क्या प्रतियोगी परीक्षाओं में साक्षर की सुविधा न देना दिव्यांग अधिकारों का उल्लंघन है? - विकास कुमार बनाम UPSC
Himanshu Mishra
21 Sept 2024 6:10 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने विकास कुमार बनाम यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) (2021) के मामले में दिव्यांग अधिकारों (Disability Rights) और प्रतियोगी परीक्षाओं (Competitive Exams) में समान अवसर के महत्वपूर्ण मुद्दे पर फैसला सुनाया। इस मामले में विकास कुमार, जिन्हें 'राइटर क्रैम्प' (Writer's Cramp) नामक विकार है, सिविल सेवा परीक्षा (CSE) के लिए साक्षर (Scribe) की सुविधा चाहते थे। UPSC ने उनकी इस मांग को अस्वीकार कर दिया, जिससे उनके साथ आरक्षण नीति के तहत समान अवसरों का उल्लंघन हुआ।
इस मामले ने 'राइट्स ऑफ़ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज़ एक्ट, 2016' (RPwD Act) की व्याख्या और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए "समुचित सहूलियत" (Reasonable Accommodation) की सीमा को लेकर प्रश्न उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने विकास कुमार के पक्ष में निर्णय दिया, और यह स्पष्ट किया कि हर व्यक्ति को, चाहे वह शारीरिक रूप से सक्षम हो या दिव्यांग, सभी सार्वजनिक अवसरों तक समान पहुंच होनी चाहिए।
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि (Factual Background)
विकास कुमार, जिन्हें डिस्ग्राफिया (Dysgraphia) या "राइटर क्रैम्प" की समस्या है, 2018 में सिविल सेवा परीक्षा (CSE) में शामिल हुए। पिछले प्रयास में उन्हें साक्षर (Scribe) प्रदान किया गया था, लेकिन 2018 में UPSC ने उनकी यह सुविधा देने से मना कर दिया। UPSC ने सिविल सेवा परीक्षा नियम, 2018 (CSE Rules 2018) का हवाला दिया, जिसके अनुसार केवल "बेंचमार्क दिव्यांगता" (Benchmark Disability) वाले उम्मीदवारों को ही साक्षर की सुविधा दी जाती है।
कुमार को पहले दिव्यांगता प्रमाणपत्र (Disability Certificate) देने से मना किया गया था, जिसके कारण उन्होंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल (CAT) में याचिका दायर की, लेकिन वहां भी उनकी अपील खारिज हो गई। फिर वह दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) गए, जहां से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली। अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
कानूनी ढांचा: 'राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज़ एक्ट, 2016' (Legal Framework: RPwD Act, 2016)
यह मामला मुख्य रूप से राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज़ एक्ट, 2016 (RPwD Act) की व्याख्या पर आधारित था। इस अधिनियम के तहत "दिव्यांग व्यक्ति" (Persons with Disabilities) और "बेंचमार्क दिव्यांगता" (Benchmark Disability) के बीच भेद किया गया है। बेंचमार्क दिव्यांगता 40% या उससे अधिक हानि को दर्शाती है, जबकि "दिव्यांग व्यक्ति" किसी भी दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक या बौद्धिक हानि को इंगित करता है, जो उनके समाज में पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा डालता है।
मामले का प्रमुख प्रश्न यह था कि क्या साक्षर की सुविधा पाने के लिए बेंचमार्क दिव्यांगता आवश्यक है, या क्या RPwD अधिनियम के तहत व्यापक रूप से दिव्यांगता की परिभाषा पर्याप्त है?
