व) के पास अपील करेगा। यदि वहां से भी संतोषजनक समाधान न मिले, तो अंतिम अपील राजस्व बोर्ड के पास की जा सकती है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी किसान की जमीन को अतिक्रमण मानते हुए हटाने का आदेश पारित हुआ है और वह आदेश तहसील स्तर पर पारित हुआ है, तो किसान पहले उपखंड अधिकारी और फिर आवश्यकतानुसार राजस्व बोर्ड तक अपील कर सकता है।
लेकिन साथ ही यह भी कहा गया है कि यदि किसी मामले में यह विवाद हो कि वह दीवानी अदालत (Civil Court) के अधिकार क्षेत्र में आता है या राजस्व अदालत (Revenue Court) के, तो उस विवाद का अंतिम निर्णय उच्च न्यायालय द्वारा किया जाएगा और वह निर्णय सभी अदालतों और बोर्ड पर बाध्यकारी होगा। इससे न्यायिक समन्वय बना रहता है।
धारा 8 के दूसरे उपखंड (Sub-section 2) में यह व्यवस्था दी गई है कि बोर्ड को अधिनियम के अंतर्गत या अन्य किसी लागू कानून के अंतर्गत समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा जो अन्य कार्य सौंपे जाएँगे या अधिकार दिए जाएँगे, उन्हें भी बोर्ड निभाएगा।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि समय के अनुसार यदि राज्य सरकार चाहे कि बोर्ड को अतिरिक्त कार्य सौंपे जाएँ, जैसे भू-अभिलेख के डिजिटलीकरण की निगरानी या राजस्व अधिकारियों के प्रशिक्षण की देखरेख, तो ऐसा किया जा सकता है। इससे बोर्ड एक स्थिर प्रशासनिक संस्था के रूप में काम करता है और उसकी भूमिका परिस्थिति के अनुसार विस्तारित की जा सकती है।
पहली धाराओं से संबंध और प्रशासनिक संतुलन
धारा 4 से 6 तक बोर्ड की संरचना, सदस्यता और मुख्यालय की जानकारी मिलती है। उसके आधार पर यह स्पष्ट होता है कि बोर्ड एक सुव्यवस्थित संस्था है, जिसमें अध्यक्ष और सदस्य तो होते ही हैं, साथ में वह मंत्रीगणीय स्टाफ और शक्तियों से भी सुसज्जित होती है।
धारा 7 और 8 यह सुनिश्चित करती हैं कि न केवल बोर्ड के पास अधिकारी हों, बल्कि उनके पास पर्याप्त प्रशासनिक सहयोग और स्पष्ट विधिक शक्तियाँ भी हों ताकि वे प्रभावी निर्णय ले सकें और राजस्व मामलों में अंतिम अपील और पुनर्विलोकन कर सकें।
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 7 और 8 यह स्पष्ट रूप से स्थापित करती हैं कि राजस्व बोर्ड केवल एक अपील करने वाला मंच नहीं है, बल्कि वह एक संपूर्ण न्यायिक और प्रशासनिक इकाई है, जिसमें निर्णय की शक्ति भी है और उसे लागू कराने की व्यवस्था भी। मंत्रीगणीय अधिकारियों की नियुक्ति यह सुनिश्चित करती है कि बोर्ड का कार्य सुचारू रूप से चले, वहीं उसकी शक्तियाँ यह स्थापित करती हैं कि वह राज्य में राजस्व विवादों में अंतिम निर्णय देने वाला सर्वोच्च मंच है।
धारा 4 से 8 तक की व्यवस्था से यह सिद्ध होता है कि राजस्थान में भूमि और राजस्व से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए एक सुसंगठित, विधिसम्मत और उत्तरदायी व्यवस्था बनाई गई है, जो न्याय और प्रशासन का संतुलन बनाए रखने में सक्षम है।