घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में घरेलू हिंसा के केस का Maintainable होना

Shadab Salim

11 Oct 2025 6:08 PM IST

  • घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में घरेलू हिंसा के केस का Maintainable होना

    इस एक्ट से संबंधित एक वाद में कहा गया है कि तथ्य कि तलाक विदेशी कोर्ट द्वारा अनुदत्त किया गया था, जिसका घरेलू हिंसा वाद की पोषणीयता से कोई प्रभाव नहीं होगा, यदि उसमें आरोप अधिनियम के प्रावधानों के अधीन विवाद को अन्यथा लाते हैं, दावाकृत का अधिकार, निश्चित रूप से ऐसे आरोप के अन्तिम सबूत पर आधारित होता है।

    आर्थिक हिंसा मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी की रिपोर्ट पर आधारित व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर आदेश पारित करने में सक्षम होता है। ऐसे आदेश के पारित करने के बाद भी, यदि प्रत्यर्थी उसे नहीं सुनेगा एवं उनका अनुपालन नहीं करेगा तो मजिस्ट्रेट 2005 के उक्त अधिनियम की धारा 31 के अधीन अपराध का संज्ञान लेने के लिए हकदार होगा। इसलिए, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 का, इस स्तर पर जब धारा 12 का आवेदन सुना जाय कोई प्रयोजन नहीं होगा।

    उक्त 2005 के अधिनियम के अधीन हिंसा केवल शारीरिक हिंसा नहीं है यह पत्नी को भरण-पोषण न देकर अन्याय सर्जित करते हुए आर्थिक हिंसा भी हो सकती है। प्रस्तुत प्रकरण में स्वीकृत रूप से, पति ने कोई भरण-पोषण नहीं दिया था। इसलिए, याचिका को उचित रूप से पोषणीय होना धारित किया गया।

    चूंकि याची ने प्रश्नगत संयुक्त पारिवारिक सम्पत्तियों में विपक्षी पक्षकार को उसका हिस्सा नहीं दिया था, विपक्षी पक्षकार भरण-पोषण पाने की हकदार है जब तक वह उक्त सम्पत्ति में अपना हिस्सा न प्राप्त कर ले। संयुक्त पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा पाने के अभाव में उसे आर्थिक एवं वित्तीय संसाधनों के वंचित किया गया जिसे पाने के लिए वह यह विधित हकदार है।

    प्रत्यर्थी के एडवोकेट द्वारा की गई बहस सत्य है कि 2005 का अधिनियम लाभकारी विधायन है, परन्तु 2005 के अधिनियम के प्रावधान एवं इसके स्पष्टीकरण-11 में विशिष्टतः यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होता है कि घरेलू हिंसा को स्वयंमेव अनुमानित नहीं किया जा सकता है जबकि इसे प्रत्येक वाद की तथ्य एवं परिस्थितियों से निष्कर्षित करना होता है। वर्तमान बाद में प्रत्यर्थी द्वारा 15 वर्षों बाद घरेलू हिंसा अभिकथित की गयी जो कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग गठित करेगा। निश्चित रूप से, यह लाभकारी विधायन उन्हें उपलब्ध होगा जो इसका लाभ पाने के हकदार हैं, वर्तमान वाद में, हाईकोर्ट ने निष्कर्षित किया कि प्रत्यर्थी कम-से-कम 2005 के अधिनियम के लिए तो हकदार नहीं हैं हालांकि वे उनके द्वारा वांछित अनुतोष के लिए किसी अन्य विधि में हकदार हो सकते हैं।

    कहाँ अन्यत्र संगत अनुतोष का दावा करने के विकल्प के होते हुए भी, घरेलू हिंसा अधिनियम के अधीन मजिस्ट्रेट का क्षेत्राधिकार बहिष्कृत नहीं होता है। स्पष्ट रूप से विकल्प दावा करने वालो/व्यथित महिला में निहित होता है। यह कि उसने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 सपठित धारा 20 से 22 के अधीन राशि का दावा करने का वैधानिक अधिकार का प्रयोग किया था उससे स्पष्ट रूप से कार्यवाही खारिज नहीं की जा सकती।

    2005 के अधिनियम के अधीन भरण-पोषण के अधिकार को व्यवहृत करते समय, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने विमलाबेन अजीतभाई पटेल बनाम वात्सलाबेन अशोकभाई पटेल, (2009) 4 एससीसी 649 एआईआर 2003 सुप्रीम कोर्ट 2675 में धारित किया गया कि 2005 का अधिनियम पत्नी के पक्ष में उच्च अधिकार प्रावधानित करता है जो केवल भरण-पोषण का अधिकार नहीं अर्जित करती है अपितु इसके अधीन निवास का भी अधिकार जो कि उच्चतम अधिकार है, अर्जित करती है। हालांकि, विधायन के अनुसार उक्त अधिकार केवल संयुक्त सम्पत्ति तक होता है जिसमें पति का हिस्सा होता है।