प्रमुख तर्क (Key Arguments)
याचिकाकर्ता के तर्क (Appellant's Arguments)
विकास कुमार के वकील ने तर्क दिया:
1. राइटर क्रैम्प एक दिव्यांगता है: डिस्ग्राफिया या राइटर क्रैम्प को RPwD अधिनियम के तहत एक दिव्यांगता के रूप में मान्यता प्राप्त है। हालांकि यह बेंचमार्क दिव्यांगता नहीं है, फिर भी यह कुमार की लिखने की क्षमता को प्रभावित करता है, जिससे उन्हें सहूलियत (Accommodation) की आवश्यकता है।
2. समुचित सहूलियत (Reasonable Accommodation): अधिनियम की धारा 20 के तहत, सभी सरकारी संस्थानों को दिव्यांग व्यक्तियों को "समुचित सहूलियत" प्रदान करनी चाहिए। कुमार को साक्षर की सुविधा प्रदान करना इस कानून के तहत एक उचित संशोधन (Modification) है।
3. संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन: UPSC का निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक सेवा में समान अवसर) का उल्लंघन करता है। दिव्यांग व्यक्तियों के लिए साक्षर की सुविधा को सीमित करना अनुचित वर्गीकरण (Unjustifiable Classification) है।
प्रतिवादी के तर्क (Respondent's Arguments)
UPSC ने तर्क दिया :
1. बेंचमार्क दिव्यांगता की आवश्यकता: CSE नियमों के अनुसार, केवल वे उम्मीदवार जो बेंचमार्क दिव्यांगता के तहत आते हैं, उन्हें साक्षर की सुविधा दी जाती है। चूंकि कुमार की दिव्यांगता इस श्रेणी में नहीं आती, उन्हें यह सुविधा नहीं मिल सकती।
2. संवैधानिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं: UPSC ने यह भी तर्क दिया कि परीक्षा नियम कानून के अनुसार हैं और परीक्षा की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए इस प्रकार के नियम आवश्यक हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court's Judgment)
RPwD अधिनियम के तहत अधिकार (Rights Under RPwD Act)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि RPwD अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या संविधान के समानता और भेदभाव-निषेध (Non-discrimination) के सिद्धांतों के आधार पर की जानी चाहिए। अधिनियम का उद्देश्य दिव्यांग व्यक्तियों को समाज में पूर्ण और प्रभावी भागीदारी (Participation) प्रदान करना है।
कोर्ट ने पाया कि UPSC का बेंचमार्क दिव्यांगता की आवश्यकता पर जोर देना असंगत (Unreasonable) है। अधिनियम स्पष्ट रूप से दिव्यांग व्यक्तियों और बेंचमार्क दिव्यांग व्यक्तियों में भेद करता है, और कुमार को साक्षर न देना उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
संवैधानिक पहलू: अनुच्छेद 14, 19, और 21 (Constitutional Dimensions: Articles 14, 19, and 21)
कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14, 19, और 21 दिव्यांग व्यक्तियों पर भी समान रूप से लागू होते हैं। साक्षर की सुविधा न देना उनके समाज में पूर्ण भागीदारी के अधिकार का उल्लंघन है, जो उनकी समानता और गरिमा (Dignity) को प्रभावित करता है।
समुचित सहूलियत और सरकार की भूमिका (Reasonable Accommodation and Role of Government)
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि समुचित सहूलियत (Reasonable Accommodation) का सिद्धांत यह मांग करता है कि सार्वजनिक अधिकारी दिव्यांग व्यक्तियों को आवश्यक सहूलियत प्रदान करें ताकि वे सभी सार्वजनिक अवसरों में भाग ले सकें। यह केवल बेंचमार्क दिव्यांगता तक सीमित नहीं होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला विकास कुमार बनाम UPSC ने यह स्पष्ट किया कि दिव्यांग अधिकारों (Disability Rights) की व्याख्या में लचीलापन (Flexibility) और समावेशिता (Inclusivity) आवश्यक हैं। यह फैसला दिव्यांग व्यक्तियों को सभी अवसरों में समान पहुंच देने पर जोर देता है, विशेष रूप से सार्वजनिक सेवाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं में। इस निर्णय ने भारतीय कानून में दिव्यांगता अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी व्यक्ति कठोर नियमों के कारण अपने अधिकारों से वंचित न हो।