राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 91 से 93 के अंतर्गत अतिक्रमण की स्थिति में तहसीलदार द्वारा की जाने वाली कानूनी कार्यवाही

Himanshu Mishra

20 May 2025 6:22 PM IST

  • राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 91 से 93 के अंतर्गत अतिक्रमण की स्थिति में तहसीलदार द्वारा की जाने वाली कानूनी कार्यवाही

    धारा 91 - भूमि का अनधिकृत अधिभोग (Unauthorised Occupation of Land)

    राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 91 इस बात से संबंधित है कि यदि कोई व्यक्ति राज्य की भूमि पर बिना वैध अधिकार के कब्जा कर लेता है या वैध अधिकार समाप्त हो जाने के बाद भी कब्जा बनाए रखता है, तो उसे 'अतिक्रमणकर्ता' (trespasser) माना जाएगा। इस धारा के अंतर्गत तहसीलदार को ऐसे अतिक्रमणकर्ताओं को बिना किसी लम्बी प्रक्रिया के हटाने का अधिकार दिया गया है।

    अतिक्रमण की स्थिति में कार्यवाही

    यदि कोई व्यक्ति किसी सरकारी भूमि पर कब्जा कर लेता है, और वह वहां फसल उगाता है, कोई निर्माण करता है या कोई अन्य वस्तु रखता है, तो तहसीलदार उसे एक उचित समयावधि देकर नोटिस देगा कि वह अपनी वस्तुएं हटा ले। यदि वह समय पर ऐसा नहीं करता, तो तहसीलदार को अधिकार है कि वह:

    • फसल को जब्त करके उसका निपटारा अपने विवेक से करे;

    • भवन या संरचना को ज़ब्त करके, या फिर उसे गिराने का आदेश दे।

    उदाहरण

    मान लीजिए रमेश नामक व्यक्ति ने गाँव की चारागाह भूमि पर कब्जा कर के एक दुकान बना ली है। तहसीलदार ने उसे नोटिस दिया कि वह अपनी दुकान हटा ले। रमेश ने न तो दुकान हटाई और न ही जवाब दिया। अब तहसीलदार दुकान को ज़ब्त कर सकता है या उसे तोड़ने का आदेश दे सकता है।

    आर्थिक दंड और कारावास

    धारा 91(2) के अनुसार, अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति को हर कृषि वर्ष के लिए, जब तक उसने भूमि पर कब्जा किया है, जुर्माना देना होगा। यह जुर्माना उस भूमि के वार्षिक किराये या मूल्यांकन का 50 गुना तक हो सकता है।

    यदि वही व्यक्ति दोबारा अतिक्रमण करता है, तो तहसीलदार उसे तीन महीने तक के सिविल कारावास की सज़ा और उपरोक्त राशि के अनुसार जुर्माना देने का आदेश दे सकता है। यह जुर्माना भूमि राजस्व के बकाया की तरह वसूल किया जाएगा।

    अपील का अधिकार

    अगर अतिक्रमणकर्ता को कारावास की सज़ा दी गई है, और वह अपील करना चाहता है, तो तहसीलदार उसे जमानत पर छोड़ सकता है ताकि वह अपील कर सके और उच्चतर न्यायालय से स्थगन आदेश (stay) प्राप्त कर सके।

    जबरन बेदखली की प्रक्रिया

    यदि अतिक्रमणकर्ता:

    • नोटिस मिलने के बाद भी भूमि नहीं छोड़ता,

    • या उपस्थित होकर भी कोई वैध कारण नहीं बताता,

    • या भूमि छोड़ने का वादा करता है लेकिन एक सप्ताह में नहीं छोड़ता,

    तो तहसीलदार उसे जबरन हटा सकता है। अगर किसी ने तहसीलदार का विरोध किया या कब्जा छुड़ाने में बाधा डाली, तो तहसीलदार मजिस्ट्रेट की मदद ले सकता है, और मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी होगी कि वह सरकारी भूमि को वापस दिलवाए।

