भारतीय न्याय संहिता, 2023 में किए गए प्रमुख परिवर्तन और संशोधन
Himanshu Mishra
6 Feb 2025 11:48 AM

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 - BNS) ने भारत के आपराधिक कानून (Criminal Law) में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।
यह नया कानून भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860 - IPC) का स्थान लेता है और इसमें डिजिटल अपराध (Digital Crimes), सामुदायिक सेवा (Community Service), लैंगिक समावेशिता (Gender Inclusivity) और झपटमारी (Snatching) को लेकर नए प्रावधान (Provisions) जोड़े गए हैं।
इन बदलावों का उद्देश्य कानून को आधुनिक बनाना और बदलते समय के अनुसार अपराधों को पहचानना और सजा देना है।
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अपराध (Commission of Offences through Electronic Means)
आज के समय में भारत में 750 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता (Internet Users) और 650 मिलियन से अधिक स्मार्टफोन उपयोगकर्ता (Smartphone Users) हैं। डिजिटल लेनदेन (Digital Transactions) और सोशल मीडिया (Social Media) के बढ़ते उपयोग के कारण साइबर अपराध (Cyber Crimes) में भारी वृद्धि हुई है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau - NCRB) की "Crime in India 2022" रिपोर्ट के अनुसार, 2021 की तुलना में साइबर अपराधों में 24.4% की वृद्धि दर्ज की गई।
इसे ध्यान में रखते हुए, धारा 2(39) (Section 2(39)) में प्रावधान किया गया है कि किसी भी डिजिटल तकनीक (Digital Technology) या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (Electronic Media) से संबंधित शब्दों को उसी अर्थ में लिया जाएगा जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में दिया गया है।
इसके अलावा, धारा 2(8) (Section 2(8)) के तहत दस्तावेजों (Documents) की परिभाषा को इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड (Electronic and Digital Records) तक बढ़ा दिया गया है।
इसका अर्थ यह है कि यदि कोई व्यक्ति किसी डिजिटल दस्तावेज़ (Digital Document) में छेड़छाड़ (Tampering), जालसाजी (Forgery) या नष्ट (Destruction) करता है, तो उसे उसी प्रकार दंडित किया जाएगा जैसे किसी भौतिक (Physical) दस्तावेज़ के साथ छेड़छाड़ करने पर किया जाता है।
सामुदायिक सेवा को सजा के रूप में जोड़ना (Community Service as a Punishment)
बीएनएस (BNS) में सामुदायिक सेवा (Community Service) को एक नई सजा (Punishment) के रूप में जोड़ा गया है, लेकिन यह केवल छोटे अपराधों (Petty Offences) के लिए लागू होगी।
हालांकि, इस कानून में अभी तक सामुदायिक सेवा की स्पष्ट परिभाषा (Clear Definition) नहीं दी गई है। संसद की स्थायी समिति (Standing Committee) ने सरकार को सुझाव दिया था कि इसे विस्तार से परिभाषित किया जाए, लेकिन इसे अब तक कानून में शामिल नहीं किया गया है।
इसका परिणाम यह हो सकता है कि न्यायालयों (Courts) को इस प्रावधान की व्याख्या करने और यह तय करने में कठिनाई होगी कि कौन-से अपराधों (Offences) में सामुदायिक सेवा दी जा सकती है और इसकी अवधि (Duration) कितनी होगी।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थल (Public Place) पर गंदगी फैलाने (Littering) या हल्की तोड़फोड़ (Minor Vandalism) जैसे अपराध करता है, तो उसे जेल भेजने के बजाय उसे सार्वजनिक स्थानों की सफाई (Cleaning Public Spaces) या सामाजिक सेवा (Social Work) करने की सजा दी जा सकती है।
समावेशी भाषा का उपयोग (Use of Inclusive Language)
पहली बार, बीएनएस में धारा 2(10) (Section 2(10)) के तहत लिंग (Gender) की परिभाषा में ट्रांसजेंडर (Transgender) व्यक्तियों को शामिल किया गया है। पहले, भारतीय दंड संहिता (IPC) में केवल पुरुष और महिला का उल्लेख था, लेकिन अब ट्रांसजेंडर को भी कानूनी रूप से मान्यता दी गई है।
