क्या सरकार बिना किसी कानून के रिटायर्ड जजों को विशेष सुविधाएं देने के लिए अधिकृत है?

Himanshu Mishra

21 July 2025 10:28 AM IST

  • क्या सरकार बिना किसी कानून के रिटायर्ड जजों को विशेष सुविधाएं देने के लिए अधिकृत है?

    State of Uttar Pradesh v. Association of Retired Supreme Court and High Court Judges के 3 जनवरी 2024 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण सवाल का जवाब दिया — क्या सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से रिटायर हुए जजों को बंगला, सरकारी गाड़ी, स्टाफ जैसी पोस्ट-रिटायरमेंट (Post-Retirement) सुविधाएं किसी कानूनी अधिकार (Legal Right) के तहत मिलती हैं या ये सिर्फ सरकार की मर्जी (Discretion) पर आधारित होती हैं?

    इस केस में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रिटायर्ड जजों को दी गई सुविधाओं को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसी सुविधाएं केवल कानून के तहत दी जा सकती हैं, न कि सरकार की कृपा से।

    पोस्ट-रिटायरमेंट सुविधाएं: अधिकार या विशेषाधिकार? (Post-Retirement Benefits: Right or Privilege?)

    कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि रिटायरमेंट के बाद जजों को दी जाने वाली सुविधाएं केवल तभी वैध मानी जाएंगी जब वे किसी विधिक प्रावधान (Statutory Provision) या अधिनियम (Act) पर आधारित हों।

    अनुच्छेद 125 और 221 (Article 125 and 221) के तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के वेतन और सेवा शर्तों (Service Conditions) को विनियमित किया जाता है, लेकिन रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली सुविधाएं इन अनुच्छेदों के दायरे में नहीं आतीं। इसलिए इन्हें अधिकार के रूप में नहीं देखा जा सकता जब तक कि इनके लिए कोई वैध कानून न हो।

    सत्ता पृथक्करण और संस्थागत निष्पक्षता (Separation of Powers and Institutional Integrity)

    कोर्ट ने कहा कि सरकार द्वारा बिना कानूनी आधार के रिटायर्ड जजों को सुविधाएं देना Judicial Independence यानी न्यायिक स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकता है। इससे यह धारणा बन सकती है कि जजों पर सरकार का प्रभाव है।

    इस विषय पर कोर्ट ने K. Veeraswami v. Union of India और Indira Nehru Gandhi v. Raj Narain जैसे मामलों का हवाला दिया, जहाँ यह कहा गया था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता केवल वास्तविक नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक (Symbolic) रूप से भी दिखाई देनी चाहिए।

    सुविधाएं देने के लिए वैध कानूनी आधार (Legal Authority for Granting Benefits)

    कोर्ट ने कहा कि किसी भी पोस्ट-रिटायरमेंट सुविधा को देने के लिए वैध कानून या अधिसूचना (Notification) जरूरी है। अगर ऐसा कोई वैधानिक आधार नहीं है तो सरकार इन सुविधाओं को नहीं दे सकती।

    उत्तर प्रदेश सरकार ने सिर्फ सरकारी आदेशों (Government Orders – GOs) के माध्यम से ये सुविधाएं दी थीं जैसे कि टाइप-VI बंगले, गाड़ी, ड्राइवर, स्टाफ आदि। लेकिन कोर्ट ने पाया कि इन GOs का कोई वैधानिक आधार नहीं था और इसलिए ये असंवैधानिक (Unconstitutional) थे।

    समानता का अधिकार और सार्वजनिक उत्तरदायित्व (Equality Before Law and Public Accountability)

    अनुच्छेद 14 (Article 14) के तहत हर व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि रिटायर्ड जज एक विशेष वर्ग (Privileged Class) नहीं बन सकते जिन्हें कानून के बाहर जाकर सुविधाएं दी जाएं।

    State of West Bengal v. Anwar Ali Sarkar और E.P. Royappa v. State of Tamil Nadu जैसे केसों में यह तय किया गया था कि राज्य का कोई भी निर्णय मनमाना (Arbitrary) नहीं होना चाहिए और उसमें उचित तर्कसंगतता (Rationality) होनी चाहिए।

    सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग (Misuse of Public Resources)

    कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारी बंगले, गाड़ियाँ और स्टाफ जैसी सुविधाएं उन लोगों को नहीं दी जा सकतीं जो अब संवैधानिक पद पर नहीं हैं। ये सार्वजनिक संपत्तियाँ (Public Property) हैं और इनका प्रयोग केवल सार्वजनिक हित (Public Purpose) में होना चाहिए।

    यह विचार S.D. Bandi v. Divisional Traffic Officer और Lok Prahari v. State of Uttar Pradesh जैसे मामलों से जुड़ा है, जहाँ कोर्ट ने कहा था कि सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।

    न्यायपालिका में जनता का विश्वास बनाए रखना (Maintaining Public Confidence in the Judiciary)

    कोर्ट ने यह चिंता जताई कि अगर कार्यपालिका (Executive) अपने विवेक से रिटायर्ड जजों को सुविधाएं देती है, तो जनता को यह संदेह हो सकता है कि क्या ये सुविधाएं किसी 'सौदे' (Favour) का हिस्सा थीं। इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता (Impartiality) पर सवाल खड़े हो सकते हैं।

    न्यायिक गरिमा (Judicial Dignity) को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि कोई भी रिटायर्ड जज सरकार से अनावश्यक सुविधा न ले और न्यायपालिका की छवि पर कोई आंच न आए।

    न्यायपालिका की भूमिका: हितों का टकराव न हो (Judiciary's Own Role: Avoiding Conflict of Interest)

    कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका खुद अपने लिए पोस्ट-रिटायरमेंट सुविधाओं की अनुशंसा (Recommendation) नहीं कर सकती। ऐसा करना Nemo Judex in Causa Sua के सिद्धांत (No One Shall Be Judge in His Own Cause) का उल्लंघन होगा।

    इसलिए किसी भी प्रकार की सुविधा के लिए विधायिका (Legislature) या स्वतंत्र संवैधानिक निकाय (Independent Constitutional Body) के माध्यम से प्रक्रिया होनी चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में यह दृढ़ संदेश दिया कि रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली सुविधाएं कोई विशेषाधिकार नहीं बल्कि कानूनी नियमों पर आधारित होनी चाहिए। इस निर्णय ने संविधान के मूल सिद्धांतों – न्यायिक स्वतंत्रता (Judicial Independence), समानता (Equality), और पारदर्शिता (Transparency) – को फिर से पुष्टि दी।

    उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी आदेशों को रद्द करते हुए कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकार बिना वैधानिक आधार के न तो किसी को विशेष सुविधा दे सकती है और न ही सार्वजनिक संसाधनों का निजी लाभ के लिए प्रयोग कर सकती है।

    यह निर्णय न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने और जनता के विश्वास को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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