सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 80, 81 और 81A के अंतर्गत साइबर अपराधों से निपटने की कानूनी व्यवस्था
Himanshu Mishra
19 Jun 2025 11:54 AM

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) डिजिटल युग में भारत का एक प्रमुख कानून है जो कंप्यूटर, इंटरनेट, साइबर अपराध और इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन से संबंधित पहलुओं को नियंत्रित करता है।
अध्याय XIII अधिनियम के विविध प्रावधानों (Miscellaneous Provisions) से संबंधित है, जो पुलिस अधिकारियों के विशेष अधिकारों, अधिनियम की सर्वोपरिता, और इलेक्ट्रॉनिक चेक से जुड़े नियमों को स्पष्ट करता है। इस लेख में हम विशेष रूप से धाराएं 80, 81 और 81A को विस्तारपूर्वक सरल भाषा में समझेंगे।
धारा 80: पुलिस अधिकारियों और अन्य अधिकारियों को तलाशी, प्रवेश और गिरफ्तारी का अधिकार
धारा 80 यह विशेष प्रावधान करती है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत कोई अपराध यदि किसी व्यक्ति द्वारा किया गया हो, या करने की आशंका हो, तो पुलिस अधिकारी या केंद्र अथवा राज्य सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी को बिना वारंट के तलाशी (Search), प्रवेश (Entry), और गिरफ्तारी (Arrest) करने का अधिकार होगा।
यह प्रावधान आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के बावजूद लागू होगा। यानी CrPC में जो प्रक्रिया गिरफ्तारी या तलाशी के लिए दी गई है, उनके स्थान पर यह धारा अधिक प्रभावी होगी।
इस धारा के अनुसार, केवल पुलिस निरीक्षक (Inspector) रैंक का अधिकारी या उससे ऊपर के अधिकारी को यह अधिकार प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त, यदि केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत कोई अन्य अधिकारी हो, तो वह भी यह कार्रवाई कर सकता है।
इस धारा में एक महत्वपूर्ण व्याख्या दी गई है कि "सार्वजनिक स्थान" (Public Place) में कौन-कौन सी जगहें आती हैं। इसमें सार्वजनिक वाहन (Public Conveyance), होटल, दुकानें, या कोई भी ऐसा स्थान जहां आम जनता को पहुंच की अनुमति हो, शामिल है। उदाहरण के लिए, अगर किसी साइबर कैफे में कोई व्यक्ति साइबर अपराध कर रहा है, तो पुलिस निरीक्षक उस साइबर कैफे में घुसकर बिना वारंट के उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है।
यदि गिरफ्तारी कोई ऐसा अधिकारी करता है जो पुलिस अधिकारी नहीं है, तो उसे उस व्यक्ति को शीघ्र ही निकटतम मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने के प्रभारी के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। यह प्रावधान गिरफ्तारी की प्रक्रिया को न्यायसंगत बनाए रखने के लिए है।
अंततः यह भी कहा गया है कि भले ही इस धारा में विशेष अधिकार दिए गए हों, फिर भी जहाँ तक संभव हो, CrPC के सामान्य प्रावधान इन मामलों में भी लागू रहेंगे। यानी जांच और सुनवाई की निष्पक्षता बनी रहती है।
धारा 81: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की सर्वोपरिता
धारा 81 यह स्पष्ट करती है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम किसी अन्य कानून में दिए गए किसी भी विरोधाभासी प्रावधान से ऊपर माना जाएगा। यह अधिनियम सर्वोपरि (Overriding Effect) होगा।
लेकिन इसके साथ एक महत्वपूर्ण अपवाद जोड़ा गया है। यह कहा गया है कि इस अधिनियम की कोई भी बात किसी व्यक्ति को कॉपीराइट अधिनियम, 1957 या पेटेंट अधिनियम, 1970 के तहत मिले अधिकारों के प्रयोग से नहीं रोकती। यानी यदि किसी का अधिकार इन दो अधिनियमों से सुरक्षित है, तो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम उससे टकराव नहीं करेगा।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति इंटरनेट पर ऐसी सामग्री साझा करता है जो किसी अन्य का कॉपीराइट है, तो भले ही आईटी अधिनियम में कुछ न कहा गया हो, कॉपीराइट अधिनियम के तहत उस व्यक्ति पर कार्रवाई की जा सकती है। इसका मतलब यह है कि दोनों अधिनियम साथ-साथ चलते हैं और एक-दूसरे को पूरक बनाते हैं।
धारा 81A: इलेक्ट्रॉनिक चेक और ट्रंकेटेड चेक पर अधिनियम का प्रभाव
धारा 81A एक नई धारा है जो डिजिटल बैंकिंग की दुनिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह बताती है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधान इलेक्ट्रॉनिक चेक (Electronic Cheque) और ट्रंकेटेड चेक (Truncated Cheque) पर भी लागू होंगे। इस धारा को परिभाषित करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सलाह से केंद्र सरकार आवश्यक संशोधन और अधिसूचना जारी कर सकती है।
इसका अर्थ यह है कि इलेक्ट्रॉनिक चेक या ट्रंकेटेड चेक को वैध (Valid) और कानूनी (Legal) दस्तावेज के रूप में मान्यता दी गई है, और आईटी अधिनियम इन पर भी लागू होता है।
यह प्रावधान नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 के कार्यान्वयन को सुचारू बनाने के लिए जोड़ा गया है। यह अधिनियम पारंपरिक लेन-देन (जैसे चेक, ड्राफ्ट आदि) को नियंत्रित करता है। जैसे-जैसे बैंकिंग प्रणाली डिजिटल हो रही है, यह जरूरी हो गया था कि पुराने अधिनियमों में डिजिटल संस्करणों को भी सम्मिलित किया जाए।
धारा 81A यह भी निर्धारित करती है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी कोई भी अधिसूचना संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की जाएगी और यदि संसद के दोनों सदन किसी संशोधन या निरस्तीकरण पर सहमत हों, तो वह अधिसूचना उसी रूप में प्रभावी होगी या प्रभावहीन मानी जाएगी।
यह संसद की निगरानी और नियंत्रण का एक रूप है जिससे कार्यपालिका पर संतुलन बना रहे। उदाहरण के लिए, यदि सरकार कोई अधिसूचना लाती है कि अब ट्रंकेटेड चेक में डिजिटल हस्ताक्षर जरूरी नहीं है, और संसद इससे असहमति जताती है, तो वह अधिसूचना निरस्त हो सकती है।
इस धारा की व्याख्या में यह भी जोड़ा गया है कि "इलेक्ट्रॉनिक चेक" और "ट्रंकेटेड चेक" की परिभाषा वही होगी जो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 6 में दी गई है।
अध्याय XIII सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के विविध लेकिन महत्वपूर्ण प्रावधानों को एक साथ समेटता है। धारा 80 जहां पुलिस अधिकारियों और सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारियों को व्यापक अधिकार देती है ताकि साइबर अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके, वहीं धारा 81 इस अधिनियम की सर्वोपरिता को सुनिश्चित करती है ताकि डिजिटल माध्यमों से जुड़े मामलों में किसी अन्य अधिनियम से टकराव की स्थिति न बने। इसके अतिरिक्त, धारा 81A इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग की दिशा में एक बड़ा कदम है जिससे डिजिटल चेक को कानूनी मान्यता दी जा सके और संसद की निगरानी में पारदर्शिता बनी रहे।