हालांकि, कुछ अपराधों में अभी भी पीड़ित (Victim) के संदर्भ में लैंगिक समावेशिता (Gender Inclusivity) नहीं है। उदाहरण के लिए, धारा 77 (Section 77) के तहत "झांकने (Voyeurism)" को अब पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए अपराध माना गया है, यानी अब कोई महिला भी इस अपराध के लिए दोषी हो सकती है।
लेकिन इस धारा में पुरुषों को पीड़ित के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, यानी यदि किसी पुरुष के साथ ऐसा अपराध होता है, तो वह कानूनी रूप से शिकायत दर्ज नहीं कर सकता।
इसी तरह, बलात्कार (Rape) से संबंधित अपराध अभी भी पूरी तरह से "महिला केंद्रित (Female-Centric)" हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति यौन हिंसा (Sexual Violence) का शिकार होता है, तो उसे बलात्कार कानूनों के तहत न्याय नहीं मिल सकता।
हालांकि, कुछ अपराधों में लैंगिक समावेशिता पर विचार किया गया है। धारा 96 (Section 96) के तहत अब "बालक (Child)" शब्द का उपयोग किया गया है, जिससे पहले की तरह "अल्पवयस्क लड़की (Minor Girl)" शब्द का उपयोग हटाकर इसे अधिक समावेशी बनाया गया है।
झपटमारी को अलग अपराध के रूप में मान्यता (Snatching as a Separate Offence)
बीएनएस में एक महत्वपूर्ण नया बदलाव धारा 304 (Section 304) में किया गया है, जिसमें झपटमारी (Snatching) को एक अलग अपराध (Separate Offence) के रूप में परिभाषित किया गया है।
आईपीसी (IPC) में झपटमारी को चोरी (Theft) के तहत रखा गया था, लेकिन झपटमारी और चोरी में महत्वपूर्ण अंतर होता है।
चोरी में अपराधी छल-कपट (Deception) या चुपके से (Secretly) वस्तु ले जाता है, जबकि झपटमारी में यह कृत्य बलपूर्वक (By Force) और अचानक (Suddenly) किया जाता है। कई मामलों में, झपटमारी के दौरान पीड़ित को चोट (Injury) या हिंसा (Violence) का भी सामना करना पड़ता है।
रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली में प्रतिदिन 5000 से अधिक झपटमारी के मामले दर्ज होते हैं। ऐसे अपराधों को अधिक प्रभावी ढंग से रोकने के लिए, बीएनएस ने इसे एक अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया है।
आईपीसी में चोरी की अधिकतम सजा 7 वर्ष (Seven Years) थी, लेकिन झपटमारी के लिए बीएनएस में अधिकतम 3 वर्ष (Three Years) की सजा निर्धारित की गई है।
उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति किसी का बटुआ (Wallet) चोरी करता है, तो यह चोरी (Theft) के तहत आएगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति किसी के हाथ से जबरदस्ती मोबाइल (Mobile) छीनकर भाग जाता है, तो यह अब झपटमारी (Snatching) के अंतर्गत आएगा और उसे अलग तरीके से दंडित किया जाएगा।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने डिजिटल अपराधों की पहचान, सामुदायिक सेवा को सजा के रूप में जोड़ने, लैंगिक समावेशिता बढ़ाने और झपटमारी को एक अलग अपराध के रूप में परिभाषित करने जैसे कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।
हालांकि, सामुदायिक सेवा की स्पष्ट परिभाषा (Definition of Community Service) और लैंगिक समावेशिता (Gender Inclusivity) की कमी जैसी कुछ खामियां अभी भी मौजूद हैं। इन प्रावधानों (Provisions) के सही क्रियान्वयन (Implementation) के लिए न्यायालयों (Courts) की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
कुल मिलाकर, बीएनएस एक आधुनिक और प्रभावी आपराधिक कानून (Criminal Law) की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न्याय (Justice) और समानता (Equality) को ध्यान में रखकर बनाया गया है।