क्या इस्तीफा देना पर्याप्त है ताकि ऑडिटर Companies Act की कार्रवाई से बच सके? – धारा 140(5) की समीक्षा
Himanshu Mishra
10 Jun 2025 5:04 PM IST

धारा 140(5) की संवैधानिक वैधता (Constitutional Validity of Section 140(5))
सुप्रीम कोर्ट ने Union of India बनाम Deloitte Haskins and Sells LLP (2023) मामले में यह स्पष्ट किया कि Companies Act, 2013 की धारा 140(5) संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार – Right to Equality) और अनुच्छेद 19(1)(g) (व्यवसाय करने का अधिकार – Right to Practice Profession) का उल्लंघन नहीं करती।
कोर्ट ने माना कि यह प्रावधान न तो मनमाना (Arbitrary) है और न ही भेदभावपूर्ण (Discriminatory)। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऑडिटर (Auditor) अपने पेशेवर कर्तव्यों में ईमानदार रहें और किसी धोखाधड़ी (Fraud) में शामिल न हों। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि ऑडिटर इस्तीफा दे भी दे, तो भी धारा 140(5) के तहत शुरू हुई कार्यवाही समाप्त नहीं होती।
धारा 140(5) का उद्देश्य और क्षेत्र (Nature and Scope of Section 140(5))
इस धारा के तहत National Company Law Tribunal (NCLT) को यह शक्ति दी गई है कि वह किसी ऑडिटर को हटाने (Removal) का आदेश दे सके यदि उसके विरुद्ध प्राइमाफेसी (Prima Facie) में धोखाधड़ी या मिलीभगत (Collusion) के संकेत हों।
इसके दो प्रमुख प्रभाव होते हैं: पहला, तुरंत ऑडिटर को हटाना; और दूसरा, दोष सिद्ध होने पर उसे पांच वर्षों तक किसी भी कंपनी में पुनर्नियुक्त (Reappointment) से अयोग्य (Ineligible) घोषित कर देना। कोर्ट ने व्याख्या की कि इस्तीफा देना इस कार्यवाही से बचने का तरीका नहीं बन सकता।
धारा 140(5) के दो प्रावधानों की व्याख्या (Interpretation of the Two Provisos)
पहला प्रावधान यह शक्ति देता है कि यदि प्रारंभिक जांच में धोखाधड़ी के संकेत मिलें तो NCLT कंपनी को ऑडिटर को हटाने का निर्देश दे और सरकार एक नया ऑडिटर नियुक्त करे। यह एक अंतरिम (Interim) उपाय है।
दूसरा प्रावधान तब लागू होता है जब ऑडिटर को दोषी ठहराया गया हो, और इसके परिणामस्वरूप उसे भविष्य में पांच साल तक किसी भी कंपनी में ऑडिटर नियुक्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई ऑडिटर कार्यवाही के दौरान इस्तीफा दे, तो भी इन प्रावधानों का प्रभाव बना रहेगा।
विधायी पृष्ठभूमि (Legislative History)
कोर्ट ने बताया कि यह प्रावधान बड़े कॉर्पोरेट घोटालों (Corporate Scams) और ऑडिट विफलताओं (Audit Failures) के बाद लाया गया था। J.J. Irani Committee और संसद की स्थायी समितियों (Parliamentary Standing Committees) ने ऐसी सिफारिशें दी थीं, जिनमें ऑडिटरों के लिए सख्त दंडात्मक प्रावधान (Punitive Measures) शामिल थे।
Companies Bill, 2009 और बाद में Companies Act, 2013 में इन्हीं सिफारिशों को अपनाया गया। कोर्ट ने कहा कि इससे यह स्पष्ट होता है कि विधायिका (Legislature) की मंशा ऑडिटरों की जवाबदेही सुनिश्चित करने की थी और इस्तीफा देना कभी भी दायित्व से बचने का माध्यम नहीं माना गया।
Companies Act की अन्य धाराओं से तुलना (Comparison with Other Provisions)
कोर्ट ने यह विश्लेषण किया कि यह धारा Companies Act की अन्य धाराओं – जैसे धारा 132 (NFRA की शक्तियाँ), 143, 144, 147, 241 और 447 – के साथ कैसे जुड़ती है। धारा 140(5) की विशेषता यह है कि यह NCLT को एक सिविल प्रकृति की कार्यवाही (Civil Nature Proceedings) के माध्यम से दोषी ऑडिटरों को तत्काल प्रभाव से हटाने और भविष्य की नियुक्तियों से अयोग्य घोषित करने का अधिकार देती है।
