डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र प्राप्त करने वाले व्यक्ति की कानूनी जिम्मेदारियाँ: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 40 से 42

Himanshu Mishra

2 Jun 2025 5:21 PM IST

  • डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र प्राप्त करने वाले व्यक्ति की कानूनी जिम्मेदारियाँ: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 40 से 42

    धारा 40 – कुंजी युग्म का निर्माण

    इस धारा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति एक डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र (Digital Signature Certificate) स्वीकार करता है, जिसमें एक सार्वजनिक कुंजी (public key) दी जाती है, तो उसका यह दायित्व बनता है कि वह उसी के अनुसार एक निजी कुंजी (private key) उत्पन्न करे। यह कुंजी युग्म यानी public और private key एक साथ और एक विशेष 'सुरक्षा प्रक्रिया' (Security Procedure) द्वारा उत्पन्न किया जाना चाहिए।

    यह प्रक्रिया इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि डिजिटल हस्ताक्षर की गोपनीयता और प्रमाणिकता बनी रहे। यदि यह प्रक्रिया ठीक से नहीं अपनाई जाती, तो डिजिटल दस्तावेजों पर किए गए हस्ताक्षर की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है।

    उदाहरण: कल्पना कीजिए कि सुरेश नामक एक चार्टर्ड अकाउंटेंट ने डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र प्राप्त किया। अब उसे आवश्यक है कि वह अपने कंप्यूटर या डिजिटल उपकरण पर एक सुरक्षित सॉफ्टवेयर के माध्यम से public-private key pair बनाएं। यदि वह किसी असुरक्षित माध्यम से कुंजी बनाता है, तो उसकी गोपनीयता खतरे में पड़ सकती है और डिजिटल लेन-देन में विश्वास नहीं रह जाएगा।

    यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र को एक सुरक्षित और प्रमाणिक प्रक्रिया के तहत इस्तेमाल किया जाए, जिससे भविष्य में कानूनी विवादों से बचा जा सके।

    धारा 40A – इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र के सब्सक्राइबर के कर्तव्य

    यह धारा बाद में जोड़ी गई है और यह इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र (Electronic Signature Certificate) से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि ऐसा कोई भी व्यक्ति जो इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र का सब्सक्राइबर है, उसे वे सभी कर्तव्य निभाने होंगे जो अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों में निर्धारित किए गए हैं।

    हालांकि इस धारा में कर्तव्यों का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट किया गया है कि जो नियम केंद्र सरकार या नियामक संस्था द्वारा बनाए जाएंगे, उनका पालन करना सब्सक्राइबर के लिए अनिवार्य होगा।

    व्याख्या: इसका उद्देश्य यह है कि जैसे-जैसे तकनीक बदलती है, नियम भी समय के साथ अपडेट होते हैं। सब्सक्राइबर की जिम्मेदारी है कि वह केवल प्रमाणपत्र लेने तक ही सीमित न रहे, बल्कि इसके उपयोग, संरक्षण और पारदर्शिता से जुड़े सभी नियमों का पालन करे।

    धारा 41 – डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र की स्वीकृति

    यह धारा बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह यह बताती है कि कब यह माना जाएगा कि सब्सक्राइबर ने डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र को स्वीकार कर लिया है। इसके तीन प्रमुख आधार हैं:

    1. यदि सब्सक्राइबर इस प्रमाणपत्र को किसी एक या अधिक व्यक्तियों को प्रदान करता है।

    2. यदि वह इसे किसी डिजिटल रिपॉजिटरी (Repository) में प्रकाशित करता है।

    3. या यदि वह किसी अन्य तरीके से इस प्रमाणपत्र को स्वीकार करता है, जैसे कि किसी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करके।

    इनमें से कोई भी कृत्य यह सिद्ध करता है कि व्यक्ति ने प्रमाणपत्र की वैधता और उसकी सामग्री को स्वीकार कर लिया है।

