Consumer Protection Act में कंप्लेंट का मतलब
Shadab Salim
20 May 2025 9:24 AM IST

कंप्लेंट से किसी कंप्लेंनेंट द्वारा लिखित रूप में किया गया ऐसा कोई अभिप्रेत है, कि
किसी व्यापारी द्वारा किए गए किसी अनुचित व्यापारिक व्यवहार के परिणामस्वरूप कंप्लेंनेंटvको कोई नुकसान हुआ है।
कंप्लेंट के उल्लिखित काल में एक या एक से अधिक त्रुटियां हैं।
कंप्लेंट में वर्णित माल में किसी भी प्रकार की कोई कमी है।
व्यापारी ने कंप्लेंट में वर्णित माल के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन नियम या ऐसे माल या ऐसे माल को अन्तर्विष्ट करने वाले किसी पैके पर संप्रदर्शित मूल्य से अधिक मूल्य प्रभारित किया है।
जिससे कि वह उस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उपबंधित कोई अनुतोष अभिप्राप्त कर सके। साधारण शब्दों में कंप्लेंट का अर्थ ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध आरोप लगाना है जिसके द्वारा प्रार्थी को क्षति हानि या कष्ट हुआ हो। दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत व्यक्ति मौखिक या लिखित किसी प्रकार से कंप्लेंट कर सकता है परन्तु इस अधिनियम के अन्तर्गत केवल लिखित रूप में ही कंप्लेंट प्रस्तुत किया जा सकता है। इस अधिनियम के अन्तर्गत मौखिक शिकायत को कंप्लेंट नहीं माना गया है।
कंप्लेंट में क्या लिखा जाना आवश्यक है
व्यापारी या दुकानदार के किस गैरकानूनी अन्यायपूर्ण अथवा कार्यवाही के कारण कंप्लेंनेंटको नुकसान या क्षति हुई है।
क्या लिखित मूल्य से अधिक कीमत ली गई है अथवा फर्जी बांट एवं कम तौला गया है।
माल व सेवा में कितनी कमियां या त्रुटियाँ हैं, लिखा जाना चाहिए।
इण्डस्ट्रियल प्रोडक्ट, करनाल बनाम पंजाब नेशनल बैंक व अन्य, (1992) के मामले में क्षति का अनुमान और क्षतिपूर्ति का पूर्ण विवरण कंप्लेंनेंटअकेले खाते के द्वारा बैंक से साथ एवं अग्रिम लेने के योग था। बैंक ने इसको दो खातों में बांट दिया, जिसके कारण गंभीर आर्थिक अभाव उत्पन्न हो गया। इसलिए कंप्लेंट दाखिल करना पड़ा। बैंक का कथन था कि कंप्लेंनेंटने फण्ड को व्यक्तिगत उपयोग के लिए निर्देशित करके आर्थिक अनुसाशन का उल्लंघन किया है, कंप्लेंनेंटस्टाक कथन का बैलेन्स शीट प्रस्तुत करने में असफल रहा है प्रचुर धनराशि निर्गत की गई थी और बैंक ने इसकी वसूली के लिए कंप्लेंनेंटके विरुद्ध बाद संस्थित करना चाहती थी। यह धारण किया कि कंप्लेंट पोषणीय नहीं था।
कंप्लेंनेंट गम्भीर रूप से बीमार था, उसने विपक्षी द्वारा मद्रास से अमेरिका के एक डाक्टर के पास एक पार्मल भेजा जो कि संवेदना का परीक्षण कर रहा था तथा मरीज के लिए दवा का परीक्षण कर रहा था। पार्सल समय के अन्दर गन्तव्य तक नहीं पहुंचा प्रश्न यह था कि क्या कंप्लेंनेंट Consumer था। यह धारण किया गया कि कंप्लेंनेंट Consumer था तथा उसके द्वारा संस्थित कंप्लेंट पोषणीय था।
