क्या CBI को भ्रष्टाचार मामलों में प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य है?

Himanshu Mishra

24 Dec 2024 8:28 PM IST

  • क्या CBI को भ्रष्टाचार मामलों में प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य है?

    भारत के सुप्रीम कोर्ट ने Central Bureau of Investigation v. Thommandru Hannah Vijayalakshmi (2021) मामले में एक महत्वपूर्ण सवाल पर विचार किया: क्या भ्रष्टाचार के मामलों में FIR दर्ज करने से पहले Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) करना अनिवार्य है?

    इस फैसले का असर Prevention of Corruption Act, 1988 (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988) और CBI की जांच प्रक्रियाओं पर पड़ा है। अदालत ने यह संतुलन बनाने की कोशिश की कि जांच प्रक्रिया सुचारू रहे और व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा हो।

    विधिक ढांचा और प्रासंगिक प्रावधान (Legal Framework and Relevant Provisions)

    यह मामला मुख्य रूप से Section 13(1)(e) (अधिनियम की धारा 13(1)(e)) से संबंधित था, जो सरकारी कर्मचारियों द्वारा अनुपातहीन संपत्ति रखने से संबंधित है, और Section 109 IPC (धारा 109 भारतीय दंड संहिता), जो उकसाने (Abetment) से संबंधित है।

    इस मामले में सवाल यह था कि क्या CrPC (दंड प्रक्रिया संहिता) और CBI Manual (मैनुअल) के तहत Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) अनिवार्य है।

    सुप्रीम कोर्ट के विचार (Supreme Court's Observations)

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भ्रष्टाचार के मामलों में FIR दर्ज करने से पहले Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) अनिवार्य नहीं है। Lalita Kumari v. Government of Uttar Pradesh (2014) के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि अगर प्राप्त जानकारी से प्राथमिक दृष्टि में संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) का पता चलता है, तो Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) की आवश्यकता नहीं है।

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) का उद्देश्य केवल यह पता लगाना है कि क्या जानकारी में कोई संज्ञेय अपराध है, न कि आरोपों की सत्यता की पुष्टि करना। यदि विश्वसनीय जानकारी के आधार पर FIR दर्ज की जाती है, तो Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) न होने से FIR अवैध नहीं हो जाती।

    पूर्व के फैसलों का विश्लेषण (Analysis of Precedents)

    इस मामले में अदालत ने कई पुराने फैसलों का संदर्भ दिया, जो Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं:

    1. Lalita Kumari v. Government of Uttar Pradesh (ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार)

    इस फैसले में कहा गया कि अगर प्राप्त जानकारी से संज्ञेय अपराध का पता चलता है, तो FIR दर्ज करना अनिवार्य है। हालांकि, भ्रष्टाचार के मामलों में Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) वांछनीय हो सकती है, लेकिन अनिवार्य नहीं।

    2. P. Sirajuddin v. State of Madras (पी. सिराजुद्दीन बनाम मद्रास राज्य)

    इस फैसले में कहा गया कि सरकारी कर्मचारियों पर झूठे आरोपों से बचाने के लिए Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) आवश्यक है।

    3. Managipet v. State of Telangana (मनगिपेट बनाम तेलंगाना राज्य)

    अदालत ने स्पष्ट किया कि Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) करना जांच एजेंसी का विवेक है और आरोपी इसे अधिकार के रूप में नहीं मांग सकता।

    4. K. Veeraswami v. Union of India (के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ)

    इस फैसले में अदालत ने कहा कि FIR दर्ज करने से पहले आरोपी को अपनी संपत्ति की सफाई देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इससे जांच प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।

    CBI मैनुअल की भूमिका (Role of the CBI Manual)

    CBI Manual (मैनुअल), जो कि एक सलाहकार दस्तावेज़ है, यह सुझाव देता है कि Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) तभी की जानी चाहिए जब उपलब्ध जानकारी से स्पष्ट रूप से संज्ञेय अपराध का पता न चलता हो। यदि जानकारी पर्याप्त हो, तो सीधे Regular Case (नियमित मामला) दर्ज किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि CBI Manual (मैनुअल) कानून से ऊपर नहीं है और इसका पालन विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए।

    मुख्य मुद्दे जिन पर अदालत ने विचार किया (Fundamental Issues Addressed)

    • जांच की आवश्यकता और व्यक्तियों के अधिकारों के बीच संतुलन (Balance Between Investigative Needs and Rights of Individuals)

    अदालत ने कहा कि जहां सरकारी कर्मचारियों को झूठे आरोपों से बचाना आवश्यक है, वहीं अनावश्यक प्रक्रियात्मक बाधाओं से जांच में देरी नहीं होनी चाहिए।

    • न्यायिक निगरानी (Judicial Oversight)

    अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि FIR को रद्द करने में न्यायालय को सावधानी बरतनी चाहिए, विशेष रूप से भ्रष्टाचार के मामलों में, ताकि वैध जांच में बाधा न आए।

    CBI v. Thommandru Hannah Vijayalakshmi में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि Preliminary Enquiry (प्रारंभिक जांच) अनिवार्य नहीं है। यह फैसला भ्रष्टाचार विरोधी उपायों और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के बीच संतुलन बनाता है। यह न्यायपालिका के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप है, जिसमें जांच प्रक्रिया को प्रभावी और निष्पक्ष बनाए रखने पर जोर दिया गया है।

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