एबॉर्शन से संबंधित क़ानून
Shadab Salim
5 July 2025 10:21 AM IST

इस संबंध में एमटीपी एक्ट 1971 है। जिसका नाम- गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम है।
महिला की सहमति के विरुद्ध गर्भपात दंडनीय है। महिला की सहमति से महिला के जीवन बचाने हेतु किए गए गर्भपात दंडनीय नहीं है। गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 के अंतर्गत भी महिला के जीवन की रक्षा हेतु प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इस अधिनियम का निर्माण कुछ गर्भो का समापन पंजीकृत चिकित्सक द्वारा किए जाने और उससे संबंधित विषयों के लिए प्रावधान करने के उद्देश्य से किया गया है। यह अधिनियम 1 अप्रैल 1972 से लागू हुआ। इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत पर प्रभावी है।
इस अधिनियम के परिभाषा खंड के अंतर्गत अभिभावक, मानसिक रुग्ण व्यक्ति, अल्पवयस्क, पंजीकृत चिकित्सक शब्दों की परिभाषाएं प्रस्तुत की गई है क्योंकि यह अधिनियम का विस्तार इन प्रमुख शब्दों के आसपास ही होता है।
एमपीटी एक्ट 1971 अंतर्गत धारा दो (क) के अनुसार अभिभावक का अर्थ वहव्यक्ति है जो अल्पवयस्क और मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति की देखभाल करता है अर्थात कोई व्यक्ति मानसिक रूप से ठीक नहीं है उस व्यक्ति की देखभाल करने वाला व्यक्ति अभिभावक कहलाता है और अल्पवयस्क व्यक्ति की देखभाल करने वाला व्यक्ति भी अभिभावक कहलाता है। धारा 2 के अनुसार अल्पवयस्क व्यक्ति की परिभाषा भी प्रस्तुत की गई है जिसके अनुसार यह वह व्यक्ति होता है जिसने भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875 के अनुसार वयस्कता प्राप्त नहीं की है अर्थात अभी 18 वर्ष का नहीं हुआ है। मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति उसे कहा गया है जिसे मानसिक असंतुलन के कारण उपचार की आवश्यकता हो ऐसी मानसिक कमजोरी मानसिक से दिवालियापन नहीं होना चाहिए।
इस अधिनियम की धारा 2 (घ) पंजीकृत चिकित्सक का अर्थ है ऐसा चिकित्सक जो इंडियन मेडिकल काउंसिल अधिनियम 1956 की धारा दो (ज) के अंतर्गत अनुमन्य किसी योग्यता का धारक हो जिसका नाम स्टेट मेडिकल रजिस्टर में लिखित हो तथा वह स्त्री रोग एवं प्रसूति विज्ञान संबंधी ऐसे अनुभव या परीक्षण का धारक हो जैसा कि इस अधिनियम द्वारा निर्धारित किया जाए या विनियमित किया जाए।
इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप किसी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा समापन किए जाने पर उसे दोषी नहीं कहा जाएगा अर्थात गर्भ का समापन किया जा सकता है पर इस अधिनियम के बनाए गए नियमों के अधीन ही किया जा सकता है।
इस अधिनियम की धारा 3 की उपधारा 2 में उन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जिनमें किसी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भ का समापन किया जा सकता है, यह परिस्थितियां निम्नलिखित हैं-
जहां गर्भ की अवधि 12 सप्ताह से अधिक नहीं है तथा एक पंजीकृत चिकित्सक के अनुसार उसके मत में-
यदि गर्भ को विकसित होने दिया गया तो यह गर्भधारण करने वाली स्त्री के जीवन और स्वास्थ्य के लिए घातक होगा, उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को घोर उपहति कारित करेगा।
इस बात का जोखिम है यदि बच्चे का जन्म होता है वह ऐसे शारीरिक या मानसिक असमानता से प्रभावित होगा कि वह उसे गंभीर रूप से विकलांग बना देगी।
जहां गर्भ की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है परंतु 20 सप्ताह से कम है वहां कम से कम 2 पंजीकृत चिकित्सकों का उपरोक्त परस्थितियों में वर्णित मत होने पर ही गर्भ का समापन संभव है। धारा 3 के उदाहरण 3 के अनुसार यह सुनिश्चित करने हेतु की क्या गर्भ को विकसित होते रहने देना गर्भ धारण किए महिला के लिए धारा 3 के उपधारा 2 के अनुसार स्वास्थ्य के लिए घातक होगा, महिला की वास्तविक या युक्तियुक्त रूप से अकल्पनीय परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा।
इस अधिनियम की धारा 3 के उपधारा 2 से संलग्न स्पष्टीकरण एक और स्पष्टीकरण दो में उन दो परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जबकि गर्भ को विकसित होते रहने देना गर्भधारक महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक रूप से हानिकारक होने की परिकल्पना की जाएगी।
गर्भधारक महिला जब यह आरोपित हो कि गर्भ बलात्कार के उपरांत अस्तित्व में आया है तो ऐसे गर्भ से उत्पन्न संतान या परिवेदना गर्भधारक महिला को मानसिक रूप से घातक हानि प्रदान करें इसकी पूर्वधारणा की जाए।
संतानों की संख्या सीमित रखने हेतु अपनाए गए उपायों के विफल होने पर धारण होने वाले गर्भ-