    अब बात करते हैं कि एक बार जब कोई सब्सक्राइबर प्रमाणपत्र को स्वीकार कर लेता है, तो वह किन बातों की गारंटी देता है:

    (क) वह यह प्रमाणित करता है कि उसके पास वह निजी कुंजी है जो सार्वजनिक कुंजी से मेल खाती है।

    (ख) उसने प्रमाणपत्र प्राधिकारी को जो भी जानकारी दी है, वह पूर्णतः सत्य है।

    (ग) जो भी जानकारी प्रमाणपत्र में है और उसके खुद के ज्ञान में है, वह सब सत्य और सही है।

    उदाहरण: मीना नामक वकील ने डिजिटल प्रमाणपत्र प्राप्त किया और उसे अपने लॉ फर्म की वेबसाइट पर प्रकाशित किया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि मीना ने प्रमाणपत्र को स्वीकार कर लिया है और वह प्रमाणपत्र में दी गई जानकारी की जिम्मेदारी भी लेती है। यदि प्रमाणपत्र में कोई झूठी बात निकली, तो कानूनी रूप से मीना को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

    धारा 42 – निजी कुंजी का नियंत्रण

    यह धारा सब्सक्राइबर पर सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी डालती है — उसकी निजी कुंजी की सुरक्षा सुनिश्चित करना। डिजिटल हस्ताक्षर में निजी कुंजी वह सबसे संवेदनशील तत्व होती है, जिससे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए जाते हैं। यदि यह कुंजी किसी गलत व्यक्ति के हाथ लग जाए, तो वह फर्जी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर सकता है।

    इसलिए धारा 42 कहती है:

    1. सब्सक्राइबर को उचित सावधानी बरतनी चाहिए कि उसकी निजी कुंजी सुरक्षित रहे और वह कभी लीक न हो।

    2. यदि किसी कारणवश सब्सक्राइबर की निजी कुंजी से समझौता होता है (जैसे कि चोरी हो जाए, या किसी वायरस से कंप्यूटर संक्रमित हो जाए), तो उसे तुरंत प्रमाणपत्र प्राधिकारी को इसकी सूचना देनी चाहिए।

    इस धारा की व्याख्या में यह भी कहा गया है कि जब तक सब्सक्राइबर यह सूचना नहीं देता, तब तक वह स्वयं उस कुंजी से किए गए किसी भी कार्य के लिए उत्तरदायी रहेगा, चाहे वह कार्य उसने स्वयं किया हो या नहीं।

    उदाहरण: रवि की निजी कुंजी एक साइबर अपराधी ने हैक कर ली और कुछ जाली दस्तावेजों पर डिजिटल हस्ताक्षर कर दिए। यदि रवि ने यह जानकारी तुरंत प्रमाणपत्र प्राधिकारी को नहीं दी, तो वह सभी फर्जी दस्तावेजों के लिए खुद जिम्मेदार माना जाएगा।

    धारा 40 से 42 और 40A की गहराई से समीक्षा यह दिखाती है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम केवल प्रमाणपत्र जारी करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य उपयोगकर्ताओं को डिजिटल पहचान के उपयोग में जिम्मेदार बनाना भी है।

    आज के समय में जब ऑनलाइन दस्तावेज, अनुबंध और ई-गवर्नेंस का विस्तार हो रहा है, ऐसे में डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र का सही उपयोग और उसकी सुरक्षा अत्यंत आवश्यक है। इन धाराओं के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रमाणपत्र प्राप्त करने वाला व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों से परिचित हो और कानूनी और नैतिक दोनों रूप से उसका पालन करे।

    एक डिजिटल प्रमाणपत्र न केवल एक तकनीकी टूल है, बल्कि यह एक कानूनी दस्तावेज है जो सब्सक्राइबर की पहचान और दायित्वों को दर्शाता है। यदि इसकी प्रक्रिया और सुरक्षा में चूक होती है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसलिए अधिनियम द्वारा निर्धारित इन धाराओं का पालन करना हर सब्सक्राइबर की जिम्मेदारी है।

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