निःशुल्क विधिक सहायता के संबंध में कानून

Shadab Salim

29 Oct 2022 4:46 AM GMT

  • निःशुल्क विधिक सहायता के संबंध में कानून

    निःशुल्क कानूनी सहायता प्रत्येक निर्धन व्यक्ति का अधिकार होता है। आपराधिक मामलों में यदि एक अभियुक्त को कानूनी मदद नहीं मिले और वे अपना बचाव नहीं कर पाए यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। आज के समय में न्याय अत्यंत खर्चीला है, ऐसे में एक निर्धन अभियुक्त अपने बचाव से विरत रह जाता है।

    इस समस्या से निपटने के लिए ही निःशुल्क विधिक सहायता की अवधारणा अस्तित्व में आई है। जहां एक निर्धन अभियुक्त को अपना बचाव करने के लिए सरकार द्वारा अपने खर्च से अधिवक्ता उपलब्ध कराया जाता है जो अभियुक्त की ओर से उसका बचाव करता है। इस आलेख में इस ही निःशुल्क विधिक सहायता से संबंधित कानून पर चर्चा की जा रही है।

    प्राकृतिक न्याय का यह सुस्थापित सिद्धान्त है कि- दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये। किसी भी पक्षकार को सुने बिना न्याय प्रदान किया जाना प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों का उल्लंघन है। ऐसा न्याय वास्तविक न्याय नहीं कहा जाता। मामला चाहे सिविल हो या आपराधिक, दोनों पक्षों को सुनवाई का पर्याप्त अवसर प्रदान करते हुए ही उसका निस्तारण किया जाना चाहिये।

    प्रश्न तब पैदा होता जब अभियुक्त व्यक्ति निर्धन होता है। उसके पास अधिवक्ता की नियुक्ति के लिए पर्याप्त साधन नहीं होते। ऐसे व्यक्तियों के लिए निःशुल्क विधिक सहायता का प्रावधान किया गया है।

    संविधान के अनुच्छेद 39 (क) में यह प्रावधान किया गया है,

    "राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह विशिष्टतया यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक या किसी अन्य नियोग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाये, उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।"

    इस प्रकार स्पष्ट है कि संविधान का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को न्याय के समान अवसर उपलब्ध कराना है।

    संविधान की यह भावना है कि कोई भी नागरिक मात्र-

    (i) अर्थाभाव अथवा

    (ii) अन्य किसी नियोग्यता;

    के कारण न्याय से वंचित न रह जाये।

    दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 304 में भी यह कहा गया है,

    जहाँ सेशन न्यायालय के समक्ष किसी विचारण में अभियुक्त का प्रतिनिधित्व किसी प्लीडर द्वारा नहीं किया जाता है और जहाँ न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त के पास किसी प्लीडर की नियुक्ति करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है, वहाँ न्यायालय उसकी प्रतिरक्षा के लिए राज्य के व्यय पर प्लीडर करायेगा।

    इस प्रकार दण्ड प्रक्रिया संहिता में भी निर्धन अभियुक्त के लिए निःशुल्क विधिक सहायता का प्रावधान किया गया है।

    दिलावर सिंह बनाम स्टेट ऑफ दिल्ली मामले में आपराधिक विचारण के दौरान अभियुक्त को ओर से पैरवी करने वाला कोई अधिवक्ता नहीं था। न्यायालय द्वारा उसे न्याय मित्र की सेवायें उपलब्ध कराई गई।

    वस्तुतः निर्धन व्यक्ति को निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराना राज्य का कर्तव्य है, अनुकम्पा नहीं।

    मोहम्मद हुसैन उर्फ जुल्फिकार बनाम स्टेट के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि- गंभीर आरोपों में अभियुक्त को विधिक सहायता उपलब्ध कराये बिना मृत्यु दण्ड दिया जाना विधि द्वारा विहित प्रक्रिया की अवधारणा का उल्लंघन है। ऐसे अभियुक्त के लिए अधिवक्ता की नियुक्ति किया जाना आज्ञापक है।

    सुकदास बनाम यूनियन टेरीटरी ऑफ अरुणाचल प्रदेश तथा 'हुसैन आरा खातून बनाम स्टेट ऑफ बिहार के मामलों में निःशुल्क विधिक सहायता को निर्धन व्यक्ति का मूल अधिकार माना गया है। निःशुल्क विधिक सहायता के लिए पात्र व्यक्ति- निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने के योग्य व्यक्तियों के बारे में प्रावधान विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 12 एवं 13 में किया गया है।

    निम्नांकित व्यक्ति निःशुल्क विधिक सहायता के लिए आवेदन कर सकते हैं-

    (1) अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति का सदस्य

    (2) मानव व्यापार अथवा संविधान के अनुच्छेद 23 के अधीन निर्देशित बेगार से पीड़ित व्यक्ति;

    (3) कोई स्त्री अथवा बालकः

    (4) निम्नांकित से पीड़ित व्यक्ति

    (क) लोक उपद्रव;

    (ख) जातिगत हिंसा;

    (ग) जातिगत अत्याचार;

    (घ) बाढ़

    (ङ) सूखा

    (च) भूकम्प एवं

    (छ) औद्योगिक उपद्रव

    (5) औद्योगिक कर्मकार

    (6) अभिरक्षा में होने वाला व्यक्ति; तथा

    (7) समुचित सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित आय से कम आय अर्जित करने वाला व्यक्ति ।

    अंतिम श्रेणी में ऐसे निर्धन व्यक्ति अथवा अभियुक्त आते हैं जो साधनविहीन है अर्थात् जिनके पास अधिवक्ता की नियुक्ति के लिए पर्याप्त साधन नहीं है।

    आवेदन

    निःशुल्क विधिक सहायता के लिए सामान्यतः उस न्यायालय में आवेदन करना होता है जिसमें प्रकरण विचाराधीन है।

    विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम के अन्तर्गत निम्नांकित समितियों का गठन किया गया है जहाँ से विधिक सहायता उपलब्ध हो सकती है-

    (क) उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति;

    (ख) उच्च न्यायालय विधिक सेवा समितिः

    (ग) जिला विधिक सेवा प्राधिकरण

    (घ) तालुका विधिक सेवा समिति आदि।

    इस सम्बन्ध और अधिक जानकारी निम्नांकित से प्राप्त की जा सकती है-

    (i) राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण;

    (ii) राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण तथा

    (iii) जिला विधिक सेवा प्राधिकरण

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