जहां तक जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किये जाने वाले कंप्लेंट के संशोधन का प्रश्न उठता है तो यह सभी संबंधित पक्षकारों के लिए खुला होता है। इस मामले में कंप्लेंट ने प्रतिवादी द्वारा चलायी जा रही एक स्कीम में आवद्ध पेशन क्रय किये लेकिन इस स्कीम के अधीन रकम का संदाय नहीं किया जा सका। जब जिला फोरम ने इस कंप्लेंट को आंशिक तौर पर स्वीकृति प्रदान कर दिया तब कंप्लेंनेंटद्वारा जिला फोरम के आदेश के विरुद्ध अपील दायर की गयी और कंप्लेंनेंटने अपीलीय राज्य आयोग के समक्ष कंप्लेंट में संशोधन के लिए एक आवेदन पत्र प्रस्तुत किया और इस आवेदन पत्र के माध्यम से प्राप्त किये गये संदायों एवं देय रकम तथा संविदा की शर्तों के सविवरण को अभिलेख पर लाया जाना था।
ऐसी दशा में जहां संशोधन को स्वीकृति प्रदान करने की शक्ति मात्र प्रक्रियात्मक होती थी वहां अधिनियम की धारा 14 (4) के अधीन विशिष्ट तौर पर उसको मंजूरी प्रदान करने की कोई आवश्यकता नहीं थी और इसलिए संशोधन आवेदन पत्र को अस्वीकृत करने वाले आदेश को संधारणीय नहीं माना गया।
पोस्ट मास्टर पोस्ट हेड ऑफिस बनाम कासिम अली के मामले में कंप्लेंनेंटने 10 वर्ष हेतु पोस्ट आफिस में दो जमा आवर्ती खोके परिवक्वता पर काम रकम इस आधार पर दी गयी कि कंप्लेंनेंट चूककर्ता था और मासिक किश्तें जमा करने में अनियमितता थी। जिला फोरम द्वारा कंप्लेंट मंजूर किया गया, इसके विरुद्ध अपील की गयी। अभिनिर्धारित कि आवर्ती जमा खाते संपूर्ण आवधि तक चालू रहे। जब कोई चूक की गयी तब पोस्ट आफिसने इस चूक को माफ करने हेतु अपेक्षित फीस ली तथा रकम स्वीकार की थी। इस प्रकार दोनों खातों ऐसी चूक के बाद भी पुनः प्रवर्तित थे। इसलिए जिला फोरम के आदेश में कोई गलती नहीं अपील खारिज की गयी।
टाटा डीजल मोटर्स लिए बनाम ललिता देवी, 2013 के मामले में प्रत्यर्थिनी ने वाणिज्यिक प्रयोजन हेतु टाटा 407 बस खरीदी तथा उसकी छः सर्विस भी करवायी। शिकायत की गयी कि बस निर्धारित से प्रतिदिन तीन लीटर डीजल तथा ऑयल की अधिक खपत कर रही थी। जिला फोरम द्वारा कंप्लेंट मंजूर किय गया तथा गलती को सुधारने हेतु निर्देश के साथ प्रतिकर के रूप में 37,440/- रु० प्रदान किया गया अपील खारिज की गयी। अभिनिर्धारित कि कोई साक्ष्य नहीं कि बस निर्धारित से प्रतिदिन तीन लीटर डीजल तथा ऑयल की अधिक खपत कर रही थी। प्रत्यर्थिनी की अटकलबाजी पर रकम नहीं प्रदान की जा सकती आक्षेपित आदेश अपास्त किया गया।
आवासीय भवन जहां मूल्य वृद्धि के कारण ऊपर की ओर जलाशय टैंक बनवाने से असफल हुये, वहां सेवा में कमी मानी गई। इस मामले में, मुजैक की फर्श से युक्त फ्लैट, कंप्लेंनेंट को आबंटित किया गया, उसका 1/27 से 3-1/2" तक का भाग पानी में डूब गया, जिसके परिणामस्वरूप वह असमतल हो गयी और इसलिए कंप्लेंनेंटद्वारा प्रतिकर एक दावा वाद संस्थित किया गया। जहां करार का एक खण्ड यह था कि क्रेता को किसी भी ढंग से प्रतिकर के लिए दावा करने का कोई अधिकार नहीं होगा चाहे जो कुछ भी कमी या दोष कथित फ्लैट के निर्माण किये जाने में विक्रेता की ओर से हो जायेगी।
