The Indian Contract Act में विवाह अवरोधक एग्रीमेंट Void होते हैं?
Shadab Salim
20 Aug 2025 10:02 AM IST

समाज और देश को बनाए रखने के लिए जनता के हित के लिए कुछ करार ऐसे हैं जिन्हें विधि द्वारा सीधे ही शून्य घोषित कर दिया गया है। इस प्रकार के कुछ करार हैं जिन्हें क़ानून द्वारा सीधे शून्य घोषित किया गया। उन करार में एक करार विवाह अवरोधक एग्रीमेंट भी है इस एक्ट ने सीधे तौर पर Void घोषित किया है। इस धारा के अनुसार, कोई भी समझौता जो किसी व्यक्ति को विवाह करने से रोकता है या विवाह की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करता है, वह शून्य माना जाता है। इस धारा का उद्देश्य व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना और सामाजिक मूल्यों को बनाए रखना है। उदाहरण के लिए, यदि कोई अनुबंध किसी व्यक्ति को विवाह करने से मना करता है या किसी विशेष व्यक्ति से विवाह करने पर रोक लगाता है, तो वह कानूनी रूप से अमान्य होगा।
हालांकि, धारा 26 में एक अपवाद भी शामिल है, जो नाबालिगों के विवाह पर प्रतिबंध लगाने वाले समझौतों को मान्य करता है। यह अपवाद बाल विवाह जैसी प्रथाओं को रोकने के लिए बनाया गया है, जो भारतीय समाज में सामाजिक और कानूनी सुधारों के अनुरूप है। यह धारा भारतीय संदर्भ में विवाह की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि विवाह न केवल व्यक्तिगत निर्णय है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, धारा 26 व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक हितों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती है।
धारा 26 के अनुसार इस प्रकार के करार जो किसी विवाह के अवरोधक है यह करार विधि द्वारा प्रारंभ से ही शून्य घोषित कर दिए गए। यदि किसी विवाह में किसी प्रकार से कोई अवरोध उत्पन्न किया जाता है तो इसे बुरा व अनुचित माना जाता है। विवाह में अवरोध उत्पन्न किया जाना सामाजिक बुराई है और यह नैतिकता की दृष्टि से भी परे है। विवाह में अवरोध उत्पन्न करने संबंधी करार लोकनीति से परे होने के कारण शून्य होता है।
विवाह के अवरोध में करार किसी भी प्रकार का हो वह शून्य होता है। जहां एक का मुस्लिम पति अपनी पत्नी को स्वयं को तलाक देने हेतु अधिकृत बनाया जाता है जब वह दूसरे से विवाह करती है तो इस धारा के अंतर्गत ऐसा करना शून्य नहीं है।
मेहबूब अली बनाम आयशा खातून 1915 के पुराने प्रकरण में कोर्ट ने कहा है कि जब राजीनामा द्वारा मुस्लिम पति अपनी पत्नी को इस बात के लिए अधिकृत करता है कि वह स्वयं को तलाक द्वारा पति से पृथक कर ले वह पत्नी वैसा करने के पश्चात दूसरा विवाह करने लगती है तो तो दूसरे विवाह में जो अवरोध उत्पन्न किया जाता है वह इस धारा के अंतर्गत शून्य होगा।
भारतीय विधि के अनुसार कोई भी करार जिसका संबंध विवाह में अवरोध उत्पन्न करना है शून्य होगा चाहे अवरोध पूर्ण हो या आंशिक हो। विवाह में पूर्ण अवरोध करने संबंधी करार का तात्पर्य हुआ कि किसी व्यक्ति को विवाह करने से पूरी तरह रोक दिया जाए।
देवनारायण नाम मुथुरामन 1913 से 30 मद्रास के प्रकरण में जहां पक्षकारों में यह संविदा की गई कि वह एक दूसरे से अपनी पुत्री की शादी संपन्न कराएंगे यदि एक पक्षकार ऐसा करने से असफल रहेगा तो उस पर दंड आरोपित किया जाएगा।
दूसरा पक्षकार उक्त करार के मुताबिक अपनी लड़की की शादी नहीं करता है परिणामस्वरूप वादी ने उसके विरुद्ध वाद रोपण किया। कोर्ट ने यह अभिनिर्धारित किया कि यह करार शून्य था।
कोई भी ऐसा करार शून्य करार होता है जो किसी विवाह को करने से रोकता है। उदाहरण के लिए रवि श्याम को कहता है कि वह आमुख लड़की से प्रेम प्रसंग चलाएं तथा उसका विवाह किसी अन्य पुरुष से न होने दें और इसके बदले वह उसे एक लाख रूपये की धनराशि देगा। इस करार में रवि और श्याम के बीच विवाह में अवरोध डालने के लक्ष्य से उद्देश्य से करार किया गया है इसलिए यह करार संविदा अधिनियम की धारा 26 के अंतर्गत विवाह अवरोधक करार होगा तथा श्याम रवि से धनराशि प्राप्त करने का कोई अधिकारी नहीं है। इसके संबंध में कोर्ट के समक्ष कोई मुकदमा नहीं ला सकता है क्योंकि इस प्रकार का करार शून्य करार है।

