मतदाता सूची में वोटर के दोहरे पंजीकरण को रोकने का कानून
Shadab Salim
27 Aug 2025 9:32 AM IST

The Representation Of The People Act, 1950 भारत में चुनाव करवाने के लिए बनाया गया एक ऐसा एक्ट है जिसमें इलेक्शन से जुड़ी हर विषय को स्पष्ट कर दिया है। संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 चुनाव आयोग की शक्तियों को मजबूत करते हैं। यह एक्ट चुनावों के संचालन, उम्मीदवारों की योग्यता, अयोग्यता और मतदाता सूचियों के तैयारी से संबंधित प्रावधान करता है। विशेष रूप से, धारा 17, 18 और 19 मतदाता पंजीकरण से जुड़ी हैं, जो दोहरे पंजीकरण को रोकती हैं और पंजीकरण की शर्तें निर्धारित करती हैं। यह धाराएँ सुनिश्चित करती हैं कि चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और समावेशी हो, ताकि हर योग्य नागरिक को मतदान का अधिकार मिले।
इस एक्ट की धारा 17 का प्रावधान है कि कोई व्यक्ति एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में पंजीकृत नहीं हो सकता। इसका उद्देश्य दोहरे मतदान को रोकना है, जो चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को प्रभावित कर सकता है। जैसे यदि कोई व्यक्ति कलकत्ता और चेन्नई दोनों जगह पंजीकृत है, तो वह केवल एक जगह मतदान कर सकता है। यह धारा चुनाव आयोग को सशक्त बनाती है कि वह डुप्लिकेट एंट्रीज को हटा सके। धारा 17 का उल्लंघन होने पर, चुनाव आयोग के निर्देशों के तहत नाम हटाया जा सकता है, और यह चुनावी धोखाधड़ी के रूप में दंडनीय हो सकता है।
धारा 18 पूरक है, जो कहती है कि कोई व्यक्ति किसी एक निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में एक से अधिक बार पंजीकृत नहीं हो सकता। यह धारा फर्जी पंजीकरण या नाम की दोहरी एंट्री को रोकती है, जो अक्सर नाम, पता या फोटो में मामूली बदलाव से होता है। यह दोनों धाराएँ (17 और 18) साथ में काम करती हैं, ताकि मतदाता सूची में कोई अनियमितता न हो। यदि कोई व्यक्ति इनका उल्लंघन करता है, तो धारा 31 के तहत झूठी घोषणा के लिए दंड का प्रावधान है, जिसमें जुर्माना या कारावास हो सकता है।
इस एक्ट की धारा 19 पंजीकरण की ज़रूरी शर्तें निर्धारित करती है। इसके अनुसार, कोई व्यक्ति जो योग्यता तिथि पर 18 वर्ष की आयु का हो और निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य रूप से निवासी हो, वह मतदाता सूची में पंजीकृत होने का हकदार है। यहां 'सामान्य निवासी' का अर्थ है कि व्यक्ति वहां स्थायी रूप से रहता हो, न कि अस्थायी। यह धारा संविधान के अनुच्छेद 326 से जुड़ी है, जो वयस्क मताधिकार की गारंटी देता है। हालांकि, इसमें कुछ अपवाद हैं, जैसे अयोग्य व्यक्ति जैसे अपराधी या मानसिक रूप से अस्वस्थ। चुनाव आयोग ने 2023 में योग्यता तिथि को चार बार (1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई, 1 अक्टूबर) कर दिया, ताकि युवा मतदाताओं को जल्दी पंजीकरण मिले। यह बदलाव धारा 19 के अनुपालन को आसान बनाता है।
इन धाराओं की व्याख्या में न्यायालयों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में इन प्रावधानों को मजबूत किया है। 'इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण' के मामले में कहा गया है कि चुनावी प्रक्रिया में कोई अनियमितता लोकतंत्र को कमजोर करती है। एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय 'लिली थॉमस बनाम भारत संघ' में है, जहां कोर्ट ने धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित किया, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से मतदाता पंजीकरण की अखंडता पर चर्चा की, जो धारा 19 की योग्यता से जुड़ी है। कोर्ट ने अपराधी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने का आदेश दिया, जो पंजीकरण की शर्तों को प्रभावित करता है।
'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ' में सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि का खुलासा अनिवार्य किया, जो अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मतदाताओं के जानने के अधिकार से जुड़ा है। यह निर्णय धारा 19 की 'योग्यता' को विस्तार देता है, क्योंकि अयोग्य व्यक्ति पंजीकरण से वंचित हो सकते हैं। हाल ही में, 'पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ' में कोर्ट ने राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों की आपराधिक जानकारी प्रकाशित करने का निर्देश दिया, जो मतदाता सूचियों की विश्वसनीयता को मजबूत करता है।
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का 'रूप लाल मेहता बनाम धन सिंह' का मामला प्रमुख है। यहां, चुनाव याचिका में कुछ मतदाताओं की आयु पर चुनौती दी गई, जो धारा 19 की 18 वर्ष की शर्त से जुड़ी थी। कोर्ट ने कहा कि आयु प्रमाणित करने की जिम्मेदारी चुनाव अधिकारी पर है, और यदि प्रमाण गलत साबित होता है, तो वोट अमान्य हो सकता है। यह निर्णय मतदाता सूचियों की जांच की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। एक अन्य मामला दिल्ली हाई कोर्ट का है, जहां कोर्ट ने मतदाता पंजीकरण में अनियमितताओं पर चुनाव आयोग की भूमिका पर टिप्पणी की, और अनुच्छेद 226 के तहत याचिका को स्वीकार किया।
मद्रास हाई कोर्ट ने में एक मामले में स्थानीय निकाय चुनावों में मतदाता सूचियों की शुद्धता पर जोर दिया, जहां धारा 17 के उल्लंघन पर राज्य कानून को इस एक्ट से ऊपर नहीं माना गया। केरल हाई कोर्ट ने 2022 में एक एमएलए को पेड न्यूज के लिए अयोग्य ठहराया, जो अप्रत्यक्ष रूप से पंजीकरण की अखंडता से जुड़ा है।

