The Indian Contract Act में एजेंसी के कॉन्ट्रैक्ट में एजेंट की Liability

Shadab Salim

16 Sept 2025 9:40 AM IST

  • The Indian Contract Act में एजेंसी के कॉन्ट्रैक्ट में एजेंट की Liability

    भारतीय संविदा विधि 1872 के अंतर्गत अभिकरण की संविदा पर विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया है। अभिकरण की संविदा के अंतर्गत मालिक तथा स्वामी के बीच संविदा होती है, इस संविदा में मालिक के प्रति एजेंट के कर्तव्यों का सर्वाधिक महत्व है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 211 मालिक के प्रति एजेंट के कर्तव्य के संबंध में उल्लेख कर रही है। हालांकि केवल यह धारा ही एजेंट के कर्तव्यों का उल्लेख नहीं करती है अपितु इस अधिनियम के अंतर्गत ऐसी अनेकों धाराएं हैं जो मालिक के प्रति एजेंट के कर्तव्यों का उल्लेख कर रही है।

    धारा 211 मालिक के कारोबार की बाबत एजेंट के कर्तव्य का उल्लेख करती है। यह धारा एजेंट के मालिक के निर्देशों या रूढ़ियों के अनुसार कार्य करने पर बल देती है।

    इस धारा के अनुसार- एजेंट अपने स्वामी के कारोबार का संचालन मालिक द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है किंतु यदि कोई निर्देश नहीं है और निर्देशों का अभाव है तो ऐसी स्थिति में एजेंट का यह कर्तव्य है कि वह मालिक के कारोबार का संचालन उन रूढ़ियों के अनुसार करें जो उस स्थान पर जहां एजेंट ऐसे कारोबार का संचालन करता है और उसी किस्म के कारोबार में प्रचलित है।

    धारा 211 में स्पष्ट यह उल्लेखित है कि एजेंट अपने मालिक के कारोबार का संचालन मालिक द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार या ऐसे निर्देशों के अभाव में उस रूढ़ि के अनुसार करने के लिए बाध्य है जो उस स्थान में जहां की एजेंट ऐसे कारोबार का संचालन करता है उसी किस्म का कारोबार करने में प्रचलित हो जबकि एजेंट अन्यथा कार्य करें तब यदि कोई हानि हो तो उसके लिए अपने मालिक की प्रतिपूर्ति करनी होगी यदि कोई लाभ हो तो उसका लेखा देना होगा।

    भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 211 के अंतर्गत अध्ययन करने पर कुछ तत्व का समावेश नजर आता है जो इस प्रकार है-

    एजेंट द्वारा मालिक के निर्देशों के अनुसार कार्य करना

    ऐसे निर्देशों के अभाव में रूढ़ि के अनुसार अपने कृत्यों का संपादन करना

    एजेंट रूढ़ियों के अनुसार अपने कृत्यों का संपादन करने के लिए आबद्ध है

    अन्यथा कार्य करने की स्थिति में एजेंट मालिक को हुई हानि के लिए प्रतिकर देने के दायित्वधीन होगा

    लेखा मालिक को देने के लिए बाध्य है

    एजेंट ऐसी रूढ़ियों के अनुसार मालिक के कारोबार का संचालन उसी अवस्था में कर सकता है जबकि उसी किस्म के कारोबार प्रचलन में हो।

    अरपा नायक बनाम नरसी केस जी 1870 के एक बहुत पुराने प्रकरण में कहा गया है एजेंट द्वारा उक्त स्थिति में अपने कार्यों का संपादन उक्त रूढ़ियों के संदर्भ में तभी किया जा सकता है जबकि उक्त संदर्भ में मालिक का कोई स्पष्ट निर्देश न हो, यदि मालिक ने कोई निर्देश दे रखा है तो उस रूढ़ियों के विपरीत है तो ऐसी स्थिति में एजेंट उक्त निर्देश का अनुसरण करने के लिए बाध्य है।

