घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में परिवाद, नातेदार और प्रत्यर्थी का मतलब
Shadab Salim
5 Oct 2025 8:41 PM IST

एक मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने यह तर्क ग्रहण किया है कि अधिनियम की धारा 2 (थ) के परन्तुक में प्रयुक्त "परिवाद" पद, अधिनियम के अधीन किसी परिभाषा के अभाव में दण्ड प्रक्रिया संहिता में पारिभाषित रूप में समझा जाना होगा। न्यायाधीश के अनुसार ऐसा परिवाद किसी दाण्डिक संविधि के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिए हो सकता है और चूंकि अधिनियम केवल दो अपराधों अर्थात् अधिनियम की धारा 31 के अधीन प्रत्यर्थी द्वारा संरक्षण आदेश के भंग के लिए तथा अधिनियम की धारा 33 के अधीन जैसा प्रावधानित है अपने कर्तव्य का पालन न करने वाले संरक्षण अधिकारी के लिए, उपबन्ध करती है, केवल ऐसे अपराधों के कारित किये जाने के परिवाद के मामले में जो कि यदि व्यथित व्यक्ति पत्नी है या पत्नी की प्रकृति की नातेदारी में रहने वाला व्यक्ति है, प्रत्यर्थी के रूप किसी महिला को संयोजित कर सकती है।
'नातेदार' अधिनियम के अधीन परिभाषित नहीं है। सामान्य भाव में नातेदार का अर्थ है कोई व्यक्ति जो रक्त, विवाह या दत्तक द्वारा सम्बन्धित है। यह परन्तुक व्यथित व्यक्ति को प्रत्यर्थी के अतिरिक्त उसके पति या पुरुष भागीदार के नातेदार के विरुद्ध परिवाद दाखिल करने का विकल्प देता है। व्यथित व्यक्ति का पति या पुरुष भागीदार के नातेदार के अधीन सभी पुरुष या स्त्री नातेदार आते हैं।
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 2 (थ) के परन्तुक में अभिव्यक्त पुरुष भागीदार या पति के नातेदार मात्र पुरुष नातेदार तक सीमित नहीं हो सकता है, इसके अतिरिक्त यह पति की स्त्री नातेदार या पुरुष भागीदार, जैसा भी मामला हो इसके अधीन आते हैं।
शब्द "नातेदार" के अन्तर्गत स्त्री नातेदार आती हैं यदि विधानमण्डल का आशय यह था कि परन्तुक में निर्दिष्ट पति या पुरुष भागीदार का नातेदार केवल पुरुष नातेदार है तो विधानमण्डल परन्तुक में पुरुष शब्द विनिर्दिष्टतः प्रयुक्त किया होता। धारा 2 (थ) के परन्तुक में निर्दिष्ट पति या पुरुष भागीदार के नातेदार केवल पुरुष भागीदार क्यों नहीं हो सकते हैं इसका एक अन्य कारण है।
कथित कारण यह है कि धारा 19 की उपधारा (1) के परन्तुक में स्पष्ट रूप से विवक्षित है कि खण्ड (ख) के सिवाय धारा 19 की उपधारा (1) के किसी भी खण्ड के निबन्धनों में निवास आदेश प्रत्यर्थी, जो महिला है के विरुद्ध पारित किया जा सकता है धारा 2 (थ) के परन्तुक से यह स्पष्ट है कि महिला केवल ऐसे मामले में प्रत्यर्थी हो सकती है जहाँ व्यथित व्यक्ति धारा 2 के खण्ड (थ) के परन्तुक में विनिर्दिष्ट पत्नी या स्त्री है।
धारा 19 की उपधारा (1) के परन्तुक से यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि धारा 2 (थ) के परन्तुक में प्रयुक्त नातेदार शब्द पति के पुरुष नातेदार या पुरुष भागीदार के पुरुष नातेदार तक सीमित नहीं है। इसलिए, धारा 2 (थ) के परन्तुक में नातेदार शब्द के अन्तर्गत स्त्री नातेदार आती है।
प्रत्यर्थी
'प्रत्यर्थी' की परिभाषा को, परन्तुक में दिया हुआ शब्द केवल पति का पुरुष नातेदार या व्यथित व्यक्ति का पुरुष भागीदार, जिसके साथ वह घरेलू नातेदारी में है, के अर्थ में समझना होगा।