जबकि धारा 447 जैसे प्रावधान आपराधिक कार्रवाई (Criminal Proceedings) की प्रक्रिया अपनाते हैं और उनमें सजा तभी दी जाती है जब अपराध सिद्ध हो जाए।
जनहित से जुड़ी धारा (Section 140(5) and Public Interest)
कोर्ट ने कहा कि ऑडिटर की भूमिका सार्वजनिक विश्वास (Public Trust) से जुड़ी है। वे कंपनी की वित्तीय पारदर्शिता (Financial Transparency) सुनिश्चित करते हैं। यदि वे धोखाधड़ी में लिप्त हों, तो इससे न केवल कंपनी को नुकसान होता है, बल्कि निवेशकों, शेयर बाजार और आम जनता को भी क्षति पहुँचती है। Devas Multimedia Pvt. Ltd. v. Antrix Corporation Ltd. मामले में कहा गया था कि धोखाधड़ी (Fraud) हर चीज को प्रभावित कर देती है और इससे सख्ती से निपटना आवश्यक है। कोर्ट ने इसे दोहराया।
इस्तीफे के बाद कार्यवाही जारी रहने की वैधता (Maintainability of Proceedings after Resignation)
एक अहम सवाल यह था कि क्या यदि ऑडिटर इस्तीफा दे देता है तो NCLT में चल रही कार्यवाही निष्फल (Infructuous) हो जाती है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना था कि इस्तीफे के बाद यह धारा लागू नहीं रहती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मत को अस्वीकार करते हुए कहा कि यदि इस्तीफा देने मात्र से ऑडिटर जांच से बच सकता है, तो यह कानून की भावना (Spirit of the Law) को विफल कर देगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस्तीफा जांच से नहीं बचा सकता और कार्यवाही जारी रह सकती है।
धारा 241(3) से तुलना (Relation to Section 241(3))
प्रतिवादियों ने यह तर्क दिया कि इस्तीफे के बाद धारा 241(3) के तहत कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें कंपनी के संचालन से जुड़े अयोग्य व्यक्तियों को हटाया जा सकता है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि धारा 241(3) केवल प्रबंधन (Management) से जुड़े व्यक्तियों पर लागू होती है – जैसे निदेशक (Directors) या अधिकारी – जबकि ऑडिटर बाहरी पेशेवर (External Professional) होते हैं। इसलिए उनके लिए धारा 140(5) ही उपयुक्त प्रावधान है।
निषेध की सीमा (Scope of Debarment)
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 140(5) के तहत जो अयोग्यता लगाई जाती है, वह सिर्फ व्यक्तिगत ऑडिटर तक सीमित नहीं है। यदि किसी ऑडिट फर्म (Audit Firm) के कई साझेदार (Partners) धोखाधड़ी में शामिल हों, तो पूरी फर्म को भी निषेधित (Debarred) किया जा सकता है। धारा 147 के तहत फर्म और साझेदार दोनों पर संयुक्त जिम्मेदारी (Joint and Several Liability) लग सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कंपनी कानून (Company Law) में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह स्पष्ट करता है कि Companies Act की धारा 140(5) केवल ऑडिटर को हटाने के लिए नहीं है, बल्कि यह ऑडिटर की भूमिका और आचरण की जांच के लिए एक प्रभावशाली उपकरण (Effective Mechanism) है।
इस्तीफा देना किसी भी तरह से जवाबदेही से बचाव नहीं है। इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस (Corporate Governance) की नींव पारदर्शिता, ईमानदारी और जिम्मेदारी पर टिकी होती है – और ऑडिटर की भूमिका इसमें सबसे अहम है।