जानिए गर्भपात और लिंग चयन निषेध से संबंधित कानून

Shadab Salim

6 March 2021 4:15 AM GMT

  • जानिए गर्भपात और लिंग चयन निषेध से संबंधित कानून

    भारत की संसद द्वारा गर्भपात और लिंग चयन निषेध से संबंधित विस्तृत अधिनियमों का निर्माण किया गया है। गर्भ का समापन तथा भ्रूण लिंग चयन निषेध अधिनियम, दो प्रमुख अधिनियम लिंग चयन निषेध और गर्भपात से संबंधित है। इस आलेख में इन दोनों अधिनियमों का अध्ययन किया जा रहा है।

    एमटीपी एक्ट 1971 (गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम)

    भारत की संसद द्वारा बनाया गया यह अधिनियम गर्भ के समापन से संबंधित है। गर्भ का समापन एक ऐसा कार्य है जिसे गर्भपात कहा जाता है। गर्भपात का अर्थ होता है गर्भधारण की अवधि पूर्ण होने के पूर्व ही किसी समय अविकसित बच्चे को अथवा भ्रूण को माता के गर्भ से बाहर निकाल देना या मां के गर्भाशय से अलग कर देना।

    किसी भी बच्चे को धरती पर जन्म लेने से रोका नहीं जा सकता तथा जन्म लेना भी एक प्रकार का मौलिक अधिकार है परंतु कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिनमें इस प्रकार से किसी बच्चे का जन्म लेना हानिकारक होता है। उन परिस्थितियों को देखते हुए एमपीटी एक्ट 1971 का निर्माण किया गया है। भारतीय दंड संहिता की धाराएं 312 से लेकर 314 तक गर्भपात से संबंधित अपराधों का उल्लेख करती हैं।

    महिला की सहमति के विरुद्ध गर्भपात दंडनीय है। महिला की सहमति से महिला के जीवन बचाने हेतु किए गए गर्भपात दंडनीय नहीं है। गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 के अंतर्गत भी महिला के जीवन की रक्षा हेतु प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इस अधिनियम का निर्माण कुछ गर्भो का समापन पंजीकृत चिकित्सक द्वारा किए जाने और उससे संबंधित विषयों के लिए प्रावधान करने के उद्देश्य से किया गया है। यह अधिनियम 1 अप्रैल 1972 से लागू हुआ। इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत पर प्रभावी है।

    इस अधिनियम के परिभाषा खंड के अंतर्गत अभिभावक, मानसिक रुग्ण व्यक्ति, अल्पवयस्क, पंजीकृत चिकित्सक शब्दों की परिभाषाएं प्रस्तुत की गई है क्योंकि यह अधिनियम का विस्तार इन प्रमुख शब्दों के आसपास ही होता है।

    अभिभावक

    एमपीटी एक्ट 1971 अंतर्गत धारा दो (क) के अनुसार अभिभावक का अर्थ वहव्यक्ति है जो अल्पवयस्क और मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति की देखभाल करता है अर्थात कोई व्यक्ति मानसिक रूप से ठीक नहीं है उस व्यक्ति की देखभाल करने वाला व्यक्ति अभिभावक कहलाता है और अल्पवयस्क व्यक्ति की देखभाल करने वाला व्यक्ति भी अभिभावक कहलाता है।

    धारा 2 के अनुसार अल्पवयस्क व्यक्ति की परिभाषा भी प्रस्तुत की गई है जिसके अनुसार यह वह व्यक्ति होता है जिसने भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875 के अनुसार वयस्कता प्राप्त नहीं की है अर्थात अभी 18 वर्ष का नहीं हुआ है। मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति उसे कहा गया है जिसे मानसिक असंतुलन के कारण उपचार की आवश्यकता हो ऐसी मानसिक कमजोरी मानसिक से दिवालियापन नहीं होना चाहिए।

    पंजीकृत चिकित्सक

    इस अधिनियम की धारा 2 (घ) पंजीकृत चिकित्सक का अर्थ है ऐसा चिकित्सक जो इंडियन मेडिकल काउंसिल अधिनियम 1956 की धारा दो (ज) के अंतर्गत अनुमन्य किसी योग्यता का धारक हो जिसका नाम स्टेट मेडिकल रजिस्टर में लिखित हो तथा वह स्त्री रोग एवं प्रसूति विज्ञान संबंधी ऐसे अनुभव या परीक्षण का धारक हो जैसा कि इस अधिनियम द्वारा निर्धारित किया जाए या विनियमित किया जाए।

