क्या Refund के लिए दिया गया Pay Order स्वीकार न करने पर Developer Interest देने के लिए ज़िम्मेदार होता है?

Himanshu Mishra

21 April 2025 11:13 AM

  • क्या Refund के लिए दिया गया Pay Order स्वीकार न करने पर Developer Interest देने के लिए ज़िम्मेदार होता है?

    K.L. Suneja v. Dr. (Mrs.) Manjeet Kaur Monga के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम कानूनी प्रश्न पर विचार किया – क्या जब Developer किसी राशि की वापसी (Refund) के लिए Pay Order देता है, और प्राप्तकर्ता उसे स्वीकार या भुनाता (Encash) नहीं है, तो क्या Developer फिर भी उस राशि पर Interest (ब्याज) देने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है? कोर्ट ने इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक दिया और यह स्पष्ट किया कि यदि Developer ने कानून के अनुसार भुगतान की प्रक्रिया पूरी कर दी है, तो आगे की देरी के लिए उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

    CPC के नियम और ब्याज की समाप्ति (CPC Provisions and End of Interest Liability)

    सुप्रीम कोर्ट ने Code of Civil Procedure (CPC), 1908 की Order XXI का उल्लेख करते हुए बताया कि जब किसी व्यक्ति (Debtor) द्वारा Decree के अनुसार किसी राशि का भुगतान Bank के माध्यम से किया जाता है – जैसे कि Pay Order, Demand Draft या Banker's Cheque – तो वह एक वैध Payment (भुगतान) माना जाता है।

    Order XXI Rule 1 के अनुसार, जब यह भुगतान कर दिया जाता है और उसकी सूचना Decree Holder को दे दी जाती है, तो उस राशि पर आगे Interest चलना बंद हो जाता है। यह नियम न्यायसंगत (Equitable) और व्यवहारिक (Prudent) है ताकि कोई व्यक्ति जिसकी ओर से पैसा दिया गया हो, उसे अनावश्यक रूप से ब्याज की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी न उठानी पड़े।

    Restitution (प्रतिपूर्ति) का सिद्धांत और इसकी सीमाएं

    Section 144 CPC में Restitution का सिद्धांत है, जिसका मतलब होता है कि किसी को अनुचित लाभ (Unjust Enrichment) न हो और यदि ऐसा हो, तो उस स्थिति को सुधार कर पक्षकार को पहले की स्थिति में वापस लाया जाए।

    लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह सिद्धांत हर मामले में स्वतः लागू नहीं होता। यदि पैसा लौटाने की प्रक्रिया नियम के अनुसार पूरी कर दी गई हो, और उसके बाद Payee (राशि प्राप्तकर्ता) खुद ही उस राशि को लेने के लिए कदम न उठाए, तो फिर Developer को अतिरिक्त Interest देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

    पूर्ववर्ती फैसलों का उल्लेख (Important Judgments Referred)

    Gurpreet Singh v. Union of India (2006) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक बार Decree के अनुसार राशि जमा हो जाए या Payee को दे दी जाए, तो उस राशि पर Interest देना बंद हो जाता है।

    इसी प्रकार, V. Kala Bharathi v. Oriental Insurance Company Ltd. (2014) में Court ने स्पष्ट किया था कि Order XXI के नियमों का पालन करने पर Decree Holder को ब्याज का दावा आगे नहीं किया जा सकता।

    Citibank v. Hiten Dalal और Sailen Krishna Majumdar v. Malik Labhu Masih जैसे मामलों में भी कोर्ट ने कहा था कि जहां दोनों पक्ष अपनी Equity (नैतिक समानता) का दावा करते हों, वहां न्यायिक व्यवस्था (Legal System) को कानून के अनुसार निर्णय देना चाहिए, न कि केवल सहानुभूति के आधार पर।

    प्रक्रियात्मक चूक और उसका प्रभाव (Procedural Oversight and Its Consequences)