अधिनियम की धारा 2 के खण्ड (थ) में पारिभाषित पद "प्रत्यर्थी" का तात्पर्य वयस्क पुरुष, जो व्यक्ति व्यक्ति के साथ घरेलू नातेदारी में है या रहा है तथा जिसके विरुद्ध अधिनियम के अधीन किसी अनुतोष की अपेक्षा की जाती है, से है। अधिनियम की धारा 2 के खण्ड (थ) का परन्तुक जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है उपबन्धित करता है कि व्यक्ति पत्नी या विवाह की प्रकृति की नातेदारी में रहने वाली स्त्री भी पति या पुरुष भागीदार के नातेदारों के विरुद्ध परिवाद दाखिल कर सकती है।
मुख्य प्रावधान उपबन्धित करता है कि "प्रत्यर्थी" का तात्पर्य कोई वयस्क पुरुष जो व्यक्ति व्यक्ति के साथ घरेलू नातेदारी में है या रहा है तथा जिसके विरुद्ध व्यथित व्यक्ति ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अधीन किसी अनुतोष की मांग
"प्रत्यर्थी" की परिभाषा - पद "प्रत्यर्थी" की परिभाषा के अनुसार, इससे व्यस्क पुरुष व्यक्ति अभिप्रेत है। यह निर्देश, किसी व्यथित व्यक्ति द्वारा सभी मामलों में दाखिल किये गये आवेदन पर लागू होगा। व्यथित व्यक्ति, केवल पत्नी अथवा विवाह की प्रकृति में सम्बन्ध में रहने वाली महिला को शामिल नहीं करता, बल्कि गृहस्थी की अन्य महिला सदस्यों को भी शामिल करता है। अतः, माँ, बहन या पुत्री भी अधिनियम के अधीन व्यक्ति व्यक्ति हो सकती हैं।
"प्रत्यर्धी" की परिभाषा जैसी की धारा 2 (थ) में अन्तर्विष्ट है यह है कि कोई व्यस्क पुरुष व्यक्ति जो व्यक्ति व्यक्ति के साथ घरेलू नातेदारी में है या रहा है और जिसके विरुद्ध, अधिनियम के अधीन व्यथित व्यक्ति के द्वारा कोई अनुतोष चाहा गया है, परन्तु यह कि कोई व्यक्ति पत्नी या विवाह की प्रकृति में नातेदारी में रखने वाली महिला भी पती या पुरुष भागीदार के सम्बन्धियों के विरुद्ध परिवाद दाखिल कर सकती हैं।
"प्रत्यर्थी" की परिभाषा अधिनियम की धारा 2, खण्ड (थ) के अधीन परिभाषित है। "प्रत्यर्थी" से कोई व्यस्क पुरुष व्यक्ति अभिप्रेत है जो व्यक्ति व्यक्ति के साथ घरेलू नातेदारी में हो या रहा हो और जिसके विरुद्ध अधिनियम के अधीन व्यथित व्यक्ति ने कोई अनुतोष मांगा हो। परन्तु यह कि, कोई व्यथित पत्नी या महिला जो विवाह की प्रकृति में नातेदारी में रह रही है पति या पुरुष भागीदार के नातेदारों के विरुद्ध भी परिवाद दाखिल कर सकती है।
अधिनियम में सम्मिलित शब्द "प्रत्यर्थी" की परिभाषा स्पष्ट रूप से यह प्रकट करती है कि घरेलू हिंसा की पीड़ित महिला, एक व्यथित व्यक्ति, उस व्यक्ति के विरुद्ध जो उसके साथ घरेलू नातेदारी में है या रहा है, के विरुद्ध विभिन्न प्रकार के प्रावधानित अनुतोषों के लिए कार्यवाही करने के लिए हकदार है।
इसके अलावा, धारा 2 (थ) का परन्तुक स्पष्ट करता है कि व्यथित पत्नी या महिला जो विवाह की प्रकृति में नातेदारी में रह रही है वह पति या पुरुष भागीदार के नातेदारों, पति या पुरुष भागीदार के परिवार की महिला सदस्य को शामिल करते हुए के विरुद्ध भी परिवाद दाखिल कर सकती है। किन्तु परिभाषा से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यथित व्यक्ति और प्रत्यर्थी के बीच घरेलू नातेदारों के अस्तित्व की विद्यमानता अधिनियम के अधीन प्रावधानित विभिन्न उपचारात्मक उपायों का आश्रय लेने के लिए शर्त है।