जब किसी विवाहित महिला या उसके पति द्वारा परिवार सीमित रखने हेतु अपनाए गए उपायों के विफल हो जाने के कारण अनचाहा गर्भ धारण हो जाए तो ऐसे गर्भधारण से उत्पन्न संतान जब परिवेदना गर्भधारक महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक रूप से हानिकारक है। इसकी पूर्व कल्पना की जाए। धारा 3 में वर्णित प्रावधान धारा 3 की उपधारा 4 में वर्णित प्रावधानों के अधीन है। अर्थात इन प्रावधानों से नियंत्रित होते हुए और इनके अधीन रहते हुए गर्भ का समापन विधि द्वारा मान्य नहीं है जब तक शर्ते पूरी न हो।
इस अधिनियम की धारा 4 के अनुसार ऐसी महिला के गर्भ का समापन उसके अभिभावक की लिखित सहमति बिना संभव नहीं है जो कि 18 वर्ष से अल्प आयु की है या 18 वर्ष की आयु की तो है किंतु मानसिक रूप से कमजोर है।
इस अधिनियम की धारा 4 गर्भ के समापन के स्थानों का उल्लेख करती है। गर्भ के चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 की धारा 4 के अनुसार किसी भी गर्भ का समापन-
केंद्र या राज्य सरकार द्वारा स्थापित संचालित चिकित्सालय में हो सकता है।
इस काम के लिए अल्पकाल हेतु कोई स्थान जो राज्य या केंद्र सरकार या जिला स्तरीय समिति जिसका गठन उस सरकार द्वारा मुख्य चिकित्सा अधिकारी या जिला स्वास्थ्य अधिकारी की अध्यक्षता में किया गया है के द्वारा अनुमोदन प्राप्त हो जिला स्तरीय स्वास्थ्य अधिकारी की अध्यक्षता वाली उपरोक्त समिति में न्यूनतम जनसंख्या 3 अधिकतम सदस्य संख्या 5 होगी। इसमें अध्यक्ष भी सम्मिलित होगा इन सदस्यों को सरकार द्वारा नामित किया जाएगा।
इस अधिनियम की धारा 3 और 4 उन परिस्थितियों में लागू नहीं होती है जब जीवन के लिए घोर संकट विद्यमान हो। गर्भपात किया जाना नितांत आवश्यक हो ऐसी स्थिति में कोई भी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भ का समापन किया जा सकता है पर यहां भी शर्त यही है कि यदि गर्भ को विकसित होने दिया गया हो तो यह गर्भधारण करने वाली स्त्री के जीवन और स्वास्थ्य के लिए घातक होगा और उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को घोर उपहति कारित करेगा इस की प्रबल संभावना है। इस अधिनियम की धारा 5 स्पष्ट प्रावधान करती है की इन नियमों का पालन आवश्यक नहीं है यदि गर्भ का तत्काल समापन किया जाना गर्भवती महिला की जीवन रक्षा हेतु आवश्यक हो।
विजय शर्मा और श्रीमती कीर्ति बनाम भारत संघ 2007 के मामले में कहा गया है महिला को गंभीर मानसिक चोट पहुंचती है। जबकि एमटीपी अधिनियम गर्भपात की अनुमति देता है अगर बच्चे की कल्पना की जाती है। प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता-पीड़ित विफल हो गया है, एमटीपी अधिनियम की धारा 3, 4 और 5 के प्रावधान और धारा 3 के लिए स्पष्टीकरण 1 पर जोर दिया गया है।
अभिलाषा गर्ग के मामले में याचिकाकर्ताओं ने 2010 के सीएम नंबर 1880 को चुनौती दी । 20 मार्च 2002 को एमटीपी अधिनियम के तहत अनुमोदन का प्रमाण पत्र और चिकित्सा के लिए विधिवत प्रमाणित किया गया था।
डॉ राज बोकारिया बनाम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य 2010 के मामले में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 के अनुसार एक उन्नत चरण में इस तरह की प्रक्रिया को पूरा करने के खिलाफ नैतिकता समिति ने MTP अधिनियम की धारा 5 की अनदेखी की, जिसने इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने की अनुमति दी थी।
किसी भी गैर पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भ का समापन किया जाता है तो इस प्रकार के समापन पर इस अधिनियम की धारा 5 की उपधारा 2 के अनुसार बी एन एस के प्रावधानों से प्रभावित रहते हुए किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा गर्भ का समापन जो कि पंजीकृत चिकित्सक नहीं है एक अपराध होगा तथा ऐसे सश्रम कारावास के दंडनीय होगा जिसकी अवधि 2 वर्ष से कम नहीं होगी परंतु जिसकी अवधि 7 वर्षों तक की हो सकेगी।
इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों के अतिरिक्त केंद्र सरकार अधिनियम की धारा 6 में प्रदत्त शक्ति का प्रयोग कर कर राजकीय राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू कराने के उद्देश्य से नियम बनाने की शक्ति रखती है तथा इससे संबंधित विनियम बनाने की शक्ति राज्य सरकारों को धारा 7 के अंतर्गत दी गई है। कुछ नियम राज्य सरकार द्वारा भी निर्धारित किए जा सकते हैं।
गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 की धारा 8 में पंजीकृत चिकित्सक द्वारा सद्भावना से किए गए निर्णय और कार्यों के विरुद्ध मुकदमा लाए जाने या किसी अन्य विधिक कार्रवाई से उन्मुक्ति प्रदान की गई है। अर्थात यदि कोई कार्य किसी चिकित्सक द्वारा सद्भावना से किया गया था तो उसके विरुद्ध मुकदमा नहीं लाया जा सकता।
इस धारा के अनुसार किसी भी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा इस अधिनियम के अंतर्गत सद्भावनापूर्ण कार्य किए गए यह किए जाने के प्रयास के परिणामस्वरूप होने वाली क्षति के लिए कोई भी वाद या विधिक प्रक्रिया मान्य नहीं होगी।