The Indian Contract Act में Consideration, Agreement और Contract का मलतब

Shadab Salim

9 Aug 2025 12:45 PM IST

  • The Indian Contract Act में Consideration, Agreement और Contract का मलतब

    Consideration

    जबकि वचनदाता की वांछा पर वचनगृहीता या कोई अन्य व्यक्ति कुछ कर चुका है या करने से विरत रहा है या करता है या करने से प्रविरत रहता है या करने का या करने से प्रविरत रहने का वचन देता है तब ऐसा कार्य या प्रविरती या वचन उस वचन के लिए प्रतिफल कहलाता है।

    भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 2 के खंड (घ) के अंतर्गत यह प्रतिफल की परिभाषा प्रस्तुत की गई है।

    विद्यमान संविदा के निर्माण के लिए प्रतिफल का होना नितांत आवश्यक है। वह प्रतिफल वैध होना चाहिए क्योंकि प्रतिफल के बिना किया गया है करार शून्य होता है। प्रतिफल का सिद्धांत अंग्रेजी विधि में 12 वीं शताब्दी से 16 शताब्दी के मध्य विकसित हुआ है। अंग्रेजी विधि में पहले संविदा औपचारिक रूप से हुआ करती थी। यह मोहरबंद अभिसमय के रूप में हुआ करती थी। यह संविदा लिखित होती थी और हस्ताक्षरित होती थी अर्थात संविदा से संबंधित दस्तावेज पर दोनों पक्षकारों के हस्ताक्षर होते थे।

    एक अन्य प्रकार की संविदा भी प्रचलन में थी जिसे वास्तविक संविदा के रूप में जाना जाता था जो किंतु जैसे जैसे सभ्यता का विकास हुआ प्रतिफल को अनौपचारिक रूप से विधिमान्य आवश्यक प्रतीत हुआ। प्रतिफल को एक प्रवर्तनीय औपचारिक प्रतिज्ञा के परीक्षण के रूप में स्वीकृत किया गया। वह धीरे-धीरे प्रतिफल को संविदा में आवश्यक भाग के रूप में मान्यता मिली है।

    भारतीय विधि में कोई औपचारिक संविदा नहीं है। संविदा का प्रतिफल द्वारा समर्थित होना नितांत आवश्यक है। इसका अपवाद केवल यहीं तक है कि जहां नजदीकी संबंध अस्तित्व में है अथवा जहां नैसर्गिक प्रेम और स्नेह के कारण संविदा में प्रतिफल का होना अपेक्षित न हो।

    रामजी लाल तिवारी बनाम विजय कुमार 1970 एम् पी एल जे 50 जबलपुर के प्रकरण में यह बात कही गई है- संविदा के सृजन के लिए प्रतिफल आवश्यक है क्योंकि प्रतिफल के बिना किया गया करार शून्य होता है, अतः कहा जा सकता है कि संविदा के लिए प्रतिफल आवश्यक होता है।

    कुछ महत्वपूर्ण तत्व होते हैं जैसे कि कोई प्रतिफल वैध होना चाहिए। प्रतिफल एक प्रकार की क्षतिपूर्ति है जो वचनदाता को उसके वचन के बदले में दूसरे व्यक्ति द्वारा दी जाती है। मूल्य का प्रतिफल विधि के अभिप्राय में वह है जिससे एक पक्षकार को कुछ अधिकार हित या लाभ प्राप्त होता है अथवा जिससे दूसरा पक्षकार कुछ दायित्व उठाने का वचन देता है। सारगर्भित अर्थों में यह कहा जा सकता है कि प्रतिफल वचन का मूल्य है।

    कोई भी प्रतिफल भूतकालिक, वर्तमान और भावी किसी भी प्रकार का हो सकता है। किसी कार्य को करने या करने से रोकने के लिए हो सकता है, किसी कार्य को करना ही आवश्यक नहीं है किसी कार्य को न करके भी प्रतिफल हो जाता है।