वहां फ्लैट का प्रयोग किया जाने पर कथित दोष उसके फर्या में पैदा हो गया। यद्यपि गुप्त-दोषों के सन्दर्भ में बोर्ड करार में खण्ड के अधीन संरक्षण नहीं प्राप्त कर सकता था, फिर भी अधिशासी अभियंता और बोर्ड के अन्य प्रशासनिक अधिकारियों तथा कंप्लेंनेंट के साथ हुई बैठक में कथित दोष को संशोधित करने का निर्णय लिया जा चुका था। ऐसी दशा में दावा को खारिज करने का राज्य आयोग द्वारा पारित किये गये आदेश में अधिकारिता सम्बन्धी अवैधानिकता का दोष से आये जाने की पुष्टि कर दी गयी तथा कंप्लेंनेंटको ऐसे 25,000 रुपये के प्रतिकर प्राप्त करने का हकदार माना जिसका वह व्यय फर्श के संशोधन कराये जाने में करेगा।
चण्डीगढ़ हाउसिंग बोर्ड बनाम विद्यासागर एवं अन्य 1997 के प्रकरण में आवामन बोर्ड द्वारा मकानों के आवंटन किये जा रहे थे। कंप्लेंनेंट ने इस बोर्ड के विरुद्ध इस आधार पर कंप्लेंट दायर किया कि उसने उससे अधिक मकान की कीमत वसूल किया अर्थात् 2.22 लाख के प्राकलित मूल्य के स्थान पर 2,83,700 रुपये ग्रहण किये। इसके साथ ही साथ कंप्लेंनेंटने यह भी उल्लेख किया कि जहां फ्लैट के लिए 1330 वर्ग फिट देने का वचन दिया गया था; वहां उसके स्थान पर 1250 वर्ग फिट की ही भूखण्ड की आपूर्ति की गयी।
अतएव, अतिरिक्त, धनराशि को वापस करने का दावा किया और स्कीम के विज्ञापन के समय घोषित किया गया मूल्य व्यवहारिक था। मूल्य में वृद्धि को एक सेवा में कमी होने के रूप में चुनौती किसी फोरम के समक्ष नहीं दी जा सकती थी और न ही ऐसे मुद्दे उसके द्वारा विचारणार्थ ग्रहण ही किया जा सकता था। जहां मकान निर्मित किये गये, उसकी भूमि के क्षेत्रफल में कमी किये जाने के बाबत स्थानीय आयुक्त की हैसियत से विमुक्त किये गये अधीक्षण करने वाली अभियन्ता की रिपोर्ट थी, वहां इसकी पुष्टि न तो आयुक्त के शपथपत्र द्वारा की गयी और न ही कंप्लेंनेंटके शपथपत्र द्वारा ही की गयी। अतएव, यह अभिनिधारित किया गया कि विरोधी पक्षकार की सेवा में कोई कमी नहीं हुई।
कंप्लेंनेंट ने आवास के लिए भू-खण्ड के आवंटन हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया तथा उसके लिए अग्रिम तौर पर 10,000 रुपये की एक धन राशि जमा कर दी थी। लेकिन आवंटन के लिए, कोई कार्यवाही नहीं की गयी। अतएव, व्याज सहित अग्रिम धनराशि के प्रतिदाय किये जाने का दावा किया गया। जहां, अनेक व्यक्तियों के धनराशि की निकासी में, मूल्य नियतन से संबंधित रिट याचिका के लंबित रहने के कारण, विलंब हुआ, वहां बोर्ड ने स्वयं के विवेक का प्रयोग कर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि फरवरी 1992 से प्रभाव के साथ सभी भागीदारों को 10% वार्षिक ब्याज की दर से, अग्रिम धनराशि पर ब्याज का संदाय किया जाना था और इसलिए प्रतिवादी को 1 फरवरी सन् 1992 से नवम्बर, 1992 की कालावधि तक 10,000 रुपये की रकम पर 10% वार्षिक दर से ब्याज पाने का हकदार माना गया।