    कब गर्व का समापन पंजीकृत चिकित्सक द्वारा किया जा सकता है

    जैसा कि इस आलेख के पूर्व में उल्लेख किया गया है गर्भ का समापन भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 312 से लेकर 314 तक में अपराधों का भी उल्लेख करता है। यह प्रावधान कुछ परिस्थितियों में लागू नहीं होते हैं। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप किसी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा समापन किए जाने पर उसे दोषी नहीं कहा जाएगा अर्थात गर्भ का समापन किया जा सकता है पर इस अधिनियम के बनाए गए नियमों के अधीन ही किया जा सकता है।

    इस अधिनियम की धारा 3 की उपधारा 2 में उन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जिनमें किसी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भ का समापन किया जा सकता है।

    यह परिस्थितियां निम्नलिखित हैं-

    जहां गर्भ की अवधि 12 सप्ताह से अधिक नहीं है तथा एक पंजीकृत चिकित्सक के अनुसार उसके मत में।

    यदि गर्भ को विकसित होने दिया गया तो यह गर्भधारण करने वाली स्त्री के जीवन और स्वास्थ्य के लिए घातक होगा, उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को घोर उपहति कारित करेगा।

    इस बात का जोखिम है यदि बच्चे का जन्म होता है वह ऐसे शारीरिक या मानसिक असमानता से प्रभावित होगा कि वह उसे गंभीर रूप से विकलांग बना देगी।

    जहां गर्भ की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है परंतु 20 सप्ताह से कम है वहां कम से कम 2 पंजीकृत चिकित्सकों का उपरोक्त परस्थितियों में वर्णित मत होने पर ही गर्भ का समापन संभव है। धारा 3 के उदाहरण 3 के अनुसार यह सुनिश्चित करने हेतु की क्या गर्भ को विकसित होते रहने देना गर्भ धारण किए महिला के लिए धारा 3 के उपधारा 2 के अनुसार स्वास्थ्य के लिए घातक होगा, महिला की वास्तविक या युक्तियुक्त रूप से अकल्पनीय परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा।

    इस अधिनियम की धारा 3 के उपधारा 2 से संलग्न स्पष्टीकरण एक और स्पष्टीकरण दो में उन दो परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जबकि गर्भ को विकसित होते रहने देना गर्भधारक महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक रूप से हानिकारक होने की परिकल्पना की जाएगी।

    स्पष्टीकरण-1

    बलात्कार के उपरांत गर्भधारण

    गर्भधारक महिला जब यह आरोपित हो कि गर्भ बलात्कार के उपरांत अस्तित्व में आया है तो ऐसे गर्भ से उत्पन्न संतान या परिवेदना गर्भधारक महिला को मानसिक रूप से घातक हानि प्रदान करें इसकी पूर्वधारणा की जाए।

    स्पष्टीकरण-2

    संतानों की संख्या सीमित रखने हेतु अपनाए गए उपायों के विफल होने पर धारण होने वाले गर्भ-

    जब किसी विवाहित महिला या उसके पति द्वारा परिवार सीमित रखने हेतु अपनाए गए उपायों के विफल हो जाने के कारण अनचाहा गर्भ धारण हो जाए तो ऐसे गर्भधारण से उत्पन्न संतान जब परिवेदना गर्भधारक महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक रूप से हानिकारक है। इसकी पूर्व कल्पना की जाए। धारा 3 में वर्णित प्रावधान धारा 3 की उपधारा 4 में वर्णित प्रावधानों के अधीन है। अर्थात इन प्रावधानों से नियंत्रित होते हुए और इनके अधीन रहते हुए गर्भ का समापन विधि द्वारा मान्य नहीं है जब तक शर्ते पूरी न हो।

    इस अधिनियम की धारा 4 के अनुसार ऐसी महिला के गर्भ का समापन उसके अभिभावक की लिखित सहमति बिना संभव नहीं है जो कि 18 वर्ष से अल्प आयु की है या 18 वर्ष की आयु की तो है किंतु मानसिक रूप से कमजोर है।

    गर्व का समापन कहां होगा

    इस अधिनियम की धारा 4 गर्भ के समापन के स्थानों का उल्लेख करती है। गर्भ के चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 की धारा 4 के अनुसार किसी भी गर्व का समापन-