    इस मामले में Developer ने 30 अप्रैल 2005 को ₹4,53,750 का Pay Order complainant (शिकायतकर्ता) को भेजा था। शिकायतकर्ता ने उसे स्वीकार न कर के वापस कर दिया और बाद में उसे MRTP Commission में Complaint के साथ जमा कर दिया।

    लेकिन शिकायतकर्ता ने कभी यह आदेश नहीं माँगा कि Pay Order को किसी Interest-bearing Account में जमा किया जाए। न ही उन्होंने यह माँगा कि इसे बिना पूर्वाग्रह (Without Prejudice) के भुनाया जाए जिससे उनका Compensation का दावा सुरक्षित रह सके।

    Court ने कहा कि यदि शिकायतकर्ता ने ऐसा कोई कदम उठाया होता, तो उनकी राशि सुरक्षित रहती और Interest भी मिल सकता था। लेकिन उनकी निष्क्रियता (Inaction) के कारण Developer को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

    Bank की भूमिका और ब्याज पर स्पष्टता (Bank's Role and Interest Explanation)

    Citibank ने स्पष्ट किया कि Pay Order के लिए राशि Developer के खाते से काट ली गई थी और वह राशि उनके Unclaimed Sundry Account में बिना ब्याज के रखी गई थी। RBI के नियमों के अनुसार, ऐसे मामलों में Bank Interest नहीं देता।

    Tribunal ने इससे पहले Bank को संभावित रूप से Interest के लिए ज़िम्मेदार माना था, लेकिन Supreme Court ने कहा कि Bank ने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया और इसलिए उस पर कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती।

    Equity (नैतिकता) के आधार पर Compensation की माँग को Court ने ठुकराया

    Court ने यह स्पष्ट किया कि केवल भावनात्मक नुकसान या सहानुभूति (Sympathy) के आधार पर Compensation नहीं दिया जा सकता। चूंकि Developer ने अपनी ज़िम्मेदारी निभा दी थी और राशि देने की प्रक्रिया पूरी कर दी थी, तो आगे की देरी या नुकसान के लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

    Tribunal ने जो 15% Compound Interest बाद की अवधि के लिए दिया था, उसे Court ने रद्द कर दिया क्योंकि उसका कोई कानूनी आधार नहीं था।

    सभी न्यायिक मंचों के लिए दिशानिर्देश (Directions for All Courts and Tribunals)

    Supreme Court ने यह महत्वपूर्ण निर्देश भी दिया कि जब भी कोई व्यक्ति Court या Tribunal की Registry में Pay Order, Demand Draft या अन्य Banking Instrument जमा करता है, तो उस राशि को अनिवार्य रूप से किसी बैंक खाते में रखा जाना चाहिए।

    इससे वह राशि सुरक्षित रहेगी और Interest अर्जित करेगी, जिससे भविष्य में इस तरह के विवाद नहीं होंगे। Court ने कहा कि हर न्यायिक संस्था को ऐसे मामलों में नियम (Guidelines) बनाने चाहिए ताकि किसी भी पक्ष को अनावश्यक नुकसान न हो।

    K.L. Suneja v. Dr. Manjeet Kaur Monga का यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि अगर Developer कानून के अनुसार Refund कर देता है और उसके बाद Complaint करने वाला व्यक्ति खुद ही राशि नहीं लेता या कोई आदेश नहीं लेता, तो Developer पर आगे का ब्याज नहीं लगाया जा सकता।

    यह फैसला न केवल कानून के तकनीकी पहलुओं को समझाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि न्याय केवल सहानुभूति से नहीं, बल्कि स्पष्ट नियमों और जिम्मेदारी पर आधारित होता है। यह निर्णय सभी Courts, Developers और Litigants के लिए एक दिशा-निर्देश की तरह काम करेगा और भविष्य में इसी तरह के विवादों से निपटने में मदद करेगा।

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