चुनावी मतदाता सूची में अमेंडमेंट करने का कानून
Shadab Salim
29 Aug 2025 9:50 AM IST

Representation of the People Act, 1950) का मुख्य उद्देश्य संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण, मतदाता सूचियों की तैयारी और चुनावों का संचालन सुनिश्चित करना है। अधिनियम की विभिन्न धाराएं मतदाता पंजीकरण, नामांकन, चुनावी अपराध और अन्य संबंधित मुद्दों को कवर करती हैं। इस एक्ट की धारा 22 मतदाता पंजीकरण अधिकारी को मतदाता सूची में गलतियों को सुधारने, नामों को स्थानांतरित करने या हटाने की शक्ति प्रदान करती है। यह धारा लोकतंत्र की शुद्धता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि सटीक मतदाता सूची ही निष्पक्ष चुनाव की आधारशिला होती है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 22 का शीर्षक "मतदाता सूचियों में प्रविष्टियों का संशोधन" Correction of entries in electoral rolls है। यह धारा मतदाता पंजीकरण अधिकारी को मतदाता सूची में आवश्यक बदलाव करने की अनुमति देती है।
"यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदाता पंजीकरण अधिकारी, उसके पास किए गए आवेदन पर या स्वयं अपनी पहल पर, ऐसी जांच के बाद जो वह उचित समझे, संतुष्ट हो कि निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में कोई प्रविष्टि—
(a) किसी विशेष में त्रुटिपूर्ण या दोषपूर्ण है; या
(b) संबंधित व्यक्ति द्वारा अपने साधारण निवास स्थान में परिवर्तन के आधार पर सूची में किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित की जानी चाहिए; या
(c) संबंधित व्यक्ति के मृत होने या निर्वाचन क्षेत्र में साधारण निवासी न रहने या अन्यथा उस सूची में पंजीकृत होने का हकदार न होने के आधार पर हटाई जानी चाहिए,
तो मतदाता पंजीकरण अधिकारी, निर्वाचन आयोग द्वारा इस संबंध में दिए गए सामान्य या विशेष निर्देशों के अधीन, उस प्रविष्टि को संशोधित, स्थानांतरित या हटा सकता है:
परंतु खंड (a) या खंड (b) के अंतर्गत किसी आधार पर या खंड (c) के अंतर्गत इस आधार पर कि संबंधित व्यक्ति निर्वाचन क्षेत्र में साधारण निवासी नहीं रहा है या वह उस निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में पंजीकृत होने का अन्यथा हकदार नहीं है, कोई कार्रवाई करने से पहले मतदाता पंजीकरण अधिकारी संबंधित व्यक्ति को प्रस्तावित कार्रवाई के संबंध में सुने जाने का उचित अवसर देगा।"
यह धारा तीन मुख्य प्रकार के संशोधनों की अनुमति देती है: (1) त्रुटियों का सुधार, जैसे नाम, पता या आयु में गलती; (2) नाम का स्थानांतरण, यदि व्यक्ति ने निर्वाचन क्षेत्र के अंदर अपना निवास बदल लिया हो; और (3) नाम का विलोपन, यदि व्यक्ति मृत हो, निवास बदल चुका हो या पंजीकरण के योग्य न हो।
धारा 22 का उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन और सटीक रखना है। निर्वाचन आयोग इस धारा के माध्यम से सुनिश्चित करता है कि फर्जी या अनुपस्थित मतदाता चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित न करें।
धारा 22 भारतीय चुनावी प्रणाली की अखंडता बनाए रखने में केंद्रीय भूमिका निभाती है। संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार, वयस्क मताधिकार का अधिकार सभी नागरिकों को है, लेकिन यह सटीक पंजीकरण पर निर्भर करता है। धारा 22 मतदाता सूचियों की शुद्धता सुनिश्चित करके फर्जी वोटिंग को रोकती है और वास्तविक मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा करती है।
इस धारा का प्रभाव चुनावी चुनौतियों में स्पष्ट होता है। जैसे यदि किसी मतदाता का नाम गलत तरीके से हटा दिया जाए, तो वह चुनाव में भाग नहीं ले सकता, जो उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। निर्वाचन आयोग ने इस धारा के तहत दिशानिर्देश जारी किए हैं, जैसे फॉर्म 7 का उपयोग नाम हटाने के लिए। हाल के वर्षों में, आधार कार्ड से लिंकिंग और डिजिटल सत्यापन ने इस प्रक्रिया को और मजबूत किया है।
हालांकि, चुनौतियां भी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी, प्रशासनिक देरी और राजनीतिक हस्तक्षेप धारा 22 के प्रभावी क्रियान्वयन को बाधित करते हैं। COVID-19 महामारी के दौरान, कई नाम हटाए गए, जिसने विवाद पैदा किया। कुल मिलाकर, यह धारा चुनावी लोकतंत्र को मजबूत करती है लेकिन न्यायिक पर्यवेक्षण की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 22 की व्याख्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक प्रमुख मामला लोक प्रहरी बनाम भारत संघ है, जहां कोर्ट ने मतदाता सूचियों से 'D' (Doubtful) श्रेणी के मतदाताओं के नाम हटाने पर चर्चा की। कोर्ट ने कहा कि धारा 22 के तहत विलोपन केवल उचित जांच और सुनवाई के बाद ही किया जा सकता है, अन्यथा यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है। इस निर्णय ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए कि मनमानी कार्रवाई न की जाए।
एक अन्य मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का कुंदन सिंह बनाम काबुल सिंह है, जहां कोर्ट ने माना कि मतदाता सूची में नाम अवैध रूप से शामिल होने पर भी, यदि सूची अंतिम है, तो वोट वैध माना जाएगा, लेकिन धारा 22 के तहत संशोधन संभव है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के ईपी नंबर 09/2014 में कोर्ट ने धारा 22 के तहत नाम शामिल करने की व्याख्या की और कहा कि सिविल कोर्ट में सूची को चुनौती नहीं दी जा सकती, लेकिन संशोधन केवल निर्वाचन प्रक्रिया के माध्यम से हो। इन निर्णयों ने धारा 22 को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से जोड़ा।
बैद्यनाथ पांजीयार बनाम सीताराम महतो में कोर्ट ने चुनावी चुनौती पर विचार किया, जहां कुछ वोटों की वैधता पर सवाल उठा क्योंकि मतदाताओं के नाम सूची में अनुचित थे। कोर्ट ने माना कि धारा 22 के तहत संशोधन चुनाव से पहले किया जाना चाहिए, अन्यथा वोट वैध रहेंगे। यह निर्णय मतदाता सूची की अंतिमता पर जोर देता है।
एक अन्य ऐतिहासिक मामला रामपकवी रायप्पा बेलागली बनाम बी.डी. जट्टी है, जहां कोर्ट ने नाम शामिल करने की प्रक्रिया पर चर्चा की। कोर्ट ने कहा कि धारा 22 के तहत पंजीकरण अधिकारी को विवेकपूर्ण जांच करनी चाहिए, और साधारण निवास का निर्धारण तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। पी.टी. राजन बनाम टी.पी.एम. साहिर में हालांकि मुख्य रूप से धारा 23 पर, कोर्ट ने धारा 22 के संदर्भ में कहा कि समय सीमा के बाद संशोधन अनिवार्य नहीं है, लेकिन न्यायिक हस्तक्षेप संभव है।