    केंद्र या राज्य सरकार द्वारा स्थापित संचालित चिकित्सालय में हो सकता है।

    इस काम के लिए अल्पकाल हेतु कोई स्थान जो राज्य या केंद्र सरकार या जिला स्तरीय समिति जिसका गठन उस सरकार द्वारा मुख्य चिकित्सा अधिकारी या जिला स्वास्थ्य अधिकारी की अध्यक्षता में किया गया है के द्वारा अनुमोदन प्राप्त हो जिला स्तरीय स्वास्थ्य अधिकारी की अध्यक्षता वाली उपरोक्त समिति में न्यूनतम जनसंख्या 3 अधिकतम सदस्य संख्या 5 होगी। इसमें अध्यक्ष भी सम्मिलित होगा इन सदस्यों को सरकार द्वारा नामित किया जाएगा।

    इस अधिनियम की धारा 3 और 4 उन परिस्थितियों में लागू नहीं होती है जब जीवन के लिए घोर संकट विद्यमान हो। गर्भपात किया जाना नितांत आवश्यक हो ऐसी स्थिति में कोई भी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भ का समापन किया जा सकता है पर यहां भी शर्त यही है कि यदि गर्भ को विकसित होने दिया गया हो तो यह गर्भधारण करने वाली स्त्री के जीवन और स्वास्थ्य के लिए घातक होगा और उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को घोर उपहति कारित करेगा इस की प्रबल संभावना है।

    इस अधिनियम की धारा 5 स्पष्ट प्रावधान करती है की इन नियमों का पालन आवश्यक नहीं है यदि गर्भ का तत्काल समापन किया जाना गर्भवती महिला की जीवन रक्षा हेतु आवश्यक हो।

    विजय शर्मा और श्रीमती कीर्ति बनाम भारत संघ 2007 के मामले में कहा गया है महिला को गंभीर मानसिक चोट पहुंचती है। जबकि एमटीपी अधिनियम गर्भपात की अनुमति देता है अगर बच्चे की कल्पना की जाती है। प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता-पीड़ित विफल हो गया है, एमटीपी अधिनियम की धारा 3, 4 और 5 के प्रावधान और धारा 3 के लिए स्पष्टीकरण 1 पर जोर दिया गया है।

    अभिलाषा गर्ग के मामले में याचिकाकर्ताओं ने 2010 के सीएम नंबर 1880 को चुनौती दी । 20 मार्च 2002 को एमटीपी अधिनियम के तहत अनुमोदन का प्रमाण पत्र और चिकित्सा के लिए विधिवत प्रमाणित किया गया था।

    डॉ राज बोकारिया बनाम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य 2010 के मामले में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 के अनुसार एक उन्नत चरण में इस तरह की प्रक्रिया को पूरा करने के खिलाफ नैतिकता समिति ने MTP अधिनियम की धारा 5 की अनदेखी की, जिसने इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने की अनुमति दी थी।

    किसी भी गैर पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भ का समापन किया जाता है तो इस प्रकार के समापन पर इस अधिनियम की धारा 5 की उपधारा 2 के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 312 हो 314 के प्रावधानों से प्रभावित रहते हुए किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा गर्व का समापन जो कि पंजीकृत चिकित्सक नहीं है एक अपराध होगा तथा ऐसे सश्रम कारावास के दंडनीय होगा जिसकी अवधि 2 वर्ष से कम नहीं होगी परंतु जिसकी अवधि 7 वर्षों तक की हो सकेगी। भारतीय दंड संहिता के दंड के प्रावधान इस सीमा तक संशोधित माने जाएंगे।

    इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों के अतिरिक्त केंद्र सरकार अधिनियम की धारा 6 में प्रदत्त शक्ति का प्रयोग कर कर राजकीय राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू कराने के उद्देश्य से नियम बनाने की शक्ति रखती है तथा इससे संबंधित विनियम बनाने की शक्ति राज्य सरकारों को धारा 7 के अंतर्गत दी गई है। कुछ नियम राज्य सरकार द्वारा भी निर्धारित किए जा सकते हैं।

    पंजीकृत चिकित्सक के सदभावनापूर्वक निर्णय को सुरक्षा प्रदान करना

    गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 की धारा 8 में पंजीकृत चिकित्सक द्वारा सद्भावना से किए गए निर्णय और कार्यों के विरुद्ध मुकदमा लाए जाने या किसी अन्य विधिक कार्रवाई से उन्मुक्ति प्रदान की गई है। अर्थात यदि कोई कार्य किसी चिकित्सक द्वारा सद्भावना से किया गया था तो उसके विरुद्ध मुकदमा नहीं लाया जा सकता। इस धारा के अनुसार किसी भी पंजीकृत चिकित्सक द्वारा इस अधिनियम के अंतर्गत सद्भावनापूर्ण कार्य किए गए यह किए जाने के प्रयास के परिणामस्वरूप होने वाली क्षति के लिए कोई भी वाद या विधिक प्रक्रिया मान्य नहीं होगी।