    इस प्रकरण से यह समझा जा सकता है कि यदि मालिक द्वारा कोई निर्देश दिया गया है और ऐसा दिया गया निर्देश उस समय उस स्थान पर उसी तरह के कारोबार में प्रचलित रूढ़ि के विरुद्ध है तो एजेंट यहां पर मालिक द्वारा दिए गए निर्देश का पालन करेगा न कि वहां पर प्रचलित रूढ़ियों का पालन करेगा।

    भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 212 एजेंट के कौशल के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा के अनुसार एजेंट अभिकरण के कारोबार का संचालन उतने कौशल से करने के लिए बाध्य हैं जितने कौशल से वैसे कारोबार में लगे व्यक्तियों में साधारण होता है।

    जब तक की मालिक को उसके कौशल के अभाव की कोई जानकारी न हो एजेंट युक्तिसंगत तत्परता से कार्य करने और जितना कौशल उसके पास है उसका प्रयोग करने के लिए बाध्य है। यह धारा एजेंट को इस हेतु बाध्य करती है कि यदि इसमें कोई एजेंसी की संविदा की है तो ऐसी संविदा के अंतर्गत हुए अपने समस्त कौशल का प्रयोग करेगा। इसके अनुसार एजेंट अभिकरण के कारोबार का संचालन उतने कौशल से करने के लिए बाध्य है जितना वैसे कारोबार में लगे हुए व्यक्तियों में साधारण होता है।

    जब तक की मालिक को उसके कौशल के अभाव की कोई स्पष्ट सूचना न हो एजेंट सदैव ही युक्तियुक्त तत्परता से कार्य करने के लिए और उसका जितना कौशल है उसे उपयोग में लाने के लिए और अपनी स्वयं की उपेक्षा कौशल के अभाव में यह विचार के प्रत्यक्ष परिणामों की बाबत अपने मालिक को प्रतिकर देने के लिए आबद्ध है।

    पन्नालाल जानकी दास बनाम मोहनलाल एआईआर 1951 एससी 145 के प्रकरण में कहा गया है एजेंट क को मालिक ख को उधार माल बेचने का अधिकार देता है और वह ग को उसकी शोधन क्षमता की उचित जांच संपादित किए उधार माल बेचता है विक्रय के समय ग दिवालिया है।

    इससे होने वाली हानि के लिए क ख को प्रतिकर देने के लिए दायित्वधीन है क्योंकि यहां पर क ने अपने किसी कौशल का प्रयोग नहीं किया जबकि यदि क अपने किसी कौशल का प्रयोग करते हुए किसी भी दिवालिया को कोई भी माल उधारी पर नहीं बेचता, किसी भी दिवालिया कोई भी ऋण नहीं दिया जाता है।

    जय भारती बनाम नाडा एआईआर 1992 एससी 596 के प्रकरण में कहा गया है कि एजेंट को मालिक का यह निर्देश था कि वह माल क्रय करें, उसने मालिक को सूचना दी कि माल क्रय कर लिया गया है वह परिवहन का पड़ताल होते ही माल भेज दिया जाएगा। वास्तविकता यह थी कि माल क्रय ही नहीं किया गया था। एजेंट मालिक को होने वाली हानि के लिए दायीं ठहराया गया।

    भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 213 एजेंट के एक और कर्तव्य का उल्लेख करती है जिसके अनुसार एजेंट को एक लेखा रखना होगा और अपने मालिक द्वारा मांगे जाने पर उस उचित लेखे को प्रस्तुत करना होगा। यह धारा एजेंट को मालिक को लेखा देने के लिए बाध्य करती है। जिस समय भी मालिक किसी लेखे की मांग करता है तो एजेंट का यह कर्तव्य है कि वह उस लेखे को प्रस्तुत कर दे। उसके द्वारा रखे जाने वाला लेखा उचित होना चाहिए स्पष्ट होना चाहिए असंदिग्ध होना चाहिए। एजेंट का यह कर्तव्य है कि वह अपने मालिक की मांग पर मालिक को उचित लेखा प्रदान करें।