    मासिक भरण पोषण प्रस्तुत प्रकरण में स्वीकृत रूप से, पति का संयुक्त पारिवारिक सम्पत्ति में अधिकार है। उसके पति की मृत्यु के बाद विरोधी पक्षकार ने यह अधिकार अर्जित कर लिया। चूंकि संयुक्त परिवार की सम्पत्ति में उसका हिस्सा उसे नहीं दिया गया था इसलिए अवर कोर्ट ने विरोधी पक्षकार को जब तक यह याची की सम्पत्ति में हिस्सा प्राप्त कर ले तब तक मासिक भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उचित रूप से अनुदान दिया।

    जहाँ तक प्रथम याची का प्रश्न है, सम्पूर्ण दावा उसके विरुद्ध है। चूँकि याचिका में आरोप है कि उसने चिकित्सीय व्यय का भुगतान करने एवं उसका एवं उसके सन्तानों का भरण-पोषण करने की उपेक्षा किया है, हाईकोर्ट उसके विरुद्ध कार्यवाही समाप्त करने में दिलचस्पी रखने वाला नहीं था।

    अनवर बनाम शमीम बानो के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण कोर्ट द्वारा प्रत्यर्थी संख्या 1 को अन्तरिम भरण-पोषण के अनुदान प्रदान करने वाले आदेश में कोई अनुचितता नहीं है। यह सत्य है कि परिवार कोर्ट ने सन्तान को 500 रुपये की राशि भरण-पोषण भी अधिनिर्णीत किया है। पुनरीक्षण कोर्ट द्वारा पारित आदेश सन्तान के अन्तरिम भरण-पोषण के अनुदान से सम्बन्धित नहीं है। याची ने प्रत्यर्थी को 1/5/2007 को लिखित तलाकनामा द्वारा तलाक दिया था एवं वह काजी शहर कोटा द्वारा भी सत्यापित किया गया था।

    यह तलाकनामा याची द्वारा मुस्लिम विधि के अनुसार विधि के समुचित कोर्ट में अभी साबित किया जाना है एवं यदि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के अधीन प्रत्यर्थी को अन्तरिम भरण-पोषण अनुदत्त किया गया था तो इसे अवैध या प्रतिकूल नहीं कहा जा सकता था क्योंकि प्रत्यर्थी संख्या-1 शीर्ष कोर्ट के निर्णय की दृष्टि से अन्तरिम भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार है।

    जब कोई पक्षकार पति की आय के प्रश्न पर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रमाणिक विश्वसनीय प्रथम दृष्ट्या साक्ष्य पेश नहीं किया था, तब मजिस्ट्रेट के समक्ष विद्यमान परिस्थितियों द्वारा अनुमान करने के सिवाय आय को निर्धारित करने और पक्षकारों की प्रास्थिति की दृष्टि में पत्नी और उसके बच्चे की वास्तविक आवश्यकता पर विचार करते हुए मौद्रिक अनुतोष की रकम और आवश्यक वस्तुओं की कोमत सूची को निर्धारित करने के लिए कोई विकल्प नहीं था।

    शोभना शारदा बनाम चगनलाल शारदा, 2015 के प्रकरण में, याची को प्रत्यर्थीगण के परिवार में उसके विवाह समय से घरेलू हिंसा के अधीन रखा गया था। याची के दो पुत्र हैं। उनकी आयु लगभग 13 वर्ष और 7 वर्ष है। एक को राजस्थान में छात्रावास में प्रवेश दिलाया गया है। याची और प्रत्यर्थीगण की अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि है। याची अपनी आजीविका के लिए चिल्ड्रेन पार्क में छोटी दुकान संचालित कर रही है। यह प्रतीत नहीं होता है कि उसके द्वारा अर्जित रकम याची और उसके दो बच्चों का उसी जीवन स्तर के साथ भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त होगी, जिसके वे अभ्यस्त थे। इस प्रकार, यह ऐसा मामला होना प्रतीत होता है, जिसमें याची को स्वयं के लिए और उसके दो अवयस्क बच्चों के लिए मासिक भरण-पोषण प्राप्त करना चाहिए।

    Next Story