    गर्भधारण पूर्व निदान कारक तकनीक, भ्रूण लिंग चयन विशेष निषेध पी० एन० डी० पी० टी० अधिनियम 1994-

    स्त्री दमन हेतु समाज में लिंग चयन की तकनीक विकसित हो गई तथा लिंग का चयन करने के पश्चात पुत्री मालूम होने पर गर्भपात कर दिया जाता था। यह तकनीक मनुष्यता पर संकट के रूप में सामने आ गई है। रूढ़िवादी भारतीय सोच में पुरुष संतान का मोह तथा कन्या के लिए उपेक्षापूर्ण लिंग भेद का प्रचलन अत्यंत पुराना है। कन्याओं को पैदा होने के बाद भी मार दिया जाता था।

    वैज्ञानिक तकनीक ऐसी आई जिसने पैदा होने के पूर्व मारने के तरीके विकसित करें। पहले जन्म के बाद मारा जाता था अब जन्म के पहले ही मार देने की तकनीक विकसित हो। गर्भ में कन्या भ्रूण को ही समाप्त करने का चलन बढ़ गया था। यह बुराई खतरनाक हो गई थी। विधि निर्माता, समाज सुधारक और अन्य संगठनों द्वारा वैज्ञानिक तकनीक का दुरुपयोग भ्रूण परीक्षण हेतु न किया जा सके ऐसी मांग उठने लगी।

    इस मांग के परिणाम स्वरूप जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक दुरुपयोग का निषेध एवं विनियमन विधेयक 1991 लोकसभा में प्रस्तुत किया गया।

    संशोधनों के बाद यह अधिनियम गर्भधारण पूर्व एवं पूर्व निदान कारक तकनीक (भ्रूण लिंग चयन निषेध अधिनियम 1994) के नाम से जाना गया। इस अधिनियम के अंतर्गत कुल 34 धाराएं और 8 अध्याय शामिल किए गए।

    इस अधिनियम का उद्देश्य गर्भधारण से पूर्व या पश्चात लिंग का चयन निषेध करना तथा जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक का प्रयोग अनुवंशिक प्रदोष या गुणसूत्र समानता व्यक्ति पर कतिपय गर्भस्थ दोषपूर्ण विकास संतान, दोष संबंधी समस्याओं हेतु किए जाने पर इसका विनियमन करना और इस तकनीक का दुरुपयोग लिंग चयन हेतु करके कन्या भ्रूण हत्या करने अन्य संबंधित कार्यों यह विषय हेतु किए जाने पर निषेध लगाना है।

    उल्लेखनीय है कि यदि जन्म पूर्व निदान तकनीक का प्रयोग अनुमन्य उद्देश्य जिनमें अनुवांशिक असमानता, गुणसूत्र असमानता, गर्भस्थ दोषपूर्ण विकास, लिंग संबंध दोष का पता लगाना और उपचार करना है के लिए किया जाता है तो यह विधि सम्मत और अनुमन्य है।

    परंतु इस तकनीक का दुरुपयोग गर्भस्थ भ्रूण या गर्व का लिंग चयन लिंग निर्धारण हेतु किया जाए जिसका परिणाम कन्या भ्रूण हत्या हो सकता है तो ऐसे लिंग चयन हेतु वह गर्भ से पूर्व या पश्चात विरुद्ध है। गर्भधारण पूर्व और पश्चात जन्म पूर्व निदान तकनीक भ्रूण लिंग चयन निषेध अधिनियम 1994 के उद्देश्य निम्नलिखित है-

    गर्भधारण के पूर्व केवल जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक का दुरुपयोग भ्रूण के लिंग परीक्षण पर निषेध लगाना।

    अनुवांशिक परामर्श केंद्र अनुवांशिक प्रयोगशाला में तथा अनुवांशिक क्लिनिक्स द्वारा गर्भधारण पूर्व और जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक का दुरुपयोग निषेध तथा ऐसे संस्थानों का पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत किया जाना अनिवार्य है।

