जानिए स्टाम्प पेपर क्या होता है और क्या है उससे संबंधित कानून

Shadab Salim

19 Jan 2022 4:30 AM GMT

  • जानिए स्टाम्प पेपर क्या होता है और क्या है उससे संबंधित कानून

    हर व्यक्ति को कभी न कभी किसी न किसी काम को लेकर स्टाम्प पेपर की जरूरत लगती रहती है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे कभी स्टाम्प पेपर से कोई वास्ता न रहा हो। शपथ पत्र से लेकर सेल डीड तक स्टाम्प पेपर की आवश्यकता होती है।

    क्यों लगते हैं स्टाम्प

    स्टाम्प पेपर राजस्व विभाग द्वारा जारी किए जाते हैं। यह स्टाम्प पेपर एक नोट की तरह कार्य करते हैं।हालांकि इन्हें नोट की तरह किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित नहीं किया जाता है। इसका केवल एक वेंडर होता है जो लोगों को स्टाम्प जारी करता है और जिस व्यक्ति को स्टाम्प जारी किया गया है केवल वही व्यक्ति उस काम का उपयोग कर सकता है।

    इसकी अलग-अलग कीमत होती है छोटे से लेकर बड़े तक सभी स्टाम्प उपलब्ध होते हैं। एक रुपए के राजस्व टिकट को भी स्टाम्प ही कहा जाता है उसकी भी हैसियत इसी प्रकार होती है जिस प्रकार एक ₹50 के स्टाम्प की होती है।

    स्टाम्प पेपर को रेगुलेट करने के लिए एक अधिनियम बनाया गया है जिसे भारतीय स्टाम्प अधिनियम कहा जाता है। यह अधिनियम स्टाम्प से संबंधित सभी प्रक्रिया को निर्धारित करता है।

    जब भी हम किसी भी प्रकार का कोई हस्तांतरण करते हैं उस हस्तांतरण पर हमें राजस्व विभाग को एक राशि अदा करनी होती है। यह राजस्व होता है जिसकी वसूली सरकार हमसे करती है। राजस्व प्राचीन काल से ही चलती आ रही है एक व्यवस्था है जिसमें राजा द्वारा जनता से कुछ राशि वसूली जाती है।

    जैसे कि जब भी कोई दो व्यक्ति आपस में किसी भी प्रकार का लेनदेन करते हैं तब उसमें सरकार का भी एक हिस्सा होता है उस हिस्से को हम टैक्स बोल सकते हैं। किसी अचल संपत्ति को खरीदते समय या उससे संबंधित कोई भी हस्तांतरण करते हुए हमें सरकार को कोई न कोई धनराशि अदा करनी होती है।

    जैसे किसी संपत्ति को जब खरीदा जाता है तब उसकी रजिस्ट्री की आवश्यकता होती है तो ऐसी रजिस्ट्री के लिए एक निर्धारित राशि के स्टाम्प की आवश्यकता होती है। मान लीजिए कि कोई मकान ₹100000 में किसी व्यक्ति ने खरीदा है यहां पर भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम के अंतर्गत यह कहा गया है कि अचल संपत्ति ₹100 से अधिक की है उसके रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता है।

    ऐसी संपत्ति को रजिस्टर्ड करवाना होगा। इसे रजिस्टर्ड करवाने के लिए एक सेल डीड तैयार करनी होगी। रजिस्ट्रीकरण एक्ट के अंतर्गत ही यह भी बताया गया है कि कितने रुपए के स्टाम्प उस सेल डीड पर लगाना होंगे।

    संपत्ति की एक कीमत लगाई जाती है जिसे सरकारी गाइडलाइन कहा जाता है। उसके हिसाब से ही स्टाम्प भी अदा करने होते हैं। एक प्रतिशत सरकार द्वारा बता दिया गया है जिसमें स्टाम्प की राशि अदा करनी होती है। ₹100000 पर अगर 10% के स्टाम्प चाहिए इसका मतलब यह है कि अगर किसी व्यक्ति ने ₹100000 की संपत्ति को खरीदा है तब उसे ₹10000 के स्टाम्प खरीदने होंगे।

    किसी भी प्रकार का कोई भी रिश्ता हस्तांतरण हो चाहे विक्रय लेख हो, पट्टा हो, किरायानामा हो, वसीयत हो, पॉवर ऑफ अटॉर्नी हो, कोई शपथ पत्र हो जो किसी विभागीय कार्यालय में दिया जा रहा है, कोई दान पत्र हो, किसी कंपनी से संबंधित उसका संविधान हो, ऐसी कोई भी चीज हो उसमें स्टाम्प लगाने की आवश्यकता होती है।

    और ऐसा स्टाम्प अपनी मर्जी के हिसाब से नहीं लगाया जा सकता बल्कि रजिस्ट्रीकरण अधिनियम के अंतर्गत जितने रुपए के स्टाम्प लगाने को कहा गया है उतने ही स्टाम्प लगाना होते हैं, उससे कम स्टाम्प लगाने पर दस्तावेज को वैध नहीं माना जाता है।

    कहां से खरीदें स्टाम्प

    हम स्टाम्प को किसी भी स्थान या किसी भी व्यक्ति से नहीं खरीद सकते बल्कि स्टाम्प एक रजिस्टर्ड स्टाम्प वेंडर से खरीदने चाहिए। ऐसे स्टाम्प वेंडर को सरकार एक निश्चित समय अवधि के लिए स्टाम्प बेचने का कार्यभार सौंप डेट है उसे ऐसा स्टाम्प बेचने के लिए सरकार से कमीशन प्राप्त होता है।