    मालिक से संपर्क रखने का एजेंट का कर्तव्य

    भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 214 एक एजेंट को मालिक से निरंतर संपर्क में रहने के लिए बाध्य करती है। इस धारा के अंतर्गत अभिकरण के संदर्भ में मालिक के अधिकार का उस प्रस्तुति में वर्णन किया गया है जबकि एजेंट अभिकरण के कारोबार में मालिक की संपत्ति की बिना अपने ही लेखे से व्यवहार करता है। इसके अनुसार एजेंट को अभिकरण के कारोबार में मालिक की सम्मति के बिना अपने लेखे में कोई संव्यवहार नहीं करना चाहिए।

    इस धारा के अनुसार यदि कोई एजेंट अपने मालिक की सम्मति से अभिप्राप्त किए बिना और उसके उन सब तात्विक परिस्थितियों में से जो उस विषय पर उसके परिज्ञान में आई हो परिचित कराए बिना अभिकरण के कारोबार में अपने ही लेखे व्यवहार करें तो यदि मामले से यह दर्शित हो कि या तो कोई तात्विक तथ्य एजेंट द्वारा बेईमानी से मालिक से छुपाया गया है या एजेंट के व्यवहार मालिक के लिए आहित कर रहे हैं तो ऐसी स्थिति में मालिक उक्त व्यवहार का निराकरण कर सकता है।

    इस धारा के अनुसार एक एजेंट को समय-समय पर विपरीत परिस्थितियों में भी मालिक से संपर्क बनाए रखने के लिए बाध्य किया जाता है। एक एजेंट को किसी भी परिस्थिति में मालिक से संपर्क बनाए रखना होगा।

    मालिक के लिए प्राप्त की गई राशियों का भुगतान करना

    भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 218 एजेंट के कर्तव्य का उस स्थिति में उल्लेख करती है जबकि उसने मालिक के निमित्त कोई राशि अभिप्राप्त की है। इसके अनुसार ऐसी कटौतियों के अधीन एजेंट मालिक की उन सब राशियों को संदाय करने के लिए बाध्य है जो मालिक के लेखे से उसे प्राप्त हुई है अर्थात इस धारा की प्रमुख बातों में-

    एजेंट का यह कर्तव्य है कि वह मालिक के लेखे प्राप्त धनराशियों को वापस कर दे।

    इस धारा के अनुसार वह उस रकम की कटौती कर सकता है जो मालिक द्वारा इसे विधिपूर्ण देय हो।

    इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि एजेंट का यह कर्तव्य है कि मालिक के लेखे प्राप्त धनराशियों को मालिक को प्रदान कर दें किंतु उसे इस बात की भी स्वतंत्रता है कि वह उसमें से वह कटौती कर सकता है जो की विधितः उचित हो।

    एजेंट का कर्तव्य है कि वह जो धनराशि मालिक के नाम प्राप्त करता है उसे वह मालिक को वापस कर दें, यदि वह ऐसा नहीं करता है तो मालिक उक्त धनराशि वापस लेने के दायित्वधीन होता है।

    उस मामले में जहां की कोई एजेंट मालिक की ओर से कोई धन अभिप्राप्त करता है किंतु उसे अपने स्वयं के प्रयोग में लेता है तो ऐसी स्थिति में उक्त धन का स्वयं के लिए विनियोग करना एजेंट का अवैध कृत्य माना गया है और यह अभिनिर्धारित किया गया कि वह धन मालिक उससे वसूल करने के लिए अधिकृत होगा।

    राजेंद्र बनाम नागेंद्र एआईआर 1947 कोलकाता 917 के प्रकरण में कोलकाता हाईकोर्ट ने विचार व्यक्त किया कि जहां जमीदार के एजेंट ने जमीदार के नाम पर वसूली की किंतु वसूल किया गया धन उस के जमीदार को नहीं दिया उसे स्वयं के लाभ के लिए ले लिया, कोर्ट ने कहा कि जमीदार उक्त धनराशि एजेंट से वसूल कर सकता है क्योंकि जमीदार ने उक्त वसूली स्वयं के लिए की थी।

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