    अल्ट्रासाउंड मशीन इत्यादि की बिक्री पर रोक।

    जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक विनियमन।

    जन्म पूर्व निदान कारक तकनीकी उपयोग हेतु शर्तें।

    गर्भधारण महिला को उपरोक्त तकनीक के प्रयोग से होने वाले संभावित दुष्परिणामों की जानकारी देने और सहमति प्राप्त करने की बाध्यता का अनुपालन करने के उपरांत ही तकनीक का प्रयोग किया जाना।

    किसी भी अनुवांशिक परामर्श केंद्र, अनुवांशिक प्रयोगशाला, अनुवांशिक क्लीनिक द्वारा जन्म पूर्व एवं गर्भधारण पूर्व निदान कारक तकनीक का प्रयोग भ्रूण के लिंग की पहचान करने के लिए नहीं किया जाएगा। किसी भी व्यक्ति को गर्भधारण से पूर्व या पश्चात लिंग चयन का विकल्प चयन करने का अधिकार नहीं है। इसका उल्लेख इस अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत किया गया है।

    गर्भधारण से पूर्व तथा जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण तकनीक के उपयोग के प्रचार पर निषेध

    अधिनियम के अंतर्गत वर्णित निषेध की अवहेलना करने पर दंड का प्रावधान जिसका उल्लेख इस अधिनियम की धारा 27 और 28 में किया गया है।

    गर्भ पूर्व जन्म पूर्व निदान तकनीक का प्रयोग गर्भ पूर्व जन्म पूर्व लिंग चयन हेतु किसी भी व्यक्ति चिकित्सक स्त्री रोग विशेषज्ञ बाल रोग विशेषज्ञ अथवा अनुवांशिक सलाह केंद्र या अनुवांशिक प्रयोगशालाओं द्वारा किए जाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। उपरोक्त तकनीक के प्रयोग का विनियमितीकरण अधिनियम के प्रावधान के अनुरूप ही किए जाने का प्रावधान है।

    अल्ट्रासाउंड मशीन इत्यादि की बिक्री पर प्रतिबंध

    इस अधिनियम की धारा 3 बी के अनुसार अल्ट्रासाउंड मशीन का प्रयोग गर्भ पूर्व एवं जन्म पूर्व लिंग चयन हेतु किया जा सकता है अतः मशीन के दुरुपयोग को रोकने के उद्देश्य से संशोधन के माध्यम से नवीन धारा तीन भी जोड़ी गई। इस धारा द्वारा किसी अल्ट्रासाउंड यंत्र या भ्रूण के लिंग की पहचान करने वाले किसी उपकरण की बिक्री ऐसे अनुवांशिक सलाह केंद्र अनुवांशिक प्रयोगशाला अनुवांशिक चिकित्सालय या अन्य व्यक्ति को नहीं की जाएगी जो कि अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत नहीं है।

    लिंग चयन या लिंग परीक्षण पर निषेध

    इस अधिनियम की धारा 3 संशोधनों के उपरांत समावेशित नवीन धारा 3(1) के माध्यम से किसी महिला या पुरुष पर दोनों पर लिंग चयन परीक्षण या संबंधित विषय जैसे भ्रूणतरल या शुक्राणु और अंडाणु या युग्मक का एक दूसरे से पृथक्करण निषेध है।

    जन्म पूर्व निदान तकनीक के उपयोग हेतु कुछ शर्तें

    इस अधिनियम की धारा 4 की उपधारा 3 के अनुसार जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक का प्रयोग उक्त तकनीक का प्रयोग करने हेतु योग्य व्यक्ति द्वारा तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि जिन कारणों से इस तकनीक का उपयोग यह प्रयोग किया जाना है उन्हें लेखबद्ध न किया जाए और ऐसा करने हेतु वह व्यक्ति संतुष्ट न हो उपरोक्त परिस्थितियों में कुछ शर्तों का पालन करना होता है जो निम्नलिखित हैं-

    गर्भधारण महिला की आयु 35 वर्ष से अधिक है।

    गर्भधारण महिला का 2 बार लगातार गर्भपात हो चुका है।

    गर्भधारण महिला शक्ति निर्योग्यता कारक पदार्थ जैसे विकिरण संक्रमण या रसायन से अनावृत हो।

    गर्भधारण महिला या उसका पति पारिवारिक इतिहास रहा हो कि वह मंदबुद्धि या शारीरिक निर्योग्यता जैसे मानसिक मंदता या अन्य अनुवांशिक रोग से ग्रस्त हो।

    अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी किए जाने पर उसका विवरण रखना-

    इस अधिनियम की धारा 5 के अनुसार जन्म पूर्व निदान प्रक्रिया का प्रयोग तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक,

    सभी प्रमुख प्रभाव एवं पश्चातवृत्ति प्रभाव जो कि जन्म पूर्व निदान प्रक्रिया का प्रयोग किए जाने के कारण हो सकते हैं कि सूचना गर्भधारण महिला जिस पर प्रक्रिया प्रयोग की जाती है को दी जानी चाहिए और समझा दी जानी चाहिए।

    इस प्रक्रिया से गुजरने की उसकी लिखित सहमति जो कि उसके द्वारा समझी जाने वाली भाषा में समझाने के बाद प्राप्त की गई है आवश्यक है।

    उसके द्वारा प्रदत्त लिखित सहमति की एक प्रति का उस गर्भधारक महिला को प्रदान किया जाना।

    वह व्यक्ति जो अल्ट्रासोनोग्राफी प्रक्रिया का प्रयोग गर्भधारक महिला पर करेगा उसे चिकित्सालय से ऐसे प्रक्रिया का पूरा विवरण उस रीति में रखना होगा जैसा कि विहित किया जाए। इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि धारा 5 के प्रावधानों के उल्लंघन के तुल्य होगी।

    भ्रूण लिंग परीक्षण एवं भ्रूण के लिंग के बारे में घोषणा पर निषेध (धारा-6)

    इस अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत भ्रूण लिंग के बारे में सूचना देना निषिद्ध है। इसी प्रकार भ्रूण के लिंग का चयन भी निषिद्ध है। भ्रूण के लिंग के बारे में शब्दों इशारों या किसी भी अन्य प्रकार से गर्भधारक महिलाएं या उसके रिश्तेदारों या अन्य व्यक्तियों को सूचना देना निषिद्ध है।

    धारा 6 किसी भी अनुवांशिक परामर्श केंद्र अनुवांशिक प्रयोगशाला अनुवांशिक चिकित्सालय यह किसी व्यक्ति द्वारा जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक जिसमें अल्ट्रासोनोग्राफी सम्मिलित है के प्रयोग द्वारा भ्रूण के लिंग की जानकारी देने पर रोक लगाती है।

    किसी भी व्यक्ति को अधिकार नहीं है कि वह भ्रूण से जन्म से पूर्व गर्भ के उपरांत लिंग का चयन करें। कोई भी व्यक्ति जिस में गर्भधारक महिला के रिश्तेदार तथा पति भी शामिल है जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक के प्रयोग को विधि द्वारा अनुमन्य उद्देश्यों के अतिरिक्त अन्य उद्देश्य के लिए प्रोत्साहित नहीं करेगा।

    अधिनियम के अंतर्गत अपराध के लिए दंड

    गर्भधारण से पूर्व तथा जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण या लिंग चयन तकनीक के उपयोग के प्रचार पर निषेध।

    इस अधिनियम की धारा 22 के द्वारा गर्भधारण से पूर्व तथा जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण या लिंग चयन तकनीक के उपयोग के प्रचार पर निषेध का प्रावधान है। उपरोक्त प्रावधान की अवहेलना 3 वर्ष तक के कारावास व अर्थदंड जिसकी सीमा ₹10000 तक की हो सकेगी के साथ या बिना भी हो सकता है दंडनीय है।

    यदि अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया जाता है, प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध कारित होते समय कंपनी का भारसाधक हो यह कंपनी के व्यापार के प्रति उत्तरदाई हो तथा कंपनी के लाभ हानि का जिम्मेदार हो दोषी माना जाएगा तथा इस अपराध के लिए अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप दंडित किया जाएगा।

    परंतु ऐसा व्यक्ति दंड का पात्र नहीं होगा जिसने यह सिद्ध कर दिया हो कि अपराध उसके ज्ञान के बिना हुआ था या उसने सभी संभावित विधियों द्वारा उपरोक्त अपराध को घटित न होने देने का प्रयास किया।

    अधिनियम के अंतर्गत कारित अपराधों की प्रकृति तथा विचारण हेतु सक्षम न्यायालय

    इस अधिनियम के अंतर्गत सभी अपराध संज्ञेय गैर जमानती और अशमनीय होंगे। इस अधिनियम के अंतर्गत कारित अपराध का संज्ञान अधिनियम की धारा 28 के अंतर्गत मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा लिया जाएगा।

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