    केदारनाथ बनाम मोहम्मद गौरी एआईआर 1914 इलाहाबाद के प्रकरण में मोहम्मद गौरी नाम के एक व्यक्ति ने हावड़ा में टाउन हाल बनाए जाने की बाबत ₹100 चंदा देने का वचन दिया परंतु बाद में उक्त चंदा देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने मोहम्मद गौरी को चंदा देने के लिए बाध्य किया क्योंकि उसके वचन के कारण ठेकेदार द्वारा काम प्रारंभ कर दिया गया था यह माना गया कि चंदा इसमें वैध प्रतिफल है।

    प्रतिफल के लिए आवश्यक शर्त है प्रतिफल वचनदाता की भाषा पर होना चाहिए जो व्यक्ति वचन दे रहा है प्रतिफल उसकी मंशा पर होता है। यदि वचनदाता की मंशा पर प्रतिफल नहीं किया गया तो ऐसा प्रतिफल विधिमान्य नहीं होगा अर्थात जो व्यक्ति प्रपोजल दे रहा है प्रतिफल उसकी ही मंशा पर होगा न की किसी अन्य व्यक्ति की मंशा पर होगा।

    Agreement

    भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा- 2 (ई) के अंतर्गत करार की परिभाषा दी गई है। करार को अंग्रेजी में एग्रीमेंट कहा जाता है। एग्रीमेंट बहुत साधारण शब्द प्रतीत होता है परंतु भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अंतर्गत इस शब्द के भिन्न अर्थ है।

    'धारा के अंतर्गत हर एक वचन और ऐसे वचनों का हर एक संवर्ग जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल हो करार है'

    धारा 50 के अंतर्गत भी करार के संबंध में उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार ऐसे वचन या वचनों के समूह से है जो एक दूसरे के प्रतिफल है। करार के संबंध में कोई लोकहित, कोई रूढ़ि कोई प्रथा या विधि द्वारा प्रवर्तनीय होने का कोई प्रश्न नहीं होता है। एक ओर से स्थापना की जाती है जिसे वचनदाता कहा जाता है दूसरी ओर से उस प्रस्थापना को स्वीकृत किया जाता है जिसे वचनग्रहिता कहा जाता है और कोई प्रतिफल तय किया जाता है तो वह करार बन जाता है। )किसी भी करार के होने के लिए उसका विधि द्वारा प्रवर्तनीय होना आवश्यक नहीं है जैसे कि एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की हत्या करने के लिए कहता है प्रतिफल के रूप में उसे कुछ रुपया देने के लिए कहता है यह करार है अब भले ही यह विधि द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है परंतु यह करार है।

    Contract

    संविदा शब्द जिसके आधार पर यह पूरा अधिनियम बनाया गया है उसकी परिभाषा इस अधिनियम की धारा-2 (ज)के अंतर्गत दी गई है। इस परिभाषा के अंतर्गत किया गया है की- जो करार विधिताः प्रवर्तनीय हो संविदा है।

    बहुत छोटे अर्थों में संविदा की यहां पर परिभाषा प्रस्तुत कर दी गई है जहां स्पष्ट यह कह दिया गया है कोई भी करार जो विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो अर्थात जिसे कोर्ट में जाकर इंफोर्स कराया जा सकता हो ऐसा करार संविदा होता है। कोई करार संविदा होने के लिए विधि का बल रखना चाहिए कभी-कभी यह देखा गया है कि कोई संविदा प्रवर्तनीय नहीं हो सकती यदि वह मर्यादा विधि द्वारा बाधित है तो उसे अप्रवर्तनीय संविदा कहते हैं।

    यह मामले से संबंधित विशिष्ट परिस्थितियों और तथ्यों पर आधारित होता है। कोई भी ऐसा नियम जिसके कारण संविदा को कोर्ट में परिवर्तित नहीं कराया जा सकता ऐसी परिस्थिति में करार संविदा नहीं हो पाता है। जब करार वैध होता है और विधि द्वारा उसे प्रवर्तनीय कराया जा सकता हो तो वह संविदा बनता है जैसे कि किसी व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति से घर बेचने का करार किया अब यदि ऐसा घर बेच पाना विधि द्वारा प्रवर्तनीय हैं तो यह करार संविदा हो जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत करार की परिभाषा भले ही छोटी है परंतु यह परिभाषा बहुत गहरे अर्थ लिए हुई है।

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