    उस स्टाम्प बेचने वाले की यह जिम्मेदारी होती है कि जितने भी लोगों को जिस भी कार्य के लिए उसने जितने भी स्टाम्प बेचे हैं उन सभी की प्रविष्टियां अपने रजिस्टर में रखेगा और जब भी न्यायालय के समक्ष उन्हें प्रस्तुत करने को कहा जाएगा तब उन रजिस्टर को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेगा।

    एक स्टाम्प वेंडर बगैर किसी पहचान के स्टाम्प नहीं बेचता है बल्कि स्टाम्प खरीदने के लिए अपने पहचान के दस्तावेज प्रस्तुत करना होते हैं। स्टाम्प वेंडर के रजिस्टर में हस्ताक्षर करना होते हैं और स्टाम्प क्यों खरीदा जा रहा है इसका कारण भी बताना होता है।

    कितने का होता है स्टाम्प

    स्टाम्प अनेक राशियों के होते हैं। ₹1 से लेकर ₹1000 तक का स्टाम्प और उससे भी अधिक राशि के स्टाम्प वेंडर के पास उपलब्ध होते हैं। जितने स्टाम्प लगाए जाने की आवश्यकता किसी हस्तांतरण में होती है उतने के स्टाम्प खरीदना होते हैं। यह बात ध्यान देना चाहिए कि जितने रुपए स्टाम्प पर लिखे हुए हैं स्टाम्प वेंडर को केवल उतने ही रुपए देना चाहिए।

    जैसे कि यदि कोई स्टाम्प ₹100 का है तब स्टाम्प वेंडर को केवल ₹100 लेने का ही अधिकार है। पर आमतौर पर ऐसा देखने को नहीं मिलता है ₹100 के स्टाम्प ₹120 या ₹200 तक स्टाम्प वेंडर बेच देते हैं जबकि यह तरीका बिल्कुल ठीक नहीं है और यह एक प्रकार की लूट है।

    सरकार स्टाम्प वेंडर को स्टाम्प बेचने के लिए बैठाती है जिस स्टाम्प को व्यक्ति खरीदता है उसमें वेंडर का कमीशन भी शामिल होता है उसे अलग से कोई राशि नहीं देना पड़ती है। पर यहां पर वेंडर धोखाधड़ी करता है और किसी व्यक्ति को स्टाम्प उसमें अंकित राशि से अधिक का देता है।

    पुरानी दिनांक का स्टाम्प

    कभी-कभी लोग अपने हस्तांतरण को वैध बनाने के उद्देश्य से पुरानी दिनांक का कोई स्टाम्प खरीद लेते हैं जबकि यह सीधे-सीधे कूटरचना है। ऐसी कूटरचना के लिए आजीवन कारावास तक दंड हो सकता है। इसलिए कभी भी पुरानी दिनांक का स्टाम्प नहीं खरीदना चाहिए और किसी भी स्टाम्प वेंडर को कोई भी पुरानी दिनांक का स्टाम्प नहीं बेचना चाहिए।

    स्टाम्प केवल वर्तमान दिनांक का ही बेचा जा सकता है न अगली दिनांक का बेचा जा सकता है और न ही पिछली दिनांक का बेचा जा सकता है। जिस दिन व्यक्ति स्टाम्प खरीदने आया है स्टाम्प पर केवल उसी दिन की एंट्री की जाएगी कोई भी अगली या पिछली दिनांक की इंट्री कतई नहीं की जाती है।

    नकली स्टाम्प बनाने के लिए दंड

    सरकार द्वारा बनाए जाने वाले स्टाम्प के कोई भी नकल बनाना एक प्रकार से किसी नोट की नकल बनाने जैसा ही है। इसके लिए भारतीय दंड सहिंता की धारा 255 में प्रावधान किए गए हैं। जहां नकली स्टाम्प बनाने पर दंड का उल्लेख किया गया है, यह संगीन जुर्म है जहां व्यक्ति आजीवन कारावास तक दंडित हो सकता है।

    गैर न्यायिक स्टाम्प

    हम देखते हैं कि अधिकांश स्थान पर गैर न्यायिक स्टाम्प लिखा होता है। बहुत बार यह प्रश्न उठता है कि यह गैर न्यायिक स्टाम्प क्या होते हैं तो यहां बताया जा रहा है कि स्टाम्प के दो प्रकार होते हैं। एक न्यायिक स्टाम्प और एक गैर न्यायिक स्टाम्प। किसी भी सिविल मुकदमे को न्यायालय में लेकर जाने पर उसमें एक कोर्ट फीस अदा करनी होती है।

    ऐसी कोर्ट फीस कोर्ट फीस अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित किए गए प्रतिशत के अनुसार अदा करनी होती है। उस कोर्ट फीस में लगने वाले स्टाम्प को न्यायिक स्टाम्प कहा जाता है। इसलिए एक ऐसा स्टाम्प भी होता है जिस पर विशेष रूप से यह टीप डालनी होती है कि यह गैर न्यायिक स्टाम्प है अर्थात इस स्टाम्प को किसी भी कोर्ट फीस के मामले में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    इस स्टाम्प को तो कोई कोई हस्तांतरण के उद्देश्य से बनाए गए लेख में इस्तेमाल किया जा सकता है या फिर किसी शपथ पत्र में इस्तेमाल किया जा सकता है। पर किसी न्यायालय में इसे कोर्ट फीस के रूप में नहीं दिया जा सकता। आमतौर पर लोगों को एक गैर न्यायिक स्टाम्प की ही आवश्यकता होती है क्योंकि कोर्ट फीस इत्यादि भरने का कार्य तो वकीलगण करते हैं।

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