    भूमि को विक्रय करने का अधिकार

    धारा 91(5) में यह प्रावधान है कि यदि अतिक्रमित भूमि धारा 97 की विशिष्ट श्रेणी में आती है, तो तहसीलदार उपखण्ड अधिकारी की अनुमति से वह भूमि उसी अतिक्रमणकर्ता को बेच सकता है। लेकिन इसके लिए उसे जुर्माना, मूल्यांकन और निर्धारित प्रीमियम चुकाना होगा।

    आपराधिक सजा और विशेष नियम

    धारा 91(6) के अनुसार:

    • यदि कोई व्यक्ति बिना वैध अधिकार के भूमि पर कब्जा करता है या अधिनियम 1992 के संशोधन के बाद भी कब्जा नहीं छोड़ता, तो उसे 1 महीने से 3 साल तक की सजा और ₹20,000 तक का जुर्माना हो सकता है।

    • यदि कोई सरकारी कर्मचारी, जिसे अतिक्रमण रोकने का विशेष दायित्व सौंपा गया है, जानबूझकर अपनी ड्यूटी में लापरवाही करता है, तो उसे 1 महीने तक की सजा या ₹1000 का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

    लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि:

    • ऐसे मामलों की जांच केवल उप पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) या उससे ऊपर का अधिकारी कर सकता है।

    • और कर्मचारी के विरुद्ध कार्यवाही के लिए कलेक्टर की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।

    "भूमि" की परिभाषा

    इस उपधारा में “भूमि” से तात्पर्य है:

    1. चारागाह भूमि (Pasture land) जैसा कि राजस्थान किरायेदारी अधिनियम, 1955 में परिभाषित है।

    2. सार्वजनिक कुएं, नाड़ी, जोहड़ या तालाब से लगी भूमि।

    धारा 92 – विशेष प्रयोजनों के लिए भूमि को अलग रखना

    राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 92 के अंतर्गत कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह राज्य सरकार के सामान्य आदेशों के अंतर्गत विशेष प्रयोजनों के लिए भूमि को आरक्षित कर सकता है।

    ऐसे विशेष प्रयोजन कौन से हो सकते हैं?

    • गांव के मवेशियों के लिए चारागाह भूमि

    • वन आरक्षित क्षेत्र

    • आबादी के विकास हेतु भूमि

    • कोई अन्य सार्वजनिक या नगरपालिका प्रयोजन

    इस प्रकार आरक्षित की गई भूमि का उपयोग केवल निर्धारित उद्देश्य के लिए ही किया जा सकता है। यदि किसी को इसका अन्य उपयोग करना है, तो उसे पहले कलेक्टर से अनुमति लेनी होगी।

    उदाहरण

    यदि किसी गाँव में कलेक्टर ने 5 बीघा ज़मीन को चारागाह के रूप में चिन्हित किया है, तो उस ज़मीन पर घर बनाना, दुकान चलाना या अन्य कोई कार्य करना अवैध होगा, जब तक कि कलेक्टर से अनुमति न मिल जाए।

    धारा 93 – चारागाह भूमि का उपयोग

    धारा 93 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि चारागाह भूमि पर चराई का अधिकार केवल उस गाँव के पशुओं तक सीमित रहेगा जिसके लिए वह भूमि आरक्षित की गई है। इस अधिकार का विनियमन (regulation) राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार किया जाएगा।

    उदाहरण

    अगर कोई चारागाह भूमि गाँव 'अ' के लिए आरक्षित है, तो गाँव 'ब' के लोग या मवेशी वहां चराई नहीं कर सकते, जब तक कि नियमों में इसकी अनुमति न दी गई हो।

    राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 91, 92 और 93 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी भूमि का सही और नियोजित उपयोग हो। यह धाराें का अनुपालन न केवल सरकारी संपत्ति की रक्षा करता है, बल्कि आम जन की ज़रूरतों — जैसे चारागाह, जल स्रोत और सार्वजनिक प्रयोजन — को भी सुरक्षित करता है।

    यदि कोई व्यक्ति इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो न केवल उसे भूमि से बेदखल किया जा सकता है बल्कि उस पर भारी जुर्माना, कारावास और अन्य सख्त कार्रवाई भी हो सकती है। यह अधिनियम शासन के लिए एक सशक्त उपकरण है जिससे अनधिकृत कब्जे रोके जा सकते हैं और भूमि का न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है।

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